Wednesday, July 2, 2025
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‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ के लिए भारत को ‘कुर्बान’ करना चाहती हैं सोनिया गाँधी, चाहती हैं इजरायल-ईरान जंग में देश बने पार्टी: जानिए वैश्विक संघर्षों में कैसे रणनीतिक संतुलन बना रही मोदी सरकार

सोनिया गाँधी ने ईरान को पश्चिमी देशों और इजरायल की आक्रामकता का शिकार बताया, लेकिन ईरान के सुप्रीम लीडर अली होसैनी खामेनेई के कश्मीर पर भारत-विरोधी बयानों का जिक्र नहीं किया।

कॉन्ग्रेस ने ईरान का समर्थन करके अपने ‘मुस्लिम वोट बैंक’ को खुश करने की कोशिश की है। उसने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह इजरायल और ईरान के बीच चल रहे संघर्ष में किसी का भी पक्षकार नहीं बन रही, बल्कि वो तठस्थ है। यानी वो ईरान या इजरायल में से किसी एक पक्ष का भी साथ नहीं दे रही। कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने शनिवार (21 जून 2025) को ‘द हिंदू’ अखबार में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने ईरान को समर्थन दिया और मोदी सरकार की निष्पक्ष नीति की आलोचना की।

यह कदम कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष ने अपने घरेलू ‘मुस्लिम वोट बैंक’ को खुश करने के लिए उठाया, जो ‘उम्माह’ (मुस्लिम समुदाय) के हित में ईरान के साथ खड़ा है और इस बात को नजरअंदाज कर रहा है कि ईरान एक शिया-बहुल देश है, जब बात इजरायल के साथ संघर्ष की आती है।

सोनिया गाँधी ने अपने लेख में ईरान को पश्चिमी देशों और इजरायल की आक्रामकता का शिकार बताया। उन्होंने यह भी दावा किया कि अली होसैनी खामेनेई के नेतृत्व वाला इस्लामी गणराज्य भारत का ‘लंबे समय का दोस्त’ रहा है।

अपने दावों को सही साबित करने के लिए कॉन्ग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने लिखा, “1994 में ईरान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में कश्मीर के मुद्दे पर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव को रोकने में मदद की थी।” लेकिन सोनिया ने यह नहीं बताया कि ईरान ने कश्मीर पर कई बार अपना रुख बदला है और उसके सुप्रीम लीडर ने सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ कई बार गलत बयान दिए हैं।

ईरान ने ‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन’ (OIC) के कश्मीर संपर्क समूह में कश्मीरियों के ‘आत्मनिर्णय के अधिकार’ का समर्थन किया है, जिससे पाकिस्तान के रुख को बल मिलता है। अली होसैनी खामेनेई ने भी जम्मू-कश्मीर, जो भारत का अभिन्न हिस्सा है, उस पर अपनी इस्लामी गणराज्य की स्थिति को साफ कर दिया है।

साल 2017 से ईरान के सुप्रीम लीडर ने कई बयानों और सोशल मीडिया पोस्ट में कश्मीर को ‘स्वतंत्र क्षेत्र’ दिखाने की कोशिश की है। उन्होंने बदनाम तरीके से कहा था, “हर किसी को यमन, बहरीन और कश्मीर के लोगों का खुलकर समर्थन करना चाहिए।”

अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के तुरंत बाद अली होसैनी खामेनेई ने ट्वीट किया, “हम कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंतित हैं। हमारे भारत के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार कश्मीर के सम्मानित लोगों के प्रति निष्पक्ष नीति अपनाए और इस क्षेत्र में मुसलमानों पर अत्याचार और दमन को रोके।”

अली होसैनी खामेनेई के ट्वीट का स्क्रीनग्रैब

मार्च 2020 में एक और ऐसा ही ट्वीट आया – “दुनियाभर के मुसलमानों के दिल भारत में मुसलमानों के नरसंहार से दुखी हैं। भारत सरकार को कट्टर हिंदुओं और उनकी पार्टियों का सामना करना चाहिए और मुसलमानों का नरसंहार रोकना चाहिए, ताकि भारत इस्लामी दुनिया से अलग-थलग न पड़े।”

