Friday, April 26, 2024
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‘लायर’ के श्रीयुत वेणु जी, जैसा कि माओवंशी कहा करते हैं, ‘थोड़ा पढ़िए मुद्दे पर’, घाघपना तो चलता रहेगा

ऐसा है चचा, कश्मीर में आज़ादी की बातें तो होती थी, लेकिन उसकी जड़ में वही इस्लाम है, वही ख़िलाफ़त है, क्योंकि वो आज़ाद होकर समुदाय विशेष का कश्मीर होगा न कि धर्मनिरपेक्ष कश्मीर। इसलिए, हिन्दू-मुस्लिम ही तो है जड़ में, गाय-गोबर तो अब सामने आ रहा है क्योंकि आज़ादी में अब ISIS का झंडा भी आ गया है, और साल के 250 जहन्नुम पहुँच रहे हैं। ।

श्रीयुत वेणु जी एक बहुत बड़े पत्रकार माने जाते हैं। उम्र ज़्यादा है, तो अनुभव भी उसी हिसाब से होगा, ऐसा माना जाता है। लेकिन अनुभव के साथ-साथ घाघपन भी उसी अनुपात में आ जाता है क्योंकि तब आप बहुत कुछ जानकर, उस स्थिति में आ जाते हैं कि अपनी बुद्धि का प्रयोग बातों को बताने, छुपाने और मरोड़ने में लगा देते हैं। 

श्रीयुत वेणु जी ने अपने लेटेस्ट आर्टिकल की हेडलाइन ही इतनी मारक दे दी है कि ‘द लायर’ जैसे स्थापित प्रोपेगेंडा पोर्टल पर लाखों में शेयरिंग हो जाती, लेकिन विष की मात्रा कम रहने से 882 तक ही पहुँच पाई। ख़ैर, नंबर से क्या लेना-देना, क्वालिटी और तर्क भी कुछ चीज होते हैं। तो, हेडलाइन है कि आने वाले लोकसभा चुनावों में कश्मीर मुद्दा (पढ़ें पुलवामा आतंकी हमला) पूरी तरह से पोलिटिसाइज किया जाएगा। 

वेणु जी के हेडलाइन से आपको लगेगा कि आदमी जादूगर भी है जो भविष्य देख लेता है। न, न, आप इसे विश्लेषण मत कहिए, क्योंकि ये विश्लेषण नहीं विकृत मानसिकता और अंधविरोध में सना विषवमन मात्र है, जिसका एक मात्र उद्देश्य यह बताना है कि मोदी कितना गिरा हुआ आदमी है कि बलिदानों को चुनावों में भुनाएगा। 

श्रीयुत वेणु के दूसरे पैराग्राफ़ में घाघपने की बदबू आ जाती है जब वो लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने ‘संघ परिवार के संगठनों (बजरंग दल) द्वारा कश्मीरी छात्रों को को धमकाने पर चुप्पी साधी हुई है। आगे लिखते हैं कि वही प्रधानमंत्री तमाम रैलियों में बहुत ही ‘कोडेड भाषा’ में पाकिस्तान से बदला लेने की बात करते हैं। उसके बाद बेचारे लिबरल वेणु का अजेंडा छलक कर बाहर आ जाता है जब वो लिखते हैं कि मोदी के इस ‘बदले’ की बात बहुसंख्यक लोगों द्वारा अपने ही देश के लोगों (कश्मीरियों) की तरफ जा रहा है। 

ऐसा है वेणु जी कि, मैं आपकी बात मान लेता अगर आपने एक-दो हाइपरलिंक लगा रखे होते अपनी बात को कहने के लिए। आप सही मायनों में एक बहुत ही निम्न स्तर के ट्रोल हैं जो 240 कैरेक्टर के पोस्ट की जगह 1500 शब्दों का लेख लिखता है। कितने बेशर्म हैं आप कि जिस बहुसंख्यक जनता पर घृणा का आरोप लगा रहे हैं, उसके नाम आपके द्वारा कथित कश्मीरी छात्रों को मारने-पीटने-धमकाने की ख़बर नहीं। अगर है, तो पता कीजिए कि वो लोग आग ताप रहे थे और उन्हें घेरकर लोगों ने मारा या फिर वो पाकिस्तान ज़िंदाबाद और पुलवामा के वीरों की श्रद्धांजलि का अपने शैतानी अट्टहास और अश्लील कमेंट्स कर रहे थे तो पुलिस ने उन पर कार्रवाई की?

