बेंगलुरु में एनआईए की विशेष अदालत ने सोमवार (30 दिसंबर) को बांग्लादेशी नागरिक जाहिदुल इस्लाम उर्फ कौसर को भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई। साथ ही उस पर 57,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। जाहिदुल को जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) का ‘अमीर’ कहा जाता है, जो भारत में आतंकी नेटवर्क का संचालन कर रहा था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जाहिदुल इस्लाम 2014 में अवैध रूप से भारत में घुसा था। वह 2005 में बांग्लादेश में हुए सीरियल बम धमाकों के मामले में पुलिस की हिरासत से भागने के बाद भारत आया। यहाँ उसने जेएमबी प्रमुख सलाउद्दीन सालेहिन के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल के वर्धबान जिले में अक्टूबर 2014 में बम धमाके की साजिश रची। बर्दवान के खागरागढ़ इलाके में हुए इस विस्फोट में दो लोगों की मौत हो गई थी, जबकि एक व्यक्ति घायल हुआ था। विस्फोट के बाद जाहिदुल और उसके साथी बेंगलुरु भाग गए।
बेंगलुरु में छिपते हुए जाहिदुल ने पश्चिम बंगाल और असम के मुस्लिम युवकों को कट्टरपंथी बनाना शुरू किया। उसने उन्हें जेएमबी की भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। एनआईए की जाँच में सामने आया कि 2018 में बोधगया में हुए विस्फोट के पीछे भी जाहिदुल और उसके साथियों का हाथ था। यह विस्फोट बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की यात्रा के दौरान किया गया था, जिसे जेएमबी ने साजिश के तहत अंजाम दिया।
जाहिदुल और उसके साथियों ने आतंकी गतिविधियों के लिए धन जुटाने के मकसद से बेंगलुरु में चार डकैतियाँ भी कीं। इन डकैतियों से मिले धन का इस्तेमाल गोला-बारूद खरीदने, ठिकानों की व्यवस्था करने और आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए किया गया। एनआईए ने 2019 में इस मामले को अपने हाथ में लिया और आतंकी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। जाँच के दौरान एनआईए को जाहिदुल और उसके साथियों के ठिकानों से हथगोले, टाइमर डिवाइस, इलेक्ट्रिक सर्किट और आईईडी बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले विस्फोटक पदार्थ बरामद हुए।
एनआईए ने इस मामले में 11 आरोपितों को दोषी ठहराया है, जिनमें से जाहिदुल को साजिश, डकैती, धन उगाही और गोला-बारूद की खरीद जैसे गंभीर आरोपों में दोषी पाया गया। एनआईए ने कहा कि जाहिदुल और उसका नेटवर्क भारत में जेएमबी के एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्रिय था।
इस मामले से जुड़े, फरार जेएमबी प्रमुख सलाउद्दीन सालेहिन जैसे अन्य आतंकियों को पकड़ने की चुनौती अब भी बनी हुई है। यह घटना दिखाती है कि कैसे आतंकी संगठन भोले-भाले युवाओं को कट्टरपंथी बनाकर अपने मंसूबों को अंजाम देते हैं और उनके खिलाफ सतर्क रहने की जरूरत है।