गौरतलब है कि अबू बकर को साल 2022 में NIA ने प्रतिबंधित संगठन के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई के दौरान अरेस्ट किया था। उसके बाद से वो जेल में बंद है और बेल पर बाहर आने की कोशिश करता है। उसपर आईपीसी की धारा 120बी और 153ए के अलावा यूएपीए की धारा 17, 18, 18बी, 29, 22बी, 38 और 39 के तहत कार्रवाई हुई है।
पिछले साल भी बेल माँगे जाने पर 12 नवंबर को न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को एक मेडिकल टीम गठित करने का निर्देश दिया था, ताकि अबूबकर की गहन जाँच हो और पता लग सके कि अबूबबकर को मेडिकल ग्राउंड पर बेल मिलनी चाहिए या नहीं।
इसी रिपोर्ट के आधार पर अबूबकर के वकील ने फिर जमानत माँगी लेकिन अतिरिक्त सॉलिस्टर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि अबूबकर की सभी समस्याएँ इलाज से ठीक हो गई हैं इसलिए उसे बेल नहीं मिलनी चाहिए। इसके बाद जस्टिस सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि वे इस समय चिकित्सा आधार पर जमानत देने के लिए इच्छुक नहीं हैं और याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी।
वहीं अबूबकर के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने फिर कहा कि याचिकाकर्ता को घर में नजरबंद रख लिया जाए लेकिन बेल दे दें। इसका भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।