Friday, March 29, 2024
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मिलिए भगवान महावीर की अहिंसा पर PHD होल्डर उस बाहुबली नेता से जिसने मुख्तार अंसारी के मर्डर के लिए दी थी ₹50 लाख की सुपारी

सुनील पांडेय का नाम कभी रणवीर सेना के सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आया, तो कभी बिहार के चर्चित आरा सिविल कोर्ट बम ब्लास्ट में, कभी पटना के एक होटल में खुलेआम गोली मारने की धमकी देने का वीडियो वायरल हुआ, तो कभी अपराधी को जेल से भगाने के मामले में गिरफ्तार हुए, यहाँ तक कि यूपी के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मारने के लिए.....

सुनील पांडेय बिहार की राजनीति का जाना-माना नाम और आपराधिक छवि वाले दंबग नेता हैं। सुनील पांडेय ने हाल ही में लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष सह बाहुबली विधायक सुनील पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है और अब वे तरारी सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे।

सुनील पांडेय के लोजपा छोड़ने के पीछे की वजह ये बताई जा रही है कि वो इस बार तरारी से लोजपा के टिकट पर मैदान में आना चाहते थे, लेकिन एनडीए में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई। इसके बाद से ही सुनील पांडेय के इस इलाके से निर्दलीय चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे। इसके बाद सुनील पांडेय ने लोजपा से इस्तीफा देकर इस कयासबाजी पर अपनी मुहर लगा दी है।

इससे पहले वो जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की टिकट पर दो बार विधायक बने हैं। सुनील पांडेय बिहार के ऐसे नेता हैं, जिनका नाम हमेशा ही सर्खियों में रहा। सुनील पांडेय का नाम कभी रणवीर सेना के सुप्रीमो ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आया, तो कभी बिहार के चर्चित आरा सिविल कोर्ट बम ब्लास्ट में आया, तो कभी पटना के एक होटल में खुलेआम गोली मारने की धमकी देने का वीडियो वायरल हुआ, तो कभी अपराधी को जेल से भगाने के मामले में गिरफ्तार होते हैं, तो कभी यूपी के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपए की सुपारी देने के आरोपों से घिर जाते हैं। सुनील पांडेय की आधी जिंदगी जेल में बीती है तो आधी फरार रहने में। ये तो था सुनील पांडेय का इंट्रो। अब कहानी जानिए…

कॉलेज में लड़के को मार दिया था चाकू

90 का दशक था। बिहार के रोहतास के नावाडीह गाँव में रहते थे कमलेशी पांडेय। भूमिहार जाति से थे। इंजीनियरिंग की हुई थी। सोन नदी से बालू निकालने के लिए मामूली ठेके लिया करते थे। हालाँकि, आसपास के इलाकों में उनकी छवि दबंग की थी। कमलेशी पांडेय के बेटे का नाम था नरेंद्र पांडेय, जिन्हें लोग सुनील पांडेय के नाम से भी जानते हैं। पिता चाहते थे कि बेटा भी पढ़-लिखकर इंजीनियर बन जाए। इसलिए बेंगलुरू भेज दिया, लेकिन कहते हैं ना किस्मत के आगे किसी की नहीं चलती। सुनील की कुछ दिनों बाद वहाँ एक लड़के से लड़ाई हो गई। इस दौरान सुनील ने उस लड़के को चाकू मार दिया। फिर क्या था पढ़ाई-लिखाई छोड़कर नावाडीह वापस आ गए।

कैसे उतरे जुर्म की दुनिया में

जब पिता की छवि दबंग की थी तो बेटा पीछे कैसे रहता। सुनील पांडेय भी अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए काफी आगे निकल गए। उस वक्त रोहतास के आसपास के इलाकों में सिल्लू मियाँ का सिक्का चलता था। वह आरा का निवासी था और शहाबुद्दीन का करीबी था। सुनील की धीरे-धीरे सिल्लू से दोस्ती हुई और बहुत जल्दी वो उसका राइट हैंड बन गया।

