भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, आम बोलचाल में इसका अंग्रेजी अनुवाद आजकल अधिक इस्तेमाल में आता है – सेक्युलर। आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान के 42वें संशोधन के दौरान Secularism शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी घुसा दिया गया। बड़ी बात ये है कि संसद के दोनों सदनों में घंटों की बहस के बाद जो क़ानून बनता है उसे इस देश में न्यायिक समीक्षा से गुजरना पड़ता है, लेकिन आपातकाल के दौरान बने क़ानून उसके बाद भी लागू रहते हैं।
तो, आइए एक ताज़ा घटना से समझते हैं कि भारत में सेक्युलरिज्म क्या है। हाल ही में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में मुस्लिम भीड़ सड़कों पर निकली। कारण – दिल्ली में महीनों तक चली प्रक्रिया के बाद एक क़ानून पारित किया गया – वक़्फ़ बोर्ड संशोधन का। JPC (संयुक्त संसदीय समिति) की दर्जनों बैठकों और सैकड़ों हितधारकों से चर्चा के बाद सांसदों ने बहुमत से इस अधिनियम को पारित किया, राष्ट्रपति ने इसपर हस्ताक्षर किया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, जहाँ सरकार से सवाल-जवाब हो रहे हैं। क़ानून के प्रावधानों पर रोक लगी हुई है।
वक़्फ़ के नाम पर मुर्शिदाबाद में हिन्दुओं पर अत्याचार
सरकार ने चीख-चीख कर समझाया कि कैसे ये क़ानून भारतीय मुस्लिमों के हित में है। खैर, तो हम बात कर रहे थे मुर्शिदाबाद की घटना की। 5000 की भीड़ ने बाहर निकलकर रेलवे सेवा ठप्प कर दी। सड़क पर सार्वजनिक वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। बसें धू-धू कर जलीं। पुलिस वालों ने मस्जिद में छिपकर जान बचाई। हिन्दुओं की दुकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। 400 हिन्दुओं ने पलायन कर मालदा में शरण ली। इसी बीच हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ गढ़ने वाले हरगोविंद दास और चंदन दास को घर में घुसकर काट डाला गया।
हमने उस घर की महिलाओं का आर्तनाद सुना, मासूम बच्चों को बेबस होकर ताकते हुए देखा, पिता-पुत्र की क्षत-विक्षत लाशें देखीं। एक बुजुर्ग महिला को देखा, जिसकी माँग और कोख एक साथ सूनी कर दी गई। मेनस्ट्रीम मीडिया ने इस हिंसा की कवरेज के लिए स्टार एंकरों को नहीं भेजा, बात-बार पर कोर्ट जाने वाले गिरोहों ने चुप्पी साध ली और बात-बात पर विरोध प्रदर्शन करने वाले समूह बिल में घुसे रहे। हिन्दुओं की जान की शायद कोई क़ीमत नहीं है, ख़ासकर जब हिंसा मुस्लिम भीड़ ने की हो।
मृत शरीर के भी कुछ अधिकार होते हैं, सम्मानजनक अंतिम संस्कार के। दुर्भाग्य से, भारत देश में ये आतंकियों को तो सहज उपलब्ध है लेकिन बेचारे हिन्दुओं को नहीं। आज अगर एक आतंकी की लाश को दफनाने की जगह जला दिया जाए तो कल को सुप्रीम कोर्ट से गिरोह विशेष कोई नया फ़ैसला लेकर आ जाएगा। ये तो ऐसा देश है जहाँ हिन्दुओं का नरसंहार करने वाले मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की कब्र को बचाने के लिए भी हिंसा होती है। हरगोविंद दास और चंदन दास के लिए कोई सड़क पर नहीं आता।
हिन्दू पिता-पुत्र को अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं
अब तज़ा ख़बर ये है कि इन पिता-पुत्र को मृत्यु के बाद सम्मानजनक अंतिम संस्कार भी उपलब्ध नहीं हुआ। कारण – जो मुस्लिम भीड़ तलवारों, चाकुओं, लाठी-डंडों, पत्थरों और देशी बमों से लैस थी, उसे न केवल पश्चिम बंगाल की TMC सरकार का वरदहस्त प्राप्त है बल्कि जो स्थानीय हिन्दू हैं वो भी डरे हुए हैं। क्या सामान्य वर्ग, क्या OBC और क्या दलित – मुस्लिम भीड़ से सबको पलायन के लिए मज़बूर होना पड़ा है। पीड़ितों में अधिकतर दलित ही हैं।
उनके परिवार के 13 सदस्यों ने भागकर झारखंड के राजमहल में शरण ली। जिसने भी 500 दंगाइयों द्वारा 2 निर्दोष व्यक्तियों को बेरहमी से काटे जाने का मंजर देखा होगा, वो ख़ौफ़ में आएगा ही। क्या आपको पता है, दोनों के अंतिम संस्कार में न पुरोहित आए और न नाई। भारत में हर आयोजन की ऐसी व्यवस्था की गई है जहाँ समाज का कोई भी वर्ग भूखा न मरे। छठ में हम उस डोम समाज से बाँस के पात्र ख़रीदते हैं, जो समाज के सबसे निचले पायदान पर है। रुद्राभिषेक से लेकर लखराँव तक जैसे आयोजनों में फूल माली समाज के हाथ का ही शुद्ध माना गया है।
