Sunday, April 27, 2025
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पूरे देश में लागू हो UCC: कर्नाटक हाई कोर्ट, कहा- मजहब के आधार पर कानून से महिलाओं से होता है भेदभाव; अब्दुल की प्रॉपर्टी पर लड़ाई से जुड़ा है मामला

कर्नाटक उच्च न्यायालय के एकल पीठ ने कहा, "संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपने सबसे शानदार भाषण में समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क दिया है।" कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस संजीवकुमार ने आगे कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, टी कृष्णमाचारी और मौलाना हसरत मोहानी जैसे प्रमुख नेताओं ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने शुक्रवार (4 अप्रैल 2025) को संसद एवं राज्य विधानसभाओं से समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के लिए हरसंभव प्रयास करने का आग्रह किया। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 तहत समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने से भारत के संविधान की प्रस्तावना में निहित उद्देश्य और आकांक्षाएँ सही मायने में साकार होंगी।

जस्टिस हंचते संजीवकुमार की एकल पीठ ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने से महिलाओं के लिए न्याय सुनिश्चित होगा, सभी जातियों और धर्मों में समानता को बढ़ावा मिलेगा तथा भाईचारे के माध्यम से व्यक्तिगत गरिमा कायम रहेगी। न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुसार भारत में सभी महिलाएँ एक नागरिक के तौर पर समान हैं, लेकिन पर्सनल लॉ उनके साथ भेदभाव करते हैं।

कोर्ट ने कहा कि धर्म के आधार पर बने पर्सनल लॉ के कारण महिलाओं के भेदभाव होता है। हिंदू कानून के तहत बेटी को बेटे के समान जन्मसिद्ध अधिकार और पत्नी को अपने पति के बराबर दर्जा प्राप्त है। हालाँकि, मुस्लिम कानून के तहत ऐसी समानता नहीं दिखाई देती है। इसलिए, कोर्ट ने कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करने के लिए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जोर दिया।

कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीश हंचते संजीवकुमार ने समान नागरिक संहिता कानून को लेकर संविधान सभा का तर्क दिया। उन्होंने कहा कि संविधान सभा में भी समान नागरिक संहिता विवाद का एक विषय था। जस्टिस संजीवकुमार ने कहा कि संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया और कुछ सदस्यों ने इसका विरोध किया था।

न्यायालय ने कहा, “संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपने सबसे शानदार भाषण में समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क दिया है।” कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस संजीवकुमार ने आगे कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद, टी कृष्णमाचारी और मौलाना हसरत मोहानी जैसे प्रमुख नेताओं ने समान नागरिक संहिता का समर्थन किया था।

इसके अलावा, कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का भी हवाला दिया। इनमें मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम और अन्य (1985), सरला मुद्गल (श्रीमती) और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1995) और जॉन वल्लमट्टम और अन्य बनाम भारत संघ (2003) प्रमुख हैं। इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने संसद को समान नागरिक संहिता पर कानून बनाने का सुझाव दिया था।

दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान की। अब्दुल बशीर खान नामक व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति बँटवारे को लेकर विवाद हो गया। दरअसल, अब्दुल बशीर ने अपनी मृत्यु से पहले कोई वसीयत नहीं लिखी थी। वे अपने पीछे कई अचल संपत्तियाँ छोड़ गए, जिनमें से कुछ पैतृक थीं तथा कुछ उन्होंने स्वयं अर्जित की थीं।

अब्दुल बशीर की मौत के बाद उनकी संपत्ति के बँटवारे को लेकर उनके बच्चों के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। बेटी शहनाज़ बेगम की मौत के बाद उनका प्रतिनिधित्व उनके शौहर सिराजुद्दीन मक्की (प्रतिवादी) ने किया। मक्की ने आरोप लगाया कि उन्हें संपत्ति के बँटवारे से बाहर रखा गया और उसमें से उन्हें उचित हिस्सा नहीं दिया गया। इसको लेकर मक्की ने बेंगलुरु सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया।

नवंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने माना कि विचाराधीन तीन संपत्तियाँ संयुक्त परिवार की संपत्ति का हिस्सा हैं और शहनाज़ बेगम उन में पाँचवें हिस्से की हकदार हैं। हालाँकि, ट्रायल कोर्ट ने अन्य संपत्तियों को बँटवारा योग्य नहीं बताया। ट्रायल कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट अब्दुल बशीर के दो बेटों- समीउल्ला खान और नूरुल्ला खान तथा बेटी राहत जान (अपीलकर्ता) ने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील दायर की।

इधर, सिराजुद्दीन मक्की ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ आपत्ति दायर की, जिसमें अपने हिस्से को बढ़ाने या पहले के आदेश में संशोधन की माँग की गई। हाई कोर्ट ने दोनों पक्ष की याचिकाओं को स्वीकार किया और अपील एवं आपत्ति याचिका, दोनों पर एक साथ सुनवाई की। तमाम दलीलों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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