दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में नोटों से भरे बोरों में आग लगने का वीडियो सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है। इसके साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय ने अपनी जाँच में इसकी गहन जाँच की सिफारिश की है। इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मामले की जाँच के लिए तीन सदस्यीय कमिटी बनाई है।
इससे पहले जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) की FIR और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ECIR में भी आ चुका है। जिस समय उनका नाम इन केंद्रीय एजेंसियों की फाइलों आरोपित बनाया गया था, उससे लगभग चार साल पहले यानी 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बन गए थे। जज बनने के बाद होने सिंभावली शुगर्स मिल नाम की एक कंपनी में गैर-कार्यकारी निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था।
हालाँकि, पिछले साल यानी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई से जाँच कराने के फैसले को खारिज कर दिया था। सीबीआई से जाँच कराने का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया था। सिंभावली शुगर्स के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी सीबीआई ने साल 2018 में मामला दर्ज किया था। एफआईआर में जस्टिस वर्मा को फरवरी 2012 में सिंभावली शुगर्स में एक गैर-कार्यकारी निदेशक बताया गया था।
करोड़ों रुपए का गबन करने वाली कंपनी के नन-एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर थे जस्टिस वर्मा
एजेंसी ने उन्हें आरोपित नंबर-10 बनाया था। इस मामले में सभी आरोपितों के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया गया है। कंपनी ने 900 करोड़ का लोन लिया था। यह FIR ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (अब पंजाब नेशनल बैंक का हिस्सा) ने शुगर मिल के खिलाफ दर्ज कराई थी। कंपनी ने किसानों को कृषि उपकरण आदि देने के नाम पर इस बैंक से लगभग 150 करोड़ रुपए ऋण लिया था। वहीं, कुल 7 बैंकों से 900 करोड़ रुपए लोन लिया था।


बैंक की शिकायत के अनुसार, जनवरी से मार्च 2012 के बीच ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की हापुड़ शाखा ने 5,762 किसानों को कृषि उपकरण, खाद और बीज खरीदने में मदद करने के लिए 148.59 करोड़ रुपए वितरित किए थे। समझौते के तहत किसानों के व्यक्तिगत खातों में वितरित किए जाने से पहले धनराशि को एस्क्रो खाते में स्थानांतरित किया जाना था।
समझौते के तहत सिंभावली शुगर मिल्स ने ऋण चुकाने और किसानों द्वारा किसी भी चूक या पहचान मे धोखाधड़ी को कवर करने की गारंटी ली थी। कंपनी ने कथित तौर पर फर्जी ‘नो योर कस्टमर (KYC)’ दस्तावेज जमा किए और धन का गबन किया। मार्च 2015 तक बैंक ने लोन को धोखाधड़ी घोषित कर दिया। इसमें कुल 97.85 करोड़ रुपए गबन और 109.08 करोड़ रुपए की बकाया राशि शामिल थी।
FIR में जस्टिस वर्मा का भी नाम
इसके साथ बैंक ने 13 मई 2015 को इसकी सूचना केंद्रीय रिजर्व बैंक (RBI) को भी दे दी। इस मामले में CBI ने 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिनमें से एक वर्तमान जस्टिस यशवंत वर्मा भी एक थे। एफआईआर में नामजद एक और प्रमुख व्यक्ति गुरपाल सिंह था। वह कंपनी का उप प्रबंध निदेशक और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का दामाद था।
CBI द्वारा एफआईआर दर्ज करने के पाँच दिन बाद प्रवर्तन निदेशालय ने भी 27 फरवरी 2018 को लखनऊ के ED पुलिस स्टेशन में धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 की धारा 3/4 के तहत शिकायत दर्ज की। दिसंबर 2023 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऋण वितरण से जुड़े 7 बैंकों की नए सिरे से सीबीआई जाँच का आदेश दिए। अदालत ने कहा कि धोखाधड़ी ने न्यायपालिका की ‘अंतरात्मा को झकझोर दिया है’।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने CBI से कहा था कि 7 बैंकों ने सिंभावली शुगर्स को ऋण क्यों दिए, जबकि उन्हें पता था कि कंपनी का लोन नहीं चुकाने का इतिहास रहा है। हाई कोर्ट ने पाया कि कई बैंक अधिकारियों ने 900 करोड़ रुपए के ऋण पास करने में सिंभावली शुगर मिल्स के साथ मिलीभगत की थी। कोर्ट ने कहा था कि ओरिएंटल बैंक ही एकमात्र बैंक था जिसने केंद्रीय एजेंसियों से संपर्क किया।
अपने आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, “बैंक अधिकारियों ने आरबीआई के दिशा-निर्देशों और परिपत्रों की पूरी तरह से अनदेखी की। हम सीबीआई को निर्देश देते हैं कि वह जाँच करे कि किन अधिकारियों ने इन ऋणों को मंजूरी दी, बोर्ड या ऋण समिति के किन सदस्यों ने वितरण में मदद की और किन अधिकारियों ने गबन को बिना रोक-टोक जारी रहने दिया।”
