सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को गलत और परेशान करने वाला बताया है जिसमें लड़कियों को यौन इच्छाओं पर काबू रखने की सलाह दी गई थी। शीर्ष अदालत स्वत: संज्ञान लेकर इस मामले की सुनवाई कर रही है।
गुरुवार (4 जनवरी 2024) को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले की वैधता पर सवाल उठाते हुए टिप्पणियों को ‘समस्याग्रस्त’ बताया। पिछली सुनवाई के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के कुछ हिस्सों को बेहद आपत्तिजनक और अनुचित बताया था। साथ ही कहा था कि न्यायाधीशो से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वे अपने निजी विचार रखें या भाषण दें। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किशोरों के अधिकारों का पूरी तरह उल्लंघन है।
पिछली सुनवाई के दौरान ही शीर्ष अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इसके खिलाफ अपील दायर करने को लेकर जवाब माँगा था। गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने की जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस अपील के साथ स्वत: संज्ञान की कार्यवाही को जोड़ने के लिए भी कहा है।
हाई कोर्ट के जस्टिस चित्तरंजन दास और पार्थ सारथी सेन ने 18 अक्टूबर 2023 को नाबालिग से रेप के दोषी एक युवक को बरी करते यह टिप्पणी की थी। युवक को जिससे रेप का दोषी ठहराया गया था, उससे उसके ‘रोमांटिक सम्बन्ध’ रहे थे। हाई कोर्ट ने इस तरह के मामलों में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के इस्तेमाल पर भी चिंता व्यक्त की थी। 16 साल से अधिक उम्र के किशोरों के बीच सहमति से सेक्स की स्थिति में इसे अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव दिया था।
हाई कोर्ट ने कम उम्र में यौन संबंधों को लेकर किशोरों को नसीहत भी दी थी। कहा था कि किशोर लड़कियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। दो मिनट के सुख के लिए सेक्स से बचना चाहिए। वहीं लड़कों से महिलाओं की गरिमा का सम्मान करने को कहा था।
कलकत्ता हाई कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा था, “हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि केवल एक लड़की ही दुर्व्यवहार का शिकार होती है। क्योंकि लड़के भी दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। माता-पिता के मार्गदर्शन के अलावा, इन पहलुओं और रिप्रोडक्टिव हेल्थ और हाइजीन पर जोर देने वाली यौन शिक्षा हर स्कूल के पाठ्यक्रम का हिस्सा होनी चाहिए।”