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Tuesday, April 15, 2025
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हिंदू विलेन, इस्लाम अच्छा… वामपंथी प्रोपेगेंडा वाले फिल्म स्कूल के ‘अनुभव’ से निकला है ‘IC814’, इसलिए लव स्टोरी वाला बॉलीवुड प्रेम कहानी खत्म करने वाले आतंकियों से भी निभाता है मोहब्बतें

क्या आईसी814 को बनाते समय एक भी बात पीड़ित से उनका दर्द नहीं पूछा गया? शायद नहीं। क्योंकि अगर पूछा गया होता तो निर्माताओं को पता होता उस समय किस डर से लोग गुजर रहे थे। वो डर इतना भयानक था कि घटना के 24 साल बीत जाने के बाद वो लोग इस मुद्दे पर बनी फिल्म भी नहीं देखना चाहते।

बॉलीवुड में प्रेम कहानियाँ दिखाने का चलन रहा है। विषय कोई भी, कितना ही गंभीर हो, बॉलीवुड वाले कहीं न कहीं से प्रेम कहानी को खोज लाते हैं और फिर फिल्म का अंत उसी कहानी के ईर्द-गिर्द करते हैं। हाल में नेटफ्लिक्स पर एक सीरिज आई- ‘आईसी 814- द कंधार हाईजैक।’ इसमें भी फिल्म निर्देशक अनुभव सिन्हा ने एक लव स्टोरी डाली लेकिन निर्देशकों ने इस सीरिज में इस लव स्टोरी को तवज्जों देना जरूरी नहीं समझा, शायद इसलिए क्योंकि उनका ध्यान इस्लामी आतंकियों की पहचान को ढाँकने में ज्यादा था जिन्होंने प्रेम कहानी का अंत किया।

अगर वो इस फिल्म में दिखाई गई प्रेम कहानी को मुख्य तौर पर दिखाते तो न उनका हिंदूफोबिक नैरेटिव चल पाता और न ही वो आतंकियों के कुकर्मों को धो पोंछने में सफल हो पाते। ये कहानी जिसे दिखाने से फिल्म के निर्देशकों ने परहेज किया वो रुपिन कात्याल और रचना कात्याल की थी।

हाईजैक के दौरान आतंकियों ने अपनी शर्त मनवाने के लिए एक नवयुवक की बर्बरता से गला रेतकर हत्या की थी। शायद संख्या के सुनने में ये ज्यादा भयावह न लगे कि 174 यात्रियों में से आतंकियों ने 1 को मार डाला, लेकिन अगर रचना की नजर से देखेंगे तो उनके लिए वो 1 व्यक्ति ही उनकी दुनिया था।

रचना कात्याल और रुपिन की कहानी

हाईजैक के समय रुपिन और रचना अपने हनीमून पर जा रहे थे। मात्र 22 दिन पहले ही उनकी शादी हुई थी। जाहिर है दोनों ने आगे जीवन के लिए कई सपने देखे होंगे, लेकिन उन आतंकियों ने रचना-रुपिन के सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। हाईजैक के बाद पहले रुपिन को अलग ले जाया गया और उसके बाद अपनी बात मनवाने के लिए उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। रचना बदहवास हालत में बार-बार अपने पति से मिलने के लिए मिन्नतें करती रहीं लेकिन वो आतंकी जिन्हें IC814 में दयालु और बार बार ये कहते दिखाया गया है- ‘हमें आपसे निजी दुश्मनी नहीं है’, उन्होंने एक भी बार रचना की ओर देखा तक नहीं। किसी आतंकी ने उनकी कोई बात नहीं सुनी।

7 दिन बाद जब सारे यात्री विमान से बाहर आए तब रचना बेसुध हो चुकी थीं। उन्हें बाकी कुछ याद नहीं था वो सिर्फ अपने पति को खोज रही थीं। विमान से उतरने के बहुत देर बाद तक उन्हें नहीं बताया गया था कि उनके पति अब दुनिया में नहीं हैं। सबको डर था कि कहीं रचना सदमे में न चली जाएँ। लोगों का डर सही था रचना को जब अपने पति की हत्या का पता चला तो वो एकदम शांत हो गईं। उन्हें कुछ समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या। आखिर में रचना को अवसाद से निकालने में उनके सास-ससुर ने उनकी मदद की।

क्यों छिपाए गए फिल्म में आतंकियों के नाम

अब बॉलीवुड फिल्म निर्माता अनुभव सिन्हा चाहते तो इस कहानी को प्रमुखता से दिखाकर बता सकते थे कि उस समय यात्रियों पर क्या बीती होगी, रचना कैसे दर्द से उभरी होंगी, लेकिन हुआ क्या? इस कहानी को कुछ मिनटों में समेटकर उन्होंने पूरी ताकत इस्लामी आतंकियों के बर्बर चेहरे को धो पोंछने में लगा दी। अनुभव सिन्हा ने अपनी फिल्म में आतंकियों के असली नाम तक छिपाए जबकि गृह मंत्रालय की साइट से लेकर सामान्य मीडिया रिपोर्ट तक में उनके नाम का उल्लेख था। सवाल उठने पर तर्क दे दिया गया कि सीरिज में सब असलियत दिखाई गई इसलिए वही कोडनेम इस्तेमाल हुए जो आतंकियों ने रखे थे।

