Wednesday, May 8, 2024
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स्पेशल मैरिज एक्ट और समान नागरिक संहिता: केरल के मोहम्मद शुक्कुर को निकाह के 29 साल बाद फिर क्यों करनी पड़ी शादी, UCC से जानें कनेक्शन

अगर बेटियों की बात की जाए तो वह बेटों की तुलना में अधिक-से-अधिक उनकी संपत्ति के आधा के बराबर हिस्सा ले सकती हैं। शरीयत कानून की सबसे खास बात यह है कि एक मुस्लिम की संपत्ति का वारिस सिर्फ मुस्लिम ही हो सकता है। यदि किसी पुरुष की मौत हो जाती है और उसका बेटा किसी और धर्म को मानता है तो उसे पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा।

देश में कानूनी समानता के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की माँग लंबे समय से की जा रही है। समान नागरिक संहिता से कई तरह की परेशानियों से निजात मिलने के साथ ही मध्ययुगीन कानूनों से लोगों को निजात मिलेगी। समान नागरिक संहिता क्यों जरूरी है, हाल ही में सामने आए दो मामलों ने साबित कर दिया।

हाल ही में गुजरात में एक मामला सामने आया था, जिसमें रंजन त्रिपाठी एक हिंदू महिला ने अपने सरकारी कर्मचारी पति की मौत के बाद एक मुस्लिम युवक के साथ लिव-इन में रहने लगी। उसे पति की अनुकंपा वाली सरकारी नौकरी भी मिली। प्रेमी के साथ रहने के दौरान महिला के पति से हुई उसकी तीन बेटियाँ अपने दादा-दादी के पास ही रहीं।

इसके बाद महिला ने लिव-इन रिलेशन में रहते हुए एक बेटे को जन्म दिया। बाद में उसकी संपत्ति उसकी बेटियों की जगह उसके बेटे को मिले, इसलिए उसने मुस्लिम युवक से इस्लाम अपनाकर विधिवत निकाह कर लिया और संपत्ति का वसीयत अपने बेटे के नाम कर दिया। इसके बाद महिला की हिंदू बेटियों ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अपने निर्णय में कोर्ट ने कहा, “सभी मुसलमान मुस्लिम कानून द्वारा शासित होते हैं, भले ही वे इस्लाम में परिवर्तित हो गए हों। उनके पिछले धार्मिक और व्यक्तिगत कानून को इस्लाम द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया। मुस्लिम कानून के तहत एक हिंदू किसी मुस्लिम की संपत्ति का वारिस नहीं हो सकता।” इस तह हिंदू बेटियाँ अपनी माँ की संपत्ति पर का अधिकार खो दीं।

दूसरा मामला है केरल के कासरगोड जिले (Kasargod, Kerala) का। यहाँ एक मुस्लिम जोड़े ने अपनी निकाह के 29 साल बाद एक बार फिर शादी से बुधवार (8 मार्च 2023) को शादी की। इस शादी की खास बात यह है कि शरियत कानून की खामियों से अपने बच्चे को बचाने के लिए दंपत्ति ने यह रास्ता अपनाया है।

मुस्लिम दंपत्ति चाहता है कि उनकी संपत्ति उनकी बेटियों को मिले। इसलिए उसने अपनी तीन बेटियों की आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत दोबारा कोर्ट मैरेज की। शरिया कानून कहता है कि अम्मी-अब्बू की संपत्ति में बेटियों का हिस्सा बेटे के हिस्से का आधा होता है। यानी बराबर का हक नहीं मिलता।

जिस व्यक्ति ने यह क्रांतिकारी कदम उठाया है, उनका नाम सी शुक्कुर है। शुक्कुर एक अभिनेता और वकील भी हैं। उन्होंने साल 2022 में आई फिल्म ‘नना थान केस कोडू’ में वकील की भूमिका निभाई थी। शुक्कुर की पत्नी शीना महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय की पूर्व वाइस चांसलर हैं। दोनों ने साल 1994 में निकाह किया था।

शुक्कुर ने कहा है कि हाल के दिनों में कुछ ऐसा हुआ जिससे वह यह सोचने में मजबूर हो गए कि वह मृत्यु के बाद अपनी बेटियों के लिए क्या छोड़ कर जाएँगे। उनकी चिंता थी कि क्या उनकी संपत्ति में उनकी बेटियों को पूरा अधिकार मिलेगा। इसके लिए उन्होंने यह कदम उठाया।

