Sunday, March 30, 2025
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एक सहज व्रत को सिनेमा ने ग्लैमर से जोड़ा, नारीवादियों ने गढ़ा स्त्रियों के शोषण का प्रोपेगेंडा; फिर भी ‘करवा चौथ’ के चाँद पर नहीं लगा पाए दाग

फर्जी नारीवादियों के प्रोपोगैंडा के बाद भी पति-पत्नी का यह पर्व दिनों-दिन लोकप्रिय होता जा रहा है, युवा से लेकर वृद्ध तक अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और चाँद देखकर ही यह कहती हैं कि “मेरा चाँद आ गया है!”

‘माई बॉडी माई चॉइस’ का नारा देने वाली और लड़की की हर फालतू माँग को पर्सनल चॉइस कहने वाली कम्युनिस्ट फेमिनिस्ट लॉबी करवाचौथ पर सक्रिय हो जाती है। बुर्के तक की माँग को व्यक्तिगत पसंद मानने वाले ये लोग करवाचौथ को शोषण का त्योहार बताने लगते हैं।

ऐसा माहौल बनाया जाता है कि जैसे करवाचौथ का व्रत रखने के लिए लड़कियों पर अत्याचार किया जा रहा है। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और उनके गले पर तलवार रखकर उनसे यह व्रत रखवाया जा रहा है। ऐसा डरावना माहौल बनाया जाता है कि जैसे भारत की महिलाओं को उनके पति को हमेशा सताते हैं, मारते हैं और फिर इस व्रत के दिन कुछ गिफ्ट आदि देकर अपनी अपराध की भावना को छिपाते हैं।

मगर, क्या वास्तव में यही सच है? क्या वास्तव में ऐसा होता है? क्या वास्तव में महिलाओं को जबरन यह व्रत रखने पर मजबूर किया जाता है? क्या भारत के मर्द इतने दुष्ट होते हैं कि वे लगातार अपनी पत्नियों को मारते रहते हैं और एक दिन उन्हें तोहफे देते हैं?

नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं है कि लड़की को जबरन मजबूर किया जाता हो और यह भी बहुत ही भद्दा मजाक है कि कुछ लोग इसे यश चोपड़ा की फिल्मों की उपज बताते हैं। मगर, ऐसा कहने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि इस पर्व का इतिहास आज का नहीं है। उत्तर भारत के क्षेत्रों में यह व्रत शताब्दियों से मनाया जाता रहा है।

हम लोगों ने यह बचपन से देखा कि हमारी दादी, नानी जैसी महिलाएँ सुबह से रात तक अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती थीं। हाँ, यह बात पूरी तरह से सच है कि पति-पत्नी के असाधारण प्रेम के इस सहज व्रत को फिल्मों ने ग्लैमर से भर दिया है। उसमें डिजाइनर साड़ी, गहने और गिफ्ट का तड़का लगा दिया है, मगर प्यार का पर्व तो बहुत पुराना है।

और, यदि हम अपनी मान्यताओं, अपनी परंपराओं को आगे लेकर जाना चाहते हैं, तो समस्या किसे और क्यों है? आखिर प्यार के मसीहा कहे जाने का दावा करने वाले ये लोग पति-पत्नी के प्रेम के पर्व के इस सीमा तक दुश्मन क्यों हैं कि चैन से त्योहार भी नहीं मनाने देते हैं। कभी यह कहते हैं कि इस पर्व का कोई इतिहास नहीं है, तो कभी यह कि लड़कियों पर अत्याचार है और फिर कभी यह कि यह फिल्मों और सीरियल्स की उपज है।

मगर इतने प्रोपोगैंडा के बाद भी पति-पत्नी का यह पर्व दिनों-दिन लोकप्रिय होता जा रहा है, युवा से लेकर वृद्ध तक अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम दर्शाने के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं और चाँद देखकर ही यह कहती हैं कि “मेरा चाँद आ गया है!”

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Barkha Trehan
Barkha Trehan
Activist | Voice Of Men | President, Purush Aayog | TEDx Speaker | Hindu Entrepreneur | Director of Documentary #TheCURSEOfManhood http://youtu.be/tOBrjL1VI6A

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