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Monday, April 14, 2025
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कौन हैं लाचित बरपुखान जिनके नाम पर असम में बनी अकादमी में पुलिसकर्मी पाते हैं प्रशिक्षण, क्यों अमित शाह ने कहा बनेगा देश का नंबर 1: जानिए कैसे इनके ‘त्रिभुज’ में डूब गई औरंगजेब की फौज

असम का नाम सुनते ही अब लाचित बरपुखान का नाम सामने आता है, जिन्होंने मुगलों को धूल चटाई थी। आज उनकी वजह से ही नेशनल डिफेंस अकादमी का बेस्ट कैडेट लाचित बरपुखान गोल्ड मेडल पाता है।

असम में पुलिस ट्रेनिंग के लिए लाचित बरपुखान पुलिस अकादमी का निर्माण बीजेपी सरकार ने कराया। आज असम की लाचित बरपुखान पुलिस अकादमी में सिर्फ असम ही नहीं, बल्कि गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों के पुलिस अधिकारियों को भी ट्रेनिंग मिलती है। एक समय था, जब असम के अधिकारियों को दूसरे राज्यों में ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ता था। इस बीच, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने असम के लाचित बरपुखान पुलिस अकादमी को लेकर एक ट्वीट किया, जिसके बाद फिर ये इस अकादमी और जिन लाचित बरपुखान के नाम पर ये है, उनकी चर्चा शुरू हो गई।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक्स पर लिखा, “एक दौर था जब असम की पुलिस को ट्रेनिंग के लिए बाहर जाना पड़ता था, लेकिन बीजेपी सरकार ने पिछले 8 साल में ऐसा बदलाव किया कि आज लाचित बरपुखान पुलिस अकादमी से गोवा और मणिपुर के 2,000 पुलिसवाले ट्रेनिंग लेकर जा चुके हैं।”

असम का नाम सुनते ही अब लाचित बरपुखान का नाम सामने आता है, जिन्होंने मुगलों को धूल चटाई थी। आज उनकी वजह से ही नेशनल डिफेंस अकादमी का बेस्ट कैडेट लाचित बरपुखान गोल्ड मेडल पाता है।

कौन थे लाचित बरपुखान, जिन्होंने मुगलों को बार बार चटाई धूल

लाचित बरपुखान का जन्म 24 नवंबर 1622 को हुआ था। उन्हें पूर्वोत्तर का शिवाजी कहा जाता है। 1671 में सराईघाट के युद्ध में उन्होंने मुगलों की 50,000 से ज्यादा की फौज को हरा दिया। वो भी तब, जब वो बीमार थे। उनकी जलीय युद्ध की रणनीति ने मुगलों को पानी में घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।

ब्रह्मपुत्र नदी और पहाड़ों को हथियार बनाकर उन्होंने मुगल सेना को तहस-नहस कर दिया। इस जीत के बाद मुगलों ने फिर कभी पूर्वोत्तर की तरफ आँख उठाने की हिम्मत नहीं की। लाचित का ये पराक्रम इतना बड़ा था कि उनकी मृत्यु 1672 में हो गई, पर उनका नाम अमर हो गया।

अहोम साम्राज्य ने 1228 से 1826 तक करीब 600 साल असम पर राज किया। इस दौरान तुर्क, अफगान और मुगलों ने कई बार हमले किए। पहला हमला 1615 में हुआ, जब लाचित सिर्फ 7 साल के थे। 1663 में मुगलों ने अहोम को हरा दिया और घिलाजरीघाट की संधि हुई।

इस संधि में अहोम राजा जयध्वज सिंह को अपनी बेटी और भतीजी मुगल हरम में भेजनी पड़ी। 82 हाथी, 3 लाख सिक्के, 675 बंदूकें और 1000 जहाज भी मुगलों को देने पड़े। राज्य का बड़ा हिस्सा भी चला गया। इस अपमान से जयध्वज टूट गए और जल्द ही उनकी मौत हो गई। उनके बाद चक्रध्वज सिंह ने मुगलों से बदला लेने की ठानी और 1667 में लाचित को सेनापति बनाया।

पानी में मुगलों को दी करारी मात

लाचित बरपुखान सैन्य कौशल में माहिर थे। सेनापति बनने से पहले उन्होंने अहोम साम्राज्य में कई अहम जिम्मेदारियाँ निभाई थीं। 4 नवंबर 1667 को उनकी सेना ने गुवाहाटी पर कब्जा कर लिया। ये जगह रणनीति के लिहाज से बहुत जरूरी थी।

मुगल शासक औरंगजेब ने गुवाहाटी वापस लेने के लिए राजा राम सिंह को भेजा, जो अंबर के मिर्जा राजा जय सिंह के बेटे थे। कई बार छोटे-मोटे संघर्ष के बाद लाचित ने मुगलों को पानी की तरफ धकेला और 1671 में सराईघाट का युद्ध हुआ। इस युद्ध में लाचित ने सिर्फ 7 नावों से मुगलों की सैकड़ों नावों को हरा दिया। उनकी चालाकी और हिम्मत ने मुगलों को चारों खाने चित कर दिया।

मुगलों ने पूर्वोत्तर की तरफ देखना छोड़ दिया

लाचित बरपुखान की इस जीत का असर इतना गहरा था कि मुगलों ने पूर्वोत्तर पर कब्जे का सपना छोड़ दिया। उनके जाने के बाद भी अहोम साम्राज्य मजबूत रहा। लाचित को आज भी असम में बहुत सम्मान से याद किया जाता है। उनकी 400वीं जयंती पर 23 नवंबर 2022 को दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिन का आयोजन हुआ।

असम सरकार ने 2000 में लाचित बरपुखान अवॉर्ड शुरू किया, जो हर साल दिया जाता है। इतिहास में भले ही उन्हें कम जगह मिली, पर मोदी सरकार अब उनके गौरव को वापस लाने की कोशिश कर रही है। बीते साल खुद पीएम मोदी ने लाचित बरपुखान की प्रतिमा का अनावरण किया था।

लाचित का ये पराक्रम हमें याद दिलाता है कि मुगलों को सिर्फ राजपूतों या मराठों ने ही नहीं हराया, बल्कि अहोम योद्धाओं ने भी उन्हें 17 बार धूल चटाई। आज लाचित बरपुखान पुलिस अकादमी असम की शान है, जहाँ से दूसरे राज्यों के पुलिसवाले भी ट्रेनिंग ले रहे हैं।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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मैं ऐसे सभी साथियों की भावनाओं का सम्मान करता हूँ, परंतु मेरा आग्रह है कि वो इस तरह के प्रण लेने के बजाए किसी सामाजिक अथवा देशहित के कार्य का प्रण लें।"
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