अमेरिका के ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में चल रहा एक कोर्स ‘लिव्ड हिंदू रिलिजन’ इन दिनों सुर्खियों में है। भारतीय-अमेरिकी छात्र ने इस कोर्स पर हिंदूफोबिया यानी हिंदू विरोधी होने का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि ये कोर्स हिंदू धर्म को गलत तरीके से पेश करता है और भारत के राजनीतिक हालात को तोड़-मरोड़ कर दिखाता है।
दूसरी तरफ, यूनिवर्सिटी ने इसका बचाव करते हुए कहा कि ये कोर्स एकेडमिक फ्रीडम का हिस्सा है और इसमें किसी धर्म के खिलाफ कोई भेदभाव नहीं है। इस विवाद ने सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक हंगामा मचा दिया है।
भारतीय-अमेरिकी छात्र वसंत भट्ट का आरोप है कि कोर्स को पढ़ाने वाले प्रोफेसर आरोन माइकल उलरे हिंदू धर्म को एक ‘औपनिवेशिक ढाँचा’ बताते हैं, न कि प्राचीन और जीवंत परंपरा। भट्ट के मुताबिक, प्रोफेसर कहते हैं कि ‘हिंदू’ शब्द हाल का है और इसे पुराने ग्रंथों में नहीं देखा जाता। कोर्स में ये भी दावा किया गया कि हिंदुत्व यानी ‘हिंदू-नेस’ को हिंदू राष्ट्रवादी इस्तेमाल करते हैं ताकि दूसरे मजहबों, खासकर इस्लाम को नीचा दिखा सकें।
भट्ट ने कोर्स का एक हिस्सा शेयर किया, जिसमें कहा गया, “हिंदू शब्द नया है, ग्रंथों में नहीं मिलता। हिंदुत्व वो शब्द है, जिसे हिंदू राष्ट्रवादी अपनी पहचान के लिए इस्तेमाल करते हैं।” ये सुनकर भट्ट और कई हिंदू छात्रों का गुस्सा भड़क उठा। उनका मानना है कि ये उनकी आस्था पर हमला है।
इतना ही नहीं, कोर्स में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘हिंदू कट्टरपंथी’ कहा गया और भारत को हिंदू राष्ट्रवादी देश बताते हुए अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का आरोप लगाया गया। भट्ट ने इसे ‘बौद्धिक रूप से खोखला’ और ‘हिंदूफोबिक’ करार दिया।
सोशल मीडिया पर भी लोगों ने गुस्सा जाहिर किया। एक यूजर ने लिखा, “मोदी को हिंदू कट्टरपंथी कहना और हमारी परंपरा को राजनीतिक हथियार बताना हिंदूफोबिया है।”
हिंदू ऑन कैंपस नाम के एक स्टूडेंट ग्रुप ने कहा, “इन दावों के पीछे कोई सबूत नहीं है। राजनीतिक मतभेद ठीक हैं, लेकिन हिंदू पहचान को बदनाम करना गलत है।” भट्ट ने इसकी शिकायत कॉलेज ऑफ लिबरल आर्ट्स एंड सोशल साइंसेज के डीन से की, जिसके बाद यूनिवर्सिटी ने जाँच शुरू की।
None of these claims are backed by evidence or data. Political disagreements are welcomed but fabricating extremism under the basis of Hindu identity is not. pic.twitter.com/JmnCW5AzfF
— Hindu On Campus (@hinduoncampus) March 19, 2025
सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ता देख हिंदू ऑन कैंपस ने ट्वीट किया, “मोदी पर कोर्स का हमला नस्लीय और धार्मिक भेदभाव है।” कई लोगों ने इसे उदारवादी शिक्षा में हिंदू विरोधी रवैये का सबूत बताया। एक यूजर ने लिखा, “हिंदू धर्म को सदियों से गलत दिखाया गया, और अब ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी भी यही कर रही है।” भट्ट का कहना है कि कोर्स हिंदू धर्म की जटिलता और समृद्धि को नजरअंदाज करता है और इसे सिर्फ एक राजनीतिक साजिश के तौर पर पेश करता है।
यूनिवर्सिटी ने दी सफाई
इस मुद्दे पर यूनिवर्सिटी की तरफ से सफाई जारी की गई है। ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी ने बयान जारी कर कहा कि वो एकेडमिक फ्रीडम को महत्व देती है। यूनिवर्सिटी के मुताबिक, ‘लिव्ड हिंदू रिलिजन’ कोर्स धार्मिक अध्ययन के अकादमिक ढाँचे पर आधारित है। यूनिवर्सिटी का कहना है कि ‘फंडामेंटलिज्म’ जैसे शब्द इसमें विश्लेषण के लिए इस्तेमाल होते हैं, न कि किसी धर्म को नीचा दिखाने के लिए।
बयान में कहा गया, “धार्मिक अध्ययन में फंडामेंटलिज्म का मतलब एक ऐसी विचारधारा से है जो धर्म के ‘सच्चे’ रूप को बनाए रखने का दावा करती है। ये कोई आलोचना नहीं, बल्कि धर्म के विकास को समझने का तरीका है।” यूनिवर्सिटी ने ये भी साफ किया कि कोर्स में भारत में हिंदू राष्ट्रवाद के उभार को मौजूदा घटनाओं से जोड़ा गया है, लेकिन ये हिंदू धर्म की आलोचना नहीं है।
इस कोर्ट को तैयार करने वाले प्रोफेसर उलरे ने भी सफाई दी है। उनका कहना है कि कोर्स में हिंदू धर्म को एकरूप नहीं दिखाया गया। उन्होंने कहा, “मैंने कभी हिंदू धर्म को औपनिवेशिक ढाँचा या अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का जरिया नहीं कहा। कोर्स में हिंदू धर्म की ऐतिहासिक जटिलता और समृद्धि को दिखाया जाता है।” उलरे ने ये भी कहा कि उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया। यूनिवर्सिटी ने कहा कि वो छात्रों की शिकायतों को गंभीरता से लेती है और आरोपों की जाँच की जा रही है।