विश्व हिन्दू परिषद के कार्यक्रम में दिए गए अपने संबोधन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने माफी नहीं माँगी है। उन्होंने इस संबोधन के ऊपर उठे विवाद को लेकर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिख कर अपना जवाब दिया है। जस्टिस यादव ने अपने संबोधन को नियमों के अनुसार बताया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस शेखर यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अरुण भंसाली को पत्र भेज कर जवाब दिया है। जस्टिस यादव ने कहा है कि उनके संबोधन को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। जस्टिस शेखर यादव ने माँग की है कि न्यायपालिका को उनका संरक्षण करना चाहिए क्योंकि उनके जैसे लोग अपना बचाव नहीं कर सकते।
जस्टिस शेखर यादव ने अपने पत्र में लिखा है कि उनका संबोधन संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप था। उन्होंने कहा है कि यह उनकी सामाजिक मुद्दों पर विचारों की अभिव्यक्ति थी, न कि किसी समुदाय के प्रति घृणा पैदा करने वाली बात। उन्होंने कहा है कि यह संबोधन किसी भी तरह से न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता।
जस्टिस यादव ने यह जवाब 17 दिसम्बर, 2024 को उनकी सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की बैठक के बाद दिया है। इस कोलेजियम की अध्यक्ष CJI संजीव खन्ना कर रहे थे। इसके बाद जनवरी, 2025 में CJI खन्ना ने जस्टिस भंसाली से इस मामले पर रिपोर्ट माँगी थी। इसी के बाद जस्टिस शेखर ने यह जवाब भेजा।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि जस्टिस शेखर यादव से यह जवाब एक वकालत के छात्र और एक सेवानिवृत्त IPS अधिकारी की शिकायत के बाद माँगा गया था। यह सभी शिकायतें 8 दिसम्बर, 2024 को इलाहाबाद हाई कोर्ट में UCC पर आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव के संबोधन के बाद की गई हैं।
यह कार्यक्रम विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के लीगल सेल ने करवाया था। इस कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने मुस्लिमों में कट्टरपंथ और रूढ़िवादिता को लेकर कुछ बातें कही थीं। उन्होंने ‘कठमुल्लों’ को देश के लिए घातक बताया था। उन्होंने UCC जैसे मुद्दों पर अपने विचार रखे थे। इसके बाद उनके पीछे पूरा लिबरल और वामपंथी गैंग पड़ गया था।
जस्टिस शेखर यादव ने यहाँ कहा था, “मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों के अनुसार चलेगा। यही कानून है। आप यह नहीं कह सकते कि मैं हाईकोर्ट के जज होने के नाते ऐसा कह रहा हूँ। दरअसल, कानून ही बहुमत के हिसाब से काम करता है।”
जस्टिस शेखर यादव ने मुस्लिमों में फैली रूढ़िवादिता और दकियानूसी को लेकर प्रश्न खड़े किए थे। उन्होंने कहा, “हमारे हिंदू धर्म में बाल विवाह, सती प्रथा और बालिकाओं की हत्या जैसी कई सामाजिक कुरीतियाँ थीं, राम मोहन राय जैसे सुधारकों ने इन कुरीतियों को खत्म करने के लिए संघर्ष किया। लेकिन जब मुस्लिम समुदाय में हलाला, तीन तलाक और गोद लेने से जुड़े मुद्दों जैसी सामाजिक कुरीतियों की बात आती है, तब उनके पास इनके खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं थी।”