भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ मंगलवार (6 मई, 2025) की रात ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। भारतीय सेना ने 9 हमलों में कई आतंकी ठिकानों को मिसाइल से अटैक कर तबाह कर दिया। ये 13 दिन पहले जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले का बदला था, जिसमें महिलाओं के सिंदूर उजाड़े गए थे। पत्नियों के सामने उनके पति को गोली से मार डाला था।
इसके जवाब में भारत ने दुश्मनों को एक चुटकी सिंदूर की कीमत समझा दी है। अब कोई भी इस सिंदूर पर आँच डालने से पहले सौ बार सोचेगा। आतंकियों के खिलाफ इस हमले को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम देने के पीछे भी कारण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नाम का सुझाव दिया था। क्योंकि, पीएम जानते थे उन महिलाओं के दर्द को जिन्होंने अपने पति को खोया।
पहलगाम में जिन आतंकियों ने महिलाओं से कहा था, ‘जाकर मोदी को बता देना’, उन्हीं मोदी ने महिलाओं के प्रतिशोध को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए वास्तविक रूप दिया। अपने सुहाग को खोने वाली इन महिलाओं के सम्मान में ही इस कार्रवाई का नाम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ रखा गया।
भारतीय संस्कृति में सिंदूर का महत्व
भारतीय संस्कृति में सिंदूर को सौभाग्य और सुहाग का प्रतीक माना जाता है। यह विवाहित महिलाओं की निशानी होती है। स्त्री के सोलह श्रृंगार में सिंदूर का खास महत्व है। हिंदू धर्म में सुहाग की निशानी के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है।
शादी के समय सात फेरों के बाद पति अपनी अर्द्धांगिनी को सिंदूर लगाता है। इसके बाद ही विवाह संपन्न होता है। इसी सिंदूर को जीवन भर महिलाएँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए लगाती हैं।
आमतौर पर महिलाएँ लाल रंग का सिंदूर लगाती हैं। ये लाल रंग के पाउडर के रूप में होता है। पारंपरिक रूप से विवाहित महिलाएँ इसे माथे या बालों के बीच में लगाती हैं।
हालाँकि, सिंदूर सिर्फ लाल रंग का ही नहीं होता है। देश के विभिन्न हिस्सों में नारंगी रंग का सिंदूर भी लगाया जाता है। खासतौर पर पूर्वांचल के हिस्सों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार में महिलाएँ नारंगी रंग का सिंदूर लगाती हैं। इसके अलावा महिलाएँ गुलाबी रंग का सिंदूर भी लगाती हैं।
सिंदूर का इतिहास
हिंदू धर्म में सिंदूर की परंपरा हजारों युग पुरानी है। स्कंद पुराण और अन्य ग्रंथों में देवी पूजा के संदर्भ में सिंदूर का उल्लेख है। विशेष रूप से माँ पार्वती और माँ दुर्गा के लिए यह दिव्य ऊर्जा (शक्ति) का प्रतीक है। इसी कारण से सिंदूर को वैवाहिक अनुष्ठानों में शामिल किया जाता है।
गुप्त काल (लगभग 320-550 ईस्वी) तक सिंदूर को हिंदू विवाह के रीति-रिवाजों से जुड़ गया। मनुस्मृति और अन्य ग्रंथों में सुहागिनों के लिए श्रृंगार के वर्णन में इसका जिक्र हुआ है। धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे भारत में फैल गई।
जब श्री हनुमान ने पूरे शरीर पर लगा लिया सिंदूर
रामायण में देवी सीता अपने पति भगवान राम के लिए सिंदूर लगाती थीं। रामायण कथा के अनुसार जब श्रीराम, लक्ष्मण और माँ सीता वनवास से वापस लौटे थे। तब, श्रीराम ने अयोध्या के राजा के रूप में राज्य को सँभाला। ऐसे में भक्त हनुमान जी श्रीराम को उपहार देना चाहते थे।
हनुमान जी ने माँ सीता से प्रश्न पूछा कि माता! प्रभु श्रीराम को क्या पसंद है? अर्थात उन्हें किस चीज को देखकर अधिक प्रसन्नता होती है? माता सीता जब प्रश्न का उत्तर दे रही थी उस वक्त वे अपनी माँग में सिंदूर भी लगा रही थीं। हनुमान जी ने सिंदूर का महत्व पूछा तो माँ सीता ने मुस्कुराते हुए कहा, “इससे प्रभु श्रीराम को दीर्घायु मिलेगी। इसीलिए मैं सिंदूर माँग में लगाती हूँ।”
माता सीता की बात सुनकर हनुमान जी ने प्रसन्न होकर कहा कि क्या इस चुटकी भर सिंदूर को लगाने से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं? तब माता सीता मुस्कुराई और कहा, “हाँ! मेरी माँग में सिंदूर को देखकर प्रभु श्रीराम बहुत प्रसन्न होते हैं।”
माता सीता की बात सुनकर हनुमान जी ने सोचा कि अगर एक चुटकी सिंदूर से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं, तो इससे बेहतर उपहार प्रभु के लिए कुछ नहीं हो सकता। हनुमान जी अयोध्या के राजदरबार में पूरे शरीर पर सिंदूर लगाकर आए। हनुमान जी का समर्पण भाव देखकर श्रीराम ने उन्हें गले लगा लिया।
बंगाल में सिंदूर खेला
बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान दशमी पर सिंदूर खेला होता है। इस दिन माँ दुर्गा को सिंदूर समर्पित कर धूमधाम से विदाई दी जाती है। विवाहित महिलाएँ सिंदूर खेला परंपरा को निभाती हैं। खासतौर पर बंगाली समाज में इसका अधिक महत्व है।