अब ये बात अगर मान भी ली जाए कि फिल्म में भोला-शंकर जैसे नाम सिर्फ हकीकत दिखाने के लिए रखे गए थे, तो क्या ये प्रश्न नहीं उठता कि अगर निर्देशक ने कोडनेम फिल्म में इतनी प्रमुखता से बार-बार दिखाए तो वो ये भी दिखाएँ कि उन आतंकियों का असली नाम क्या था? एक तो अनुभव सिन्हा ने ऐसा किया नहीं, ऊपर से जब लोगों ने सवाल खड़े किए तो उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देना तक नहीं समझा।

खैर! अनुभव सिन्हा ने कुछ नया नहीं किया है। बॉलीवुड में हिंदूफोबिक कंटेंट दिखाने का काम और इस्लाम मजहब का महिमामंडन दशकों से होता रहा है। फिल्मों में भगवा पहनने वाले, टीका लगाने वाले को बलात्कारी, किडनैपर दिखाना और इस्लाम मानने वालों को इंसानियत का पहरेदार दिखाना बॉलीवुड का पुराना प्लॉट रहा है।

इस सीरिज में भी इसके अलावा और कुछ नहीं हुआ है। तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने अपनी किताब- अ कॉल टू ऑनर- इन सर्विस ऑफ इमरजेंस इंडिया में साफ कहा था कि इस मामले में आईएसआई का सीधा हाथ था। उन्होंने उन लोगों को कंधार में भेजा था जिनके दोस्त या रिश्तेदार भारत में बंद थे। बावजूद इस तथ्य के अनुभव सिन्हा ने इन बातों को सीरिज में दिखाना जरूरी तक नहीं समझा। उन्होंने इन बातों को छोटे-छोटे दृश्यों में समेटा और अपना कैमरा आतंकियों के उन चेहरों को दिखाने पर फोकस किया जहाँ वो परेशान थे, भावुक थे, यात्रियों से हँसी-मजाक कर रहे थे, अपने अपनों की याद में गुमसुम थे, इंसानियत दिखा रहे थे।

यात्रियों के दर्द को दिखाने में विफल हुई IC814

आतंकियों को इंसान दिखाने के प्रयास में और भारतीय सरकार को घेरने की कोशिश में वो न तो यात्रियों द्वारा झेले गए ट्रॉमा को समझा पाए और न ही उस महिला के दर्द को ढंग से दिखा पाए जिसने इस्लामी बर्बरता के कारण अपने जीवनसाथी को खो दिया।

दिलचस्प बात ये है कि ये बॉलीवुड वही है जो कश्मीरी पंडितों के दर्द को दिखाने के नाम पर एक प्रेम कहानी को परोस देता है और बड़ी चालाकी से महिलाओं के साथ हुए गैंगरेप और शरीर को चीरकर तीन हिस्सों में फेंकने वाली बर्बरता को छुपा लेता है। ये वही बॉलीवुड है जो राजी फिल्म में हिंदुस्तानी-पाकिस्तानी की लव स्टोरी दिखाने लगता है और एक नायिका को इतना लाचार बता देता है जैसे उसे हिंदुस्तान से होने का पछतावा हो।

इसके अलावा फिल्म से तिरंगे गायब करके वहाँ पाकिस्तानी झंडे दिखाने में बॉलीवुड गुरेज नहीं करता लेकिन जब आतंकी घटना में आतंकी का असली नाम बताने पर बात आए तो उन्हें सरकारी दस्तावेज जैसी बातें याद आ जाती हैं।

न दर्द दिखाया, न क्रूरता

क्या आईसी814 को बनाते समय एक भी बात पीड़ित से उनका दर्द नहीं पूछा गया? शायद नहीं। क्योंकि अगर पूछा गया होता तो निर्माताओं को पता होता उस समय किस डर से लोग गुजर रहे थे। वो डर इतना भयानक था कि घटना के 24 साल बीत जाने के बाद वो लोग इस मुद्दे पर बनी फिल्म भी नहीं देखना चाहते।

पूजा उन्हीं लोगों में से एक हैं। उस प्लेन में उस दिन पूजा भी थीं। उनकी शादी राकेश से हुई थी। दोनों नेपाल हनीमून पर गए थे। पूजा ने मीडिया को साफ बताया कि प्लेन के अंदर मौजूद हाईजैकर्स मुसलमान थे, लेकिन वे एक दूसरे को बर्गर, डॉक्टर, भोला, शंकर और चीफ नाम से बुला रहे थे।

अब पूजा जिन्हें प्लेन के भीतर बाहर का कुछ भी नहीं पता था उन्हें भी समझ आ गया था कि आतंकी मुसलमान हैं, लेकिन इस घटना पर 24 साल बाद फिल्म बनाने वाले अनुभव सिन्हा को ये जरूरी नहीं लगा।

पूजा ने बताया कि वो 7 दिन उन लोगों के जीवन के सबसे खौफनाक दिन थे। लोगों को प्लेन में पैनिक अटैक पड़ रहा था। एक डॉक्टर नाम का हाईजैकर पूरे दिन लोगों को इस्लाम को लेकर स्पीच देता था। वह सबसे बस यही कहता था इस्लाम मजहब सबसे अच्छा है और सबको उसे कबूल लेना चाहिए।

अब जिस किसी ने इस सीरिज को देखा है वो बता सकता है कि कहीं भी आतंकी को प्लेन में इस तरह की कोई बातचीत करते नहीं दिखाया गया है उलटा दिखाने की कोशिश ये हुई है कि वो हाईजैकर्स अपने अपनों को छुड़ाने के लिए मजबूर थे और उन्होंने इसीलिए प्लेन हाईजैक किया। उस प्लेन में जिन्होंने वो खौफनाक दिन गुजारे वो मानते हैं कि फिल्म उस खौफ को दिखाने में विफल हुई है।

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