Saturday, May 3, 2025
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धर्म बदलकर बन गया पादरी, लड़ाई-झगड़ा होने पर ठोक दिया SC-ST एक्ट का केस: हाई कोर्ट ने किया रद्द, कहा- धर्मांतरण के बाद खुद को नहीं बता सकते दलित

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया, "जाति व्यवस्था के लिए ईसाई धर्म में कोई जगह नहीं है। ईसाई धर्म अपनाने और चर्च में पादरी के रूप में अपनी भूमिका स्वीकार करने के बाद शिकायतकर्ता SC-ST एक्ट के प्रावधानों को उपयोग नहीं कर सकता।"

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने एक निर्णायक फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि ईसाई बन जाने वाले लोग खुद को SC-ST नहीं बता सकते। हाई कोर्ट ने कहा है कि ईसाइयत में जातिप्रथा नहीं है। आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने यह फैसला एक ईसाई पादरी की शिकायत पर दिया है। पादरी दूसरे पक्ष पर SC-ST का मुकदमा चलाना चाहता था। पादरी का दावा था कि उसे जाति के नाम पर गाली दी गई है। आन्ध्र प्रदेश है कोर्ट ने उसकी यह दलीलें मानने से इनकार कर दिया।

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने क्या कहा?

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट में यह मामला जस्टिस हरिनाथ की बेंच ने सुना। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि शिकायत करने वाला पादरी और उसकी पत्नी ने स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया कि वह 10 वर्षों से पादरी के तौर पर काम कर रहा था।

हाई कोर्ट को यह भी पता चला कि वह एक पादरी संगठन का कोषाध्यक्ष भी है। हाई कोर्ट ने पाया कि पादरी 10 साल पहले ईसाइयत में धर्मांतरित हुआ था। इस मामले में मौजूद गवाहों के बयानों से भी शिकायतकर्ता पादरी का ईसाई होना स्पष्ट हुआ। इसके चलते हाई कोर्ट ने उसे SC-ST एक्ट का लाभ देने से इनकार किया।

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा, “शिकायतकर्ता (पादरी) पित्तलवनिपालम मंडल में पादरी फेलोशिप के कोषाध्यक्ष के रूप में काम कर रहा है। पादरी बनने के लिए किसी व्यक्ति को से ईसाईयत अपनानी ही पड़ती है। स्पष्ट रूप से वह प्रतिवादी ईसाई है और ईसाई धर्म को मानता है। ईसाई बनने के बाद याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं रह सकता।”

हाई कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया, “जाति व्यवस्था के लिए ईसाई धर्म में कोई जगह नहीं है। ईसाई धर्म अपनाने और चर्च में पादरी के रूप में अपनी भूमिका स्वीकार करने के बाद शिकायतकर्ता SC-ST एक्ट के प्रावधानों को उपयोग नहीं कर सकता।”

आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में पादरी ने SC-ST क़ानून का दुरूपयोग किया है। हाई कोर्ट ने पुलिस को भी इस बात के लिए फटकारा है कि उसने बिना पूरी जाँच के ही मामला दर्ज कर चार्जशीट लगा दी। हाई कोर्ट ने पादरी द्वारा दर्ज किए गए मामले को रद्द कर दिया और मारपीट के आरोपितों को बरी कर दिया।

क्या था मामला?

पादरी ने आरोप लगाया था कि उसे दिसम्बर, 2020 में कई फोन नम्बर से धमकियाँ मिलती थीं। उसने दावा किया था इन नम्बर से फोन करके लोग उसे जाति के नाम पर गालियाँ देते थे। पादरी ने आरोप लगाया था जनवरी, 2021 में उसे एक दिन प्रार्थना करवाने के दौरान आरोपितों ने थप्पड़ मारा और उसका अपमान किया।

पादरी ने यह भी आरोप लगाया कि इस घटना के कुछ दिन बाद ही आरोपितों ने इकट्ठा होकर उसे मारा-पीटा और उसके परिवार को खत्म कर देने की धमकी दी। पादरी ने पुलिस को यह भी बताया था कि उन लोगों ने इस दौरान भी जाति को लेकर गालियाँ दी थी। उसने पुलिस के पास इस मामले में SC-ST एक्ट सहित बाकी धाराओं में मामला दर्ज करवाया था।

इसके बाद पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी थी। वहीं आरोपित बनाए गए लोग इसके विरुद्ध हाई कोर्ट पहुँच गए। उन्होंने हाई कोर्ट में दावा किया कि आरोपित एक ईसाई है और वह SC-ST एक्ट का उपयोग नहीं कर सकता। आन्ध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने उनकी दलीलें मानते हुए मामले को रद्द कर दिया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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