Tuesday, May 7, 2024
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फिल्मों में धर्म का अपमान, साउथ Vs बॉलीवुड, अमरीश पुरी से तुलना, अधूरा रहा चाणक्य का किरदार, PM मोदी के काम… ‘ग़दर 2’ के मेन विलेन का बेबाक इंटरव्यू, हर मुद्दे पर बोले

"सुबह के साढ़े 10 बजे शॉट रेडी था, तभी अचानक फोन आया। पैकअप करने के लिए कहा गया। उसके बाद पता चला कि चैनल ही बंद हो गई है। बड़ी हैरतअंगेज बात थी ये। रातोंरात ही सारी चीजें हो गईं, शूटिंग के दौरान ही हमें फोन आया था। ये 12 अप्रैल, 2012 की बात है।"

सनी देओल की फिल्म ‘ग़दर 2’ भारत में सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली दूसरी फिल्म बन गई है। इससे आगे अब सिर्फ शाहरुख़ खान की ‘पठान’ है, जिसके बॉक्स ऑफिस कलेक्शंस का ये तेज़ी से पीछा कर रही है। एक ऐसा नाम है जो इन दोनों ही फिल्मों में कॉमन है – मनीष वाधवा। मनीष वाधवा ने 2011-12 में आने वाले सीरियल ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ में चाणक्य के किरदार से अपनी छाप छोड़ने वाले मनीष वाधवा ने ‘ग़दर 2’ की सफलता और अपने करियर से लेकर विभिन्न मुद्दों पर ऑपइंडिया से बातचीत की।

मनीष वाधवा के जीवन और करियर में ‘ग़दर 2’ के बाद क्या बदलाव आया है?
मेरे जीवन में 2 बार सब कुछ बदल देने वाले क्षण आए हैं – पहली बार 11 मार्च, 2011 को। यही वो दिन था जब ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ का पहले एपिसोड लॉन्च हुआ था और इसके बाद बहुत सारी चीजें बदल गईं। जैसे-जैसे एपिसोड आते गए, चीजें बदलती गईं। लेकिन, इस साल 10 अगस्त को मामला कुछ और था, 11 अगस्त को सब कुछ पूरा ही बदल गया। लोगों के बहुत प्यारे रिएक्शंस आ रहे हैं। वो बताते हैं कि हमें आपसे घृणा हो जाती है। फिर वो कहते हैं कि आपने अच्छा काम किया है। कमाल की बात ये है कि वो आपसे घृणा कर के आपसे दूर नहीं होते हैं, बल्कि कहते हैं – We really love to hate you. सबसे बड़ा रिएक्शन तब आया, जब सवा 8 बजे का पहला शो देखने के लिए मेरी पत्नी और बेटी गए हुए थे। साढ़े 11 से अधिक हो गए और इनका फोन नहीं आया तो मैंने कॉल किया उन्हें और पूछा कि फिल्म खत्म हुई या नहीं, क्या हुआ? फिर पता चला कि वो वहाँ मीडिया वालों को इंटरव्यू दे रहे हैं दर्शकों के रूप में। मैंने जब पूछा कि क्या रिपोर्ट्स आ रही हैं, तो उन्होंने कहा कि आपको मरता हुआ देख कर बहुत ख़ुशी हुई। सोचिए (हँसते हुए), आपकी पत्नी और बच्ची आपको ये बात कह रहे हैं कि आपको मरते हुए देख कर काफी ख़ुशी हुई।

‘ग़दर’ के पहले हिस्से में अमरीश पुरी मुख्य विलेन थे। इस बार आप हैं। उनसे तुलना हो रही है आपकी, इसे आप किस रूप में देखते हैं? अमरीश पुरी को लेकर आपके क्या विचार रहे हैं?
सही बताएँ तो कोई तुलना है ही नहीं, कोई तुलना हो ही नहीं सकती है। तुलना बराबर वालों में होती है। लोगों को मेरी परफॉर्मेंस अच्छी लगी, लेकिन उनका (अमरीश पुरी का) जो ओहदा है, कद है – वो बहुत ऊपर है। मैं उनके आसपास भी नहीं हूँ कहीं, ऐसे में जो लोग ये कह रहे हैं वो बहुत हैरानी की बात है।

