Wednesday, April 24, 2024
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जिन अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर BJP ने की कार्रवाई, भूपेश बघेल ने CM बन उनको बचाया: नान घोटाले पर कॉन्ग्रेस ने कभी की थी राजनीति, अब उसमें खुद फँसी छत्तीसगढ़ सरकार

भूपेश बघेल से जो प्रश्न किए गए हैं, वे सिर्फ प्रारंभिक प्रश्न हैं। ऑपइंडिया ने आपको बताया है कि नान घोटाला एक ऐसा मामला है जिसने एक व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इस मामले में हमने देखा किस तरह पुलिस अधिकारियों, आईएएस अधिकारियों, न्यायाधीशों और राजनेताओं के मिली भगत से भ्रष्टाचार के मामले को कमजोर करने और आरोपितों को बचाने की कोशिश हुई।

साल 2015 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री थे। कॉन्ग्रेस ने सरकार पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत खराब क्वालिटी वाले अनाज का वितरण करने का आरोप लगाया था। कॉन्ग्रेस का आरोप था कि इसके लिए अधिकारियों ने राइस मिलर्स से मोटी रिश्वत ली है। छत्तीसगढ़ में नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत खाद्यान्न खरीदकर लोगों को राशन बाँटने का काम करती रही है। कॉन्ग्रेस की तरफ से लगाए गए आरोपों के बाद तात्कालिक भाजपा सरकार ने NAN घोटाले की जाँच शुरू की थी। कुल 27 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया जिसमें अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला मुख्य आरोपित बनाए गए। बाद में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने मामले में मनी लॉन्ड्रिंग की जाँच भी शुरू की और 2015 में चार्जशीट दायर की गई। तब तक छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस सत्ता में आ गई।

छत्तीसगढ़ की सत्ता में आने के बाद भूपेश बघेल सरकार ने भष्टाचार के आरोपितों को बचाने और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को फँसाने के लिए एक अभियान सा छेड़ दिया। NAN घोटाले के मुख्य आरोपित अनिल टुटेजा को बचाने के लिए उन्होंने राज्य के आईपीएस अधिकारियों, न्यायपालिका और सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों समेत अन्य साधनों का इस्तेमाल किया। उद्देश्य पूर्ति के लिए सबूतों के साथ छेड़-छाड़ की कोशिश हुई, गवाहों पर दबाव बनाया गया।

फरवरी 2020 में आयकर विभाग द्वारा छापेमारी के दौरान आईपीएस अनिल टुटेजा और उनके बेटे यश टुटेजा के फोन जब्त कर लिए गए थे। इसके बाद विभाग के अधिकारियों को व्हाट्सएप पर अनिल टुटेजा और यश टुटेजा के दूसरे अधिकारियों के साथ बातचीत की जानकारी मिली थी। ऑपइंडिया के पास भी यह एक्सक्लूसिव व्हाट्सएप उपलब्ध है। व्हाट्सएप चैट से यह साफ हो गया है कि अनिल टुटेजा और उनके बेटे यश टुटेजा ने कैसे आईपीएस अधिकारियों को अपने इशारों पर नचाया और किस तरह राज्य में आपराधिक न्याय प्रणाली का जमकर दुरुपयोग किया गया। ऑपइंडिया द्वारा इस पर विस्तृत लेख प्रकाशित किया गया था। जिसे आप हिंदीअंग्रेजी में पढ़ सकते हैं।

व्हाट्सएप चैट से यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे राज्य के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी NAN घोटाले के मुख्य अभियुक्तों के सहायक बनकर रह गए हैं। चैट से पता चलता है कि राज्य के अधिकारी, आरोपित टुटेजा के साथ मिलकर उनके केस को कमजोर करने और उनके विरोधियों पर मुकदमा दर्ज कराने की साजिश रच रहे थे। ऑपइंडिया को प्राप्त व्हाट्सएप चैट के अध्ययन से यह भी साबित हो रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की शह पर अनिल टुटेजा जो खुद मामले का मुख्य आरोपित है किस तरह आईपीएस अधिकारियों के स्थानांतरण और पदोन्नति का काम देख रहे थे। जो अधिकारी इनकी बात नहीं सुनते उन्हें दंडात्मक पोस्टिंग दी जाती। कुछ पर तो झूठे मुकदमे तक लाद दिए गए। शासन तंत्र का इस्तेमाल कर गवाहों को धमकाया गया। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, उनकी पत्नी वीणा सिंह और उनके परिजनों को फँसाने के लिए सबूत गढ़े गए।

