लालच, ब्लैकमेलिंग तथा अन्य तरीकों से हिंदुओं को धर्मांतरण करने में जुटे ईसाई और मुस्लिमों के बीच अब एक-दूसरे का मजहब बदलवाने की होड़ शुरू हो गई है। पैसों का लालच देकर मुस्लिमों को ईसाई बनाने में मिशनरी जुटे हुए हैं। इसके कारण उत्तर प्रदेश के कई मुस्लिम परिवारों ने मस्जिद जाना छोड़ दिया है। उनके घरों में ईसा मसीह की तस्वीर लग गई हैं।
रिपोर्टों के अनुसार, यदि कोई मुस्लिम परिवार मजहब बदलता है, तो एजेंट को 20 हजार रुपया दिया जाता है। इसी प्रकार यदि कोई मुस्लिम लड़की अपना मजहब बदलकर शादी करती है, तो उसमें सक्रिय एजेंट को 15 हजार रुपये का बोनस दिया जाता है। ये खेल गाँव-गाँव तक फैल गया है, जहाँ मुस्लिम लोग आसानी से इनके झाँसे में आ रहे हैं।
श्रावस्ती, सीतापुर, अंबेडकरनगर और सुल्तानपुर जैसे जिलों में हाल ही में कई मामले सामने आए हैं। फरवरी 2025 में सीतापुर के हरगाँव और सिधौली इलाकों में छह मुस्लिम परिवारों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। अंबेडकरनगर और सुल्तानपुर में भी 10 परिवारों ने ऐसा ही कदम उठाया। इन परिवारों के युवा अब दाढ़ी नहीं रखते और घरों में ईसा मसीह की तस्वीरें सजा रहे हैं।
सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि मिशनरियाँ हवाला के जरिए मोटी रकम भेज रही हैं। चर्चों और बड़े स्कूलों से भी पैसा आ रहा है, जिससे ये गैंग ग्रामीण इलाकों में जाल बिछा रहे हैं। धर्मांतरण के लिए जिला स्तर पर टीमों को सक्रिय किया गया है। इसके लिए सबसे अधिक 443 सक्रिय टीम के संगम नगरी प्रयागराज में काम करने की बात सामने आई है। इसके अलावा महराजगंज में 398, बहराइच में 378, श्रावस्ती में 320, बलरामपुर में 330 और गोंडा में 340 टीमों के सक्रिय होने की जानकारी सामने आई है।
धर्मांतरण का नेटवर्क फैलाने में प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या में 333 टमों के जुटे होने की जानकारी सामने आई है। वहीं, अंबेडकरनगर में 347, सीतापुर में 326, सिद्धार्थनगर में 345, अमेठी में 317, रायबरेली में 323 और पीलीभीत में 346 सक्रिय टीमें अभियान में जुटी हैं।
नेपाल सीमा से सटे इलाकों में खासकर देवीपाटन मंडल के श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर और गोंडा जैसे संवेदनशील जिलों में पुलिस को कंवर्जन का मामला आते ही कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। इस संबंध में आईजी अमित पाठक का कहना है कि चारों जिलों के एसपी को इस प्रकार के मामलों पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।
सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कुछ मुस्लिम परिवार अब जुमे की नमाज नहीं पढ़ते और बच्चे मदरसों की जगह कान्वेंट स्कूल जा रहे हैं। महिलाएँ मिशनरी संस्थाओं से जुड़कर पैसे कमा रही हैं।
आईबी के पूर्व अधिकारी सतीश सिंह बताते हैं कि मुस्लिम परिवारों के धर्मांतरण का पहला मामला पीलीभीत में वर्ष 2020 में सामने आया था। इसके बाद नेपाल से सटे गोरखपुर मंडल के महाराजगंज और फिर बस्ती मंडल के सिद्धार्थनगर जिले में भी पाँच मुस्लिम परिवारों ने ईसाई धर्म स्वीकारा। लेकिन इन परिवारों के सदस्यों ने अपना नाम नहीं बदला।
पुलिस और खुफिया विभाग इसे गंभीरता से ले रहे हैं। श्रावस्ती में एक प्रार्थना सभा के बाद एजेंट भाग गया, जिसके बाद जाँच तेज कर दी गई। सरकार ने सख्त कानून बनाए हैं, फिर भी ये गैंग रुकने का नाम नहीं ले रहे। गरीबी और अशिक्षा का फायदा उठाकर मिशनरियाँ अपना नेटवर्क मजबूत कर रही हैं।