Wednesday, October 9, 2024
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एप्पल से आगे अब दुनिया में 4 ही देश, कंपनियों से भी बनता है राष्ट्र: वामपंथी-समाजवादी चोचले और फ्री की बिजली-पानी है कोढ़

जब हम अमेरिका, चीन, जर्मनी जैसे देशों की जीडीपी की तुलना करके भारत को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे होते, उस समय हम इस पक्ष को भूल जाते है कि ये देश और इनकी आर्थिक मजबूती वहाँ की सरकारों के कारण नहीं है।

तकनीक की दुनिया में अपनी कामयाबी से आए दिन नए-नए कीर्तिमान बनाने वाली एप्पल कंपनी ने एक नया रिकॉर्ड कायम किया। ताजा आँकड़ों के अनुसार एप्पल की मार्केट वैल्यू 3 ट्रिलियन डॉलर (करीब 225 लाख करोड़ रुपए) पार कर गई है। ये रिकॉर्ड इतना बड़ा है कि इसके कारण सिर्फ एक कंपनी से 186 देश पीछे रह गए हैं। अब यदि कोई इस कंपनी से आगे है तो वो 4 देश हैं। इन देशों के नाम अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी है। भारत की बात करें तो हमारे देश की जीडीपी 2.62 ट्रिलियन डॉलर है।

कंपनियों की बात करें तो अगर बोइंग, कोका-कोला, डिज़नी, एक्सॉन-मोबिल, मैकडॉनल्ड्स, नेटफ्लिक्स और वॉलमार्ट की वैल्यू जोड़ दी जाए तो भी एप्पल अकेले इन सबसे ज्यादा मूल्यवान है। वहीं इसके आसपास जो कंपनियाँ हैं, वो माइक्रोसॉफ्ट जिसकी मार्केट वैल्यू 2.51 ट्रिलियन डॉलर है, गूगल की एल्फाबेट इंक- 1.92 ट्रिलियन डॉलर, सउदी अरामको- 1.9 ट्रिलियन डॉलर और अमेजन – 1.73 ट्रिलियन डॉलर है।

एप्पल कंपनी ने इस क्षण को ऐतिहासिक बताते हुए जानकारी दी की एप्पल ने 1 ट्रिलियन डॉलर का आँकड़ा 2018 में पार किया था और 2 ट्रिलियन का आँकड़ा 2020 में…। मात्र 1 साल के बाद एप्पल के लिए ये दोबारा जश्न मनाने का क्षण है। कंपनी के सह-संस्थापक ने इस मुकाम पर पहुँचने के बाद जानकारी दी कि उन्हें पहले ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने के लिए 38 साल इंतजार करना पड़ा। फिर दूसरे ट्रिलियन डॉलर के लिए 24 महीने और तीसरे का रिकॉर्ड मात्र 16 माह में पूरा गया।

यहाँ बता दें कि एप्पल दुनिया की पहली सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी है जो इस मुकाम तक पहुँची है। रिपोर्ट्स के मुताबिक कंपनी के शेयर सोमवार को 182.01 डॉलर पर ट्रेड कर रहे थे। आज इस कंपनी की कामयाबी देखने के बाद आने वाले समय में कई लोग इसकी सक्सेस स्टोरी को मोटिवेशन कोट्स में शामिल करके ये दिखाने का प्रयास करेंगे कि कैसे 45 साल पहले खोली गई एक कंपनी ने सैंकड़ों देशों को पछाड़ दिया है। हालाँकि, इस कंपनी के खुलने और इसके बाजार में बने रहने के पीछे कैसा संघर्ष और स्थिति रही होगी इसपर कोई बात नहीं करेगा।

कई वामपंथी बुद्धिजीवी तो हमारे ही देश में मौजूद हैं जो एप्पल की इस कामयाबी के पीछे प्रधानमंत्री मोदी को कोसना शुरू कर दिए हैं। उदाहरण के लिए नेहरू मिथक और सत्य के लेखक पीयूष बबेले ने क्या लिखा है इसे पढ़िए। ये कहते हैं- “प्रधानमंत्री मोदी हमें पट्टी पढ़ाते रहे कि भारत 2022 में ट्रिलियन डॉलर इकोनामी बन जाएगा। उधर अमेरिका की कंपनी एप्पल की नेटवर्थ आज 3 ट्रिलियन डॉलर हो गई। तपस्या में कहाँ कमी रह गई सरकार?”

