उत्तरपूर्व का राज्य बीते कई दशकों से अवैध घुसपैठ का दंश झेलता रहा है। यह घुसपैठ पिछले डेढ़ वर्षो में तेजी से बढ़ी है। घुसपैठ करने वाले रोहिंग्या मुस्लिम और बांग्लादेशी नागरिक हैं जो भारत और बांग्लादेश के बीच कई जगह पर खुली सीमा का फायदा यह घुसपैठिए उठाते हैं।
अगस्त, 2024 में बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद से यह स्थिति और भी बिगड़ी है। इस्लामी हिंसा के बाद बांग्लादेश की सत्ता पर कब्जा जमाने वाले ‘मुख्य सलाहकार’ मोहम्मद यूनुस की देखरेख में अब वहाँ इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल रहा है। इस बीच बांग्लादेश के हालात खराब हो रहे हैं, इसके चलते बड़ी संख्या में घुसपैठिए भारत आते हैं।
लेकिन इस बीच त्रिपुरा में घुसपैठियों पर लगातार एक्शन चल रहा है। त्रिपुरा पुलिस की ओर से साझा किए गए एक डाटा के अनुसार, 1 जनवरी 2024 से 28 फरवरी 2025 के बीच त्रिपुरा में 816 बांग्लादेशी और 79 रोहिंग्या मुस्लिम अवैध रूप से भारत में प्रवेश करते हुए पकड़े गए।
त्रिपुरा पुलिस ने बताया कि अगस्त, 2025 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद 483 अवैध घुसपैठिए त्रिपुरा में घुसे। इसके अलावा त्रिपुरा के अगरतला और बाकी रेलवे स्टेशन पर बड़ी संख्या में बांगलादेशी घुसपैठिए देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए जाने की तैयारी करते हुए गिरफ्तार हुए हैं।
इन सब संकेतों से है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए और रोहिंग्या हमारे देश में आने के लिए त्रिपुरा को अपना एंट्री पॉइंट बना रहे हैं और फिर यहाँ से बड़े मेट्रोपोलिटन शहरों में पहुँच रहे हैं। त्रिपुरा में घुसने के बाद इनका अगला लक्ष्य पुणे, दिल्ली, मुंबई और सूरत जैसे शहरों को जाना होता है।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की ओर से प्रकाशित हुई एक रिसर्च रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई जिसमें अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के देश की राजधानी दिल्ली में भी सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पर अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में रोहिंग्या घुसपैठियों और अवैध बांग्लादेशियों के रहने की जगहों पर भी रिपोर्ट तैयार की गई है।

इस सूची में त्रिपुरा तीसरे स्थान पर है, जिसमें बताया गया है कि 8.7 प्रतिशत घुसपैठिये दिल्ली तक पहुँचने के लिए इस पूर्वोत्तर राज्य का इस्तेमाल करते हैं। 2016 के अनुमान के अनुसार, भारत में दो करोड़ से भी अधिक बांग्लादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं।
त्रिपुरा ने घुसपैठियों को पकड़ने के लिए बनाई MTF
त्रिपुरा में अवैध घुसपैठियों को पकड़ने के लिए एक विशेष ‘मोबाइल टास्क फोर्स’ (एमटीएफ) बनाई गई है। इसे पहली बार 1970 में बनाया गया था। तब यह हर जिले के एसपी की निगरानी में बनाई गई थी। 5 वर्ष बाद, 1975 में ‘मोबाइल टास्क फोर्स’ को एक अलग यूनिट के तौर पर घुसपैठियों को गिरफ्तार करने के लिए स्थापित किया गया।
मोबाइल टास्क फोर्स के उद्देश्य है-
- घुसपैठियों की पहचान करना।
- अवैध घुसपैठियों पर मुकदमे दायर करना।
- भारत में आए बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजना।
- प्रत्येक व्यक्ति की नागरिकता के बारे में जाँच करना।
- संदिग्ध नागरिकता का सर्टिफिकेट लिए लोगों के बारे में जाँच करना।
- देश के अंदर किसी भी तरह की मजहबी कट्टरवाद या देश- विरोधी गतिविधियों में बांग्लादेशियो की मौजूदगी की जाँच करना।
- सीमा पार होने वाले अपराधों की जानकारी एकत्र करना।
‘मोबाइल टास्क फोर्स’ का संचालन त्रिपुरा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), केंद्रीय गृह मंत्रालय और त्रिपुरा के गृह एवं राजनीतिक विभाग से मिले निर्देशों के आधार पर किया जाता है। इस बात पर गौर करना जरूरी है कि असम समझौते के अनुसार, 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेशी जो अवैध रूप से भारत में आए हैं उन्हें ‘घुसपैठिया’ माना जाता है।