कहा जाता है कि जुर्म की दुनिया की क्लास सुनील ने सिल्लू की पाठशाला में ही ली थी। लेकिन फिर बाद में ऊपर उठने की चाह में सुनील की सिल्लू से दुश्मनी हो गई। इसी बीच एक दिन सिल्लू का मर्डर हो गया। नाम सुनील का आया। लेकिन सबूत ना होने के कारण केस दर्ज नहीं हुआ। इस तरह से बालू के ठेके पर सुनील पांडेय का एकछत्र राज हो गया।

जब ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या में आया नाम

90 का दशक बिहार में रणवीर सेना का माना जाता है। भूमिहार जाति का इस सेना में दबदबा था और ब्रह्मेश्वर सिंह उसके मुखिया थे। एक वक्त वो भी आया, जब सुनील रणवीर सेना का कमांडर बन गया। लेकिन सुनील और ब्रह्मेश्वर के बीच लंबी दुश्मनी भी चली। 1993 में एक ईंट भट्टे मालिक की हत्या हो गई। इसके बाद सुनील और ब्रह्मेश्वर सिंह में खूनी जंग छिड़ गई।

ब्रह्मेश्वर गुट ने जनवरी 1997 को बोजपुर के तरारी प्रखंड के बागर गाँव में 3 लोगों को मौत के घाट उतार डाला। ये लोग भूमिहार जाति से थे। इनमें एक महिला भी थी, जो सुनील की करीबी रिश्तेदार थी। ब्रह्मेश्वर और सुनील की दुश्मनी 1 जून 2012 तक जारी रही, क्योंकि इसी दिन ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या हुई थी। 

जिसका आरोप सुनील पांडेय पर लगा। केस तो चला लेकिन सबूत नहीं मिला। ब्रह्मेश्वर मर्डर केस की जाँच में सीबीआई अभी तक किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुँची है। हत्या के पहले ब्रह्मेश्वर तकरीबन 9 सालों तक जेल में बंद थे। अगस्त, 2002 में 227 लोगों की हत्या के जुर्म में ब्रह्मेश्वर गिरफ्तार हुए थे। लेकिन मई 2011 में जमानत पर रिहा कर दिया गया था। जिसके बाद एक जून 2012 को उनकी हत्या कर दी गई। लेकिन इन 9 सालों में सुनील पांडेय ने अपराध के साथ-साथ राजनीति में भी अपनी पैठ जमा ली थी।

फिर उतरे राजनीति में…

साल था 2000, मार्च में बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। समता पार्टी ने सुनील पांडेय को रोहतास के पीरो से टिकट दिया। उन्होंने आरजेडी के प्रत्याशी काशीनाथ को हराया और विधायक बन गए। उस चुनाव में किसी को भी बहुमत नहीं मिला। जब समता पार्टी का बीजेपी से गठबंधन था, तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को कहा।

बताया जाता है कि इस शपथ में सुनील पांडेय की भूमिका बहुत अहम थी। जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो पांडेय ने राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रामा सिंह, अनंत सिंह, धूमल सिंह और मोकामा के सूरजभान जैसे निर्दलीय बाहुबलियों की फौज को नीतीश के खेमे में खड़ा कर दिया। लेकिन फिर भी सरकार नहीं बच पाई, हालाँकि, बिहार की राजनीति में सुनील का कद जरूर बढ़ गया।

लंबी है जुर्म की फेहरिस्त

बात मई 2003 की है। पटना के एक नामी न्यूरो सर्जन रमेश चंद्रा का अपहरण हो गया। फिरौती में 50 लाख रुपए माँगे गए। लेकिन पुलिस ने तेजी दिखाई और नौबतपुर इलाके से डॉक्टर को खोज निकाला। केस में नाम आया पीरो के विधायक सुनील पांडेय का। उस वक्त RJD की सरकार थी और समता पार्टी से सुनील विधायक थे। साल 2008 में सुनील पांडेय को तीन अन्य लोगों के साथ उम्रकैद की सजा हुई। लेकिन जब मामला हाई कोर्ट पहुँचा तो उन्हें बरी कर दिया गया

