Wednesday, May 28, 2025
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बांग्लादेश में हिंदुओं के घर मुस्लिमों ने फूँके- मोहम्मद यूनुस ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट को माना सत्य, पर वामपंथी मीडिया को ‘मसाला’ देने के फेर में खुद बन गए मजाक

तारिकुल की हत्या की बात आई, तो यूनुस ने हत्यारों को 'हिंदू ग्रामीण' कहा, लेकिन जब हिंदू घरों को जलाने की बारी आई, तो हमलावर सिर्फ 'गुस्साए ग्रामीण' बन गए। यह साफ दिखाता है कि यूनुस का मकसद हिंदुओं को बदनाम करना और मुस्लिम भीड़ को बचाना है।

बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की खबरें लगातार सामने आ रही हैं, खासकर जब से 5 अगस्त 2024 को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटाया गया। इस बीच मुहम्मद यूनुस की सरकार न सिर्फ इन हमलों को नजरअंदाज कर रही है, बल्कि इन्हें छिपाने और झूठा ठहराने की कोशिश भी कर रही है।

यूनुस ने हाल ही में ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट को निशाना बनाया, जिसमें जेसोर जिले के दहार मसिहती गाँव में हिंदू घरों को मुस्लिम भीड़ द्वारा जलाए जाने की बात कही गई थी। लेकिन यूनुस ने इस घटना को सांप्रदायिक हिंसा मानने से इनकार कर दिया और इसे महज ‘बिजनेस विवाद’ करार दिया।

क्या है पूरा घटनाक्रम, क्यों देनी पड़ रही सफाई

ऑपइंडिया ने अपनी रिपोर्ट (बांग्लादेश में हिंदुओं पर फिर टूटा मुस्लिम भीड़ का कहर, घरों में लगाई आग-मचाई लूटमार: इस बार लोकल नेता की मौत को बनाया हिंसा का बहाना) में बांग्लादेशी अखबार प्रोथोम आलो के हवाले से बताया कि 22 मई को दहार मसिहती गाँव में एक मछली पालन के लिए जमीन के विवाद को लेकर बीएनपी की किसान शाखा के नेता तारिकुल इस्लाम की हत्या हो गई। इसके बाद मुस्लिम भीड़ ने बदले की कार्रवाई में गाँव के 20 से ज्यादा हिंदू घरों को आग के हवाले कर दिया। दो दुकानें जला दी गईं और चार अन्य को तोड़-फोड़ दिया गया। इस हमले में 10 से ज्यादा लोग घायल हुए।

प्रोथोम आलो के पत्रकार ने बताया कि गाँव के हर हिंदू घर को जलाकर राख कर दिया गया। छह वाहन, पाँच बाइक और एक वैन भी नष्ट कर दी गई। हमलावरों ने एक 25 साल के हिंदू युवक सागर बिस्वास को अगवा कर लिया, जिसे बाद में छुड़ाया गया। पीड़ितों ने बताया कि पहले 4-5 लोगों ने हमला किया, फिर 150 से ज्यादा लोग शामिल हो गए और घरों को लूटकर, तोड़-फोड़ कर आग लगा दी।

झूठ बोलकर इस्लामी कट्टरपंथियों का बचाव कर रहे यूनुस

यूनुस ने इस घटना को सांप्रदायिक हिंसा मानने से साफ इनकार किया। उन्होंने बीबीसी और डीडब्ल्यू जैसे वामपंथी मीडिया के हवाले से दावा किया कि यह कोई सांप्रदायिक मामला नहीं, बल्कि तारिकुल की हत्या के बाद ‘गुस्साए ग्रामीणों’ की प्रतिक्रिया थी।

हैरानी वाली बात यह है कि जब तारिकुल की हत्या की बात आई, तो यूनुस ने हत्यारों को ‘हिंदू ग्रामीण’ कहा, लेकिन जब हिंदू घरों को जलाने की बारी आई, तो हमलावर सिर्फ ‘गुस्साए ग्रामीण’ बन गए। यह साफ दिखाता है कि यूनुस का मकसद हिंदुओं को बदनाम करना और मुस्लिम भीड़ को बचाना है।

यूनुस ने ऑपइंडिया की रिपोर्ट पर हमला बोला, जिसमें लिखा था, “मुस्लिम भीड़ ने स्थानीय नेता की मौत के बाद हिंदू घरों को आग लगाई, यूनुस के राज में अराजकता जारी।” यूनुस ने इस खबर को गलत ठहराने की कोशिश की, लेकिन ऑपइंडिया की रिपोर्ट में कोई गलती नहीं थी।

