सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद सवालों के घेरे में आई रिया चकवर्ती का इंडिया टुडे ने एक लंबा इंटरव्यू किया है। इसे वह रिया चकवर्ती का अब तक का सबसे धमाकेदार इंटरव्यू कहकर प्रचारित कर रहा है। साक्षात्कार राजदीप सरदेसाई ने लिया है।
यह पहला मौका नहीं है जब संदिग्ध को सफाई का भरपूर अवसर देने के लिए मीडिया ने मंच मुहैया कराया हो। ‘आपको कब पता चला कि सुशांत अवसाद में थे’, जैसे सवाल जो आरोपित की थ्योरी को मजबूती प्रदान करते हों, भी पहली बार नहीं पूछे गए हैं। लेकिन, ये वही राजदीप हैं जिन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के पारिवारिक वकील को अपने शो में बुलाते ही मीडिया ट्रायल चलाने का सवाल दागा था। सुशांत की परिवार की जाँच की मॉंग के ‘इरादों’ पर सवाल उठाए थे। यह भी कहा था कि सुशांत कोई बड़े अभिनेता नहीं थे, जिसके लिए मुंबई पुलिस पर इतना दबाव डाला जाए।
ऐसे राजदीप और आजतक के लिए रिया चकवर्ती का प्रोफाइल इतना बड़ा कैसे हो गया कि उसे घंटों सफाई देने का मंच मुहैया कराया गया? मीडिया ट्रायल की बात कहने वालों ने खुद का कोर्ट लगा लिया? ऐसे में सोशल मीडिया में इस इंटरव्यू की मंशा को लेकर उठते सवाल चौंकाते नहीं हैं।
सवाल इस मामले में मीडिया की आक्रामक रिपोर्टिंग को लेकर भी उठ रहे हैं। सोशल मीडिया की जरा इन प्रतिक्रियाओं पर गौर करें
- हिंदी न्यूज़ चैनल R-भारत ने फिर साबित किया… खूब चिल्लाओ, कामयाबी झक मारकर पीछे भागेगी…
- घर की चाबी ग़ायब होने पर हिंदी न्यूज़ चैनल R-भारत के ऑफ़िस जाना ठीक है या सीधे CBI के पास चले जाएँ?
- सुशांत आत्महत्या केस के सारे संदिग्धों से Republic के जाँच अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं तो फिर CBI किससे पूछताछ कर रही है?
- Republic TV को बड़ा झटका! सुप्रीम कोर्ट ने सुशांत आत्महत्या केस की जाँच Republic TV के बजाए CBI को सौंपी…
लेकिन क्या मीडिया की आक्रामक रिपोर्टिंग के बिना यह मामला उस मोड़ पर आज होता, जहॉं वह है? 14 जून 2020 को जब सुशांत सिंह राजपूत के अपने ही फ्लैट में फंदे से लटके मिलने की खबर आई तो हममें से ज्यादातर ने इसे एक और सुसाइड का ही मामला मान लिया। सुशांत को भी उन नामचीनों की श्रेणी में डाल दिया जो दबाव नहीं झेल पाते हैं।
लेकिन यह मीडिया (रिपब्लिक भारत जैसे संस्थान) ही है, जिसने इस मामले की एक-एक परतें लगातार खोली और यह सवाल पैदा किया कि यह महज आत्महत्या नहीं है। उससे पहले कंगना रनौत लगातार इस मामले को लेकर मुखर रहीं और बताया कि किस तरह बॉलीवुड में नेपोटिज्म है। वह कैसे आउटसाइडर को निशाना बनाता है। किस तरह उनके इशारे पर मीडिया आउटसाइडर का चरित्रहनन करता है।
ये मीडिया रिपोर्टिंग से सामने आए तथ्य ही थे, जिससे इस मामले में सीबीआई जाँच को लेकर दबाव बना। वरना सुशांत के पिता की एफआईआर पर बिहार पुलिस की जॉंच को तो मुंबई में ‘क्वारंटाइन’ कर दिया गया था। मीडिया ने ही बताया कि सुशांत की मौत के बाद रिया गुपचुप शवगृह में घुसी थी। इसके बाद वह अस्पताल जाँच के दायरे में आया, जहाँ पोस्टमॉर्टम हुई थी। मीडिया ने ही उन कॉल डिटेलों और बैंक स्टेटमेंट के आधार पर रिपोर्टिंग की, जिससे बॉलीवुड नेक्सस और सुशांत के पैसों के संदिग्ध लेनदेन के आरोपों को बल मिला।
मीडिया इस मामले के उन सभी किरदारों तक पहुँची, जिनके दरवाजे पर मुंबई पुलिस को दस्तक देनी थी। उन विरोधाभासों को सामने लाया, जिसकी पड़ताल मुंबई पुलिस को करनी चाहिए था। आज जाँच एजेंसियॉं इन्हीं लोगों से पूछताछ कर रही है। इन्हीं विरोधाभासों को खँगाल रही है।
जिन्हें लगता है कि मीडिया को इस तरह की खबरें नहीं निकालनी चाहिए थी, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि कई बार इंसाफ धक्कों के बाद ही मिलता है। यदि मीडिया आक्रामक नहीं हुई होती तो क्या जेसिका लाल मर्डर केस में मनु शर्मा को सजा होती? क्या नीतीश कटारा की हत्या में विकास यादव को सजा हुई होती?