‘ग़दर 2’ की सफलता के पीछे राष्ट्रवाद का कितना योगदान मानते हैं आप? क्या भारत में राष्ट्रवाद का पुनर्जागरण हो रहा है?
आजकल की बात तो है ही, लेकिन ये पहले से भी रहा है। ‘ग़दर’ जब आई थी, तब भी इसमें राष्ट्रवाद की बात थी और उस समय भी लोगों ने इसे अपने सर पर उठाया था। बहुत सारी ऐसी फ़िल्में आई हैं जो राष्ट्रवाद की थीम पर रही हैं, उदाहरण के लिए ‘कर्मा’ (1986) को ले लीजिए। जब देश की बात होती है तो फ़िल्में हमेशा चलती हैं। हमारे में ये चीज है कि हम सबसे पहले अपने देश को ही मानते हैं। चाहें कितने भी खंड-खंड रहें, लेकिन राष्ट्र की बात होती है तो हम सब एक हो जाते हैं। चाणक्य भी इसी एकता की बात करते थे।

आपने पहली बार ‘ग़दर’ कब देखी थी? क्या आपने कभी सोचा था कि भविष्य में आप इसका हिस्सा बनेंगे?
मैंने ग़दर तभी देखी थी जब ये रिलीज हुई थी। मुझे बहुत कमाल की लगी थी। अच्छी बात ये थी कि जिस तरह के दृश्य इसमें दिखाए गए थे, वैसी फिल्मों को उस जमाने में ‘आर्ट्स फिल्मों’ की कैटेगरी में रखा जाता था। ये वास्तविक घटनाओं से प्रेरित दृश्य होते थे – जैसे ट्रेन आती है, उसमें लोग कटे हुए हैं, भरे हुए हैं। पैरेलल सिनेमा में इस तरह के दृश्य दिखाए जाते थे, लेकिन कमर्शियल सिनेमा में ऐसा कुछ नहीं देखा गया था। फिल्म वास्तविकता के करीब लगी। फिर देश की बात भी थी। फिल्म ने काफी एंटरटेन भी किया। उसी समय ‘लगान’ भी आई थी और उसमें भी देश की बात थी। वो भी सुपरहिट रही थी। मुझे याद है जया बच्चन के साथ शो करने के लिए एक समय मैं बाहर गया हुआ था। वहाँ से मैं 3D चेंजर लेकर आया था। उस समय DVD से फ़िल्में चलती थीं। उस समय मेरा बेटा छोटा था। घर में ‘ग़दर’ की डीवीडी आ गई थी तो वो पूरा दिन ‘गदल-गदल’ करता रहता था। हमने काफी बार इस फिल्म को देखा, तब सोचा भी नहीं था कि एक दिन इसका हिस्सा बन जाऊँगा। जितनी बार देखा, उतनी बार मजा आया। हाल ही में जब ‘ग़दर’ फिर से रिलीज हुई थी, तो फिर मैंने देखा। इस बार भी उतना ही एन्जॉय किया। आपको पता होगा है क्या डायलॉग या दृश्य आने वाला है, फिर भी बार-बार रोंगटे खड़े होते हैं आपके। एकाध बार हो सकता है, लेकिन इस फिल्म के लिए बार-बार ऐसा होता है। दिल से बोली हुई चीज हमेशा दिल में ही लगती है। ‘ग़दर’ भी जितनी बार देखो अच्छा लगता है।

