Friday, April 19, 2024
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गाँधी परिवार के 3 ट्रस्टों में गड़बड़झाले की जाँच: हरियाणा सरकार ने माँगा जवाब, जमीन की देनी होगी जानकारी

पत्र में उन्होंने तीनों ट्रस्ट को आवंटित की गई ज़मीन से संबंधित जानकारी माँगी है। मुख्य सचिव ने अपने पत्र में यह भी पूछा है कि क्या इन ट्रस्ट को राज्य के भीतर ज़मीन दी गई है? और दी गई है तो कहाँ-कहाँ दी गई है और कितनी ज़मीन दी गई है। यह सारी जानकारी जल्द से जल्द उपलब्ध कराई जाए।

हरियाणा सरकार ने गाँधी परिवार के 3 ट्रस्ट की जाँच के आदेश दिए हैं। इसमें राजीव गाँधी फ़ाउंडेशन, राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट और इंदिरा गाँधी मेमोरियल ट्रस्ट शामिल हैं। हरियाणा की राज्य सरकार ने इन तीनों संस्थाओं को आवंटित की गई ज़मीन से जुड़े दस्तावेज़ तलाशने के आदेश दिए हैं। 

हरियाणा की राज्य सरकार ने कहा है कि दस्तावेज़ों की जाँच का काम शुक्रवार से ही शुरू हो चुका है। मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा ने शहरी स्थानीय निकाय के अतिरिक्त मुख्य सचिव को पत्र लिखा।

पिछले साल गृह मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया था। इस समिति का काम इस बात की जाँच करना था कि क्या इनमें से किसी ट्रस्ट को ज़मीन देने के दौरान धन शोधन निवारण अधिनियम या आयकर अधिनियम को नज़रअंदाज़ तो नहीं किया गया है। गृह मंत्रालय ने पूरे देश में इन ट्रस्ट को आवंटित की गई ज़मीन से जुड़े रिकॉर्ड तलाशने के लिए समिति बनाई थी। इस कड़ी में हरियाणा की सरकार से भी जानकारी माँगी गई थी। 

यह पहला ऐसा मौक़ा नहीं है जब गाँधी परिवार से जुड़े ट्रस्ट पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

हाल ही में ख़बर आई थी कि कॉन्ग्रेस को लुटियंस में पार्टी कार्यालय बनाने के लिए बिना एक रुपए खर्च किए 2 एकड़ ज़मीन मिली थी। यानी जो ज़मीन कॉन्ग्रेस को ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमिटी के कार्यालय बनाने के लिए मिली थी, वह फिलहाल गाँधी परिवार के नाम है। 

इसके लिए जितनी बार कॉन्ग्रेस की सरकार सत्ता में आई, हर बार अपनी सुविधानुसार नियमों में ऐसे बदलाव किए, जिनके माध्यम से वो 2 एकड़ ज़मीन पार्टी मुख्यालय के बजाय एक परिवार की होकर रह गई। हैरानी की बात यह है कि इंदिरा गाँधी सरकार के समय से शुरू हुई यह प्रक्रिया यूपीए 2 के दौर तक चली थी।  

इसके पहले एक और ख़बर आई थी जिसमें राजीव गाँधी फाउंडेशन ने एक चीनी कंपनी से भरपूर आर्थिक मदद ली थी। वर्ष 2018-19 की राजीव गाँधी फाउंडेशन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारती फाउंडेशन उन संगठनों में से एक था, जिसने इसे दान किया था। उस समय भारती फाउंडेशन Huawei के साथ भी पार्टनरशिप में था, जिसके चीन के साथ व्यापक संबंध हैं। वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में राजीव गाँधी फाउंडेशन में अनुदान और दान से कुल 95,91,766 रुपए की आय हुई थी।

इससे पहले 2020 में, अमेरिका में ट्रम्प प्रशासन ने Huawei और उसके आपूर्तिकर्ताओं को अमेरिकी प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर तक पहुँचने से रोक दिया था। अमेरिका ने यह स्पष्ट कर दिया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से व्यापक संबंध होने के कारण Huawei उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। 

इसी तरह के कारणों के लिए, यूनाइटेड किंगडम भी अपने 5G नेटवर्क से Huawei पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा था। Huawei से उत्पन्न होने वाला खतरा काफी समय से स्पष्ट था। मगर फिर भी कॉन्ग्रेस के शीर्ष पदाधिकारी राजीव गाँधी फाउंडेशन के लिए 2018-2019 के अंत कर एक ऐसे NGO से धन लेते रहे, जिसकी Huawei के साथ पार्टनरशिप थी।

मनमोहन सिंह द्वारा बनाए गए 1991-92 के केंद्रीय बजट दस्तावेज में एक और प्रावधान भी था। इसमें कहा गया कि 5 साल की अवधि में राजीव गाँधी फाउंडेशन को 100 करोड़ रुपए की राशि दान की जाएगी। यह राशि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास, साक्षरता के प्रचार, पर्यावरण की सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने, दलितों के उत्थान के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग से संबंधित अनुसंधान और कार्रवाई कार्यक्रमों की पहल करने, महिलाओं और विकलांग व्यक्तियों, प्रशासनिक सुधार और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका के लिए बताई गई थी।

यदि इसके लिए 100 करोड़ रूपए कम पड़ते, तो केंद्रीय बजट में 250 करोड़ रुपए अलग से भी रखे जाने थे। बजट दस्तावेज़ के खंड-58 में लिखा गया है, “इन कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्धारण के उद्देश्य से, वित्त मंत्रालय के योजना परिव्यय में लगभग 250 करोड़ रुपए की राशि का प्रावधान शामिल किया गया है।” इसके बाद हुई चर्चा में, मनमोहन सिंह ने राजीव गाँधी फाउंडेशन का एक पत्र को पढ़ा था, जिसमें कहा गया था कि फाउंडेशन योगदान की सराहना करता है, लेकिन यह सोचता है कि सरकार को स्वयं उपयुक्त परियोजनाओं में धन का निवेश करना चाहिए।

इन सब के अलावा टाइम्स नाउ न्यूज़ चैनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड के नाम पर किए गए चीन की सरकार और गाँधी परिवार के बीच अन्य गोपनीय समझौतों के साथ ही यह वित्तीय मदद करीब 300000 अमेरिकी डॉलर (उस समय के एक्सचेंज रेट के हिसाब से करीब 1।5 करोड़ रुपए) के आस-पास है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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