पिछले साल खामेनेई ने पोस्ट किया, “इस्लाम के दुश्मन हमेशा हमें हमारी साझा इस्लामी पहचान के प्रति उदासीन बनाने की कोशिश करते हैं। हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते अगर हम म्यांमार, गाजा, भारत या किसी अन्य जगह पर एक मुसलमान के दुख से बेखबर रहें।”

इससे साफ है कि ईरान भारत का ‘लंबे समय का दोस्त’ नहीं है, खासकर जब बात जम्मू-कश्मीर की आती है। दूसरी ओर इजरायल ने हमेशा भारत का खुलकर समर्थन किया है और पाकिस्तान के खिलाफ युद्धों में हमारी मदद की है।

अली होसैनी खामेनेई के ट्वीट का स्क्रीनग्रैब

सोनिया गाँधी का ‘द हिंदू’ में लिखा लेख, जिसमें इजरायल को बदनाम किया गया और ईरान की तारीफ की गई है। इसका कूटनीति से कम और देश के भीतर अपने मुख्य वोट बैंक (इस्लामी) के साथ वैचारिक तालमेल से ज्यादा लेना-देना है, खासकर चुनावों से पहले।

इजरायल-ईरान संघर्ष ने कॉन्ग्रेस को अपने मुस्लिम समर्थकों को यह संदेश देने का मौका दिया कि यह पुरानी पार्टी ‘यहूदी’ इजरायल के खिलाफ उम्माह के साथ खड़ी है। यही कारण है कि कॉन्ग्रेस नेता प्रियंका गाँधी वाड्रा ने इस साल मार्च में इजरायली सरकार पर हमला बोला था।

सोनिया गाँधी ने अपने लेख में मोदी सरकार पर इजरायल-ईरान संघर्ष में किसी का पक्ष न लेने का आरोप लगाया।

सोनिया ने लिखा, “इस मानवीय आपदा के सामने, नरेंद्र मोदी सरकार ने भारत की लंबे समय से चली आ रही और सिद्धांतवादी नीति को लगभग छोड़ दिया है, जिसमें एक स्वतंत्र, संप्रभु फिलिस्तीन की कल्पना की जाती थी, जो इजरायल के साथ आपसी सुरक्षा और सम्मान के साथ शांति में रहे।”

सोनिया ने आगे लिखा, “गाजा में तबाही और अब ईरान के खिलाफ बिना उकसावे की आक्रामकता पर नई दिल्ली की चुप्पी हमारी नैतिक और कूटनीतिक परंपराओं से एक परेशान करने वाला विचलन है। यह न केवल आवाज की हानि है, बल्कि मूल्यों का समर्पण भी है। अभी भी देर नहीं हुई है। भारत को स्पष्ट बोलना चाहिए, जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और पश्चिमी एशिया में तनाव कम करने और बातचीत की ओर लौटने के लिए हर कूटनीतिक रास्ते का इस्तेमाल करना चाहिए।”

मोदी सरकार का वैश्विक संघर्षों पर रुख

कॉन्ग्रेस पार्टी के उलट, जो अपने घरेलू वोट बैंक को खुश करने के लिए कूटनीतिक संबंधों को खतरे में डालने को तैयार है, मोदी सरकार ने वैश्विक संघर्षों में सावधानी, संयम और रणनीतिक संतुलन दिखाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार कहा है कि भारत शांति के पक्ष में है। यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भारत ने किसी भी देश का पक्ष नहीं लिया, भले ही पश्चिमी देश यूक्रेन को हथियार देकर युद्ध को बढ़ावा दे रहे थे।

शांति और तनाव कम करने की बार-बार अपील के कारण रूस ने वैश्विक ऊर्जा संकट के बीच भारत को सस्ते दामों पर कच्चा तेल दिया। भारत ने रूस और यूक्रेन दोनों में फँसे भारतीय नागरिकों के लिए सुरक्षित रास्ते बनाए और ‘ऑपरेशन गंगा‘ के तहत उन्हें हवाई जहाज से घर वापस लाया।

इजरायल-हमास युद्ध के दौरान भी भारत ने यही रास्ता अपनाया। भारत ने आतंकी संगठन हमास और इजरायली नागरिकों पर उसके क्रूर हमले की कड़ी निंदा की, लेकिन फिलिस्तीनी लोगों के लिए मानवीय सहायता भी भेजी।

