Friday, March 29, 2024
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विषम परिस्थितियों में भी चीन के लिए भारत में बल्लेबाजी करने वाले कौन हैं?

ये गैंग लोगों की नजरों में भारतीय सेना की छवि खराब करना चाहता है, उनका मनोबल तोड़ना चाहता है, वरना ऐसे समयों में चिरपरिचित अश्लील हँसी के साथ 'कहाँ गया 56 इंच' पूछने की बेहूदगी एक अपरिमार्जित शुक्राणु की ही देन कर सकता है।

एक ऐसा व्यक्ति जिसकी पूरी पहचान किसी का पुत्र होने में सिमटी हुई है। यह बेचारा अंडे का कवच तोड़ कर बाहर आना चाहता है पर मूर्खता के एम्नियोटिक तरल में तैरता यह प्राणी पचास साल की उम्र में भी बाहर आने को तैयार नहीं हुआ है। मानव शिशु यूँ तो गर्भावस्था के चौथे महीने से बाहर की आवाज, संगीत आदि के प्रति संवेदनशील हो जाता है, लेकिन कुछ विलक्षण लोग होते हैं जो जीवन के पचासवें साल में अपने गालों पर पड़ने वाले डिम्पल के आकार का दिमाग लिए, किसी अमीर घर में पैदा होने के कारण न सिर्फ जीवित हैं, बल्कि लाखों मूर्खों द्वारा तारणहार कह कर पूजे भी जाते हैं।

जाहिर है कि मैं किसी राहुल गाँधी की बात नहीं कर रहा हूँ। वो तो भारतभूमि की वैसी प्रतिभाओं में से एक हैं जिन्हें समुचित वातावरण नहीं मिला है कि फल-फूल कर अपनी खुशबू बिखेर सकें। राहुल गाँधी तो, माफ कीजिएगा ‘जी’ लगाना भूल जाता हूँ, वैसे कान्ग्रेस वाले कभी भी जीभ लगाना नहीं भूलते। उनकी महिमा ही इतनी अपरंपार है। इसलिए श्रीयुत राहुल गाँधी जी पर टिप्पणी करना मेरी औकात से बाहर है, न ही मुझे 200 FIR करवाने हैं।

हालाँकि, जो बातें राहुल गाँधी ने पब्लिक में लिखी हैं, उनका विश्लेषण तो किया ही जा सकता है। एक बिलकुल ही अलग, वैज्ञानिक बात अगर कहूँ, जिसे गंजे और पंचरवाले की सॉल्टन्यूज टीम ने सत्यापित किया है, कई बार कुछ बातें जब आप पढ़ेंगे तो जैसे वायरस अपने लक्षण छोड़ता है, वैसे ही कुछ लोगों के ट्वीट या बयान सुन कर आप बहुत ही सहजता से जान जाएँगे कि ये कमाल चरस का है, गाँजे का है, स्मैक का है या फिर कुछ नया करने के चक्कर में एक ही चायपत्ती से बीस बार चाय बनाने के बाद उसे सुखा कर, उन्नत नस्ल के घोड़े की लीद में मिला कर पीने के बाद उपजा है।

जैसे कि पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को ले लीजिए, वो जब भी कुछ बोलता या लिखता है तो आप समझ जाएँगे कि इसने अपनी बाँह पर पतले पाइप बाँधे होंगे, फिर नसों के फूलने के बाद एक इंजेक्शन लिया होगा, सर को हिलाया होगा और तब वो बात बोली या लिखी होगी। आप पूछ लीजिए, वो खुद बता देंगे।

लेकिन राहुल गाँधी जो लिखते हैं, भले ही वो राष्ट्रविरोधी बातें ही क्यों न हों, वो पूरे होश में लिखते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो कारण है कि दर्द होता है। जिसके शरीर के कोशिकीय आधार के दोनों भाग, सारे गुणसूत्र, उन दोनों भागों में से एक के स्वयं का एक भाग, फिर उस एक भाग का एक भाग, या तो प्रधानमंत्री थे या प्रधानमंत्री के भी बॉस थे, वह अगर प्रधानमंत्री बनना तो छोड़िए अपनी पार्टी के मुखिया होने तक को ठीक से नहीं निभा पाया, तो दर्द तो होगा ही।

आप ही बताइए कि कोट के ऊपर जनेऊ पहनने के बाद भी, तमाम तरह के परमुटेशन-कॉम्बिनेशन के बाद भी अपना गोत्र सही-सलामत बचा लेने वाले, शिवभक्त, रामभक्त राहुल गाँधी जी के हाथ से सत्ता चली गई तो बेचारे ऐसे नहीं बोलेंगे तो क्या करेंगे!