शरिया कानून में बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबरी का अधिकार नहीं मिलता है। शुक्कुर को कोई बेटा नहीं है। ऐसे में शेष संपत्ति शुक्कुर के भाइयों को मिल जाता। शुक्कुर दंपत्ति ने कहा है कि उनकी तीन बेटियाँ उनकी कानूनी उत्तराधिकारी बनें, इसलिए उन्होंने यह कदम उठाया है।

शुक्कुर ने बताया था, “विशेष विवाह अधिनियम के तहत हमारी शादी को पंजीकृत करना ही एकमात्र तरीका है, जिससे हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारे जाने के बाद हमारी तीन बेटियों को अपमानित नहीं किया जाए।” शुक्कुर जैसे माता-पिता, जो अपनी बेटियों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं, वे उसके भविष्य को लेकर सतर्क रहते हैं।

उत्तराधिकार को लेकर क्या कहता है शरिया कानून

मुस्लिमों के दीवानी मामले मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एक्ट 1937 के तहत शासित होते हैं। यह मुस्लिमों की धार्मिक रिवाजों को देखते हुए अंग्रेजों ने बनाया था, जिसे आजादी के बाद भी सरकार ने जारी रखा। शरीयत में दो तरह के उत्तराधिकारी को मान्यता दी गई है- हिस्सेदार और शेष (रेशिडुअरी)।

शरीयत के अनुसार बारह श्रेणियाँ हैं, जिन्हें विरासत में हिस्सा मिलता है: (1) शौहर, (2) बीवी, (3) बेटी, (4) एक बेटे की बेटी (या बेटे का बेटा या बेटे का बेटा और इसी प्रकार), (5) पिता, (6) दादा, (7) माता, (8) पिता पक्ष की ओर की दादी, (9) सहोदर बहन (10) जैविक बहन (11) सौतेली बहन और (12) सौतेला भाई।

चाची, चाचा, भतीजी, भतीजे और अन्य दूर के रिश्तेदार रेशिडुअरी उत्तराधिकारी हो सकते हैं। किस व्यक्ति का संपत्ति में हिस्सा कितना होगा, यह कई बातों पर निर्भर करता है। शरीयत के मुताबिक, शौहर की मौत हो जाती है तो बीवी को संपत्ति का 1/8 हिस्सा मिलेगा, यदि वह अपने शौहर के वंश से आती है। यदि ऐसा नहीं है तो उसे 1/4 भाग मिलेगा।

अगर बेटियों की बात की जाए तो वह बेटों की तुलना में अधिक-से-अधिक उनकी संपत्ति के आधा के बराबर हिस्सा ले सकती हैं। शरीयत कानून की सबसे खास बात यह है कि एक मुस्लिम की संपत्ति का वारिस सिर्फ मुस्लिम ही हो सकता है। यदि किसी पुरुष की मौत हो जाती है और उसका बेटा किसी और धर्म को मानता है तो उसे पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा।

इतना ही नहीं, शरीयत कानून के तहत एक मुस्लिम सिर्फ अपनी संपत्ति का एक-तिहाई हिस्सा ही किसी को वसीयत कर सकता है। शेष संपत्ति को शरीयत कानून के अनुसार विभाजित करना होगा। शरीयत कानून में किसी भी लड़का या लड़की को पूरी संपत्ति वसीयत करने का प्रावधान नहीं है। ऐसी स्थिति में शुक्कुर जैसे पिता के सामने विशेष विवाह अधिनियम जैसे विकल्प बचते हैं।

क्या है विशेष विवाह अधिनियम?

विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह के पंजीकरण का मतलब है कि पति-पत्नी पर शादी से संबंधित धार्मिक कानून लागू नहीं होंगे। यह विवाह विरासत संबंधी मामलों में धर्मनिरपेक्ष कानून भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा।

सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता संभ्रांत कृष्ण कहते हैं, “भारत में व्यक्तिगत क़ानूनों में कमियों की वजह से लोगों को स्पेशल मैरिज एक्ट का सहारा लेना पड़ता है। किसी भी विधि के अन्तर्गत हुई शादी का पंजीकरण इस एक्ट की धारा 15 के तहत की जा सकती है। धारा 18 इस पंजीकरण के प्रभाव के बारे में यह कहता है कि किसी भी विधि से हुई शादी अगर इस एक्ट के तहत पंजीकृत होती है तो यह माना जाएगा कि उस तिथि से वह विवाह स्पेशल मैरिज एक्ट से संचालित होगा।”

विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) के तहत किसी भी शादी को पंजीकृत करने के लिए कुछ नियम तय किए गए हैं। इसके लिए निम्नलिखित आवश्यक है:

(क) दो पक्षों के बीच शादी और वे तब से पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे हैं;

(ख) पंजीकरण के समय किसी भी पक्ष के एक से अधिक जीवित पति/पत्नी नहीं हैं;

(ग) पंजीकरण के समय कोई भी पार्टी मूर्ख या पागल नहीं है;

(घ) पक्षों ने पंजीकरण के समय इक्कीस वर्ष की आयु पूरी कर ली है;

(च) पार्टियाँ निषिद्ध रिश्तों के अंतर्गत नहीं आतीं।

इस आधार पर किसी भी विवाह को स्पेशल मैरिज अधिनियम के तहत पंजीकृत कराया जा सकता है। विवाह के पंजीकृत की प्रक्रिया नई शादी की तरह ही होती है। दोनों पक्षों को कम-से-कम 30 दिनों के लिए विवाह अधिकारी के जिले का निवासी होना चाहिए। इस दौरान विवाह अधिकारी द्वारा आपत्तियों के लिए 30 दिन का नोटिस दिया जाता है।

वैवाहिक मामलों में उत्तराधिकार मामलों में विवाद से निजात पाने के लिए यह कानून बेहद मददगार है, लेकिन भारत के आम लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। यह किसी शुक्कुर जैसे लोगों को छोड़ दें तो एक आम व्यक्ति धर्म के खिलाफ जाना पसंद नहीं करता।

समान नागरिक संहिता की माँग और उसके फायदे

देश में समान नागरिक संहिता की माँग और रफ्तार पकड़ रही है। ऊपर बताए गए दो मामले ऐसे हैं, जो बताते हैं कि देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड की क्यों जरूरत है। अगर यह कानून लागू किया जाता है तो इसका सबसे अधिक फायदा मुस्लिम महिलाओं को मिलेगा। कोर्ट के समय-समय पर निर्णय के कारण हिंदू महिलाएँ तो अपना न्यायसंगत हिस्सा पा रही हैं।

अधिवक्ता संभ्रांत कृष्ण आगे कहते हैं, “अगर आपके व्यक्तिगत क़ानून आपको वो अधिकार नहीं देते, जो आपको किसी भी आधुनिक समाज में मिलने चाहिए, तब आपको उन कानूनों को त्यागना पड़ता है। भारत में व्यक्तिगत क़ानूनों से सबसे बड़ा नुक़सान उन समाजों की महिलाओं को है। वहीं, समान नागरिक संहिता का विरोध उन समाज के पुरुष वर्ग द्वारा किया जा रहा है।”

देश-देश में जब-जब समान नागरिक संहिता पर चर्चा होती है मुस्लिम समुदाय के उलेमा इसे मुद्दा बनाने लगता है। मुस्लिम मौलाना इसे इस्लाम पर हमला का रूप देकर सरकार के हस्तक्षेप को नाजायज ठहराने की कोशिश करने लगते हैं। इसका परिणाम ये होता है कि लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए सरकार को समय लेना पड़ता है।

अगर समान नागरिकता लागू हो जाती है तो मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा बहुत सी समस्याएँ खत्म हो जाएँगी। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद मुस्लिमों में चार शादियों पर रोक लग जाएगी, तलाक की स्थिति में महिला को गुजारा भत्ता या एकमुश्त राशि देना होगा, संपत्ति में बेटियों बराबर का अधिकार देना होगा, मुस्लिमों द्वारा गोद लिए बच्चों को संपत्ति का वारिस घोषित करना होगा, तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी महिला को मिल सकेगी।

इसका सीधा लाभ मुस्लिम महिलाओं को ही मिलेगा। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद मुस्लिम महिलाओं को किस तरह के फायदे होंगे, इसे डिटेल में जानने के लिए इस इस लिंक को क्लिक कर पढ़ सकते हैं। समान नागरिक संहिता गोवा में पहले से ही लागू है। उत्तराखंड, गुजरात जैसे राज्य उसे लागू करने के लिए कमिटी गठित कर चुके हैं। ऐसे में देश को एक बेहतर संकेत भी मिल रहे हैं। मुस्लिम महिलाओं को इस संकेत के हकीकत में बदलने की बेसब्री से उम्मीद होगी।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
इतिहास प्रेमी

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