29 अप्रैल 1999 की रात दिल्ली के टैमरिंड कोर्ट रेस्टोरेंट में जेसिका की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कारण उसने मनु शर्मा को यह कहते हुए शराब परोसने से मना कर दिया था कि अब बार बंद हो चुका है। हत्या को कई लोगों की नजरों के सामने अंजाम दिया गया था। बावजूद फरवरी 2006 में सभी आरोपी बरी हो गए थे।
यह जेसिका के परिवार की इंसाफ पाने की अटूट चाहत और मीडिया का दबाव था कि यह मामला दोबारा खुल पाया। इस मामले मे इसी मीडिया की आक्रामक रिपोर्टिंग की वजहों से हमने जाना कि चश्मदीदों ने झूठ बोला था।
आज जिस तरह एक धड़ा बॉलीवुड नेक्सस के प्रभाव में दिखता है, उसी तरह उस वक्त भी एक वर्ग मनु शर्मा के पिता विनोद शर्मा और विकास यादव के पिता डीपी यादव के प्रभाव में था। उस समय भी यह कहने वाले कम न थे कि मामले में मीडिया ट्रायल हो रहा है। सजा पाने के बाद भी इन्हें नेक्सस से मदद पहुँचाने की तमाम कोशिश की गई, जो छिपी नहीं है।
स्वरा भास्कर का यह कहना चौंकाता नहीं है, “मुझे नहीं लगता है कि कसाब भी मीडिया पर इस तरह का Witch Hunt का विषय रहा होगा। जिस तरह रिया चक्रवर्ती मीडिया ट्रायल को झेल रही हैं। शर्म आनी चाहिए भारतीय मीडिया… इस विषैले जहरीले हिस्टीरिया को ग्रहण करने वाली टॉकसिक जनता पर हमें शर्म आती है।”
ये वही लोग हैं जिन्हें तब शर्म नहीं आई थी, जब महाराष्ट्र के सत्ताधारी दल के एक नेता ने सुशांत के पिता की दो शादियों का झूठा दावा किया और परिवार के इरादों पर सवाल उठाए। जब द प्रिंट इस केस के बहाने बिहारियों के खिलाफ घृणा उगलता है।
ऐसे लोगों के लिए रिया को आजतक द्वारा सफाई का मौका देना पत्रकारिता है। उसके कॉल रिकॉर्ड की तफ्तीश मीडिया ट्रायल। मीडिया, राजनीति और ग्लैमर के इस खोल पर जब-जब वार होता है तो ये ऐसे ही बिलिबिलाते हैं।
असल में उन्होंने तो मान लिया था कि मामला बंद है। पर मुंबई पुलिस के देखते-देखते इसमें बिहार पुलिस शामिल हुई। ईडी, सीबीआई और अब नार्कोटिक्स ब्यूरो भी। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार वह लीक भी टूटेगी जो अमूमन हाईप्रोफाइल मामलों की जाँच में दिखती है। यानी, मामलों की तरह ही जाँच का भी गुत्थी बन जाना।