आर्थिक तौर पर सबसे मजबूत राज्यों में से एक रहा तेलंगाना अब आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहा है। जिस तेलंगाना के पास हमेशा राजस्व अधिक रहा करता था, वह हजारों करोड़ के राजस्व घाटे में चला गया है। तेलंगाना में कॉन्ग्रेस सरकार आने के बाद आर्थिक कुप्रबन्धन लगातार बढ़ रहा है। राज्य पर कर्ज का बोझ भी बढ़ रहा है। तेलंगाना की रेवंत रेड्डी की सरकार अब रोजमर्रा के काम के लिए भी कर्ज लेने लगी है। कॉन्ग्रेस सरकार के आते ही तेलंगाना भी हिमाचल प्रदेश के रास्ते चल पड़ा है। यह हाल तब है जब कॉन्ग्रेस ने अपने कई चुनावी वादे पूरे नहीं किए हैं।
कर्जे का पहाड़ बढ़ा
भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, तेलंगाना पर 2023 में ₹3 लाख 52 हजार करोड़ कर्ज था। मार्च, 2024 तक यह कर्ज बढ़ कर ₹3 लाख 89 हजार करोड़ हो चुका था। तेलंगाना में कुछ ही महीने में हजारों करोड़ की वृद्धि हुई है। तेलंगाना की कॉन्ग्रेस सरकार नए कर्ज लेने में भी अपने रिकॉर्ड तोड़ रही है। तेलंगाना पर सिर्फ यही कर्ज का बोझ नहीं है, बल्कि उस पर ₹38 हजार करोड़ की अतिरिक्त गारंटियों का भी बोझ है। इनकी भी अदायगी सरकार को करनी है।
तेलंगाना कॉन्ग्रेस राज में किस कदर कर्ज के कुचक्र में फंस गया है, इसका एक बड़ा उदाहरण वित्त वर्ष 2024-25 का ही रिकॉर्ड है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि राज्य सरकार जनवरी, 2025 तक ₹58 हजार करोड़ से अधिक नया कर्ज ले चुकी है। जबकि असल में इसे अप्रैल 2024-मार्च 2025 के बीच कुल ₹49 हजार करोड़ का कर्ज लेना था। यानि साल पूरा होने के तीन महीने के पहले ही उसने लगभग ₹10 हजार करोड़ का अतिरिक्त कर्ज ले लिया। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 पूरा होते-होते राज्य का कर्ज ₹4 लाख करोड़ को पार कर जाएगा।
कहाँ फालतू रहना था पैसा, अब घाटे में गए
तेलंगाना की बिगड़ती आर्थिक हालत का एक और बड़ा परिचायक उसका राजस्व घाटा है। तेलंगाना ने वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में बताया था कि वह ₹297 करोड़ के राजस्व सरप्लस में रहेगा। असलियत यह है कि जनवरी 2025 आते-आते वह ₹26 हजार करोड़ से अधिक के राजस्व घाटे में आ चुका है। तेलंगाना में राजस्व इकट्ठा करने में भी समस्याएं हो रही हैं। राज्य लगातार स्टाम्प, शराब और बाकी जरिए से होने वाली कमाई भी खो रहा है।
सैलरी से ज्यादा ब्याज का खर्च
तेलंगाना पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ा है कि वह अब राज्य के कर्मचारियों की सैलरी से ज्यादा खर्च हर महीने कर्ज का ब्याज देने पर रही है। एक रिपोर्ट बताती है कि राज्य सरकार वर्तमान में ₹5 हजार करोड़ से अधिक पुराने कर्ज के ब्याज देने पर खर्च कर रही है। वह राज्य में अपने कर्मचारियों को ₹3 हजार करोड़ ही सैलरी के रूप में देती है। तेलंगाना की कमाई का लगभग 40% हिस्सा अब कर्ज चुकाने में जाता है। कॉन्ग्रेस सरकार अब राज्य के मालिकाना हक़ वाली कम्पनियाँ भी बेचना चाहती है।
राज्य की विपक्षी पार्टी BRS का आरोप है कि कॉन्ग्रेस सरकार मात्र 12 महीनों में ही ₹1 लाख 27 हजार करोड़ का कर्ज ले चुकी है। वहीं कॉन्ग्रेस अब तक यह कह कर बचती आई है कि वह पिछली सरकार के कर्ज को चुका रही है। हालाँकि, BRS और भाजपा इसे केवल विफलता छुपाने का बहाना बता रही हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा था कि तेलंगाना बनने के दौरान खर्च से अधिक राजस्व वाला राज्य था जबकि अब वह कर्ज लेने के चक्कर में पड़ गया है।
गारंटियों में हो रहा मोटा खर्च
कॉन्ग्रेस ने राज्य में चुनाव जीतने के लिए कई ‘रेवड़ी’ वादे कर दिए थे। अब यही वादे उसके लिए पूरा करना भारी हो रहा है। कॉन्ग्रेस ने राज्य में महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा का वादा तो पूरा किया है। इसमें ₹1300 करोड़ का खर्च हो चुका है। कॉन्ग्रेस ने किसान कर्ज माफ़ी में भी राज्य में लगभग ₹20 हजार करोड़ खर्च कर चुकी है। उसे अब पता चल रहा है कि बाकी योजनाएँ लागू करने के लिए राज्य के पास पैसा नहीं है। कॉन्ग्रेस सरकार अब तक राज्य में महिलाओं को ₹2500 देने वादा पूरा नहीं कर सकी है।
भाजपा-BRS हमलावर
कॉन्ग्रेस सरकार की विफलता पर लगातार भाजपा और BRS हमलावर हैं। BRS का आरोप है कि उनके राज के दौरान तेलंगाना में प्रति व्यक्ति आय तीन गुना हो गई थी और कर्ज भी नियंत्रण में रहा था। BRS ने चुनौती दी है कि कॉन्ग्रेस उससे राज्य के वित्तीय संकट पर बहस करे। BRS का आरोप है कि कॉन्ग्रेस ने कोई वादे भी नहीं पूरे किए हैं। वहीं भाजपा ने कहा है कि कॉन्ग्रेस राज में तेलंगाना आर्थिक रूप से बर्बाद हो चुका है।
तेलंगाना से पहले कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश भी कॉन्ग्रेस राज में आर्थिक संकट में फंस चुके हैं। जहाँ कर्नाटक में SC-ST फंड का पैसा चुनावी गारंटी के लिए लगाया जा रहा है तो वहीं हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री तनख्वाह ना लेने का ऐलान कर रहे हैं। यदि सही आर्थिक कदम ना उठाए गए तो जल्द ही यही स्थिति तेलंगाना में बन सकती है।