Tuesday, June 24, 2025
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UCC की वकालत करने वाले जस्टिस शेखर यादव पर महाभियोग चाहते हैं सांसद, पर जिस जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में मिले नोटों के बंडल उन पर चुप्पी: क्या न्यायपालिका में ‘सुधार’ को लेकर गंभीर है विधायिका?

यह दोहरापन दिखाता है कि राजनीतिक दलों को भ्रष्टाचार या न्यायपालिका सुधार से मतलब नहीं, बस सरकार को घेरना है। विपक्ष का असली एजेंडा सत्ता के खिलाफ हंगामा और वोट बैंक की राजनीति है। अब जनता भी उनके नाटक को समझने लगी है।

भारतीय राजनीति में इन दिनों दोहरे मापदंडों का ‘नंगा नाच’ चल रहा है और इस नाटक के मुख्य किरदार हैं विपक्षी सांसद, जो अपनी सुविधा के हिसाब से मुद्दों को उठाते और दबाते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव और जस्टिस यशवंत वर्मा के मामलों में विपक्ष का रवैया उनकी नीयत को साफ उजागर करता है।

एक तरफ जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की माँग को लेकर सांसदों की बेचैनी चरम पर है, भले ही उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इस नोटिस को खारिज नहीं किया हो। दूसरी तरफ जस्टिस वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों और सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की कमेटी की सिफारिश के बावजूद विपक्षी सांसदों ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है।

यह दोहरापन न केवल उनकी मंशा पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि जनता की भलाई से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वे केवल अपना एजेंडा चलाने और सरकार के खिलाफ हल्ला मचाने में मशगूल हैं।

जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग क्यों?

दरअसल, जस्टिस शेखर यादव का मामला पिछले साल दिसंबर में तब सुर्खियों में आया, जब उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में कथित तौर पर सांप्रदायिक टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने कहा था, “यह हिंदुस्तान है… और देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा।” इसके साथ ही उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हुए मुस्लिम समुदाय की कुछ प्रथाओं पर टिप्पणी की थी।

पीछे ही पड़ गए विपक्षी सांसद

इस बयान पर विपक्षी सांसदों ने तुरंत महाभियोग का नोटिस तैयार कर लिया। 54 राज्यसभा सांसदों ने इस नोटिस पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉ्नग्रेस, आप, राजद और अन्य दलों के नेता शामिल थे। लेकिन इस नोटिस की प्रक्रिया में गड़बड़ियाँ सामने आईं। नौ सांसदों के हस्ताक्षर रिकॉर्ड से मेल नहीं खाए और एक सांसद के हस्ताक्षर दो बार पाए गए।

इसके बावजूद कपिल सिब्बल जैसे सांसद इस मुद्दे को बार-बार उठा रहे हैं, यह दावा करते हुए कि उप-राष्ट्रपति इस पर कार्रवाई नहीं कर रहे। सिब्बल ने तो यह तक कह दिया कि अगर नोटिस खारिज होता है, तो वे सुप्रीम कोर्ट जाएँगे। यह बेचैनी और जल्दबाजी क्या दर्शाती है? यह साफ है कि विपक्ष इस मामले को तूल देकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ उठाना चाहता है, ताकि जनता के बीच यह संदेश जाए कि वे ‘सेकुलरिज्म’ के रक्षक हैं।

जस्टिस यशवंत वर्मा पर साध ली चुप्पी

लेकिन जब बात जस्टिस यशवंत वर्मा की आती है, तो यही सांसद अचानक चुप्पी साध लेते हैं। जस्टिस वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में मार्च 2025 में आग लगी, और फायरफाइटर्स को वहाँ ‘जले हुए नोटों का पहाड़’ मिला। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की कमेटी ने 64 पेज की रिपोर्ट में साफ कहा कि ये नोट जस्टिस वर्मा के स्टोररूम में थे, जहाँ केवल उनके परिवार की पहुँच थी। कमेटी ने यह भी पाया कि जस्टिस वर्मा और उनके निजी सचिव ने फायर ऑफिसरों को इस मामले को दबाने के लिए कहा था।