आप सोचिए कि जिस कंपनी के कीर्तिमान पर अपने देश की सरकार को कोसने का काम शुरू हुआ है वही सरकार अपको टेक-फ्रेंडली बनाने के लिए और देश में औद्योगिक विकास के लिए 2014 से ही मेहनत कर रही है। जिस जम्मू-कश्मीर से वामपंथी, कट्टरपंथी आर्टिकल 370 के हटने के कारण अब भी मोदी सरकार को कोसने में जुटे हैं वहाँ ये सरकार केवल औद्योगिक विकास के लिए नई स्कीमें लेकर गई है। साल 2018 में सैमसंग जैसी कंपनी का भारत में सबसे बड़ा प्लांट लगना इस बात का उदाहरण है कि किस तरह देश को औद्योगिक दृष्टि से परिपक्व करने की मेहनत की जा रही है।

जब हम अमेरिका, चीन, जर्मनी जैसे देशों की जीडीपी की तुलना करके भारत को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे होते, उस समय हम इस पक्ष को भूल जाते है कि ये देश और इनकी आर्थिक मजबूती वहाँ की सरकारों के कारण नहीं है। अमेरिका में चलने वाली एप्पल की कंपनी, टेसला की आमदनी, फेकबुक-मेटा की लोकप्रियता उसे अन्य देशों से आगे बढ़ाती हैं।

सबसे खास बात ये है कि इन कंपनियो को चलाने वाले लोग कोई बड़े अमाउंट के साथ बाजार में नहीं आए थे। लेकिन आज इनकी मेहनत काबिलियत ने इन्हें इस लायक बनाया है कि 186 देशों की जीडीपी मजबूर है इनकी मार्केट वैल्यू के आगे खुद कम दिखाने में। सर्वेश्रेष्ठ जीडीपी वाले देशों में चलने वाली अधिकांश कंपनियाँ 25 से 30 पहले शुरू हुई थीं जिन्होंने आज देश की काया पलट कर रख दी है। ये 25-30 साल यदि भारत के संदर्भ में पीछे जाएँ तो पता चलता है कि यहाँ तो खुली अर्थव्यवस्था ही 1991 में आधिकारिक रूप से आई थी जबकि हालात आज भी ऐसे हैं कि यदि सरकार आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजना ले आए तो कहा जाता है कि रोजगार की कमी के कारण ये पैंतरे अपनाए जा रहे हैं

आज हम आलोचना कर सकते हैं कि जो ट्रिलियन्स के वादे सरकार ने किए वो पूरे नहीं हुए। मगर हम न तो कोरोना जैसी आपदा और उससे गहराए संकट को नजर अंदाज कर सकते हैं, न ही वर्तमान सरकार के उन प्रयासों को जो हमें टेक सेवी बनाने के लिए नित प्रयत्न कर रही हैं और न ही देश में पसरी समाजवादी नीति को जो बढ़ते देश की कामयाबी के बीच में फ्री बिजली, पानी के खेल को घुसाती हैं और संभावनाएँ तलाश करने की बजाए सत्ता को कैसे फिक्स रखा जाए इसके गुण सिखाती है।

ज्यादा पीछे न जाएँ तो 2018 की ही बात है। भारत के नाम एक नई उपलब्धि लिखी गई थी जब नोएडा में सैमसंग ने प्लांट की शुरूआत की थी। हालाँकि, उस समय विपक्षी पार्टियों के लिए मुद्दा ये नहीं था कि सैमसंग जैसी और कंपनियों को देश में प्लांट लगाने के लिए आकर्षित किया जाना चाहिए। होड़ इस बात की थी कि मोदी सरकार इसका क्रेडिट ले रही है। आज की ही बात करें तो देख लीजिए कि 5 राज्यों में चुनाव होने हैं कहाँ और कौन सी पार्टी आपको फ्री का लालच देकर अपनी ओर नहीं आकर्षित कर रही? किसके मेनिफेस्टों में देश को मजबूत करने का बिंदु है।

ये हमारे देश की  विडंबना है कि यहाँ के राजनेता अपने फायदे के लिए आए दिन उद्योगपतियों को निशाना बनाते हैं और इसे मजबूत करने की जगह जनता को फ्री का और आरक्षण का लालच दिया जाता है। विस्तार की संभावनाएँ खोजने की बजाय वोट प्रतिशत पर फोकस किया जाता है। मगर, ये बात सच है कि जैसे देश, राष्ट्र के नागरिकों से निर्मित होता है, वैसे ही उसकी अर्थव्यवस्था के उतरने-चढ़ने में बड़े-बड़े उद्योग खासी भूमिका निभाते हैं। अगर आज भारत भी एप्पल जैसी कंपनियों के लिए देश में जगह बनाता है तो यहाँ न केवल रोजगार बढ़ेगा बल्कि अर्थव्यव्था की सूरत भी बदल जाएगी।

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