Tuesday, April 16, 2024
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SC के जस्टिस अब्दुल नजीर ने भारतीय न्याय व्यवस्था की वकालत की, कहा- औपनिवेशिक व्यवस्था में न्याय माँगी नहीं, उसके लिए गुहार लगाई जाती है

जस्टिस नजीर ने कहा कि भारत की प्राचीन कानूनी व्यवस्था में राजा को भी कानून के सामने झुकना पड़ता था। उनके परिजनों या यहाँ तक कि राजा के खिलाफ भी न्याय की माँग की जा सकती थी, लेकिन औपनिवेशिक कानून में ऐसा नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर ने प्राचीन भारतीय न्याय प्रणाली की वकालत की है। उन्होंने रविवार (26 दिसंबर 2021) को अखिल भारतीय अधिवक्ता महासंघ के राष्ट्रीय परिषद के एक कार्यक्रम में कहा कि कानून के छात्रों को औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकालने के लिए जरूरी है कि उन्हें मनु, चाणक्य व बृहस्पति की विकसित की गई न्याय प्रणाली के बारे में पढ़ाया जाए।

देश में मौजूदा न्याय प्रणाली को कटघरे में खड़ा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था भारत की जनता के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्होंने कहा कि अब समय की माँग है कि न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाए।

जस्टिस नजीर ने कहा कि यह बड़ा काम है और इसमें समय भी काफी लगेगा, लेकिन भारतीय समाज, विरासत और संस्कृति के अनुरूप न्याय व्यवस्था को ढालने के लिए यह काम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा न्याय प्रणाली की लगातार उपेक्षा और विदेशी व औपनिवेशिक न्याय प्रणाली से चिपके रहना राष्ट्रीय हितों और संविधान के उद्देश्यों के लिए घातक है।  

जस्टिस नजीर ने कहा कि भारत में कानून के शासन और संसदीय लोकतंत्र का भविष्य काफी हद तक हमारे भावी वकीलों और न्यायाधीशों की क्षमता, समझदारी और देशभक्ति पर निर्भर करता है। ऐसे वकील और जज भारत की सामाजिक धरती से ही विकसित होंगे और इसके सामाजिक वातावरण से विकसित होंगे।

उन्होंने कहा कि महान वकील और न्यायाधीश पैदा नहीं होते हैं, लेकिन उचित शिक्षा और महान कानूनी परंपराओं से बने होते हैं, जैसे मनु, कौटिल्य, कात्यायन, बृहस्पति, नारद, पराशर, याज्ञवल्क्य और प्राचीन भारत के अन्य कानूनी दिग्गज थे। उनके ज्ञान की निरंतर उपेक्षा और विदेशी औपनिवेशिक कानूनी प्रणाली का पालन संविधान के लक्ष्यों और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है।

उन्होंने प्राचीन भारतीय न्याय प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत की प्राचीन कानूनी व्यवस्था में राजा को भी कानून के सामने झुकना पड़ता था। उनके परिजनों या यहाँ तक कि राजा के खिलाफ भी न्याय की माँग की जा सकती थी। प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में न्याय माँगने की बात निहित थी, लेकिन इसके उलट ब्रिटिश न्याय व्यवस्था में न्याय की गुहार की जाती है, न्याय के लिए प्रार्थना की जाती है और जजों को ‘लॉर्डशिप’ या ‘लेडीशिप’ कहा जाता है। न्यायाधीश ने कहा कि न्याय कोई अनुग्रह नहीं है, यह जनता का अधिकार है और इसका सम्मान होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में विवाह एक सामाजिक दायित्व है, जिसका निर्वाह हर किसी को करना है। लेकिन पाश्चात्य न्याय प्रणाली में विवाह एक ऐसी साझेदारी बना दिया गया है, जिसमें हर कोई जितना वसूल सकता है, वसूलने करने की कोशिश करता है। जस्टिस नजीर ने कहा कि आधुनिक समय में तलाक इसलिए बढ़ रहे हैं कि विवाह में कर्तव्य की पूरी उपेक्षा की जा रही है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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