बहन दादी जैसे बाल रख रही है, नाक की लम्बाई तो सबने चुनावों के समय देखी ही। आजकल राहुल गाँधी भी वर्चुअल मीटिंग में सर पर बड़े ही शिद्दत से घुँघराले बालों के पेचोखम का मुजाहिरा करते हुए देश में अपने कंधे पर ढो कर, निजी तौर पर कम्प्यूटर लाने वाले पिता की तरह दिखने की कोशिश कर रहे हैं। वो भी तो जानते हैं कि कॉन्ग्रेस समर्थक तो बाल और नाक देख कर ही वोट देता है… वरना इनके विजन तो ऐसे-ऐसे रहे हैं कि सारे राजनीतिज्ञ सर पकड़ कर बैठ जाते हैं।

अगर कोई ढंग का मोटिवेशन न हो, जो कि जगजाहिर कारणों से राहुल गाँधी की विलक्षण प्रतिभा ही है (हें हें हें), तो कोई कैसे इस आदमी की बड़ाई कर सकता है! मतलब रघुराम राजन से ले कर, रवीश कुमार तक, जाहिर है कि टैलेंट की तो फोटो सूँघ कर ही उनकी कुशाग्र बुद्धि का पता लगाने वाले लोग हैं, तो वो अगर इनके पीछे हों तो कोई विशेष कारण तो होगा ही न!

अब हम सोनियानंदन, राजीवपुत्र, प्रियंकाबंधु, रॉबर्ट जी के साले राहुल गाँधी के कुछ चुनिंदा ट्वीटों पर चर्चा करेंगे जो उन्होंने देश की सेना, देश के नेतृत्व आदि को नीचा दिखाने के लिए हर उस समय पर किया जैसे समय में पूरी दुनिया के विपक्षी पार्टियों का व्यवहार अपने राष्ट्र के साथ होता है, मनोबल बढ़ाने वाला होता है।

राहुल गाँधी के ट्वीट की धूर्तता को आप देखेंगे तो कहेंगे, “न न न न न न… ये आदमी ऐसे ट्वीट सोच ही नहीं सकता… ये इसकी मानसिक क्षमता से परे है।” क्योंकि राहुल गाँधी बिना किसी सहायता के जब भी बोलते पाए जाते हैं तो यही प्रतीत होता है कि ये आदमी सुबह में बिल्ली की फोटो के साथ किसी को ‘गुड मॉर्निंग जीजू, मुझे न चाँद पर जमीन चाहिए, दिलाओगे न?’” टाइप की ही बातें कर सकता है, अंग्रेजी या हिन्दी के शब्द-संयोजन की बात तो छोड़िए, स्पेलिंग ही ठीक से लिख दे तो कालांतर में स्वयं को ये भारत रत्न दे देगा!

फिर भी, हम तो फेस वैल्यू पर ही लेंगे, वैसे भी कॉन्ग्रेस का पूरा इतिहास फेस वैल्यू पर ही टिका हुआ है। फेस वैल्यू पर लेने का मतलब कि राहुल गाँधी के ट्विटर पर है, तो उन्होंने ही लिखा होगा। ये बात अलग है कि इस बात को मानने के लिए स्वयं को तैयार करने में मुझे दिल पर एक खास प्रथम परिवार के मस्तिष्कों के सामूहिक भार का कंकड़ रखना पड़ा, जो कि मेरी साँस के झोंके में उड़ गया।

हाल के एक ट्वीट की चर्चा करें तो वह गलवान घाटी में हमारे बीस सैनिकों के बलिदान के बाद लिखा गया है, जहाँ राहुल गाँधी ने बड़ी ही सहजता से यह पूछा है कि मोदी चुप क्यों हैं, कहाँ छुपे हुए हैं, वहाँ क्या हुआ, देश को बताते क्यों नहीं? चीन की हिम्मत कैसे हुई हमारे जवानों को मारने की? वो हमारी जमीन कैसे ले सकते हैं!”