अवैध घुसपैठियों के त्रिपुरा में पकड़े जाने के बाद क्या होता है
त्रिपुरा में अवैध घुसपैठियों को पकड़ने के लिए मोबाइल टास्क फोर्स के अलावा बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) और राज्य पुलिस के पास भी शक्तियाँ और मंजूरी है। BSF के एक सूत्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, त्रिपुरा में अगर BSF किसी अवैध प्रवासी को पकड़ती है तो वह उसे स्थानीय पुलिस को सौंप देती है।
इसके बाद आरोपित के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की जाती है। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) यह कहता है कि घुसपैठियों को पुलिस के हवाले किया जाए। त्रिपुरा पुलिस उन अवैध घुसपैठियों को 1920 के भारत में प्रवेश के अधिनियम की धारा 4 के तहत गिरफ्तार कर सकती है।
भारत में अवैध रूप से घुसने के आरोपित पर 2025 के इमीग्रेशन और विदेशी अधिनियम, जिसे पहले फॉरेनर्स एक्ट 1946 के तौर पर जाना जाता था, के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। यहाँ पर ये बताना जरूरी है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में अवैध घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की शक्तियाँ दी हैं।
लेकिन असम की तरह त्रिपुरा में अवैध बांग्लादेशियों के लिए अब तक कोई स्थायी हिरासत केंद्र (डिटेंशन सेंटर) नहीं बने हैं। न ही वहाँ पर कोई सुव्यवस्थित विदेशी न्यायाधिकरण प्रणाली है। ऐसे में अगर कोई घुसपैठिया पकड़ा जाता है तो उसे स्थानीय कोर्ट में पेश किया जाता है। मुकदमे के दौरान आरोपित को जेल में रखा जाता है।
ऑपइंडिया ने त्रिपुरा के एक पुलिस के एक उच्च अधिकारी से बात की। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया के विषय में हमें बताया। उन्होंने बताया कि स्थानीय कोर्ट अवैध प्रवासियों द्वारा किए गए अपराधों की गंभीरता के आधार पर जुर्माना और कैद की सजा सुनाती है। घुसपैठिए इसके बाद जेल में उस सजा को काटते हैं और सजा पूरी होने तक वहीं रहते हैं।
सजा पूरी करने के बाद बांग्लादेशी घुसपैठियों को आवश्यक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) के आधार पर उनके देश वापस भेज दिया जाता है। इसके तहत उन्हें सीमा पर तैनात बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (BGB) के हवाले किया जाता है।
पुलिस अधिकारी ने यह भी बताया कि अगर घुसपैठिए के पास उन्हें बांग्लादेशी साबित करने के जरूरी दस्तावेज नहीं होते हैं तो उनको वापस भेजना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में, BGB भी इस तरह के व्यक्ति को स्वीकार करने से मना कर देती है।
इस तरह के घुसपैठियों के लिए जब तक बांग्लादेशी अधिकारियों के साथ पूरा मामला नहीं सुलझता, तब तक उन्हें अस्थायी डिटेंशन सेंटर्स में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

एक समस्या यह भी है कि भारत और बांग्लादेश के बीच भारत में घुसने वाले अवैध प्रवासियों को वापस भेजने के लिए कोई संधि या समझौता नहीं हुआ है। समझौता न होने की वजह से ही कम संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिया वापस भेजे जा सके हैं। हालाँकि, इसके बावजूद त्रिपुरा ने 2022 से 31 अक्टूबर 2024 के बीच 1746 बांग्लादेशियों को डिपोर्ट किया है।
त्रिपुरा, बांग्लादेश के साथ तीन दिशाओं से 856 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। इस सीमा में कई ऐसे भी हिस्से हैं जहाँ पर अब तक स्थानीय मसलों के कारण सीमा (बाड़) नहीं बनाई जा सकी है। ऐसे में अवैध प्रवासी, जो भारत के लिए एक खतरा हैं वह पकड़े जाने के डर के बिना त्रिपुरा को ही भारत में आने का जरिया बना रहे हैं।