आपसे नहीं हो पाएगा, क्योंकि आपके वश की बात है नहीं। आप जैसे लम्पट बुद्धिजीवियों को ये घमंड है कि आप ज़हर का अजेंडा टेबल पर बैठकर लिख देंगे, और उसे सार्वभौमिक सत्य मान लिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है। अग़र ज्ञानेन्द्रियाँ काम नहीं कर रहीं, चीज़ों का संदर्भ पता नहीं चल रहा, तो काम छोड़ दीजिए, समाज को बाँटने का अजेंडा क्यों फैला रहे हैं? 

वामपंथी चोरकट बुद्धिजीवियों की, खासकर जो अंग्रेज़ी में लिखते हैं, आदत रही है कि पूरी दुनिया बदल जाए, ये लोग ‘जॉब क्रिएशन‘ नहीं हो रहा और ‘अग्रेरियन क्राइसिस’ पर अटके रहते हैं। जबकि सच्चाई इनके फ़ैंसी फ्रेजेज से बिलकुल अलग कुछ और ही है। नौकरियाँ लगातार बढ़ी हैं, और किसानों की हालत पहले से बेहतर है। ये बात और है कि वेणु जी वायर ही पढ़ते हैं, वायर पर ही लिखते है, वायर से ही बिजली पाते हैं, और वायर से ही इस तरह के फर्जी आर्टिकल से शॉर्ट सर्किट करके आग लगाते हैं। यही कारण है कि सत्य से बहुत दूर रहते हैं क्योंकि प्रोपेगेंडा पोर्टल पर तथ्य तो कोने में छुपा रहता है। 

ये एक प्रचलित तरीक़ा है माओ को जबरदस्ती अपना बाप बनाने वाले माओवंशी कामपंथियों का कि हर बात को वो ऐसे दिखाना चाहते हैं कि ‘ये बात करते हुए मोदी फलाने बातों से ध्यान भटकाना चाहता है’। अरे चचा, मत भटकाओ अपना ध्यान, वो तो तुम्हारे क़ब्ज़े में है ना? इनकी आदत है कि ये स्टूडियो और ऑफिस में बैठकर सरकार और कैबिनेट चुनना चाहते हैं, जबकि लोकतंत्र में असली हक़ जनता का है जिसे ये लोग मूर्ख मानकर चलते हैं। 

सच तो यह है कि यही पुलवामा हमला अगर सितम्बर में हुआ होता तो ‘चुनावों का माहौल’ वेणु के आर्टिकल के हिसाब से अभी वाला ‘दो महीना’ न होकर अक्टूबर से ही शुरु हो जाता। यही ताक़त है घाघ होने की। ‘जब जागो, तभी चुनाव’ टाइप का लॉजिक लेकर हर बात भविष्य में फेंकने वाले वेणु अभी आँख पर टिन का चश्मा और कान में ढक्कन लगाकर लिख रहे हैं क्योंकि मोदी हर दिन दो से तीन जगह जा रहा है, रैलियाँ हो रही हैं, और कहीं भी ऐसी बातें नहीं कर रहा है कि कहा जाए मोदी इसे भुना रहा है।

ये वही लोग हैं जो मोदी चुप रहता तो कहते कि कहाँ है छप्पन इंच का सीना, और बदले की बात कहते हुए मोदी देशवासियों की भावना को शब्द दे रहा है तो उसमें अजेंडा नज़र आ रहा है। वामपंथी चिरकुटों की ये पुरानी आदत रही है कि चित भी मेरी, पट भी मेरी (ये कई मायनों में इस्तेमाल होता है)। लेकिन जब जनता साथ हो तो इस तरह के अजेंडा को हवा देने वालों को वहीं तर्क से काटा जा सकता है। इसलिए वेणु जी, एनालिसिस कर रहे हैं, तो फ्यूचर टेन्स में मत घूमिए, तथ्यों पर रहिए। क्या मोदी ने किसी भी भाषण में इसको दो-चार वाक्यों से ज्यादा बोला है? पहले बयान के बाद बिलकुल नहीं। इसलिए आपकी ये घृणा फैलाने का अजेंडा वाली बात बेकार ही लगती है। 

इसके बाद श्रीयुत वेणु ने ‘गाय राग’ छेड़ दिया। आतंकी अहमद डार ने विडियो में अपनी घृणा हिन्दुओं को लेकर दिखाई तो उसका कारण भी अब हिन्दू ही हो गया है! मतलब, वेणु जी के हिसाब से, “अरे वो तो आतंकी है, उसका तो काम है बम फोड़ना, लेकिन देखो तो पहले वो आज़ादी के लिए बम फोड़ता था, अब हिन्दुओं को उड़ाने के लिए फोड़ता है। तो हिन्दू ही दोषी हुआ ना?” 

