भारत में बीते कुछ दिनों में कम से कम 19 जासूस पकड़े गए हैं। इनमें से एक नाम ज्योति मल्होत्रा का है। इस नाम को लेकर वामपंथी और सेकुलर जमात सोशल मीडिया पर ये प्रोपेगेंडा चला रहा है कि अगर ज्योति मल्होत्रा की जगह किसी मुस्लिम की गिरफ्तारी होती, तो नरेटिव अलग होता। हालाँकि ये वो एक नाम है, जिसकी आड़ में कथित सेकुलर और इस्लामी कट्टरपंथियों ने सोशल मीडिया पर ये ट्रेंड चलाने की कोशिश की कि गद्दारों का कोई मजहब नहीं होता।
इस प्रोपेगेंडा में बताया जा रहा है कि ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी पर हिंदू कुछ नहीं बोल रहे हैं। जबकि ये पूरी तरह से गलत है। बहुसंख्यक जमात न सिर्फ ज्योति मल्होत्रा के कारनामों को सामने ला रहा है, बल्कि उसकी प्रोफाइल से लेकर उसके सारे टूर तक पर शक की नजर डाल रहा है। यही बहुसंख्यक समुदाय ही ज्योति मल्होत्रा की पूरी कुंडली खंगाल रहा है।
सबसे पहले तो मैं आपको बता दूँ कि बीते कुछ दिनों में करीब 19 जासूसों के पकड़े जाने की जानकारियाँ मेरे पास आई। कितनों के साथ पूछताछ जारी है और जाने कितने अभी सुरक्षा एजेंसियों के रडार में हैं, वो बात छोड़ ही दीजिए। इन 19 नामों में सिर्फ 1 नाम ज्योति मल्होत्रा का ऐसा मिला है, जिसका कोई हिंदू बचाव तो करता नहीं मिला, बल्कि इस्लामी कट्टरपंथी उसकी आड़ में अपने ‘उम्माह भाईयों और बहनों’ को बचाने की कोशिश करते दिख रहे हैं।
सबसे पहले तो आप उन 19 जासूसों के नाम और धर्म जान लीजिए… जिसमें से 15 मुस्लिम – जाफर हुसैन, मोहम्मद अरमान, नोमान ईलाही, मोहम्मद जुबैर, मोहम्मद यासमीन, गजाला खातून, नसरीना बानो, मोहम्मद रकीब, आरिफ खान, रकीब खान, अरशद खान, मोफिजुल इस्लाम, सादिक खान और 2 अन्य हैं। कुछ और मामले छूट भी गए होंगे। वहीं, इन 19 में 2 ईसाई भी हैं, जिनके नाम पलक शेर मसीह और सूरज मसीह हैं। दोनों पंजाब के रहने वाले वाले हैं।
एक हरियाणा का सिख-देवेंद्र सिंह ढिल्लों है, जो पंजाब के पटियाला में रहता था और आखिरी नाम ज्योति मल्होत्रा नाम की हिंदू का है। कथित तौर पर ये भी बताया जा रहा है कि ज्योति अपने पाकिस्तानी हैंडसर के ‘प्यार’ में पड़कर खुद मुस्लिम बन चुकी है और निकाह भी कर चुकी है। ऐसे तमाम मीडिया रिपोर्ट्स इन दावों को लेकर हैं।
बहरहाल, ज्योति मल्होत्रा की आड़ में जो प्रोपेगेंडा सेकुलरों और इस्लामी कट्टरपंथियों ने शुरू किया, उसके कुछ नमूने देख लीजिए। कविश अजीज नाम की कथित पत्रकार ने एक्स पर लिखा, “एक मामूली सी यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा मरियम नवाज शरीफ से मिलती है और उनका इंटरव्यू भी ले लेती है। सोचिए ज्योति की जगह अगर जीनत या जुबेदा होती तो गोदी मीडिया कलेजा पीट पीट कर भारत के मुसलमान के खिलाफ अपने स्टूडियो में बैठकर नफरत परोस रहे होते.. देश के कई हिस्सों में मुसलमानों को तंग भी किया जाने लगता।”
खुद को पत्रकार बताने वाला मोहम्मद असगर भी हिंदू और सिख जासूसों की तस्वीर पोस्ट करके ऐसे ही सवाल पूछ रहा है। उसने लिखा, “आज दो पाकिस्तानी जासूस पकड़े गए! एक का नाम- ज्योति मल्होत्रा दूसरे का नाम- देवेंद्र सिंह अब कोई नहीं पूछेगा धर्म? न देशभक्ति पर सवाल, न बुलडोजर, न टीवी डिबेट! क्या गद्दारी का धर्म होता है सिर्फ़ मुसलमान?”