गौरतलब है कि अप्रैल 2017 में भूपेश बघेल और उस वक्त छत्तीसगढ़ विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे टीएस सिंहदेव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर NAN घोटाले के मुख्य आरोपित आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी। लिखे गए पत्र में आरोप लगाया गया था कि मोदी सरकार जानबूझकर अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के खिलाफ मुकदमा नहीं चला रही है क्योंकि यदि मुकदमा चलाया गया तो वे घोटाले में डॉ रमन सिंह की संलिप्तता उजागर कर सकते हैं।

NAN घोटाले के मुख्य आरोपित अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को लेकर भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी गई चिट्ठी

भूपेश बघेल और सिंहदेव के पत्र का विषय इस प्रकार था, “भ्रष्टाचार में लिप्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों के खिलाफ उचित जाँच न कराए जाने के संबंध में।” खत में प्रधानमंत्री के ‘ना खाऊँगा ना खाने दूँगा’ के नारे की ओर इशारा करते हुए लिखा गया कि प्रधानमंत्री से उम्मीद है कि वे अपने नारे पर कायम रहेंगे और भ्रष्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे।

नान (NAN) घोटाला मामले से जुड़े एफआईआर में नाम दर्ज होने के बाद भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 2 अधिकारियों को न तो गिरफ्तार किया गया है और न ही उनके आवास पर कोई छापेमारी ही की गई है। घोटाले में दोनों आईएएस अधिकारियों की मुख्य भूमिका नजर आ रही है। आश्चर्य की बात है कि डीओपीटी (DOPT) द्वारा जुलाई 2016 में दोनों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी जा चुकी है। इन सब के बावजूद उनकी गिरफ्तारी और उनके आवासों पर छापेमारी छोड़िए, अदालत में उनके खिलाफ आरोप पत्र तक दायर नहीं किया गया है। पत्र में जिन दो आईएएस अधिकारियों का जिक्र किया गया था, वे आईएएस अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला हैं। दोनों मामले के मुख्य आरोपित हैं। गौरतलब है कि घोटाले के समय 2003 बैच के आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा (NAN) के प्रबंध निदेशक (MD) थे।

बघेल द्वारा लिखे पत्र में कहा गया था कि टुटेजा और शुक्ला पर मुकदमा न चलाकर सरकार अपने मुख्यमंत्री (डॉ. रमन सिंह) और घोटाले में शामिल नेताओं को बचाने की कोशिश कर रही है। कहा गया कि सरकार को डर है कि दोनों वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी जाँच में भाजपा के मुख्यमंत्री/मंत्री का नाम ले सकते हैं। इसलिए, उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास किया जा रहा है। पत्र में कहा गया है कि जाँच भले ही सीबीआई/ईडी को सौंपी गई है लेकिन आम धारणा यह है कि इन एजेंसियों द्वारा जाँच किए जाने के बाद अक्सर भाजपा नेता बच जाते हैं।

कॉन्ग्रेस नेताओं द्वारा लिखे पत्र में आगे पीएम मोदी से निवेदन किया गया है कि वे सीबीआई और ईडी को आरोपित अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर चार्जशीट फाइल करने की हिदायत दें। जरूरत पड़े तो आईएएस अधिकारियों के परिसरों में छापेमारी करे। दोषी अधिकारियों और भाजपा के बड़े नेताओं पर कार्रवाई करें।

नान घोटाले की विस्तृत समयरेखा

फरवरी 2015 में NAN कार्यालयों पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की छापेमारी के बाद खाद्यान्न वितरण में धाँधली (Food distribution fraud) सामने आई थी। उस समय राज्य में भाजपा के डॉ. रमन सिंह की सरकार थी। अनिल टुटेजा नान के एमडी थे और आलोक शुक्ला नान के विभाग सचिव (Department secretary) छापे के दौरान 3.65 करोड़ रुपए की बेहिसाब नकदी जब्त की गई थी। रमन सिंह सरकार द्वारा अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला समेत 27 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गई। अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को निलंबित कर दिया गया।

