Thursday, April 25, 2024

सामाजिक मुद्दे

‘द वायर’ के हिसाब से भारतीय हिन्दू ही आतंकी हैं जिन्होंने समुदाय विशेष पर हिंसा की है! हाउ क्यूट!

मतलब, संकट मोचन मंदिर से लेकर लोकतंत्र के मंदिर संसद तक हमले में मरने वाले अधिकतर लोग हिन्दू ही होते हैं (क्योंकि जनसंख्या ज्यादा है और टार्गेट पर भी वही होते हैं) और मारने वाले हर बार कट्टरपंथी होते हैं, फिर भी असली हिंसा तो गौरक्षकों द्वारा गौतस्करों को सरेराह पीट देना है।

गढ़चिरौली को अब पुलवामा वाली प्रतिक्रिया की ज़रूरत है: निशानदेही और घेर कर वार

माओवादी कहीं ना कहीं अब ये बात जान और समझ गए हैं कि 'जल-जंगल-जमीन' का उनका नारा अब प्रासंगिक नहीं रहा है। इनके पोषक ये बात अच्छे से जानते है कि यदि अब यह 3 मुद्दे ही प्रासंगिक नहीं रहे, तो अब माओवंशी किस तरह से अपना अभियान आगे बढ़ाएँ? लोगों के बीच डर पैदा कर के ही ये आतंकवादी संगठन अब प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं।

क्या स्वरा भास्कर की अभिव्यक्ति उनकी FoE और दूसरे व्यक्ति की FoE यौन कुंठा है?

'वीरे दी वेडिंग' फिल्म में खुलकर अपने 'मन की बात' करने वाली स्वरा भास्कर को बहुत आसानी से नारीवाद का चेहरा बना कर पेश किया जाने लगा है। यह वर्तमान समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि महिलाओं के अधिकारों को उसके शारीरिक सुख और जबरन फूहड़पन मात्र से जोड़कर पेश कर देने से वो समाज में महिलाओं की नई पहचान दिलाने वाले ठहराए जाने लगते हैं।

डियर लड़कियो, 16 की उम्र खुद को परिपक्व बनाने की है… सेक्स करने की नहीं

सेक्स बहुत बुरी चीज है, इसके कारण लड़कियों का भविष्य बर्बाद हो रहा है - ऐसी बात नहीं है। लेकिन यह जरूर है कि जिस उम्र में सेक्स को लीगल करने की बात हो रही है, हमारा समाज उसके लिए तैयार नहीं है और न ही उसके लिए 16 के उम्र की लड़कियाँ तैयार हैं।

The Print वालों, सीधे-सीधे बोलो हिन्दू प्रतीकों से सुलग जाती है (सीने में आग)

समुदाय विशेष वाले तब तक ‘बेचैन’ रहेंगे जब तक धर्म और संस्कृति, हिन्दू पंथ और सम्प्रदाय की हर अभिव्यक्ति बंद नहीं हो जाती। केवल सरकारी ही नहीं, निजी भी। यही हिन्दूफोबिया है। The Print वालों ने इस लेख से प्रोपेगेंडा को नई ऊंचाई दी है।

लिंगलहरी कन्हैया कुमार के गुंडे चुनावी गाड़ियों में डंडे-ईंट-पत्थर लेकर क्यों चलते हैं?

हिंसा और सेक्स तो कामरेडों का प्रमुख हथियार है, यूनिवर्सिटी में तो जबरदस्ती करते ही हैं, बाद में, विद्यार्थी से नक्सली बनने तक, जंगलों में 'नारी देह कम्यून की प्रॉपर्टी है' के नाम पर महिला काडरों को आईसिस की तर्ज़ पर सेक्स स्लेव बना कर रखते हैं।

मोदी शो ने दी हवा, थोड़ा-सा धुआँ उठा, लिबरलों की जल गई!

हिन्दुओं की धरती है, सर्वसमावेशी विचार के लोग हैं, सहिष्णुता के प्रवर्तक और स्नेह में डूबे हुए लोग कि इस्लामी आक्रमणकारियों, इस्लामी बलात्कारियों, इस्लामी और विदेशी हत्यारों को भी बसने की ज़मीन दी। और कितने उदाहरण चाहिए? ऐसे लोग किसी को क्या डराएँगे? हम तो स्वयं ही हर पर्व पर एक खास तरह के आतंक से डर जीते रहे हैं। अब तो तुम हमें, जीने दो, जीने दो!

NDTV वालों के लिए लिए स्त्री का अपमान सिर्फ ‘तंज’ है, सेक्सिज़्म तो चलता है

दिक्कत है मामले की गंभीरता और शब्दों के चुनाव से छिछोरेपन को, सेक्सिस्ट बयान को, नारीविरोधी शब्दों को 'तंज' और 'ज़ुबानी जंग' के नाम पर ऐसे प्रस्तुत करना जैसे इतना तो चलता है।

वामपंथी आतंकवाद और आईसिस के मजहबी जिहाद में कोई अंतर नहीं, बिलकुल नहीं

मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि फ़लाँ किताब के फ़लाँ चैप्टर में यह लिखा है कि एक मानव की हत्या पूरे मानवता की हत्या है, क्योंकि ये कहने की बातें हैं, इनका वास्तविकता से कोई नाता नहीं है। ये फर्जी बातें हैं जो आतंकियों के हिमायती उनके बचाव में इस्तेमाल करते हैं।

इस्लाम बनाम ईसाई: श्री लंका बम धमाके, चर्च, 200 लाशें, जाहरान हाशिम, अबु मुहम्मद…

हमें पोलिटिकली करेक्ट होकर स्वीकारने में भले ही अनंत काल लग जाए, लेकिन सत्य यही है कि बड़े आतंकी हमलों के केन्द्र में इस्लामी विचारधारा और आईसिस का झंडा है।

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