ठीक इसी तरह, अंतिम संस्कार में ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धकर्म संपन्न कराए जाने की प्रक्रिया है। नाई को बुलाया जाता है, जो मृत शरीर का मुंडन करता है। हरगोविंद दास और चंदन दास के अंतिम संस्कार में न कोई पुरोहित आया और न कोई नाई। पुरोहित सामान्य वर्ग में आता है, नाई OBC में। मुस्लिम भीड़ से हिन्दुओं के हर वर्ग को भय है। वो किसी को दलित जानकार छोड़ते नहीं, उनके लिए सारे ग़ैर-मुस्लिम काफिर हैं। अंतर इतना है कि इन दलितों के लिए देश में ख़ुद को पिछड़ों का ठेकेदार बताने वाला समूह कोई आवाज़ नहीं उठाता।
ब्राह्मण, नाई गिहारा… मुस्लिम भीड़ के लिए सब एक
ब्राह्मणों ने इसे पुलिस से जुड़ा मामला बताया तो नाइयों ने सामान न होने की बात कहकर टाल दिया। कारण – मुस्लिम भीड़ का ख़ौफ़। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 10 लाख रुपए की क़ीमत लगाई इनकी जान की, लेकिन परिवार ने इसे ठुकरा दिया। परिवार को न्याय चाहिए। हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए BSF इलाक़े में तैनात है, लेकिन न्याय कौन दिलाएगा? दोषियों को सज़ा कैसे मिलेगी? वो हमेशा हजारों की भीड़ में निकलते हैं, वो वोट बैंक हैं। ब्राह्मण या नाई वोट बैंक थोड़े हैं!
हाल की ही एक और घटना है – दिल्ली के सीलमपुर में गिहारा समाज से आने वाले कुणाल नामक नाबालिग लड़के को चाकुओं से गोदकर मार डाला गया। 17 साल के कुणाल के हत्यारे मुस्लिम हैं, इसीलिए किसी भी पिछड़ों के ठेकेदार ने कोई आवाज़ नहीं उठाई। ST समाज से आता है परिवार, राहुल गाँधी या अखिलेश यादव की तरफ से कोई पोस्ट नहीं आया। जिनलोगों ने राष्ट्रपति दौपदी मुर्मू के ST होने व महिला होने का सर्टिफिकेट रद्द कर रखा है, वो भला कुणाल के लिए क्या न्याय माँगेंगे।
मुर्शिदाबाद का ब्राह्मण और नाई हो या फिर सीलमपुर का गिहारा, मुस्लिम भीड़ की हिंसा में सब समान रूप से निशाना बनाए जाते हैं और कोई इनके लिए आवाज़ भी नहीं उठाता। कश्मीर से पंडितों का पलायन हुआ, पश्चिम बंगाल में दलितों का हो रहा है। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद जिन हिन्दुओं को निशाना बनाया गया, वो भी दलित ही थे। गाज़ा के लिए चिंतित समूह पड़ोस में बांग्लादेशी हिन्दुओं के लिए चूँ तक न कर पाया। कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी। कुछ तो मजबूरियाँ हैं कि हिन्दुओं को अंतिम संस्कार तक ठीक से नसीब नहीं होता।
आतंकी बुरहान वानी के जनाजे में जुटे थे 2 लाख
जिस जम्मू कश्मीर से हिन्दुओं को भगाया गया, वहाँ बुरहान वानी नामक एक आतंकी मारा जाता है तो उसका जनाजे में 2 लाख मुस्लिम जमा होते हैं। उसे कश्मीर का ‘भगत सिंह’ बताकर बलिदानी क्रांतिकारियों का अपमान किया जाता है। 9 जुलाई, 2016 की वो तस्वीरें देखिए, क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या महिलाएँ और क्या बुजुर्ग – सब के सब उसमें आपको शामिल दिखेंगे। पुलवामा के त्राल का आसमान उस दिन भीड़ की ‘आमीन-आमीन’ की आवाजों से गूँज रहा था।
1. A handful ppl attended the funeral of Shaheed Tariq Hussain (J&K police) who attained supreme sacrifice during an encounter in Kathua. 🙏🏼
— The Hawk Eye (@thehawkeyex) March 31, 2025
2. The funeral of terrorist Burhan Wani.
"Sabhi ka khoon…." pic.twitter.com/ZwZ1aKyw0e
उसके जनाजे में दूर-दूर से आए लोगों के लिए खाने-पीने की भी व्यवस्था थी। पके हुए चावल, पानी के बोतल और बिस्किट बाँटे जा रहे थे। वहाँ जुटे ‘भारतीय’ मुस्लिम कह रहे थे कि अब सैकड़ों की संख्या में लड़के हथियार उठाकर कश्मीर को ‘आज़ाद’ करेंगे। जम्मू कश्मीर में जगह-जगह सुरक्षा बलों से मुस्लिमों की झड़पें हुईं। उस भीड़ में शामिल कितने लोगों को सज़ा मिली? ये संभव ही नहीं है। तभी तो कभी नागपुर, कभी महू तो कभी मुर्शिदाबाद में ये भीड़ निकलकर हिन्दुओं का क़त्लेआम मचाती है और उन्हें अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं होता।