साल 2015 में दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक नान के प्रबंधक शिव शंकर भट्ट जो एमडी अनिल टुटेजा के करीबी थे और गिरीश शर्मा, जो एमडी के पीए के रूप में कार्यरत थे, के द्वारा काले धन का वितरण हुआ। आपको बता दें गिरीश शर्मा ने साल 1987 में नागरिक आपूर्ति निगम कार्यालय भोपाल में बतौर स्टेनो टायपिस्ट पद ग्रहण किया था। इसके बाद उनकी पदोन्नति होती गई और वे पीए टू एमडी के पद तक पहुँचे। एफआईआर में गलत तरीके से कमाए गए पैसों के लेन-देन संबंधी पूरी जानकारी दी गई है। दर्ज की गई प्रारंभिक प्राथमिकी में अनिल टुटेजा का नाम विशेष रूप से शामिल था।

18 फरवरी, 2015 को गिरीश शर्मा का बयान लिया गया। उन्होंने कहा कि राइस मिलर्स को नियमित रूप से परेशान किया जाता था और इसलिए मिल मालिक अवैध रूप से रुपए देने के लिए तैयार हो गए। वसूली गई राशि अधिकारियों के बीच निश्चित अनुपात में बाँटी जाती थी। उन्होंने कहा कि अनिल टुटेजा के निर्देशानुसार आलोक शुक्ला को अध्यक्ष का हिस्सा मिलता था।

6 मई, 2015 को आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा चार्जशीट दायर की गई जिसमें अनिल टुटेजा के खिलाफ भूमिका बनाई गई थी हालाँकि तब तक उन्हें आरोपित नहीं बनाया गया था क्योंकि उन्हें सरकार से मुकदमा चलाने की मंजूरी लेनी थी। पहले (2015) में राज्य सरकार और फिर वर्ष 2016 में केंद्र सरकार ने अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी।

नवंबर 2018 में एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की गई थी जिसमें अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को NAN घोटाले में मुख्य आरोपित के रूप में नामित किया गया था। ध्यान रहे जब अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला मुख्य आरोपित बनाए गए उस वक्त केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार थी।

दिसंबर 2018 में कॉन्ग्रेस के सत्ता में आने के बाद भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। तभी से, मामले को कमजोर कर नया मोड़ देने की कोशिश शुरू हो गई। मुख्य आरोपितों के बचाए जाने और रमन सिंह, उनकी पत्नी, मुकेश गुप्ता समेत कई लोगों को मामले में घसीटने की कोशिश होने लगी।

वर्ष 2019 में, ईडी ने एक एनफोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (ECIR) दायर की जिसमें अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को मनी लॉन्ड्रिंग के लिए प्रथम दृष्टया उत्तरदायी बताया गया। दिलचस्प बात यह है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता में आने के कुछ दिनों बाद 3 जनवरी 2019 को, भूपेश बघेल ने नान घोटाले की जाँच के लिए एक एसआईटी का गठन किया। तब तक EOW-ACB ने मामले में चार्जशीट दायर कर दी थी। उनकी चार्जशीट में और टुटेजा और शुक्ला का नाम मुख्य अभियुक्त थे। एसआईटी के गठन के बाद, EOW के जाँच अधिकारी संजय देवस्थले को निलंबित कर दिया गया। हालाँकि बाद में भूपेश बघेल की हाँ में हाँ मिलाने के लिए मजबूर किए जाने के बाद उन्हें दोबारा बहाल कर दिया गया। इसकी विस्तृत चर्चा हम बाद की रिपोर्टों में करेंगे।

अप्रैल 2019 में अनिल टुटेजा को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मिली। साल 2020 में अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला दोनों को ईडी (मनी लॉन्ड्रिंग) मामले में जमानत मिल गई। जमानत मिलने के बाद भूपेश बघेल सरकार ने दोनों मुख्य आरोपितों को फिर से बहाल कर दिया। टुटेजा को वाणिज्य और उद्योग विभाग के संयुक्त सचिव (Joint Secretary for Commerce and Industries) और आलोक शुक्ला को शिक्षा और अन्य विभागों का प्रभारी प्रधान सचिव (Principal Secretary in charge of Education and other departments) बना दिया गया।

