Sunday, May 5, 2024
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जोशीमठ के प्रभावित परिवारों को किराए के लिए हर महीने ₹4000 देगी धामी सरकार, अस्थायी घर बनाने का आदेश: जमीन धँसने से मंदिर गिरा, सारे निर्माण कार्य बंद

जोशीमठ सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामरिक एवं रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ से भारत-तिब्बत सीमा महज 100 किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी जैसे धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पर्यटन वाले स्थानों पर जाने के लिए लोगों को जोशीमठ से होकर गुजरना पड़ता है।

‘हिमालय का द्वार’ (Gateway of Himalaya) कहलाने वाला उत्तराखंड का जोशीमठ दरक रहा है। हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ बद्रीनाथ धाम से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर में जमीन फट रही है और पानी की धार निकल रही है। लोगों के दिवारों में दरार आ गए हैं। लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच गई हैं। हालाँकि, इनके लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

इसको देखते हुए राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार (Pushkar Singh Dhami Government) ने कई फैसले लिए हैं। सरकार ने खतरा वाले क्षेत्र के लोगों के किराए के मकानों में शिफ्ट करने के लिए कहा। इसका किराया सरकार देगी। पुष्कर सरकार ने कहा कि ऐसे हर परिवार को अगले 6 महीने तक सरकार 4,000 रुपए महीना देगी। यह सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी।

जोशीमठ में भू-धंसाव से प्रभावित भवन, होटल एवं अन्य संरचनाओं का मूल्यांकन एवं तकनीकी जाँच के लिए अधिकारियों और कार्मिकों की 9 टीमें गठित की है, जो प्रत्येक वार्ड में घर-घर जाकर सर्वे कर रही है। इसके साथ ही प्रभावित परिवारों को सरकार राहत सामग्री भी पहुँचा रही है। अब तक लगभग 80 परिवारों को शिफ्ट किया जा चुका है। वहीं, वॉर्ड 16 का एक मंदिर ध्वस्त हो गया।

सीएम धामी ने कहा कि प्रभावित लोगों की हरसंभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि जान-माल की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है। विभिन्न संस्थानों की मदद ली जा रही है और अध्ययन किया जा रहा है कि पानी का रिसाव किन वजहों से और कहाँ से हो रहा है। उन्होंने प्रभावित लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में अस्थायी आवास स्थापित करने के निर्देश दिए हैं।

धामी सरकार ने NTPC और HCC को अस्थायी भवन निर्माण के लिए कहा है। चमोली जिला के कलेक्टर ने ट्वीट कर कहा, “जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या के दृष्टिगत प्रभावित परिवारों को शिफ्ट करने हेतु जिला प्रशासन ने NTPC और HCC कंपनियों को अग्रिम रुप से 2-2 हजार प्री-फेब्रिकेटेड भवन तैयार कराने के आदेश भी जारी किए हैं।”

वहाँ के वर्तमान हालात को देखते हुए NTPC पावर प्रोजेक्ट के सुरंग का कार्य रोक दिया गया है। इसके अलावा, NTPC के तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना के सहित तमाम निर्माण कार्यों को रोक दिया गया है। BRO के अन्तर्गत निर्मित हेलंग बाईपास निर्माण कार्य को भी रोक दिया गया है। इसके साथ ही जोशीमठ-औली रोपवे का संचालन भी रोक दिया गया है।

बता दें कि जोशीमठ का इलाका बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है। यह सिस्मिक जोन 5 के अंतर्गत आता है। इतना ही नहीं, जोशीमठ मोरेन पर बसा है। मोरेन वह जगह होती है, जहाँ ग्लेशियर होता है और उसके ऊपर जमी मिट्टी आदि जमकर पत्थर बन जाता है। ग्लेशियर जब सरकता है तो भूमि धँसती है। यहाँ की वर्तमान स्थिति को लेकर बहुत पहले से आशंका जताई जा रही है। विशेषज्ञों ने समय-समय पर इस क्षेत्र का अध्ययन किया और यहाँ की स्थिति पर चिंता जताते हुए सरकार को आगाह भी किया।

जोशीमठ सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामरिक एवं रणनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहाँ से भारत-तिब्बत सीमा महज 100 किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी जैसे धार्मिक, आध्यात्मिक एवं पर्यटन वाले स्थानों पर जाने के लिए लोगों को जोशीमठ से होकर गुजरना पड़ता है।

जोशीमठ को लेकर जाहिर की गई चिंता

जून 2022 में गढ़वाल विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने अध्ययन के बाद कहा था कि अगर शहरीकरण, चारधाम ऑल वेदर रोड और जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्यों को विशेषज्ञता के साथ न किया गया तो आने वाले समय में जोशीमठ धँस जाएगा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा था कि रैणी आपदा के बाद यहाँ पहले से काफी भूगर्भीय हलचल है। अगर चारधाम यात्रा मार्ग का निर्माण कार्य तेजी से चला तो यह खतरनाक होगा।

फरवरी 2021 में तपोवन जल विद्युत परियोजना में बाढ़ से काफी नुकसान हुआ था। सुरंग में मलबा घुस गया था। अब यह सुरंग बंद है। प्रोजेक्ट की 16 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ के नीचे से गुजर रही है। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि संभवत: सुरंग में गैस बन रही है, जो ऊपर की तरफ दबाव बना रही है। इसी कारण जमीन धँस रही है। यह भी कहा जा रहा है कि सुरंग में संभवत: पानी भर गया है और रास्ता नहीं मिलने से ये ऊपर आ रहा है।

पहले से ही वैज्ञानिक देते रहे हैं चेतावनी

साल 2006 में वरिष्ठ भूस्खलन वैज्ञानिक डॉक्टर स्वप्नमिता चौधरी ने जोशीमठ का अध्ययन किया था। चौधरी का कहना है कि पिछले दो दशकों में जोशीमठ का अनियंत्रित विकास हुआ है। बारिश और घरों से निकलने वाला पानी नदियों तक नहीं पहुँच पाता है और जमीन के भीतर समा रहा है। इस कारण भू-धंसाव की घटनाएँ हो रही हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चौधरी बताते हैं कि साल 2013 में आई केदारनाथ आपदा, साल 2021 की रैणी आपदा, बदरीनाथ क्षेत्र के पांडुकेश्वर में बादल फटने की घटनाएँ भी भू-धंसाव के लिए काफी हद तक जिम्मेदार हैं। भू-धँसाव के लिए बेतरतीब निर्माण, पानी का रिसाव, मिट्टी का कटाव और मानव निर्मित जल धाराओं के प्रवाह में रुकावट को प्रमुख कारण बताया गया है। 

दरअसल, पहाड़ों के सदियों पुराने मलबे पर बसा होने के कारण जोशीमठ का क्षेत्र शुरू से ही दरक रहा है। साल 1976 में पहली बार गढ़वाल के आयुक्त रहे एससी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ धीरे-धीरे धँस रहा है। 

भू-धँसाव को रोकने के लिए कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में निर्माण पर प्रतिबंध लगाने और भू-धंसाव वाले क्षेत्रों में पौधे लगाने की सलाह दी थी। इसके साथ ही ढलानों सहित के खनन पर रोक लगाने के लिए कहा गया है। यह कहा गया था कि खुदाई या विस्फोट करके किसी बोल्डर को ना हटाया जाए। नदियों के किनारे पड़े चट्टानों को सहारा दिया जाए, ताकि नदियों के धारा अवरुद्ध ना हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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