Monday, July 14, 2025
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हैंडपंप के साथ बाइबिल का संदेश… नए-नए हथकंडे अपना ईसाइयत का प्रचार कर रहे मिशनरी, MP-छत्तीसगढ़-राजस्थान के कई जिलों में 41% लोगों को बनाया ईसाई

अब 900 परिवारों में से करीब 450 ईसाई बन चुके हैं, यानी 41% की बढ़ोतरी। इन आकड़ों से ये साफ है कि लोगों के धर्मांतरण 8 सालों में तेजी से हुआ है। इन गाँवों में चर्चों की संख्या भी अब चार गुना बढ़ गई है।

छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में पिछले कुछ दशकों से धर्मांतरण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे है। पैसे, शिक्षा और चिकित्सा जैसे लालच में पड़कर लोग मतांतरण जैसा कदम उठा रहे हैं और ईसाई मिशनरी इस हथियार का सबसे ज्यादा इस्तेमाल भी कर रहे हैं।

मिशनरियों के निशाने पर गरीब, कम पढ़े लिखे लोग खासकर जनजातीय लोग हैं, जिसकी वजह से इन राज्यों के जनजातीय इलाकों में ईसाई परिवारों की संख्या में काफी उछाल आया है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, इन राज्यों के धार्मिक अनुपात में काफी अंतर देखने को मिला है।

छत्तीसगढ़ के गाँवों में 75% तक ईसाई कनवर्जन

रिपोर्ट के अनुसार, जशपुर जिले के सितोंगा गाँव में पहले सिर्फ एक चर्च था, लेकिन पिछले 20 सालों में करीब 200 परिवारों ने ईसाई मजहब अपना लिया है। गाँव में कुल 400 परिवार रहते हैं, जिनमें से करीब  270 अब ईसाई बन चुके हैं। कई घरों पर ईसाई प्रतीकों वाले झंडे लहरा रहे हैं।

इसके अलावा बस्तर और नारायणपुर जिले के कई गाँवों में ईसाई परिवारों की बढ़ती संख्या की वजह से मृतकों के दफन को लेकर विवाद हो रहा है। स्थानीय हिंदू संगठन ईसाई मजहब अपनाने वालों के शवों को गाँव के श्मशान घाट में दफनाने का विरोध कर रहे हैं, इसलिए चर्च के यार्ड में दफन किया जा रहा है।

पूर्व विधायक और जनजातीय नेता राजाराम तोड़ेम ने बताया कि बस्तर की कई समुदायों में 50% से ज्यादा लोग ईसाई बन चुके हैं। अंबिकापुर के बेहरापारा में 25 घर हैं और पिछले एक दशक में 19 परिवारों ने ईसाई मजहब अपना लिया है। हालाँकि छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल ने स्थानीय हिंदू संगठनों के विरोध के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

एमपी में मिशनरियों ने पैसों और स्वास्थ्य को बनाया हथियार

मध्य प्रदेश के बुरहानपुर और रायपुर जिलों में धर्म परिवर्तन के आरोप में करीब 10 एफआईआर दर्ज हुए  हैं। लेकिन धर्म परिवर्तन के मामले सिर्फ इन जिलों तक सीमित नहीं हैं। लोगों को पैसे और मेडिकल सुविधाएँ देकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए लालच दिया जाता है।

झाबुआ जिले के डुंगरा धन्ना गाँव में कई लोगों के नाम ईसाई हैं, लेकिन उनके उपनाम और पिता के नाम हिंदू हैं। मिसाल के तौर पर डुंगरा गाँव के थॉमस पहले सनातनी थे। उनके पिता का नाम जयराम सिंगारिया है। उन्होंने बताया कि वो कुछ साल पहले बीमार पड़ गए थे। मिशनरी का काम करने वाले लोगों ने उन्हें चर्च में प्रार्थना करने की सलाह दी थी, जिसे मानकर वो चर्च जाने लगे। ऐसे में ठीक होने के बाद उन्होंने ईसाइयत को अपना लिया।

जेवियर निनामा नाम का व्यक्ति ईसाइयों के मिशनरी स्कूल में काम करता है। हालाँकि निनामा का दावा है कि वो जनजातीय है। पर लोगों का कहना है कि कमाई के चक्कर में उसने ईसाईयत को अपना लिया। मौजूदा समय में डुंगरा धन्ना गाँव की करीब 25% आबादी ईसाई मजहब को अपना चुकी है। अलीराजपुर, धार, रतलाम और छतरपुर में भी हालात कुछ ऐसे ही है।

राजस्थान में भी पैसों के दम पर मतांतरण

राजस्थान के कई भी कई जिलों धर्म परिवर्तन का ऐसा ही पैटर्न देखने को मिल रहा है। मिशनरी संगठन लोगों को पैसे दे रहे हैं और बाइबल के संदेशों के साथ हैंडपंप जैसी सुविधाएँ दे रहे हैं।

गंगानगर जिले के तीन केडी गाँव की सुमन नाम की एक महिला ने बताया कि उसे दिल्ली में बपतिस्मा के लिए ले जाया गया और कई बार 2000 से 5000 रुपये की आर्थिक मदद दी गई।

बांसवाड़ा जिले के गडोली, जंबुडी, शिवपुरा और उदयपुर जिले के जगन्नाथपुरा, मकड़ा देव और ओबरा गाँवों में भी ऐसे ही मामले देखने को मिले हैं। 8 साल पहले इन छह गाँवों में कुल 800 परिवारों में से सिर्फ 70 ईसाई थे।

अब 900 परिवारों में से करीब 450 ईसाई बन चुके हैं, यानी 41% की बढ़ोतरी। इन आँकड़ों से ये साफ है कि लोगों के धर्मांतरण 8 सालों में तेजी से हुआ है। इन गाँवों में चर्चों की संख्या भी अब चार गुना बढ़ गई है।

हालाँकि, पास्टर वेलफेयर एसोसिएशन के राज्य अध्यक्ष कुलविंदर सिंह ने धर्म परिवर्तन की बात से इनकार किया। उन्होंने कहा कि जिन्हें चर्च कहा जा रहा है, वे असल में ‘प्रेयर हॉल’ हैं।

बांसवाड़ा जिले के कई गाँवों में जीसस क्राइस्ट संगठन ने बाइबल के संदेशों के साथ हैंडपंप और पत्थर की शिलाएँ लगवाई हैं। बडी सेंड गाँव में एक शिला पर लिखा है, “जो इस पानी को पीएगा, उसे फिर प्यास लगेगी, लेकिन जो उस पानी (जीसस के कुएँ) से पीएगा, उसे हमेशा के लिए प्यास नहीं लगेगी।”


रिपोर्ट में हाई कोर्ट के वकील हिमांशु निगम के हवाले से बताया गया है कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश-1950 के अनुसार, अनुसूचित जनजाति का दर्जा सिर्फ हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म के लोगों को मिलता है।

अगर कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर या शपथ पत्र के जरिए अपना धर्म नहीं बदलता, तो उसका धार्मिक दर्जा कोर्ट तय करता है। लेकिन अगर कोई अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति धर्म परिवर्तन के बाद भी जनजातीय रीति-रिवाजों का पालन करता है, तो उसका जनजातीय दर्जा बना रह सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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