निलंबित आईपीएस अधिकारी जीपी सिंह ने 22 दिसंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जानकारी दी कि किस तरह उनपर टुटेजा को बचाने और रमन सिंह को को फँसाने के लिए दबाव बनाया गया। ऑपइंडिया के पास उपलब्ध याचिका में जानकारी मिलती है कि जीपी सिंह को भूपेश बघेल ने 2 बार मिलने के लिए बुलाया था। 14 सितंबर, 2019 को उन्हें रात के अंधेरे में मुख्यमंत्री (भूपेश बघेल) के आवास पर बुलाया गया था। इस दौरान उन्हें रमन सिंह को फँसाने के निर्देश दिए गए।

इतना ही नहीं, जीपी सिंह और सीएम बघेल के बीच आधी रात को हुई बैठक के खत्म होने से पहले जीपी सिंह से NAN घोटाले के मुख्य आरोपित अनिल टुटेजा को जाँच में हुई प्रगति के बारे में सूचित करने के लिए कहा गया था। इसके बाद भी टुटेजा ने जाँच के अपडेट्स और दूसरे कार्यों के लिए उनसे संपर्क किया। टुटेजा ने भी इस बात पर जोर दिया कि तात्कालीन सीएम रमन सिंह और भाजपा सरकार के पदाधिकारियों को NAN घोटाले में फँसाया जाना चाहिए।

जीपी सिंह की याचिका के मुताबिक 10 मई, 2020 को उन्हें सीएम भूपेश बघेल के साथ एक निजी बैठक के लिए फिर से बुलाया गया। इस बैठक के दौरान उन्हें एक बार फिर भाजपा नेता रमन सिंह और उनकी पत्नी को NAN घोटाले में फँसाने के निर्देश दिए गए।

इस दौरान कई चैट और खुलासे हुए जो कोर्ट के सामने लाए गए। 18 नवंबर, 2021 की टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक आईटी विभाग द्वारा जब्त व्हाट्सएप संदेशों और बातचीत से चौंकाने वाला खुलासा हुआ। इस दौरान पता चला कि घोटाले के दोनों मुख्य आरोपित (टुटेजा और शुक्ला) अभियोजन एजेंसी EOW, ACB, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में वरिष्ठ कानून अधिकारी मिलीभगत कर रहे थे। एसआईटी के सदस्यों और मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप द्वारा एसआईटी से अनुकूल रिपोर्ट प्राप्त की गई। इधर गवाहों को धमका कर भ्रष्टाचार के केस को कमजोर कर दिया गया। केस को प्रभावित करने के लिए सत्ता का दुरुपयोग हुआ। सबूतों के साथ छेड़-छाड़ किया गया और गवाहों को प्रभावित करने के लिए साजिश रची गई जिसमें संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारी भी शामिल हैं।

इसके अलावा, 19 अक्टूबर 2022 को छत्तीसगढ़ के नान घोटाला मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक सनसनीखेज दावा किया गया। सुप्रीम कोर्ट में ईडी ने दावा किया कि मुख्य आरोपितों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला की राज्य सरकार के बड़े अधिकारियों के साथ मिली भगत है। जो उन्हें बचाने की कोशिश में लगे हैं। ईडी ने मामले को राज्य से बाहर ट्रांसफर करने की अपील की थी। इस दौरान कोर्ट को जानकारी दी गई कि अनिल टुटेजा को जमानत मिलने से पहले, भूपेश बघेल ने खुद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से मुलाकात की थी और मुख्य आरोपित को जमानत देने के फैसले को प्रभावित किया गया।

ऑपइंडिया को प्राप्त व्हाट्सएप चैट के अध्ययन के बाद इनमें से अधिकांश आरोप प्रथम दृष्टया सही साबित हो रहे हैं। वर्ष 2019-2020 के दौरान छत्तीसगढ़ के बड़े पुलिस अधिकारियों जैसे एसआरपी कल्लूरी, कल्याण एलेसेला, जीपी सिंह और आरिफ शेख नियमित रूप से मुख्य आरोपित अनिल टुटेजा और उनके बेटे यश टुटेजा के संपर्क में पाए गए। इस दौरान न सिर्फ टुटेजा को बचाने की साजिश रची गई बल्कि रमन सिंह उनके परिवार के लोगों, पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह, उनकी पत्नी यास्मीन सिंह, पूर्व डीजी मुकेश गुप्ता, अशोक चतुर्वेदी और चिंतामणि चंद्राकर जैसे अधिकारियों को केस में जबरन फँसाने का षड्यंत्र भी रचा गया।