यह पूरी तरह प्रोथोम आलो की खबर पर आधारित थी, जिसमें तथ्य साफ थे। यूनुस ने न तो इस रिपोर्ट के तथ्यों को गलत ठहराया, न ही कोई ठोस सबूत दिया। उनकी पूरी कोशिश थी कि ऑपइंडिया और अन्य भारतीय मीडिया, जो हिंदुओं पर हमलों की सच्चाई उजागर कर रहे हैं, उन्हें बदनाम किया जाए।

वामपंथी मीडिया की आड़ में सच्चाई छिपाने की कोशिश

यूनुस ने बीबीसी और डीडब्ल्यू जैसे वामपंथी मीडिया का सहारा लिया, जो हमेशा से हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को कम करके दिखाते हैं। ये मीडिया हाउस ‘फैक्ट-चेक’ के नाम पर सच्चाई को दबाने की कोशिश करते हैं।

इनका पुराना तरीका है- पहले हिंसा को पूरी तरह नकारो, अगर वह न चले तो उसे ‘राजनीतिक विवाद’ बताकर कमजोर कर दो। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले साफ तौर पर सांप्रदायिक हैं, लेकिन यूनुस और उनके वामपंथी मीडिया सहयोगी इसे ‘बिजनेस विवाद’ या ‘राजनीतिक तनाव’ बताकर सच को छिपा रहे हैं।

ऐसा ही इतिहास में हुआ है। जैसे औरंगजेब के मंदिर तोड़ने को कुछ इतिहासकार ‘राजनीतिक कदम’ बताते हैं, न कि धार्मिक असहिष्णुता। कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार को भी ‘राजनीतिक समस्या’ कहा जाता है, जबकि आतंकवादी खुलेआम इसे धार्मिक जंग कहते हैं। बांग्लादेश में भी यही हो रहा है। यूनुस और उनके समर्थक मीडिया हिंदुओं पर हमलों को झूठा या बढ़ा-चढ़ाकर बताया हुआ कहकर बच रहे हैं।

यूनुस की नाकामी और इस्तीफे की खबरें

यूनुस न सिर्फ हिंदुओं पर हमलों को छिपा रहे हैं, बल्कि उनकी सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। उनकी अंतरिम सरकार न तो ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ चुनाव करा पाई है, न ही देश में अमन-चैन ला पाई है। अब खबरें हैं कि बढ़ते असंतोष के बीच यूनुस इस्तीफा दे सकते हैं।

सूत्रों के मुताबिक, वह अपनी नाकामी छिपाने के लिए भारत विरोधी भावनाएँ भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। उनके सहयोगी महमूदुर रहमान मन्ना ने दावा किया कि यूनुस ने देश को ‘भारतीय आधिपत्य’ के खिलाफ एकजुट होने को कहा। यह साफ दिखाता है कि यूनुस अपनी नाकामी का ठीकरा भारत पर फोड़कर अपनी साख बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

ऑपइंडिया पर हमला कर एक्सपोज हो गए मोहम्मद यूनुस

ऑपइंडिया ने जो बताया, वह पूरी तरह तथ्यों पर आधारित था। उनकी रिपोर्ट प्रोथोम आलो की खबर पर आधारित थी, जिसमें साफ था कि हिंदू घरों को निशाना बनाकर जलाया गया। ऑपइंडिया ने न सिर्फ इस घटना को उजागर किया, बल्कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे लगातार हमलों की सच्चाई को भी सामने लाया।

यूनुस का ऑपइंडिया पर हमला उनकी हताशा दिखाता है, क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनकी सरकार की नाकामी और हिंदुओं पर अत्याचार की सच्चाई दुनिया के सामने आए। ऑपइंडिया ने निष्पक्ष पत्रकारिता की है और यूनुस के झूठ को बेनकाब करने में अहम भूमिका निभाई है।

यूनुस की सरकार हिंदुओं पर हो रहे हमलों को न सिर्फ नजरअंदाज कर रही है, बल्कि उन्हें छिपाने और गलत ठहराने की कोशिश भी कर रही है। ऑपइंडिया की रिपोर्ट पूरी तरह सही थी, जिसे यूनुस ने बिना किसी सबूत के गलत बताने की कोशिश की। वामपंथी मीडिया के साथ मिलकर वह हिंदुओं पर हमलों को ‘बिजनेस विवाद’ या ‘राजनीतिक तनाव’ बताकर सच को दबा रहे हैं। लेकिन सच को ज्यादा देर तक छिपाया नहीं जा सकता। ऑपइंडिया और अन्य भारतीय मीडिया ने बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा को सामने लाकर सराहनीय काम किया है। यूनुस को अपनी नाकामी छिपाने की बजाय हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।

(ये रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में रुक्मा राठौर ने लिखी है। इस लेख का भावानुवाद किया है श्रवण शुक्ल ने।)

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