इस एक ट्वीट में इतना खोखलापन और इतनी धूर्तता है कि फिर से आदमी सोचने लगता है, क्या राहुल गाँधी ये लिख सकता है? सतही तौर पर यह ट्वीट तो एक चिंतित व्यक्ति का दिखता है, लेकिन ऐसा है नहीं। इस ट्वीट के जरिए, राहुल गाँधी ने प्रश्न किए हैं ताकि इनके नाम में, और वश में हो तो तस्वीर या फोटो में, जी लगाने वाली जनता को वो दिखा सकें कि देखो इसने प्रश्न पूछा है।

लेकिन किस समय? क्या भारतीय सेना ने इस पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की? क्या उनके द्वारा दी गई जानकारी इतनी अविश्वसनीय है कि राहुल गाँधी को पीएम से जवाब चाहिए। साथ ही, राहुल गाँधी के ट्वीट में ‘चुप्पी’ का मतलब शाब्दिक चुप्पी से नहीं है, वो प्रधानमंत्री को यह पूछ कर यह दिखाना चाह रहे हैं कि उनकी सरकार होती तो बीजिंग में तिरंगा होता।

सरकार में न होने का यह फायदा है कि आप ‘न्याय योजना’ जैसे शिगूफे छोड़ सकते हैं, आप ख्वाबों में चीन पर हमले कर सकते हैं, आप अमेरिका को मुँहतोड़ जवाब दे सकते हैं, और पाकिस्तान को तो इतने बम मार सकते हैं कि अफगानिस्तान में भी भूकम्प आ जाए। राहुल गाँधी भी वही कर रहे हैं। सरकार के बाहर हो कर सरकार को क्या करना चाहिए यह बता रहे हैं जबकि बेचारे भूल गए (जो कि कुछ पदार्थों के सेवन का साइड इफ़ेक्ट में भी आता है) कसाब की गैंग ने तीन दिनों तक मुंबई में जो किया था, उसके बाद एयर स्ट्राइक को तैयार एयर फोर्स को मनमोहन-सोनिया ने कुछ भी करने से मना किया था।

राहुल गाँधी यह कह सकते हैं कि चीन की हिम्मत कैसे हुई हमारी जमीन लेने की, क्योंकि मैंने पहले भी कहा है कि जहाँ मानव भ्रूण चौथे महीने से संवेदनशील हो जाता है, वहीं कुछ लोग पचास की उम्र तक माता के गर्भ के एम्नियोटिक तरल में ही कैद रहते हैं। चीन ने कितनी जमीन पर कॉन्ग्रेस के किस प्रधानमंत्री और यूपीए के किस प्रधानमंत्री के काल में कब्जा किया है, उसका ज्ञान राहुल गाँधी को नहीं है। एकदम ही अलग संदर्भ में, विषयांतर करते हुए, एक वैज्ञानिक बात बताना चाहूँगा कि कई मादक पदार्थों के सेवन से भूतकाल में हुई घटनाओं या सूचनाओं को ले कर स्मृतिदोष सामान्य माना गया है। कृपया मादक पदार्थों के सेवन, चाहे वो कितनी ही उच्च कोटि का क्यों न हो, नहीं करना चाहिए। जनहित में जारी।

राहुल गाँधी यह भी लिखते हैं कि वो सेना के साथ और सैनिकों के साथ खड़े हैं, और उन्हें सेना के आधिकारिक बयान पर भी भरोसा नहीं। उन्होंने भारतीय सेना द्वारा चीनियों के 43 जवान मार गिराने पर, भले ही मान लीजिए कि ये अपुष्ट खबर है, एक शब्द नहीं लिखा। ऐसे समय में तो व्यक्ति, अगर वो राष्ट्रभक्त हो, तो सूत्रों से मिलने वाली खबर को भी ऐसे लिखता है मानो वह सत्य हो। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसे विश्वास होता है कि उसकी सेना, जो ऐसी-ऐसी जगहों पर तैनात है, वह हस्तमैथुन में मस्त चीनियों को पहाड़ी युद्ध में किसी भी दिन कायदे से मार गिराने में सक्षम है।

गलवान में जो हुआ, वो ऐसा नहीं है कि हमारे सैनिकों की लापरवाही या उनके कमतर होने के कारण हुआ। वहाँ वही हुआ जो चीन की प्रकृति है: बात किया कि वो पीछे हटेंगे, जगह खाली करेंगे, सहमति बन गई दोनों तरफ के अफसरों में। उसके बाद जब हमारे सैनिक, बिना किसी हथियार के (ताकि उन्हें ऐसा न लगे कि वो लड़ाई के इरादे से आए हैं, या शायद प्रोटोकॉल हो) आगे गए तो उन पर पत्थरबाजी हुई, बिना गोली चलाए उन्होंने क्रूरता से कँटीले तारों से लपेटे रॉड से हमारे जवानों और अफसर पर हमला किया।

