Saturday, April 19, 2025
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वो ‘डॉक्टर’, जिसने फोड़ ली आँखें… अब मौत: रैगिंग के कारण मर गई जिनकी बेटी, बीड़ी बनाने वाली उस बूढ़ी माँ के लिए केरल की वामपंथी सरकार के पास पैसे नहीं

3 दिन... सिर्फ 3 दिन ही उस कॉलेज में जा पाईं सावित्री। तीनों दिन रैगिंग झेली। इतना झेली कि चौथे दिन कॉलेज गई ही नहीं, न ही कभी आगे जा पाईं।

केरल के कासरगोड जिले की सावित्री डॉक्टर बनकर अपने परिवार को बेहतर जीवन देना चाहती थीं। बचपन में वे अपनी माँ से कहा करती थीं, “मैं आपके लिए बड़ा घर बनवाऊँगी।” अफसोस ऐसा हो न सका। सावित्री की मां की जिंदगी बीड़ी बनाते हुए ही निकल गई। आज भी वे बिना दरवाजे वाले घर में रहने को मजबूर हैं। केरल की वामपंथी सरकार ने घर की नींव तो खड़ी कर दी लेकिन छत को अब भी तिरपाल से ढकना पड़ रहा है। त्रासदी भरी इस कहानी के पीछे सिर्फ एक शब्द का कारण है – रैगिंग।

सावित्री मुंडावलप्पिल कॉलेज में रैगिंग के कारण अवसाद में चली गई थीं। अवसाद भी ऐसा कि उन्होंने अपनी दाहिनी आँख तक फोड़ ली थी। विभिन्न पुनर्वास केंद्र में जीवन बिताने के 30 साल बाद 17 मार्च 2025 को हृदयघात के चलते उन्होंने अंतिम साँस ली।

सावित्री की माँ और उनके शिक्षकों को भरोसा था कि वो छोटी सी लड़की अपने परिवार को गरीबी से मुक्त कर उनका जीवन सुधारेगी। सावित्री भी यही चाहती थी। स्कूल में मन लगाकर पढ़ाई करती थी। मेहनत ने सफलता दिलाई। 377 नंबर लाकर फर्स्ट डिवीजन से पास हुईं। तब इतने मार्क्स के भी जलवे होते थे। साल 1996 में नेहरू कला और विज्ञान महाविद्यालय में प्रवेश मिला।

कॉलेज का पहला दिन सावित्री शायद खुशियों और सपनों के साथ गई होंगी। अफसोस कि जिस कॉलेज में सपनों को उड़ान मिलना था, वहीं हुई रैगिंग के कारण पूरा जीवन ही पुनर्वास केंद्र में गुजारना पड़ा। 3 दिन, सिर्फ 3 दिन ही उस कॉलेज में जा पाईं सावित्री। तीनों दिन रैगिंग झेली। इतना झेली कि चौथे दिन कॉलेज गई ही नहीं, न ही कभी आगे जा पाईं।

‘बायपोलर अफेक्टिव डिस्ऑर्डर’ नाम की मानसिक बीमारी से ग्रसित सावित्री अब अपने परिवार के लिए बोझ बन गई थीं। मनोचिकित्सकों के अनुसार उन्हें खुद को दर्द/चोट पहुँचाने का आदेश देने जैसी आवाजें सुनाई देने का आभास होता था। ऐसे मानसिक हालात और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते सावित्री को विभिन्न पुनर्वास केंद्रों में स्थानांतरित किया गया।

सावित्री के परिवार में उनकी माँ मुंडावलप्पिल वट्टीची और तीन बड़ी बहनें – शांता, थंकामणि और सुकुमारी हैं। ये सभी केरल बीड़ी वर्कर्स सेंट्रल को-ऑपरेटिव सोसाइटी में मजदूरी करती हैं। उनका पूरा जीवन बीड़ी बनाते ही निकल गया। जब सावित्री बच्ची थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। बचपन में जिसने बाप को खो दिया, जवानी में रैगिंग के कारण परिवार का साथ भी छूट गया। जिस मेधावी बच्ची के साथ प्रशासनिक चूक के कारण इतनी बड़ी त्रासदी हुई, वामपंथी सरकार ने उसके लिए क्या किया – यह भी जानने लायक है।

वर्ष 2021 में राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) ने राज्य सरकार से पीड़िता के परिवार को पक्का मकान दिलाने की माँग की। इसके बाद केरल सरकार ने मामले को संज्ञान में लिया और परिवार के लिए पक्का मकान बनाने की प्रक्रिया शुरू की – सरकारी प्रक्रिया! अभी तक मकान का सिर्फ ढाँचा बनकर तैयार हुआ है, घर अब तक पूरा नहीं हुआ है। राज्य सरकार से सावित्री की माँ लगातार घर को पूरा कराने की अपील में लगी हुई हैं।

सावित्री की माँ अपने परिवार के साथ आज भी ऐसे घर में रहती हैं, जिसमें दरवाज़े नहीं हैं, तिरपाल से झोपड़ी को ढका हुआ है। सरकार ने उन्हें पक्के मकान का वादा तो कर दिया लेकिन अब तक मकान बनकर तैयार नहीं हुआ है। मामले को लेकर सीपीएम नेता श्रीधरन कहते हैं, “अब घर की नींव का काम पूरा हो गया है। फंड की कमी के कारण अगला चरण रुका हुआ है।”

सावित्री के साथ हुई रैगिंग की घटना न तो पुलिस को जगा पाई, न ही माननीय न्यायालय को। ऐसा कोई आदेश कोर्ट की ओर से आ ही नहीं पाया, जिसे लैंडमार्क जजमेंट कहा जा सके। तारीख के पन्नों में दब कर रह गया सावित्री को मिलने वाला न्याय… और रैगिंग करने वाले आरोपितों पर अपराधी का ठप्पा भी नहीं लगा। जब सावित्री मानसिक रोगी बनी तो पुनर्वास केंद्र में स्थानीय पत्रकार ने उनकी कहानी पर गौर किया, जिससे बात बाहर आई कि उनकी यह हालत रैगिंग के कारण हुई है।

सावित्री की कहानी को गौर करते हुए राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) ने राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजी, उनके परिवार के लिए घर की माँग की। इसे सरकार ने मंजूर तो कर लिया लेकिन प्राथमिकता नहीं दी। वामपंथी सरकार के इस रवैये के कारण रैगिंग पीड़िता का परिवार आज तक बेहतर जीवन की तलाश में है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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