बात 28 जून 2006 की है, जब सुनील पांडेय पटना के सबसे आलीशान होटलों में से एक मौर्या में रुके। अगली सुबह जब वे होटल से चेक आउट कर रहे थे तो होटल के पैसे नहीं दिए। दावा किया कि होटल के मालिक ने उनके दोस्त से 47 लाख रुपए लिए हुए हैं। इसलिए वो पैसे नहीं देंगे। जब पत्रकारों ने उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने एक टीवी चैनल के कैमरामैन को जान से मारने की धमकी दी। यह घटना कैमरे में रिकॉर्ड हो गई। नीतीश कुमार ने पांडेय को पार्टी से निकाल दिया।

साल 2010 में जब नीतीश कुमार ने सुनील पांडेय को दोबारा टिकट दिया तो सब हैरान रह गए। वो इसलिए क्योंकि जो चुनावी हलफनामा दिया, उसमें सुनील पर 23 आपराधिक मुकदमे थे, जिसमें रंगदारी, हत्या की कोशिश, डकैती, लूट और अपहरण के मामले थे। 2014 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा और वह हार गए। इस हार के बाद सुनील ने जदयू पार्टी छोड़ दी। पार्टी छोड़ने के बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था, “मैंने नीतीश कुमार को आगाह किया था कि एनडीए से बाहर ना जाएँ क्योंकि 2010 के विधानसभा चुनाव में जो जीत मिली थी, वो सिर्फ जदयू की नहीं थी इसमें एनडीए भी था।”

जब 1 जून 2012 को रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या हुई तो पहला शक सुनील पांडेय पर गया। पुलिस ने छापा मारकर उनके ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया। साथ ही उनके भाई और तत्कालीन विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य हुलास पांडेय को हिरासत में लेकर पूछताछ की। लेकिन बाद में रिहा कर दिया गया।

23 जनवरी 2015 को आरा के सिविल कोर्ट में बम ब्लास्ट हुआ। दो लोगों की मौत हो गई। कोर्ट से दो कैदी लंबू शर्मा और अखिलेश उपाध्याय फरार हो गए। जाँच हुई तो पता चला कि लंबू सिंह ने ही धमाके को अंजाम दिया था। दिल्ली पुलिस ने जून 2015 में लंबू सिंह को गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ में उसने बताया कि जेल से फरार होने में सुनील पांडेय ने उसकी मदद की थी। इसके बाद पांडेय को एसपी ऑफिस बुलाया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। हालाँकि, कोर्ट ने बाद में सुनील पांडेय को बरी कर दिया

लंबू ने पूछताछ में यह भी बताया कि पांडेय ने यूपी के बाहुबली मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपए की सुपारी दी थी।  लंबू के इकबालिया बयान के बाद सुनील पांडेय गिरफ्तार तो हुए, लेकिन तीन महीने में ही उन्हें जमानत मिल गई। जमानत पर बाहर निकलने के कुछ दिनों बाद ही नवंबर 2015 विधानसभा चुनाव हुए। राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सुनील की पत्नी गीता को टिकट दिया। लेकिन वो भी चुनाव जीत नहीं पाईं। सुनील पांडेय फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। 

सुनील पांडेय ने भगवान महावीर की अहिंसा पर पीएचडी की है 

राजनीति और अपराध के अलावा सुनील को पढ़ाई में भी काफी दिलचस्पी थी। बिहार के रोहतास के नावाडीह गाँव में जन्मे सुनील पांडेय ने अपनी शुरुआती पढ़ाई तो रोहतास में ही की, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बेंगलुरु गए थे। उसी दौरान मामूली विवाद में एक लड़के को चाकू मार दी और वापस लौट आए। इसके बाद से ये अपराध जगत में ये आगे तो बढ़े लेकिन पढ़ाई से नाता कभी नहीं तोड़ा। सुनील पांडेय का एक परिचय यह भी है कि वो पीएचडी हैं। अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं। हैरानी वाली बात तो यह है कि इन्होंने पीएचडी भगवान महावीर की अहिंसा पर की है।