फिर जो हुआ वो सामने है कि चीन को इतना नुकसान पहुँचा है कि वो संख्या तक बताने में हिचकिचा रहा है। भारत ने इसके बाद भी उन्हें अपनी लाशें उठाने के लिए हेलिकॉप्टर ले कर भीतर आने दिया। ऐसे में आप सोचिए कि आप एक नागरिक के तौर पर किस बयान पर विश्वास करना चाहेंगे: अपनी सेना के अफसरों के बयान पर या फिर चीन के ग्लोबल टाइम्स पर?

राहुल गाँधी का ट्वीट अपनी ही सेना को नीचा दिखाने को तत्पर है। उन्होंने सैनिकों के बलिदान को तो संज्ञान में लिया है क्योंकि ऐसा न करने पर पार्टियाँ चुनाव हारती रही हैं, लेकिन उन्होंने अपने जवानों की वीरता और शौर्य के प्रमाण पहले भी माँगे हैं, आज भी छद्म रूप से वही कर रहे हैं। यहाँ वो हर बार की ही तरह, सैनिकों के बलिदान पर उन्हें श्रद्धांजलि देते नजर आते हैं, पर सरकार को उसी बहाने ऐसे घेर रहे हैं जैसे हमारी सेना तो पीठ दिखा कर भाग आई।

और राहुल कोई अकेले तो हैं नहीं। एक पूरा गिरोह है जो पाकिस्तान के मामले में ‘अमन की आशा’ के गीत गाने लगता है क्योंकि वो जानते हैं कि सरकार पर दवाब बनाएँगे तो उसे सामूहिक सहमति समझ कर पाकिस्तान पर हमला ही न कर दे, लेकिन वही गिरोह चीन के मामले में हमेशा उकसाता हुआ दिखता है। चीन पर भारत हमला नहीं कर सकता, यही जमीनी हकीकत है। दूसरी बात, चीन से युद्ध एक ही फ्रंट पर नहीं होगा, भारत आर्थिक रूप से इस युद्ध को लड़ने में काफी पीछे चला जाएगा।

ये कमजोरी नहीं है, ये दुश्मन को आँकने जैसा है। जिस राहुल गाँधी की नैपी सूँघने वाले अपने कार्यकाल में तीन दिन तक एक टेरर अटैक को झेलते रहे और उसके बाद भी पाकिस्तान पर चूँ तक न कर सके, वो कह रहे हैं कि चीन पर भारत चुप क्यों है! जैसा कि पहले भी मैंने कहा, सरकार से बाहर होने पर नेता लोग प्याज़ तीन रुपए किलो करने से ले कर, हर सिंगल प्राणी को मनमुताबिक गर्लफ्रेंड या ब्वॉयफ्रेंड उपलब्ध कराने की बात सिर्फ कहते ही नहीं, पूरा गणित भी समझाते हैं कि किस राज्य में सप्लाय ज्यादा और डिमांड कम है।

राहुल गाँधी से हमें कोई आशा है नहीं। अब तक तो बेचारे की माताजी ने भी उम्मीद त्याग दी है लेकिन फिर भी वीडियो चैट के लिए बाल में जेल लगा कर पिता की छवि उतारने के लिए कंघी से ज्वार-भाटा स्टाइल के कर्ल्स तो ला ही देती हैं! क्या करेगी, माँ तो माँ होती है। अब कोई कैसा भी पैदा हो गया हो, बुद्धि भले ही धीमी हो, लेकिन माँ क्या अपने बुजुर्ग शिशु को त्याग देगी?

वैसे ही, राहुल गाँधी विशिष्ट जगह के बाल भले ही घुँघराले कर लें, लेकिन उसके नीचे का मस्तिष्क उनसे वही करवा रहा है जो गैंग चाहता है। यह वही गैंग है जो वर्तमान भारत सरकार को हर आयाम में असफल दिखाना चाहता है। ये गैंग लोगों की नजरों में भारतीय सेना की छवि खराब करना चाहता है, उनका मनोबल तोड़ना चाहता है, वरना ऐसे समयों में चिरपरिचित अश्लील हँसी के साथ ‘कहाँ गया 56 इंच’ पूछने की बेहूदगी एक अपरिमार्जित शुक्राणु की ही देन कर सकता है।

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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