Saturday, April 19, 2025
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तेलंगाना में कॉन्ग्रेस सरकार के ‘नंगा नाच’ पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, कहा- हम शक्तिहीन नहीं: जानिए क्या है विधायकों की अयोग्यता याचिका से जुड़ा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया, "हम शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान करते हैं, लेकिन जब कोई संवैधानिक प्रावधान किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए बनाया जाता है तो क्या अदालतों को उसे निरस्त करने की अनुमति देनी चाहिए?" सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (2 अप्रैल 2025) को BRS (भारत राष्ट्र समिति) के विधायकों की अयोग्यता की याचिकाओं पर नोटिस जारी करने में लगभग 10 महीने लगाने पर तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष से सवाल पूछा है। ये विधायक BRS छोड़कर कॉन्ग्रेस में शामिल हो गए थे। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के बयान की आलोचना की और उसे 10वीं अनुसूची का मजाक बताया।

कॉन्ग्रेस नेता एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने विधानसभा में कहा था कि विधायकों के पाला बदलने पर भी उपचुनाव नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सीएम के बयान पर आपत्ति जताई। दरअसल, संविधान की 10वीं अनुसूची दल बदलने से संबंधित अयोग्यता के प्रावधानों से संबंधित है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट तेलंगाना विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अयोग्यता से संबंधित आवेदिन पर निर्णय लेने में देरी से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। एक याचिका में तीन विधायकों की अयोग्यता से संबंधित तेलंगाना हाई कोर्ट के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी। वहीं, दूसरी याचिका में दल बदलने वाले सात अन्य विधायकों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की गई थी।

दल बदलने वाले विधायकों को लेकर BRS ने हाई कोर्ट में याचिका दी थी। इस याचिका पर सुनवाई करने के बाद तेलंगाना हाई कोर्ट की एकल पीठ ने 9 सितंबर 2024 को विधानसभा सचिव को निर्देश किया था। इस निर्देश में कहा गया था कि वे विधायकों की अयोग्यता याचिकाओं को विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष रखें तथा चार सप्ताह के भीतर सुनवाई निर्धारित करें।

इसको लेकर कॉन्ग्रेस ने अपील की। इसके बाद पिछले साल नवंबर में हाई कोर्ट की दो जजों की पीठ ने सुनवाई की। इस सुनवाई में दो जजों की खंडपीठ ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को तीनों विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर ‘उचित समय’ के भीतर फैसला करना चाहिए। उचित समय को लेकर स्पष्ट नहीं था। इसको लेकर BRS ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

विधानसभा अध्यक्ष के कार्यालय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पहली अयोग्यता याचिका 18 मार्च 2024 को दायर की गई थी। उसके बाद 2 अप्रैल और 8 अप्रैल को दो और याचिकाएँ दायर की गईं। हाई कोर्ट में याचिका 10 अप्रैल 2024 को दायर की गई थी। रोहतगी ने कहा, “क्या यह उचित समय तक इंतजार करना है?”

अयोग्यता याचिकाओं पर नोटिस देने में इतना समय लगने के सवाल पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह मामला हाई कोर्ट में लंबित था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश मुकुल रोहतगी से पूछा, “तो फिर जब मामला हमारे संज्ञान में था, तब आपने नोटिस क्यों जारी किया? क्या हमें अब अवमानना ​​का नोटिस जारी करना चाहिए?”

इस पर रोहतगी ने कहा कि हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका 15 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी और स्पीकर ने अगले दिन नोटिस जारी किया था। पीठ ने इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि जब मामला हाई कोर्ट में था तो स्पीकर ने कार्रवाई करने से परहेज किया, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो उन्होंने कार्रवाई की।

जस्टिस गवई ने कहा कि हाई कोर्ट की एकल पीठ ने सिर्फ 4 सप्ताह के भीतर शेड्यूल तय करने का निर्देश दिया था, ना कि उस समय सीमा में पूरे मामले का निपटारा करने के लिए कहा था। सर्वोच्च अदालत ने पूछा, “यदि अध्यक्ष कोई कार्रवाई नहीं करते हैं तो इस देश की अदालतें, जिनके पास न केवल शक्ति है, बल्कि संविधान के संरक्षक के रूप में उनका कर्तव्य भी है, शक्तिहीन हो जाएँगी?”

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक समीक्षा केवल निर्णय की सत्यता की जाँच करने के लिए लागू होती है। उन्होंने कहा, “चूँकि इस मामले में कोई निर्णय नहीं हुआ है तो क्या न्यायालय को सिर्फ खड़े होकर लोकतंत्र के नंगा नाच को देखते रहना चाहिए?” कोर्ट ने कहा कि उसके निर्देशों की अवहेलना की जाती है तो वह शक्तिहीन है।

अदालत ने सवाल किया, “हम शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का सम्मान करते हैं, लेकिन जब कोई संवैधानिक प्रावधान किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए बनाया जाता है तो क्या अदालतों को उसे निरस्त करने की अनुमति देनी चाहिए?” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एकल पीठ के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था।

इससे पहले 25 मार्च को बीआरएस नेता पाडी कौशिक रेड्डी का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सीए सुंदरम ने तर्क दिया था कि मुख्य मुद्दा यह है कि क्या संवैधानिक न्यायालय के पास संवैधानिक प्राधिकरण को अपने आदेश के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करने का अधिकार है। उन्होंने तर्क दिया कि न्यायालयों को ऐसी शक्ति से वंचित करना ‘न्याय की पूर्ण विफलता’ होगी।

इस मामले में 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार और अन्य से जवाब माँगा था, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि समय पर निर्णय लेना महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने ऐसी स्थिति के खिलाफ चेतावनी दी थी कि ‘ऑपरेशन सफल हो जाए, लेकिन मरीज मर जाए’ का कोई फायदा नहीं है। कोर्ट ने विधायक दानम नागेंदर, वेंकटराव तेलम और कडियम श्रीहरि से भी जवाब माँगा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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