नान घोटाले से जुड़े कुछ सवाल जिनके जवाब भूपेश बघेल को देने चाहिए

उपरोक्त तथ्यों, ऑपइंडिया द्वारा प्राप्त चैट और जारी किए गए दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए, कॉन्ग्रेस के नेताओं खासकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से साल 2017 में प्रधानमंत्री मोदी को लिखे उनके खत के लिए कुछ सवालों के जवाब तो देने ही चाहिए।

  1. साल 2015 में जब घोटाला सामने आया और भाजपा सरकार द्वारा कार्रवाई की गई उस दौरान कॉन्ग्रेस नेताओं ने रमन सिंह सरकार के खिलाफ यह दावा करते हुए कड़ा प्रहार किया कि वह सीधे तौर पर NAN घोटाले में शामिल हैं। क्या उस वक्त कॉन्ग्रेस आलाकमान को भूपेश बघेल की अनिल टुटेजा, यश टुटेजा और आलोक शुक्ला से नजदीकी की जानकारी थी?
  2. वर्ष 2017 में भूपेश बघेल ने प्रधान मंत्री मोदी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री को उनके भ्रष्टाचार विरोधी नारे के प्रति ईमानदार होने और मामले में मुख्य आरोपित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था। इसका अर्थ तो यही हुआ कि भूपेश बघेल जानते हैं कि टुटेजा और शुक्ला घोटाले में शामिल हैं। अगर ऐसा है तो भूपेश बघेल ने कोर्ट से जमानत मिलते ही टुटेजा और शुक्ला को दोबारा बहाल क्यों किया?
  3. यह देखते हुए कि मुख्य आरोपितों को अब खुद बघेल संरक्षण दे रहे हैं, क्या यह मान लेना उचित होगा कि भूपेश आरोपितों के भ्रष्टाचार को माफ कर रहे हैं या यह माना जाए कि बघेल खुद किसी न किसी रूप में घोटाले में शामिल थे?
  4. 2017 में प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में भूपेश बघेल ने आरोप लगाया था कि बीजेपी सरकार टुटेजा और शुक्ला को बचाने की कोशिश कर रही है क्योंकि अगर उन पर मुकदमा चला तो घोटाले में बीजेपी के बड़े नेताओं के नाम सामने आएँगे। लेकिन जब बघेल की सरकार राज्य में बनी तो उन्होंने न सिर्फ मुख्य आरोपितों को बहाल कर दिया बल्कि उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो क्या यह माना जाए कि बघेल घोटाले में शामिल कॉन्ग्रेस के बड़े नेताओं के नाम बाहर आने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं?
  5. इतिहास गवाह है ज्यादातर मामलों में 2 ही कारण होते हैं जब राजनेता नौकरशाहों को बचाने की कोशिश करते हैं। या तो नेता खुद भ्रष्टाचारी हों या नौकरशाहों के पास नेताओं के काले कारनामों का कोई राज हो। यदि ऐसा है तो भूपेश बघेल स्पष्ट करें कि कौन सा परिदृश्य उनके मामले में सही है?
  6. अगर भूपेश बघेल आरोपितों अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को सजा दिलाना चाहते थे तो सरकार बनते ही उन्होंने मामले में एसआईटी का गठन क्यों किया जबकि मामले की जाँच EOW और ACB जैसी संस्थाएँ कर रही थीं? EOW और ACB दोनों आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट तक फाइल कर चुकी थी। क्या एसआईटी गठन करने का उद्देश्य EOW और ACB की जाँच को प्रभावित कर दोनों आरोपितों को बचाना था?
  7. भूपेश बघेल ने जीपी सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। जीपी सिंह ने दिसंबर 2022 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि भूपेश बघेल ने उन्हें दो बार व्यक्तिगत रूप से बुलाया था। पहली मुलाकात में ही उन्हें उन लोगों की हिटलिस्ट दी गई थी, जिन्हें नान घोटाले में फँसाया जाना था। हिटलिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके परिवार के सदस्यों, पूर्व प्रधान सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी यास्मीन सिंह, पूर्व डीजी (पुलिस) मुकेश गुप्ता, अशोक चतुर्वेदी और चिंतामणि चंद्राकर के नाम थे। उनका कहना है कि उन्हें धमकी भी दी गई थी कि अगर उन्होंने इन लोगों को नहीं फँसाया तो वह मुश्किल में पड़ जाएँगे। भूपेश बघेल को इन दो कथित मुलाकातों और व्यक्तिगत रूप से जीपी सिंह को दी गई हिटलिस्ट के बारे में अपनी चुप्पी तोड़ने की जरूरत है।
  8. भूपेश बघेल द्वारा एसआईटी गठित करने के बाद अगले ही दिन संजय देवस्थले को अनौपचारिक रूप से निलंबित कर दिया गया था। संजय EOW के जाँच अधिकारी थे। क्या बघेल द्वारा संरक्षण प्रप्त आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने के उनके दुस्साहस के लिए उन्हें निलंबित कर दिया गया था? बाद में उन्हें बिना किसी कारण के बहाल कर दिया गया। उन्हें क्या करने के लिए मजबूर किया गया ? क्या हुआ कोई समझौता हुआ? क्या उन्हें रमन सिंह और अन्य लोगों को फँसाने के लिए कहा गया ? क्या उन्हें टुटेजा और शुक्ला को बचाने के लिए कहा गया ?
  9. भूपेश बघेल ने जीपी सिंह को अनिल टुटेजा को रिपोर्ट करने और व्यक्तिगत रूप से नान घोटाले की जाँच के संबंध में अपडेट्स देने के लिए क्यों कहा गया?
  10. क्या भूपेश बघेल यह जानते थे कि जीपी सिंह, अनिल टुटेजा के लिए हवाला ऑपरेटर का काम कर रहे थे? क्या भूपेश बघेल के कहने पर जीपी सिंह ऐसा कर रहे थे? क्या बघेल ने उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया था ठीक उसी तरह जिस तरह उन्हें नान जाँच से जुड़ी जानकारी देने के लिए कहा गया था?
  11. कैसे और क्यों अनिल टुटेजा और उनके बेटे यश टुटेजा के पास छत्तीसगढ़ राज्य में इतनी अतिरिक्त संवैधानिक शक्तियाँ मिल गईं कि वे तबादलों, पोस्टिंग, निलंबन को प्रभावित कर रहे थे। कैसे एक मामले का मुख्य आरोपित होते हुए वे खुद अपना स्टेटस रिपोर्ट भी लिखवा रहे थे ?
  12. भूपेश बघेल किस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से मिले थे, जिसके बाद अनिल टुटेजा और शुक्ला को जमानत मिली थी?