‘ग़दर 2’ का ऑफर आपके पास कैसे पहुँचा, लुक टेस्ट वगैरह हुआ या किस तरह से बात बनी।
निर्देशक अनिल शर्मा ‘ग़दर 2’ के लिए विलेन की तलाश में थे और इसके लिए उन्होंने दक्षिण भारत से लेकर हॉलीवुड तक खोजबीन करवानी शुरू कर दी थी। कास्टिंग डायरेक्टर्स को लगाया गया था। बड़े-बड़े लोगों से बात हुई, विभिन्न कारणों से कई अभिनेता इस किरदार को नहीं कर पाए। अमरीश पुरी पहले ही एक बड़ा बेंचमार्क सेट कर चुके थे, ऐसे में उन्हें किसी ‘स्ट्रॉन्ग’ बंदे की तलाश थी। फाइट मास्टर रवि वर्मा को सनी देओल ने रिकमेंड किया था और वो अनिल शर्मा से मिलने के लिए गए हुए थे। ‘ग़दर 2’ के पहले शेड्यूल की शूटिंग पूरी हो गई थी, अब आगे विलेन का ही काम था। बातचीत के दौरान ही गाड़ी में अनिल शर्मा ने रवि वर्मा से पूछ लिया कि क्या आपकी नजर में कोई अभिनेता है इस रोल के लिए। उस दौरान मैंने साउथ में ‘श्याम सिन्हा रॉय’ (2021) नामक फिल्म की थी। उसी फिल्म में स्टंट डायरेक्टर रवि वर्मा भी थे। उन्होंने अनिल शर्मा को बताया कि ये लड़का है, फिल्म भी अच्छा कर रही है। उन्होंने फिल्म की क्लिप भी उन्हें दिखाई और ये देखते ही उन्होंने पसंद कर लिया कि ये सही है मेरे लिए। इसके बाद मैं अनिल शर्मा के दफ्तर में पहुँचा मुंबई में, जहाँ उन्होंने कहा कि आप मेरे लिए परफेक्ट हैं और चाणक्य के किरदार में हमने आपका काम देखा भी है, आपने अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि इस किरदार के लिए जैसी हाइट, पर्सनालिटी और आवाज चाहिए – वो सब आपमें है। फिर मुझे बताया गया कि सनी देओल मेरे से मिलना चाहेंगे, वो इसे लेकर सोच में हैं कि विलेन कौन है ‘ग़दर 2’ में। इसके बाद एक ट्रायल टाइप का हुआ। एक दृश्य मुझे करना था उसमें। तब तक विलेन का लुक भी फाइनल नहीं हुआ था। फिर मेरी मुलाकात सनी देओल से हुई, जो 2-3 मिनट मुश्किल से चली होगी। सनी देओल ने कहा कि मैंने आपका काम देखा है, आप अच्छे अभिनेता हैं लेकिन अनिल शर्मा ने ‘ग़दर’ के रूप में एक बहुत बड़ा बेंचमार्क सेट किया है। उन्होंने कहा कि अमरीश पुरी जीवित हैं नहीं और इंडस्ट्री में अब कोई विलेन भी नहीं है, ये जिम्मेदारी आपको सँभालनी है। उन्होंने पूछा कि क्या आप इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभा पाएँगे? मैंने कहा कि मैं पूरी कोशिश करूँगा, अनिल शर्मा हैं, आप हैं – आपलोगों के मार्गदर्शन में ये हो जाएगा। शायद ये बात उन्हें अच्छी लगी। मैं बाहर निकला और कुछ ही देर बाद कॉल आ गया कि आप ये रोल कर रहे हैं। फिर लुक टेस्ट हुआ कि मूँछ-दाढ़ी लगाई जाए, विग लगाई जाए या क्या किया जाए। 4-5 लुक्स में से ये वाला फाइनल हुआ। ये शेड्यूल से चंद दिनों पहले की बात है। लुक तो बना लिए जाते हैं, लेकिन पहले वो एक्टर साबित होना चाहिए जो किरदार को परफॉर्म कर सके।