कपिल सिब्बल ने बताया सबसे बेहतरीन जज

इतने गंभीर आरोपों के बावजूद जस्टिस वर्मा को न कोई ज्यूडिशियल काम सौंपा गया है, न उन्होंने इस्तीफा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की है और संसद में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। लेकिन विपक्ष, खासकर कपिल सिब्बल इस मामले में जस्टिस वर्मा का बचाव कर रहे हैं। कपिल सिब्बल ने जस्टिस यशवंत वर्मा को ‘देश के सबसे बेहतरीन जजों में से एक’ करार दिया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने की साजिश रच रही है।

यह दोहरापन क्यों? जब जस्टिस यादव के बयान का मामला आया, तो सिब्बल और उनके साथी सांसदों ने तुरंत महाभियोग की माँग की, लेकिन जस्टिस वर्मा के खिलाफ ठोस सबूत होने के बावजूद वे उनका बचाव कर रहे हैं। क्या यह उनकी अपनी सुविधा और एजेंडे का हिस्सा नहीं है?

न्यापालिका में सुधार नहीं, नरेटिव सेट करना है एजेंडा

विपक्ष का यह रवैया केवल सत्ता के खिलाफ हल्ला मचाने का हिस्सा है। जस्टिस यादव का मामला उनके लिए एक मौका है, जिसे वे सांप्रदायिक रंग देकर अपनी वोट बैंक की राजनीति चमकाना चाहते हैं। लेकिन जस्टिस वर्मा के मामले में, जहाँ भ्रष्टाचार का आरोप साफ तौर पर सिद्ध हो चुका है, वे चुप हैं, क्योंकि यह उनके ‘सेकुलर’ नैरेटिव में फिट नहीं बैठता। यह दोहरापन न केवल उनकी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि उन्हें न्यायपालिका में सुधार या भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से कोई लेना-देना नहीं है। उनकी प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ सरकार को घेरना और जनता को गुमराह करना है।

विपक्षी सांसदों की यह रणनीति नई नहीं है। वे हमेशा से चुनिंदा मुद्दों को उठाकर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते रहे हैं। उदाहरण के लिए जब 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, तब भी विपक्ष ने इसे सरकार के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश की थी। उस समय भी कपिल सिब्बल इस अभियान में सबसे आगे थे। लेकिन जब बात भ्रष्टाचार जैसे गंभीर मुद्दों की आती है, तो यही नेता पीछे हट जाते हैं। यह साफ है कि उनकी लड़ाई सिद्धांतों के लिए नहीं, बल्कि सियासी फायदे के लिए है।

विपक्ष का यह नाटक जनता के सामने भी अब खुल चुका है। सोशल मीडिया खासकर एक्स पर भी लोग इस दोहरे रवैये की आलोचना कर रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “जब जज सांप्रदायिक बयान देता है, तो विपक्ष को महाभियोग चाहिए, लेकिन जब जज के घर से नोटों का पहाड़ मिलता है, तो वही लोग उसे ‘बेस्ट जज’ बताते हैं। यह कैसी राजनीति है?” एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, “विपक्ष को भ्रष्टाचार से कोई दिक्कत नहीं, बस मुद्दा ऐसा चाहिए जो सरकार को घेर सके।” ये प्रतिक्रियाएँ दर्शाती हैं कि जनता अब विपक्ष के इस नकली नैरेटिव को समझ चुकी है।

न्यायपालिका में सुधार और भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई जैसे मुद्दे बेहद गंभीर हैं। लेकिन राजनीतिक दल इनका इस्तेमाल केवल अपनी सियासत चमकाने के लिए कर रहा है। जस्टिस यादव के मामले में उनकी बेचैनी और जस्टिस वर्मा के मामले में उनकी चुप्पी यह साफ करती है कि उनका मकसद जनता की भलाई नहीं, बल्कि सत्ता के खिलाफ नाटक करना है। जनता को अब इस नौटंकी को समझने और इन नेताओं के दोहरे चरित्र को बेनकाब करने की जरूरत है। अगर नेता गण वाकई में न्यायपालिका को मजबूत करना चाहता है, तो उसे दोनों मामलों में एक समान रुख अपनाना चाहिए। लेकिन ऐसा करने के बजाय वे केवल अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं और यह जनता के साथ धोखा है।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
I am Shravan Kumar Shukla, known as ePatrakaar, a multimedia journalist deeply passionate about digital media. Since 2010, I’ve been actively engaged in journalism, working across diverse platforms including agencies, news channels, and print publications. My understanding of social media strengthens my ability to thrive in the digital space. Above all, ground reporting is closest to my heart and remains my preferred way of working. explore ground reporting digital journalism trends more personal tone.

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