Saturday, May 4, 2024
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कौन हैं भगवाधारी प्रताप पुरी जिन्होंने गाजी फकीर का गढ़ ढहाया: कभी कहलाता था ‘सरहद का सुल्तान’, कॉन्ग्रेस सरकारों में बोलती थी तूती

राजस्थान के जैसलमेर जिले की पोखरण सीट से भाजपा के महंत प्रताप पुरी ने कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार सालेह मोहम्मद को हराया है। महंत से हारने वाले सालेह, जैसलमेर के गाजी फ़कीर के बेटे हैं। जैसलमेर के गाजी फ़कीर को यहाँ समानांतर सत्ता चलाने के लिए जाना जाता था।

राजस्थान विधानसभा चुनावों में इस बार कई जाने-माने चेहरे हार गए। राजस्थान के जैसलमेर जिले की पोखरण सीट से भाजपा के महंत प्रताप पुरी ने कॉन्ग्रेस के उम्मीदवार सालेह मोहम्मद को हराया है। सालेह मोहम्मद अशोक गहलोत की सरकार में मंत्री भी थे। महंत प्रताप पुरी को इस सीट पर 1,12,925 वोट मिले और उन्होंने 35,427 वोटों के अंतर से सालेह को हराया। महंत से हारने वाले सालेह, जैसलमेर के गाजी फ़कीर के बेटे हैं। जैसलमेर के गाजी फ़कीर को यहाँ समानांतर सत्ता चलाने के लिए जाना जाता था, उसका निधन 2021 में हो गया था।

पोकरण से गाजी फ़कीर के बेटे सालेह मोहम्मद को महंत प्रताप पुरी ने हराया
पोखरण से गाजी फ़कीर के बेटे सालेह मोहम्मद को महंत प्रताप पुरी ने हराया

गाजी फ़कीर इस इलाके में सिन्धी मुस्लिमों का बड़ा मजहबी उलेमा था और उसका इतना रसूख था कि जो भी पुलिस अधिकारी उसके अपराधों की फाइल खोलता था उसका ट्रांसफर हो जाता था। गाजी फ़कीर पर ही हाथ डालने के कारण आईपीएस पंकज चौधरी का भी 2013 में ट्रांसफर कर दिया गया था।

गाजी फ़कीर अशोक गहलोत का करीबी था। जब भी राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार आई तब-तब उसके परिवार का रसूख बढ़ता चला गया और उसके परिवार के अनेकों लोग सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हो गए। उसके इस इलाके में प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसका बेटा सालेह मोहम्मद जैसलमेर से राज्य सरकार में मंत्री बनने वाला पहला विधायक था। सालेह को गाजी फ़कीर ने कम उम्र से ही राजनीति में एंट्री दिलवा दी थी। उसे 23 की उम्र में ही पंचायत समिति का प्रधान बनवा दिया गया था।

सालेह मोहम्मद (बाएँ, फूल माला के साथ) और गाजी फ़कीर (बैठे हुए)
सालेह मोहम्मद (बाएँ, फूल माला के साथ) और गाजी फ़कीर (बैठे हुए)

देशद्रोह सहित कई मामलों में आरोपित गाज़ी कई वर्षों से भारतीय एजेंसियों के पकड़ में नहीं आ पाया क्योंकि उसके ख़िलाफ़ सबूत ही नहीं होते थे। पुलिस हिस्ट्रीशीट में उसका नाम 1965 से ही आता रहा है लेकिन कॉन्ग्रेस में उसके वर्चस्व के कारण कोई उसका बाल भी बाँका नहीं कर सका।

पंकज चौधरी ने कहा था कि उनके पूर्ववर्तियों ने गाज़ी के बारे में फाइल्स में कई भयानक बातें लिख रखी थी। उन्होंने उसका अधिक विवरण देने से इनकार कर दिया था लेकिन उनके इस बयान से स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है। उसके ख़िलाफ़ जुलाई 1965 के एक तस्करी वाले मामले को फिर से खोला गया था।

स्थानीय प्रशासन में उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि ऊपर से आदेश के बावजूद उसको छुआ तक नहीं जा सका। उसके ख़िलाफ़ तैयार की गई फाइल 1984 में गायब हो गई। उस समय राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार थी।

1990 में एक एसपी सुधीर प्रताप सिंह आए जिन्होंने गाज़ी पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। लेकिन, एसपी सुधीर प्रताप सिंह को राजस्थान सरकार ने चुपचाप ट्रांसफर कर दिया। 2011 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने फिर से उस हिस्ट्रीशीट को बंद करवा दिया। इसके बाद दृश्य में पंकज चौधरी की एंट्री हुई जिन्होंने गाज़ी पर नकेल कसी।

उनका कार्य भी अधूरा रह गया और इससे पहले कि वे किसी नतीजे पर पहुँच पाते, उनका भी ट्रांसफर करवा दिया गया। गाज़ी के बारे में सबसे बड़ी बात श्रीकांत घोष की पुस्तक ‘Pakistan’s ISI: Network of Terror in India‘ में कही गई थी। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 55 पर गाज़ी फ़क़ीर का जिक्र किया गया है।

उन्होंने सीमा क्षेत्र में सक्रिय एक इस्लामी संस्था तबलीग-ए-जमात का जिक्र करते हुए लिखा है कि इलाक़े में सैयाद शाह मर्दान शाह-II यानी पीर पगारो का प्रभाव बढ़ रहा है। पीर पगारो पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एफ) का अध्यक्ष है। इसके आगे श्रीकांत घोष ने लिखा था कि जैसलमेर निवासी गाज़ी फ़क़ीर पाकिस्तान की सीमा पर की जा रही आतंकी गतिविधियों में उसकी मदद करता है। इसके अलावा वह पाकिस्तानी एजेंटों को भारतीय सीमा पर स्थित गाँवों में बसाने में मदद करता है।

जब अप्रैल 2021 में गाजी फ़कीर की मौत हुई थी तब भी उसका इस इलाके में प्रभाव दिखा था। उसकी मौत के वक्त कोरोना से सम्बंधित बंदिशें लागू थीं। उसकी मौत से चार दिन पहले ही उसका बेटा सालेह मोहम्मद कोरोना पॉजिटिव पाया गया था। लेकिन इन सब बातों को नजरंदाज करते हुए उसके जनाजे में बड़ी भीड़ इकट्ठा की गई थी और कोविड नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गईं थी।

बता दें कि सालेह पहली बार 2008 में विधायक बने थे और 2013 में भाजपा के शैतान सिंह से हार गए थे। 2018 में पुनः विधायक बन कर वह मंत्री बने। लेकिन अब इन चुनावों में उन्हें महंत प्रताप पुरी ने एक बार फिर पटखनी दी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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