भारत ने इस संघर्ष पर किसी भी प्रस्ताव पर वोट नहीं दिया और भारतीय संसद में पूछे गए सवाल के जवाब में अपनी स्थिति साफ की।

फरवरी 2024 में मोदी सरकार ने कहा, “भारत की फिलिस्तीन नीति लंबे समय से चली आ रही और सुसंगत है। हमने एक बातचीत के जरिए दो-राष्ट्र समाधान का समर्थन किया है, जिसमें एक स्वतंत्र, संप्रभु और व्यवहार्य फिलिस्तीन की स्थापना हो, जो सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर इजरायल के साथ शांति में रहे।”

सरकार ने आगे कहा, “भारत ने 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर हुए आतंकी हमलों और इजरायल-हमास संघर्ष में नागरिकों की मौत की कड़ी निंदा की है। हमने संयम और तनाव कम करने की अपील की है और बातचीत और कूटनीति के जरिए शांतिपूर्ण समाधान पर जोर दिया है। हमने बचे हुए बंधकों की रिहाई की भी माँग की है। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने कई नेताओं से बात की है, जिनमें इजरायल के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री, और फिलिस्तीन के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री शामिल हैं। विदेश मंत्री ने 20 जनवरी 2024 को कंपाला में फिलिस्तीनी विदेश मंत्री से मुलाकात की और दो-राष्ट्र समाधान के लिए भारत के समर्थन को दोहराया।”

ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच भी भारत ने शानदार संतुलन दिखाया और ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत दोनों देशों में फँसे भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकाला।

भारत ने इजरायल के साथ मजबूत रक्षा, खुफिया और व्यापार संबंध बनाए रखा है, जिसमें हर साल 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा के सैन्य उपकरण (मिसाइल, ड्रोन, निगरानी उपकरण) आयात होते हैं। साथ ही भारत ईरान के साथ भी महत्वपूर्ण रणनीतिक और आर्थिक परियोजनाओं पर काम कर रहा है, जैसे कि इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) और चाबहार बंदरगाह। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा रहा है।

मिडिल-ईस्ट का संघर्ष कई पहलुओं वाला, जटिल और पेचीदा है। बाहरी दबाव के बावजूद, मोदी सरकार की निष्पक्ष और कूटनीतिक नीति की वजह से भारत को सभी पक्षों से फायदा मिल रहा है।

उदाहरण के लिए मिडिल ईस्ट के 8 इस्लामी देशों – सऊदी अरब, अफगानिस्तान, फिलिस्तीन, मालदीव, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र और कुवैत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने उच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया है। इनमें शामिल हैं-

  • किंग अब्दुलअजीज़ का ऑर्डर (2016) – सऊदी अरब का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • अमानुल्लाह खान का ऑर्डर (2016) – अफगानिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • फिलिस्तीन राज्य का ऑर्डर (2018) – फिलिस्तीन का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • इज्जुद्दीन का ऑर्डर (2019) – मालदीव का विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान
  • ज़ायद का ऑर्डर (2019) – संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • रेनेसाँ का ऑर्डर (2019) – बहरीन का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • नाइल का ऑर्डर (2023) – मिस्र का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
  • मुबारक द ग्रेट का ऑर्डर (2024) – कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान

ये सम्मान मोदी सरकार की कूटनीतिक संतुलन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत व्यक्तित्व और विश्व व्यवस्था में भारत के बढ़ते प्रभाव का सबूत हैं।

अगर भारत ने वैश्विक संघर्षों में सक्रिय रूप से पक्ष लिया होता और पक्षपात किया होता, तो हमें व्यापार संबंधों में नुकसान, मित्र देशों से दूरी और उन युद्धों में अनजाने में उलझने की कीमत चुकानी पड़ती, जो हमने शुरू नहीं किए।

कॉन्ग्रेस भले ही मोदी सरकार पर इजरायल-ईरान संघर्ष या इजरायल-हमास युद्ध में पक्ष न लेने का आरोप लगाए, लेकिन पीछे देखें तो यह भारत के लिए सबसे सही फैसला था, है और रहेगा।

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Dibakar Dutta
Dibakar Duttahttps://dibakardutta.in/
Centre-Right. Political analyst. Assistant Editor @Opindia. Reach me at [email protected]

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