एमपी की बीजेपी सरकार ने पंचमढ़ी में कैबिनेट की बैठक की। पंचमढ़ी में बैठक करने का मकसद नर्मदांचल के शिवाजी कहलाने वाले राजा भभूत सिंह को सम्मानित करना था। बैठक के दौरान उनके प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को याद किया गया।
गुरिल्ला युद्धों और मधुमक्खियों के सहारे अंग्रेजों को भगाने वाले राजा भभूत सिंह की वीरता हर घर में कहानियों की तरह आज भी गूँजती है। उनकी स्मृति में पंचमढ़ी वन्य जीव अभ्यारण्य का नाम राजा भभूत सिंह पर रखने का फैसला भी मोहन कैबिनेट ने किया है।
सतपुड़ा में 1857 की क्रांति की जगाई अलख
राजा भभूत सिंह एक ऐसा गौड़ शासक थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति की चिंगारी सतपुड़ा में जलाई। 1858 में जब महान क्रांतिकारी तात्या टोपे अंग्रेजी शासन को चकमा देते हुए साँडिया पहुँचे। इस दौरान उनके स्वागत के लिए राजा भभूत सिंह पहुँचे थे। सतपुड़ा की गोद में दो महान क्रांतिकारियों ने 8 दिनों तक डेरा डाला। जनजातीय समाज पर राजा भभूत सिंह का काफी प्रभाव था। इसलिए उन्होने जनजातीय समाज को एकजुट किया और गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग दी।
राजा भभूत सिंह को सतपुड़ा की घाटियों की पूरी जानकारी थी। जबकि अंग्रेज इससे अनजान थे। राजा भभूत सिंह के गोरिल्ला सिपाही जाते और अंग्रेजों की फौज पर हमला कर गायब हो जाते थे। उनका युद्ध कौशल छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह था। इसलिए उन्हें नर्मदांचल का शिवाजी भी कहा जाता है। मान्यता ये भी है कि राजा भभूत सिंह ने युद्ध के दौरान मधुमक्खियों के छत्तों का भी इस्तेमाल किया था।
राजा भभूत सिंह के अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूँकने की तात्कालिक वजह काफी दिलचस्प है। सोहागपुर से आए एक थानेदार ने हर्राकोट आकर जागीरदार से मुर्गियाँ माँगी। राजा ने इसे अपमानजनक माना और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
देनवा घाटी में अंग्रेजों को खानी पड़ी मुँह की
देनवा घाटी का युद्ध राजा भभूत सिंह के लिए काफी निर्णायक माना जाता है। यहाँ अंग्रेजी फौज और मद्रास इन्फेंट्री के साथ उनका मुकाबला हुआ और इसमें अंग्रेजी फौज बुरी तरह हार गई। एक अंग्रेज अफसर एलियट ने 1865 की सेटलमेंट रिपोर्ट में कहा था कि राजा भभूत सिंह को पकड़ने के लिए ही मद्रास इन्फेंट्री को बुलाया गया था। 1860 तक उन्होंने अंग्रजों को धूल चटाई। दो साल बाद उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और जबलपुर में मौत की सजा दी। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें फाँसी की सजा दी गई जबकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उन्हें गोलियों से भून डाला गया। जनजातीय समुदाय को एकजुट कर अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीर योद्धाओं में राजा भभूत सिंह का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
राजा भभूत सिंह की कहानी सिर्फ एक क्रांतिकारी की गाथा ही नहीं है बल्कि जल जंगल और जमीन के लिए लड़ने वाले वीर योद्धा की भी है। उनके राज्य की थूपगढ़ चोटी समुद्र तल से करीब 1350 मीटर ऊँची है, वहाँ की प्राकृतिक छटा आज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है। यह गौड़ साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी।
अंग्रेजों से लड़ने का इतिहास था
राजा भभूत सिंह पंचमढ़ी जागीर के स्वामी ठाकुर अजीत सिंह के वंशज थे। उनके दादा ठाकुर मोहन सिंह ने 1819-20 में सीताबर्डी युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ नागपुर के पराक्रमी पेशवा अप्पा साहेब भोंसले का साथ दिया था। जब अंग्रेजों ने अप्पा साहेब का अपमान किया और संधि करने के लिए विवश किया तो भेस बदलकर उन्होने जनजातीय समुदाय को एकजुट किया और अंग्रेजों से लोहा लिया था।