कॉन्ग्रेसी और कथित सेकुलर नेता सुरेंद्र राजपूत भी यही सवाल पूछता दिखा। उसने एक्स पर लिखा, “हरियाणा की यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा पाकिस्तान की जासूस निकली! ये नाम अगर किसी मुसलमान का होता तो सारी भाजपा और सारा नोएडा मीडिया चीख रहा होता!” सुरेंद्र राजपूत की लाइन पर कई सेकुलर लोग ऐसे सवाल पूछते दिखे।
बहरहाल, हिंदू बहुसंख्यक होते हुए भी कोई ज्योति मल्होत्रा के समर्थन में नहीं आया। न ही ज्योति मल्होत्रा नाम की पाकिस्तानी जासूस के लिए बहुसंख्यक हिंदुओं ने ‘बेचारगी’ जताई, न ही उसके साथ कोई सहानुभूति दिखाई। न ही बहुसंख्यक समाज ने सामाजिक पहल करते हुए किसी तरह का वकील मुहैया कराया और ही उसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ने का ऐलान किया।
लेकिन दूसरी तरफ मुस्लिम चाहे वो आतंकवादी ही क्यों न हो, भले ही वो कमलेश तिवारी का गला रेतने वाला सैयद आसिम अली ही क्यों न हो, उसके लिए यही मुस्लिम उम्माह खड़ा हो जाता है। वो सुप्रीम कोर्ट तक चुनाव लड़ता है। इसी तरह, आतंकवाद के आरोप में पकड़े गए युवकों के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसी संस्थाएँ कानूनी लड़ाई लड़ती नजर आईं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कई बार आतंकवाद के आरोपियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की है। उदाहरण के लिए, 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोटों के आरोपियों और 2010 के वाराणसी बम धमाकों के संदिग्धों के लिए जमीयत ने वकील उपलब्ध कराए। संगठन का दावा है कि वह ‘न्याय’ के लिए लड़ रहा है।
यही मुस्लिम उम्माह बड़े बड़े वकीलों को हायर करता है और सुप्रीम कोर्ट को आधी रात को काम पर लगा देता है। आपको याद होगा इस्लामिक आतंकी और गैंगस्तर याकूब मेनन का मामला, जिसे मुंबई धमाकों के लिए फाँसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उसके मामले की सुनवाई के लिए आधी रात को न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट खुली, बल्कि पूरी बहस भी हुई।
बात नरेटिव बनाने की हो, तो संसद हमले के मामले में फाँसी की सजा पाए अफजल गुरु के मामले को कौन भूल सकता है, जिसके लिए ‘मास्टर का बेटा’ जैसे भावुक नरेटिव चलाए गए। आज भी कट्टरपंथियों में अफजल गुरु को लेकर भावुकता दिखती है।
ये सारे मामले तो पुराने हुए, अभी बोकारो में एक मुस्लिम युवक की रेप की कोशिश के दौरान हत्या हुई, तो पूरा इस्लामी जमात न सिर्फ उसके समर्थन में खड़ा हो गया, बल्कि कॉन्ग्रेस-जेएमएम जैसी कथित सेकुलर ताकतें भी उसके लिए खड़ी हो गई। सिद्दीकी समाज ने पैसे भी इकट्ठे करके दिए।
खुद कॉन्ग्रेस का मुस्लिम विधायक और मंत्री रेप की कोशिश करने वाले अब्दुल के दरवाजे तक गए और सोशल मीडिया पर उसके लिए न्याय भी माँगा गया। जबकि इस मामले के असली पीड़ित एसटी परिवार के दरवाजे तक भी कोई नहीं गया, बल्कि उस परिवार के लोग सलाखों के पीछे हैं।
हालाँकि ज्योति मल्होत्रा का मामला न केवल भारत की सुरक्षा के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे सोशल मीडिया का इस्तेमाल धार्मिक और सामाजिक ध्रुवीकरण के लिए किया जा सकता है। ऑपरेशन सिंदूर ने देश के अंदर और बाहर दुश्मनों को बेनकाब किया, लेकिन ज्योति के मामले ने एक नया प्रोपेगेंडा शुरू कर दिया।
इस्लामी कट्टरपंथी और सेकुलर ताकतों ने इस मामले को हिंदुओं के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की। 19 जासूसों की सूची में केवल एक हिंदू नाम होने के बावजूद, इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों ने इसे मुस्लिम समुदाय के बचाव के लिए इस्तेमाल किया। ऐसे में भारत को न केवल बाहरी खतरों से, बल्कि आंतरिक प्रोपेगेंडा और ध्रुवीकरण से भी सतर्क रहने की जरूरत है।