नान घोटाला बहुत बड़ा घोटाला है। उससे भी बड़ी बात यह है कि बघेल सरकार न केवल मुख्य अभियुक्तों को बचाने की कोशिश कर रही है बल्कि रमन सिंह और अन्य को घोटाले में फँसाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही है। भूपेश बघेल से फिलहाल जो प्रश्न किए गए हैं, वे सिर्फ प्रारंभिक प्रश्न हैं। जैसा कि ऑपइंडिया पहले भी कह चुका है कि नान घोटाला एक ऐसा मामला है जिसने एक व्यवस्था को बहुत नुकसान पहुँचाया है। इस मामले में हमने देखा किस तरह पुलिस अधिकारियों, आईएएस अधिकारियों, न्यायाधीशों और राजनेताओं के मिली भगत से भ्रष्टाचार के मामले को कमजोर करने और आरोपितों को बचाने की कोशिश हुई। आरोपितों को बचाने और अपने राजनीतिक विरोधियों को फँसाने के लिए सबूतों को प्रभावित करने, गवाहों को धमकी दे कर स्टेटमेंट बदलने के लिए मजबूर करने, अधिकारियों को दंडात्मक पोस्टिंग के नाम पर डराने की कोशिश हुई। मिली भगत से हवाला लेन-देन को जारी रखे जाने समेत और भी बहुत कुछ अंजाम दिया गया। जैसे-जैसे हम इस घोटाले की परतें उधेड़ते जाएँगे और ऑपइंडिया को प्राप्त व्हाट्सएप चैट का और गहन अध्ययन करेंगे वैसे-वैसे हम अपनी ‘द छत्तीसगढ़ फाइल्स’ सीरीज में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से फॉलो-अप प्रश्न पूछते रहेंगे।

नोट: नुपूर शर्मा की यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई है। इसे आप इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। इसका अनुवाद राजन झा ने किया है।

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Nupur J Sharma
Nupur J Sharma
Editor-in-Chief, OpIndia.

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