‘ग़दर 2’ से पहले ‘पठान’ आई थी, फिल्म भी अच्छी चली और आपके किरदार की तारीफ़ हुई। शाहरुख़ खान के साथ काम करना या उस फिल्म से अलग पहचान मिलना – ये अनुभव कैसा रहा?
बहुत कमाल का अनुभव रहा। वो एक अलग स्कूल हैं। सिद्धार्थ आनंद हैं, YRF है। कोरोना के दौरान मुझे इसके लिए कॉल आया था। कास्टिंग डायरेक्टर सानू शर्मा ने उस दौरान मुझे किसी और फिल्म के लिए बुलाया था, जो उस समय बनी नहीं। करण जौहर की ‘तख़्त’ बन रही थी, जिसमें मुझे एक अच्छे किरदार में कास्ट किया गया। फिर कोविड के दौर में वो फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई। इसी दौरान मुझे ‘पठान’ का ऑफर आया और बताया गया कि किरदार बहुत लंबा नहीं है लेकिन यही पूरा ऑपरेट करता है कि विलेन कैसे आएगा। मैं काफी उत्साहित था कि फिल्म में शाहरुख़ खान, दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम हैं। मैंने कहा कि मैं ये बिलकुल करूँगा। मुझे बताया गया था ये महत्वपूर्ण रोल तो मुझे लगा कि ये रोल कुछ न कुछ करेगा। फिर मैं फाइनल कर लिया गया।

‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ सीरियल बीच में बंद हो गया था, जिससे कई लोगों को निराशा हुई। उस सीरियल के बारे में बताएँ। साथ ही चाणक्य की चोटी नहीं बँध पाई, इसका कितना मलाल है आपको?
इसका तो मलाल रहेगा ही। अगर शो पूरा नहीं हो पाए तो इसका मलाल रहेगा ही। ये मेरे मन में है। शायद आगे जाकर कोई OTT कंटेंट या फिल्म बना ले। आगे भी मुझे चाणक्य का किरदार करने का मौका मिला तो ज़रूर करूँगा। मैं अभिनय के मामले में थोड़ा स्वार्थी हूँ, हर अभिनेता चाहता है कि उसे अच्छे किरदार मिलें। ये चैनल (Imagine TV) कैसे अचानक बंद हुआ, ये हमारे लिए भी अचम्भा ही था। सुबह के साढ़े 10 बजे शॉट रेडी था, तभी अचानक फोन आया। पैकअप करने के लिए कहा गया। उसके बाद पता चला कि चैनल ही बंद हो गई है। बड़ी हैरतअंगेज बात थी ये। रातोंरात ही सारी चीजें हो गईं, शूटिंग के दौरान ही हमें फोन आया था। ये 12 अप्रैल, 2012 की बात है।

आप खुद के बारे में और अपने संघर्षों के बारे में लोगों को क्या बताना चाहेंगे? आपके किरदारों को तो सब जानते हैं।
अभिनय – यही मुझे आता है और शुरू से मैं यही काम करना चाहता हूँ। एक्टिंग का शौक पहले भी था और ये हमेशा रहता है। अच्छे रोल पाने की कोशिश करना, उसके लिए अच्छा दिखना, फिर बने रहना – ये अपने-आप में संघर्ष होता है। संघर्ष हमेशा रहता है। ये बात अलग है कि पहले सर्वाइवल का संघर्ष रहता है, मैंने थिएटर वगैरह किए थे। मैंने इसके साथ-साथ डबिंग और वॉइसिंग की। कई इंटर-कॉलेज प्रतियोगिताओं में ट्रॉफी मिली। बजराज साहनी सम्मान मिला आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस के लिए। इस कारण ये लगा कि मैं सही रास्ते पर चल रहा हूँ। पहले मेरी एक बड़े बैनर की फिल्म आई थी प्रकाश झा के साथ – ‘राहुल’ (2001) नाम की। जया बच्चन के साथ कुछ नाटक किए, जो सफल हुए। दुनिया भर में टूर और शो हुए। हमारे यहाँ ये है कि आपने अच्छा काम किया हो या बुरा – ये बगल में धरा रह जाता है और आपकी फिल्म चलती है तभी आप चलते हैं। कुछ फ़िल्में बनी रहीं। मुझे एक सीरियल मिला। इसके बाद रामगोपाल वर्मा की फिल्म मिली, जो 2005-6 में बन गई। मैं उसमें लीड रोल में था। हालाँकि, वो रिलीज नहीं हो पा रही थी। फिर मैंने सीरियल करना शुरू कर दिया, सर्वाइवल का भी सवाल होता है। मैंने ‘भूतनाथ’, ‘शौर्य’ और ‘मितवा’ जैसी फ़िल्में की। फिर ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ मुझे मिला जो लाइफ चेंजर साबित हुआ। पहले मैं बाल उड़ाने को लेकर झिझक रहा था, लेकिन फिर मैंने सोचा कि चलो चाणक्य का किरदार है। फिर 2011 में ‘शबरी’ रिलीज हुई रामगोपाल वर्मा की, जो पहले अटक गई थी। किसी ने मुझे पहचाना भी नहीं कि मैं वही हूँ, क्योंकि फिल्म में मेरे लंबे-लंबे बाल थे। फिर मुझे बालाजी पेशवा विश्वनाथ का रोल मिला, श्रीकृष्ण के सीरियल में कंस का किरदार मिला। काफी अच्छे-अच्छे रोल मिले। साथ-साथ ‘पद्मावत’ और ‘मणिकर्णिका’ जैसी फ़िल्में भी चलती रहीं, लेकिन फिल्मों में उस समय वो बात चल नहीं रही थी।