‘मुझे शिक्षित होना ही होगा। मैं जेल में हूँ तो क्या हुआ’: सुनील पांडेय 

सुनील पांडेय ने पीएचडी का इंटरव्यू भी जेल में रहने के दौरान दिया था। सुनील पांडेय जब जेल से हथियारबंद पुलिसवालों के साथ पीएचडी का इंटरव्यू देने गए थे तो मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ”मैं नेता हूँ, जिससे उम्मीद की जाती है कि वो समाज का नेतृत्व करे। मुझे शिक्षित होना ही होगा। मैं जेल में हूँ तो क्या हुआ, हमारे बहुत से नेताओं ने जेल में रहते हुए ही किताबें लिखी हैं।” 

सुनील पांडेय लोजपा से 4 बार विधायक रह चुके हैं। इससे पहले वह जदयू में थे। मार्च 2000 मे बिहार में विधानसभा के चुनाव थे। समता पार्टी के टिकट पर सुनील पांडेय भी चुनावी मैदान में उतर गए। रोहतास के पीरो विधानसभा से चुनाव लड़े। राजद प्रत्याशी काशीनाथ को चुनाव में मात दी और पहली बार विधायक बने।

भाई के अपराधों की भी है लंबी फेहरिस्त

सुनील पांडेय के भाई और बिहार के पूर्व एमएलसी रह चुके हुलास पांडेय को आरा और बक्सर में बाहुबली के तौर पर जाना जाता है। हुलास पांडेय मूल तौर पर बालू का कारोबार करते हैं। बालू माफिया सुभाष यादव के साथ अपने संबंधों को लेकर इलाके में चर्चा में रहते हैं।

जून महीने में NIA ने हुलास पांडेय के पटना, आरा और बक्सर के ठिकानों पर आय से अधिक संपत्ति के मामले में छापा मारा था। हुलास पांडेय पर पैसों के फर्जी लेनदेन से लेकर अवैध हथियारों की तस्करी तक के आरोप हैं। हुलास पांडेय के पटना स्थित घर पर जब एनआईए ने छापेमारी की थी तो वहाँ से करीब डेढ़ किलो सोना और 45 लाख रुपए कैश बरामद हुआ था।

हुलास पांडेय पर अवैध अथियार रखने, खतरनाक हथियार से नुकसान पहुँचाने, हत्या की कोशिश, जान से मारने की धमकी, आपराधिक षड़यंत्र, शांति भंग करने, सरकारी अधिकारी को परेशान करने, वसूली और रंगदारी माँगने जैसे कई संगीन मामले अलग-अलग थानों में दर्ज हैं। हालाँकि, उन्हें किसी भी मामले में कोर्ट के द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया है।

कितनी है संपत्ति

हुलास पांडेय के अगर संपत्ति की बात करें तो 2015 के हलफनामा के मुताबिक उनकी संपत्ति 4 करोड़ रुपए से ज्यादा है और उन पर 10 लाख रुपए का कर्ज है। हुलास पांडेय के पास दो एसयूवी स्कॉर्पियो और पजेरो है जिनकी कुल कीमत करीब 32 लाख रुपए हैं। इनके पास पटना के पॉश इलाके बोरिंग रोड में  अपना घर है जबकि आरा और बक्सर में भी कई संपत्तियाँ हैं।

क्योंकि जीत की गणित में ‘दाग अच्छे हैं’…

भले ही चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों के आका बाहुबल, आपराधिक छवि जैसे नेताओं को अपने साथ रखने में परहेज करते हों, लेकिन बात जब चुनाव की आती है तो यही राजनीतिक पार्टियाँ जीत के लिए इन मानकों को तोड़ने में कोई गुरेज नहीं करती।

इस बार के विधानसभा चुनाव में भी अधिकतर पार्टियों ने बाहुबली, दागियों को सिंबल देने में कोई कोताही नहीं बरती है। अगर, किसी कारणवश दागी चुनाव नहीं लड़ पा रहे हों, तो पार्टियों ने उनके परिजनों को टिकट दे दिया है, क्योंकि बात जब सत्ता तक पहुँचने की होती है, तो जीत की गणित में ‘दाग अच्छे होते हैं’।

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