जब भी ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ की बात आती है, तथाकथित उदारवादी सेक्युलर गिरोह और वोक लिबरल्स सबसे पहले सामने आते हैं। नैतिकता का चश्मा पहनकर ये लोग बाकी दुनिया को भाषण देने में माहिर हैं।
लेकिन जब बात हिन्दू भावनाओं और हिन्दू समाज पर हमलों की आती है, तब ना तो इन्हें ‘बलात्कार की धमकियाँ’ दिखाई देती है, न ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे सुनाई देते हैं। ऐसा क्या होता है कि जब भी बात हिंदुओं पे आती है तो ये मौन व्रत धारण कर लेते हैं? क्या ये वही ‘सहिष्णुता’ है, जिसकी दुहाई इन नकली उदारवादियों द्वारा दिन-रात दी जाती है?
ज़रा सोचिए, भारत में आज भी ऐसे सैकड़ों कट्टरपंथी और हिन्दू-विरोधी तत्व रोज़ खुलेआम ज़हर उगल रहे हैं, हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान कर रहे हैं, देश और राष्ट्र की संस्कृति पर हमला कर रहे हैं, सेना को गालियाँ दे रहे हैं, लेकिन उन पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं होती।
ना ही कोई गिरफ़्तारी, ना ही कोई पूछताछ। बल्कि इन लोगों को बचाया जाता है, क्योंकि इनकी पीठ पर राजनीति की छाया है, वो भी तुष्टिकरण की राजनीति की, जो इन्हें संरक्षण देती है।
अगर 22 साल की शर्मिष्ठा के साथ कोई अनहोनी होती है तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?
अब आइए शर्मिष्ठा पनौली की कहानी पर। पुणे के सिम्बायोसिस लॉ कॉलेज की 22 वर्षीय छात्रा शर्मिष्ठा को 30 मई 2025 को कोलकाता पुलिस ने गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया। वजह? ऑपरेशन सिंदूर पर एक इंस्टाग्राम वीडियो, जिसे उसने बाद में डिलीट कर दिया था।
पाकिस्तान की ट्रोल आर्मी की तरफ से मिलने वाली धमकियों और गाली-गलौज का जवाब देते हुए शर्मिष्ठा ने एक टिप्पणी की, जिसके बाद उसे भारत में बैठे इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बलात्कार, हत्या और ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारों के साथ भयानक धमकियाँ देनी शुरू कर दी। सोशल मीडिया पर ऐसी खतरनाक और जानलेवा धमकियों की लाइन लग गई।
इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हुई इस घिनौनी साइबर लिंचिंग के बाद शर्मिष्ठा ने न केवल वीडियो डिलीट किया बल्कि सार्वजनिक रूप से बिना किसी शर्त माफी भी माँगी। लेकिन इसके बावजूद बंगाल पुलिस, जिसकी मुर्शिदाबाद दंगों में अपनी संदिग्ध भूमिका के लिए कठोर आलोचना हुई है। वो पुलिस 1500 किलोमीटर दूर कोलकाता से गुरुग्राम आई और शर्मिष्ठा को गिरफ्तार कर अपने साथ बंगाल ले गई।
शनिवार (31 जून 2025) दोपहर अलीपुर कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट के आदेश पर शर्मिष्ठा को 13 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। जबकि, जिन सैंकड़ों इस्लामिक कट्टरपंथियों ने शर्मिष्ठा को जान से मारने, और उसका बलात्कार करने की धमकियां दीं हुई हैं, वो सभी के सभी आज़ाद घूम रहे हैं।
अब सवाल उठता है: जो सच में ज़हर फैला रहे हैं, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं होती?
आज भारत में जो तत्व असली ज़हर फैला रहे हैं, वे खुद को ‘साहित्यकार’, ‘एक्टिविस्ट’, या “तथाकथित पत्रकार” के चोले में छिपाए बैठे हैं। एक ओर मोहम्मद जुबैर जैसे लोग हैं, जो हिन्दू देवी-देवताओं के खिलाफ अपमानजनक मीम्स फैलाते हैं और झूठे नैरेटिव गढ़ते हैं। फिर भी उन्हें ‘फैक्ट चेकर’ कहा जाता है।
उधयनिधि स्टालिन जैसे नेता सनातन धर्म को खुलेआम ‘कैंसर’ कहते हैं, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। लीना मणिमेकलई जैसी फिल्ममेकर माँ काली को सिगरेट और LGBTQ झंडे के साथ दिखा कर कला की आड़ में अपमान करती हैं।
ये सभी नाम किसी न किसी रूप में हिन्दू-विरोध का एजेंडा फैलाने में जुटे हैं और विडंबना यह है कि इनके पीछे तथाकथित सेक्युलर ताकतों, अंतरराष्ट्रीय NGO नेटवर्क और कुछ राजनीतिक दलों का खुला समर्थन भी है।
मुर्शिदाबाद हिंसा में बंगाल पुलिस कहाँ गायब थी? और, किसके कहने पर?
अब बात करें मुर्शिदाबाद दंगों की, जहाँ हिन्दू घरों को जलाया गया, मंदिरों को अपवित्र किया गया और निर्दोष लोगों की जानें ली गईं। हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन की निर्मम हत्या कर दी गई। 400 से ज़्यादा लोगों ने कुछ ही घंटों में वहाँ से पलायन कर लिया। 300 से ज़्यादा गिरफ़्तारियाँ हुईं। लेकिन असली मास्टरमाइंड आज भी कानून के शिकंजे से बाहर हैं।
कोलकाता पुलिस, जो एक 22 साल की छात्रा को गिरफ्तार करने में तेज़ी दिखाती है। वो धार्मिक मंचों से नफरत फैलाने वाले कट्टरपंथी मौलानाओं को पकड़ने में असहाय क्यों दिखती है?
क्या यही तुम्हारा लोकतंत्र है?
एक ऐसा सिस्टम जो एक 22 वर्षीय छात्रा को सोशल मीडिया पोस्ट के लिए अपराधी बना देता है, लेकिन सैंकड़ों गरीब-मासूम लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करने वालों और दंगों के सूत्रधारों को हाथ तक नहीं लगाता?
वामपंथियों, लिबरल वोक ब्रिगेड और हिन्दू-विरोधी ताकतों से सीधा सवाल है: जब शर्मिष्ठा को बलात्कार और ‘सर तन से जुदा’ की धमकियाँ मिल रही थीं, तब तुम्हारी नैतिकता कहाँ सो रही थी? क्या सिर्फ़ हिन्दू देवी-देवताओं को गालियाँ देना ही तुम्हारा लोकतंत्र है?
क्या सनातनी भावनाओं को कुचलना ही तुम्हारी आज़ादी है? क्या भारत को गालियाँ देना और कोसना ही तुम्हारी अभिव्यक्ति है? क्या यही तुम्हारी ‘सेलेक्टिव डेमॉक्रेसी’ है?
तुम लोगों का ‘जेंडर जस्टिस’, ‘फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन’, और ‘सेफ स्पेस’ का चोला तब कहाँ उतर जाता है, जब पीड़ित कोई हिन्दू होता है?
भारत अब जाग चुका है और तुम्हारा दोगलापन अब सब देख रहे हैं। शर्मिष्ठा भारत की ज़िम्मेदारी है, भारत के हिंदुओं की ज़िम्मेदारी है…