देश के प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी, उन्हें लेकर आप क्या सोचते हैं?
बहुत कुछ किया गया है, बहुत कुछ हुआ है, इसे किसी प्रूफ की ज़रूरत नहीं है। किसी के बोलने या न बोलने से फर्क नहीं पड़ेगा। चीजें एकदम सिद्ध हैं।

आजकल दक्षिण भारत की फ़िल्में खूब चल रही हैं। इसे आप किस तरह से देखते हैं?
मैं इसे साउथ बनाम बॉलीवुड के रूप में बिलकुल नहीं देखता हूँ। ये पूरा हमारा भारतीय सिनेमा है। हम बाहर जाते हैं कहीं भी तो कोई ये नहीं बोलता कि ये साउथ इंडियन सिनेमा है, वो सीधा इंडियन सिनेमा बोलते हैं। ‘बाहुबली’, ‘पुष्पा’, KGF या RRR को यहाँ चली है, वो भारतीय सिनेमा है। ये हमारे साथ जुड़ा हुआ है। फिल्म अच्छी बनाइए, सिनेमा कहीं गया नहीं था। इसका मुख्य मोटो होता है – मनोरंजन देना। अगर ये है – फिर क्यों नहीं चलेगी।

आजकल कुछ बॉलीवुड फिल्मों में हिन्दू धर्म का अपमान करने के आरोप लगे। इस पर आपका क्या नजरिया है?
देखिए, जहाँ धर्म का अपमान होगा तो वहाँ निश्चित ही कुछ एक्शन होना चाहिए। लेकिन, अगर वो नहीं है और उनका नजरिया अलग है और वो साबित कर देते हैं कि उन्होंने धर्म को लेकर कोई ऐसी-वैसी बात नहीं की है, फिर तो कोई बात नहीं है। धर्म या मजहब जैसी चीजें नहीं होनी चाहिए। हमारा माध्यम कला का है, उस बीच में इन्हें अगर ना ही शामिल करें तो अच्छा है।

मनीष वाधवा के बारे में बता दें कि वो अजातशत्रु, चाणक्य, रावण, विश्वामित्र, वासुकी, पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट और कंस जैसे किरदार कई सीरियलों में कर चुके हैं। साथ ही उन्होंने हॉलीवुड की कई बड़ी-बड़ी फिल्मों के किरदारों को आवाज दी है। अब जब ‘ग़दर 2’ भारत में दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्म बन गई है और ‘ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर’ का तमगा इसे मिल चुका है, मनीष वाधवा के सितारे भी आसमान पर हैं और भविष्य में हम इन्हें कई बड़े किरदारों में देख सकते हैं। ‘ग़दर 2’ में उन्होंने ‘मेजर जनरल हामिद इक़बाल’ नामक किरदार किया है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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