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई करते हुए सीबीआई ने फरवरी 2024 में एक नई जाँच शुरू की। इस जाँच का उद्देश्य यह पता लगाना था कि बैंक 2009 से 2017 के बीच सिंभावली शुगर मिल्स को ऋण क्यों देते रहे, जबकि यह कंपनी ऋण डिफॉल्टर थी। जाँच में कंपनी, उसके निदेशकों और अज्ञात बैंक अधिकारियों का नाम शामिल किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का CBI जाँच को रोका
मार्च 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ जाँच को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में सीबीआई जाँच का आदेश देकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गलती की है, क्योंकि इसमें जाँच की कोई जरूरत नहीं थी। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों को कानून के मुताबिक धोखाधड़ी के लिए कार्रवाई करने से नहीं रोका गया है।
सूत्रों के हवाले से न्यूज 18 ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एफआईआर दर्ज होने के कुछ समय बाद ही सीबीआई ने यशवंत वर्मा का नाम उस एफआईआर से हटा दिया था। इसके बाद इस केंद्रीय एजेंसी ने कोर्ट को बता भी दिया था कि जस्टिस यशवंत वर्मा का नाम FIR से हटाया जा रहा है। हालाँकि, साल 2014 में जब उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट का अतिरिक्त जज बनाया गया तो उन्हें शुगर मिल कंपनी से इस्तीफा दे दिया था।
जस्टिस वर्मा ने कई कंपनियों से जुड़े मामलों का निपटारा किया
ये वही जस्टिस यशवंत वर्मा हैं, जिन्होंने एक मामले में ED की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। साल 2023 में उन्होंने एक फैसला सुनाया था कि संघीय एजेंसी ED मनी लॉन्ड्रिंग के अलावा किसी अन्य अपराध की जाँच नहीं कर सकती है और वह यह नहीं मान सकती है कि इसमें कोई अंतर्निहित अपराध है। यह मामला प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड से जुड़े एक मामले से संबंधित था।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने 24 जनवरी 2023 को प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड द्वारा दायर एक मामले में फैसला सुनाया था। दरअसल, प्रकाश इंडस्ट्रीज नवंबर 2018 में ED के कुर्की के एक आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट पहुँचा था। इस मामले की सुनवाई वर्तमान में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और रजनीश कुमार गुप्ता की पीठ द्वारा की जा रही है।
जस्टिस यशवंत वर्मा 11 अक्टूबर 2021 को दिल्ली हाई कोर्ट में नियुक्त हुए थे। इसके बाद उन्होंने फरवरी 2022 तक सार्वजनिक परिसर (अधिनियम) और भूमि अधिग्रहण मामलों से निपटने वाली पीठ की अध्यक्षता की। मार्च 2022 से नवंबर 2022 तक उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में विविध रोस्टर रखा और इसमें RTI, दिल्ली परिवहन निगम और खेल से संबंधित कई मामलों का निपटारा किया।
जस्टिस यशवंत वर्मा ने नवंबर 2022 से जुलाई 2023 तक मध्यस्थता मामलों को निपटाया। उन्होंने हाई कोर्ट के विविध रोस्टर का नेतृत्व किया। इसके तहत उन्होंने जनवरी 2023 में नेटफ्लिक्स के पक्ष में फैसला सुनाया था। वहीं, साल 1997 में हुए उपहार सिनेमा कांड पर आधारित फिल्म ‘ट्रायल बाय फायर’ की रिलीज़ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
जुलाई 2023 से उन्होंने आयकर अपील, प्रत्यक्ष कर, सेवा कर और केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली बेंच की अध्यक्षता की। मार्च 2024 में उन्होंने आयकर विभाग द्वारा कॉन्ग्रेस को 2018-19 के लिए 105 करोड़ रुपए के बकाया कर की वसूली के लिए जारी नोटिस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
इस साल जनवरी में जस्टिस वर्मा ने माना कि दक्षिण कोरिया स्थित सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड भारत में कर का भुगतान करने के योग्य नहीं है। एक महीने बाद उन्होंने कार निर्माता मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा जारी 2,000 करोड़ रुपए के पुनर्मूल्यांकन नोटिस को रद्द कर दिया था।
जस्टिस वर्मा ने ऑक्सफैम इंडिया और केयर इंडिया जैसे गैर-सरकारी संगठनों से जुड़े कई मामलों में भी फैसला सुनाया था। जनवरी 2024 में उन्होंने ऑक्सफैम इंडिया और केयर इंडिया की कर छूट की स्थिति को रद्द करने वाले आयकर विभाग द्वारा पारित आदेश पर रोक लगा दी थी। वहीं, फरवरी 2025 में उन्होंने समाचार पोर्टल न्यूज़ क्लिक द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।
न्यूज क्लिक ने अपनी याचिका में आयकर विभाग के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे 2 मार्च को या उससे पहले बकाया कर के रूप में 19 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। अपने कार्यकाल के दौरान वह दिल्ली हाई कोर्ट के मूल पक्ष के प्रभारी न्यायाधीश भी थे। जस्टिस वर्मा का अब तक का 22 का करियर रहा है। अभी 5 साल 9 महीना उनका कार्यकाल बाकी है।