जी! और फिर वही पुरानी, घिसी-पिटी, कुतर्की बातें, जिसका कोई आधार नहीं कि समुदाय विशेष की लिंचिंग हो रही है तो अब कश्मीर के आतंकी आहत हो गए हैं, इसलिए उन्होंने आज़ादी छोड़कर मुस्लिमों के खिलाफ हो रहे हमलों का बदला लिया है! मतलब, मज़हब की हिंसक बातों में जन्नत खोजता आतंकी, चाहे वो आज़ादी की बात करे या गाय की, उसकी बातों में लॉजिक ढूँढकर पुलवामा हमले को जस्टिफाय करने के लिए अलग स्तर का विष चाहिए जो कि वेणु जी के रोम-रोम में है। 

हिन्दुओं की गाय चुराकर ले जाने वाले वही हैं, हिन्दुओं की गाय को बुलंदशहर में काटने वाले वही लोग, हिन्दुओं की गाय लेकर भागते हुए पुलिस वालों पर गाड़ी चढ़ा देने वाले वही कौम, हिन्दुओं को घेर मार देने वाले वही… ये लोग क्या जो भी करें, वो गिना नहीं जाएगा? सहिष्णुता की टोपी हिन्दुओं को क्यों पहनाते हैं? इस तरह की हत्या सामाजिक अपराध है और उसके लिए अगर पुलिस कार्रवाई न करे, तब आप स्टेट को ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं। समुदाय विशेष वाले गौ तस्कर गाय चुराना बंद कर दें, ऐसे अपराध स्वयं ही कम हो जाएँगे। क्या पता जैसा कुतर्क ऊपर किया है चचा ने, अब ये न कह दें कि हिन्दू गाय पालते ही क्यों हैं! 

आगे श्रीयुत वेणु पूछते हैं कि जिस कश्मीर में आज़ादी की बातें हुआ करती थीं, वो अब हिन्दुओं पर क्यों शिफ्ट हो रहा है! अब ऐसे ही मौक़ों के लिए हिन्दी में ‘क्यूटाचार’ शब्द का आविष्कार मैंने किया है। ऐसा है चचा, कश्मीर में आज़ादी की बातें तो होती थी, लेकिन उसकी जड़ में वही इस्लाम है, वही ख़िलाफ़त है, क्योंकि वो आज़ाद होकर समुदाय विशेष का कश्मीर होगा न कि धर्मनिरपेक्ष कश्मीर। इसलिए, हिन्दू-मुस्लिम ही तो है जड़ में, गाय-गोबर तो अब सामने आ रहा है क्योंकि आज़ादी में अब ISIS का झंडा भी आ गया है, और साल के 250 जहन्नुम पहुँच रहे हैं। कश्मीर का मसला ही इस्लाम का मसला है वरना कश्मीरी हिन्दू भी वहीं बसे होते। जैसा कि वामपंथी अक्सर डिबेट में ज्ञान देते हैं, मैं आपसे वही कहूँगा, “थोड़ा पढ़ा कीजिए, बहुत कुछ क्लियर हो जाएगा।” 

अंत में वेणु जी का पोलिटिकल एनालिसिस इतना ज़ोरदार है कि वो भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश के महत्व के बारे में लिखते हुए ‘प्रोबेबली द मोस्ट क्रूसियल’ का इस्तेमाल करते हैं! ये पढ़कर मुझे लगा कि जो आदमी उत्तर प्रदेश के लिए ‘प्रोबेबली’ का इस्तेमाल करता है, उसका लेख मैंने पढ़ा ही क्यों। फिर याद आया कि हमरी पत्रकारिता का एक ही मक़सद है: माओवंशी वामपंथी अजेंडाबाज़ पत्रकारिता के समुदाय विशेष के लम्पटों को एक्सपोज करना। 

बाकी, श्रीयुत वेणु जी, गोली नहीं मारेंगे…

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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