बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ के वापस पैर पसारने की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है। शेख हसीना को सत्ता से हटाने के बाद आई मोहम्मद यूनुस की सरकार लगातार इन तत्वों को शह दे रही है। इसी कड़ी में बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी को चुनाव लड़ने की मंजूरी मिल गई है।
यह मंजूरी बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने दी है। सुप्रीम कोर्ट ने जमात के चुनावी पंजीकरण को दर्ज किए जाने का आदेश दिया है। जमात को शेख हसीना की सरकार ने बैन कर दिया था। बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला रविवार (1 जून, 2025) को दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह जमात का दोबारा पंजीकरण करके उसे चुनाव चिन्ह भी दे। यह फैसला जमात द्वारा दायर एक याचिका के बाद लिया गया है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया।
बांग्लादेश में 2013 में जमात के चुनाव लड़ने पर रोक लगाई गई थी। इस फैसले को हाई कोर्ट ने तब बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का सीधा असर बांग्लादेश के आगामी चुनावों पर होने वाला है। बांग्लादेश में वर्तमान में अंतरिम सरकार मोहम्मद यूनुस चला रहा है और उस पर राजनीतिक दबाव है।
बांग्लादेश में 2025-26 में कभी भी चुनाव हो सकते हैं। वर्तमान में बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) भी चुनाव की जल्द माँग कर रही है। आवामी लीग को बांग्लादेश में पहले ही बैन किया जा चुका है। ऐसे में BNP और जमात के बीच अब सीधी टक्कर होगी।
ध्यान देने वाली बात है कि जमात-ए-इस्लामी वहीं संगठन है, जिसने 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के समय अपने लोगों की जगह पाकिस्तान का समर्थन किया था। इसके रजाकारों ने पाकिस्तानी फ़ौज के साथ मिलकर बांग्लादेश के लोगों और हिन्दुओं की हत्याओं, रेप और नरसंहार में हिस्सा लिया था।
जमात-ए-इस्लामी पर 1971 के बाद भी बैन लगा दिया गया था। इसी इस्लामी कट्टरपंथी संगठन ने जुलाई, 2024 के बाद शेख हसीना की सत्ता के खिलाफ खूब हिंसा की थी तख्तापलट में अहम रोल निभाया था।
बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ के समर्थन में उठाया गया यह कोई पहला कदम नहीं है। वर्तमान में बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट, यूनुस सरकार और बाकी अंग लगातार इसी दिशा में काम कर रहे हैं। हाल ही में बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात के एक ऐसे आतंकी को रिहा किया था, जिसे 1200 से अधिक लोगों की हत्याओं के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी।
उस पर रेप, नरसंहार और अपहरण जैसे गंभीर दोष सिद्ध हो चुके थे। इस रिहा होने वाले नेता का नाम ATM अजहरुल इस्लाम है। यह कोई अकेला ऐसा मामला नहीं है। बांग्लादेश में जबसे यूनुस की सरकार आई है, तब से जमात के नेताओं के साथ ही आतंकियों तक को छोड़ा जा रहा है।
बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस की सत्ता आने के बाद जसीमुद्दीन रहमानी को छोड़ा गया था। वह इस्लामी आतंकी संगठन अंसारुल बांग्ला का मुखिया है। उसने रिहा होने के कुछ ही घंटे के भीतर भारत के खिलाफ जहर उगला था। यहाँ तक कहा गया है कि बांग्लादेश में कई आतंकी तो बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के ही छोड़ दिए जा रहे हैं।
इस्लामी कट्टरपंथ की दिशा में कदम बढ़ाने वाली यूनुस सरकार सिर्फ आतंकियों को ही नहीं छोड़ रही है, वह बांग्लादेश के संविधान को बदलने की तरफ भी कदम बढ़ा चुकी है। बांग्लादेश में संविधान सुधार के नाम पर बनाए गए एक आयोग ने यह सिफारिश की थीं कि संविधान में से सेक्युलर शब्द को हटा दिया जाए।
इसके अलावा ‘राष्ट्रवाद’ शब्द हटाने की बात भी कही गई थी। यह बदलाव बांग्लादेश को इस्लामी कट्टरपंथ की तरफ धकेलने का एक और कदम था। बांग्लादेश में पूरी तरह से यह अभियान चल रहा है कि उसकी 1971 के बाद बनी बंगाली राष्ट्रवाद की छवि मिटा कर पाकिस्तान जैसे एक इस्लामी मुल्क की छवि गढ़ी जाए।
इसी के चलते बांग्लादेश अपने यहाँ हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर एकदम गंभीर नहीं दिखता। मोहम्मद यूनुस तक हिन्दुओं के खिलाफ हुई हिंसा को झुठलाने का प्रयास करते हैं। हाल ही में हिन्दुओं खिलाफ हुई हिंसा की एक घटना को मोहम्मद यूनुस ने झूठा करार देने का प्रयास किया था।
यह खबर ऑपइंडिया ने प्रकाशित की थी। लेकिन इसे झूठा साबित करने की कोशिश में मोहम्मद यूनुस को मुँह की खानी पड़ी और उसे अपना ट्वीट डिलीट करना पड़ा। इससे पहले भी यूनुस हिन्दुओं के खिलाफ हिंसा को ‘राजनीतिक हिंसा’ बताता रहा है। बांग्लादेश में हो रही यह सभी कोशिशें उसे इस्लामी मुल्क बनने की तरफ ले जा रही हैं।
bangladesh supreme court lifts ban from jamat e islami to fight election