Wednesday, April 2, 2025
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अखंड भारत की शुरुआत बांग्लादेश से सटे ‘चिकन नेक’ को चौड़ा करके: बंगाल के हिन्दुओं को वापस मिले उनकी मातृभूमि, जानिए यह क्यों जरूरी

मोहम्मद यूनुस के पूर्वोत्तर पर दिए गए बयान के बाद भारत को बांग्लादेश के उन हिस्सों पर कब्जा करने के विषय में सोचना चाहिए जहाँ हिन्दू या जनजातीय जनसंख्या बसी हुई है। इससे भारत की चिकन नेक वाली रणनीतिक समस्या भी खत्म हो जाएगी और हिन्दुओं को भी प्रताड़ना से छुटकारा मिलेगा।

वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध ने इस उपमहाद्वीप का नक्शा बदल दिया। बांग्लादेश को इस युद्ध के बाद पश्चिमी पाकिस्तान से मुक्ति मिली। करोड़ों बंगालियों का अपने एक संप्रभु राष्ट्र का सपना पूरा हुआ। यह काम भारत के बिना हो ही नहीं सकता था। बांग्लादेश के निर्माण ने बंगाली लोगों की लुप्त होती आकांक्षाओं को पुनर्जीवित किया। बांग्लादेश के निर्माण के बाद भले ही कई चुनौतियाँ आई, लेकिन दोनों देशों के संबंध मधुर बने रहे।

अगस्त, 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद दोनों देशों के सम्बन्धों में खटास आई है। राजनयिक से लेकर बाकी स्तर पर बांग्लादेश और भारत के बीच रोज किसी ना किसी मुद्दे पर तल्खी बढ़ी है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की तथाकथित अंतरिम सरकार की इस्लामी कट्टरपंथी नीति है। मुहम्मद यूनुस की सरकार हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के क्रूर उत्पीड़न को चुपचाप देख रही है। वह लगातार ऐसी हरकतें कर रही है, जिससे दोनों देशों के बीच टकराव बढ़े।

पूर्वोत्तर राज्यों पर बांग्लादेश की नजर

भारत से लगातार टकराव मोल लेने का एक और उदाहरण हाल ही मोहम्मद यूनुस की चीन यात्रा में देखने को मिला यहाँ उन्होंने चीन को भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के पास लगे इलाके में आमंत्रित किया। यूनुस ने कहा कि भारत के सात पूर्वोत्तर राज्य जमीन से घिरे हुए हैं।

उन्होंने कहा “भारत के 7 राज्य, भारत का पूर्वी हिस्सा, जिन्हें सेवेन सिस्टर्स (अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा) कहते हैं। वे भारत के जमीन से घिरे हुए हैं। उनके पास समुद्र तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है।”

इसके बाद उन्होंने बांग्लादेश को इस इलाके के समुद्र के एकमात्र मालिक के रूप में बताया और चीन को इसका फायदा उठाने के लिए न्योता दिया। मोहम्मद यूनुस ने कहा कि इस इलाके में आकर चीन उत्पादन और उनकी बिक्री कर सकता है। उन्होंने चीन के निवेश को रिझाने के लिए इस इलाके को मुफीद बताया और कहा कि यहाँ से निर्यात भी हो सकता है।

मोहम्मद यूनुस ने दावा किया कि बांग्लादेश के इस इलाके से चीन नेपाल और भूटान तक का फायदा उठा सकता है। मोहम्मद यूनुस ने यह सभी बातें यह जानते हुए कहीं कि इससे भारत की चिंताएँ बढेंगी। भारत कभी भी अपने इलाके से कुछ सौर किलोमीटर दूर चीन की मौजूदगी नहीं चाहेगा।

मोहमद यूनुस यह भी जानते हैं कि बांग्लादेश भारत के लिए पड़ोसी होने के साथ ही रणनीतिक महत्व भी रखता है, क्योंकि देश के कई स्थान ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ के पास स्थित हैं, जिसे अक्सर ‘चिकन नेक’ के रूप में जाना जाता है। यह लगभग 20 किलोमीटर चौड़ा संक्रा गलियारा है, जो पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्से से जोड़ता है।

यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब मोहम्मद यूनुस ने ऐसा को गैर जिम्मेदाराना बयान दिया हो। इससे पहले अगस्त, 2024 में एक इंटरव्यू में कहा था, “यदि आप बांग्लादेश को अस्थिर करेंगे, तो इसका असर पूरे बांग्लादेश में फैलेगा, जिसमें म्यांमार और पश्चिम बंगाल और सेवेन सिस्टर्स भी शामिल हैं।”

मोहम्मद यूनुस 26 मार्च, 2024 को बांग्लादेश से चीन गए थे। वह 4 दिन की यात्रा पर चीन पहुँचे थे। यहाँ उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस यात्रा को बांग्लादेश के उप विदेश मंत्री ने एक ‘सन्देश’ भेजने वाली यात्रा बताया।

यूनुस के बयान से खड़े हुए कान

मोहम्मद यूनुस की इस टिप्पणी का भारत में तगड़ा विरोध हुआ। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इसे ‘अपमानजनक और कड़ी निंदा योग्य’ बताया। उन्होंने चिकन नेक के इलाके के आसपास और नीचे नर रास्ते तलाशे जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि मोहम्मद यूनुस लगातार अपना एजेंडा लेकर चल रहे हैं।

राजनीति और सुरक्षा विशेषज्ञ क्रिस ब्लैकबर्न ने इस टिप्पणी को ‘चिंताजनक’ और ‘स्पष्टीकरण’ के लायक बयान बताया। उन्होंने सवाल उठाया कि इस बयान में क्या यूनुस भारत के सेवेन सिस्टर्स राज्यों के पास चीन की भागीदारी की वकालत कर रहे थे।

अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य संजीव सान्याल ने इस मुद्दे पर लिखा, “दिलचस्प है कि यूनुस चीन से इस आधार पर सार्वजनिक अपील कर रहे हैं कि भारत के 7 राज्य चारों ओर से जमीन से घिरे हुए हैं।” उन्होंने इस बयान को लेकर शंकाएँ जताईं।

चिकन नेक और इसका रणनीतिक महत्त्व

लगभग 20 किलोमीटर चौड़ाई वाला सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे ‘चिकन नेक’ के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर राज्यों और भारत के बीच एकमात्र रास्ता है। इसके एक तरफ बांग्लादेश तो दूसरी तरफ नेपाल और भूटान है। यह भारत के 2.62 लाख वर्ग किलोमीटर या भारत के कुल जमीन के 8% हिस्से को जोड़ता है।

इसमें बांग्लादेश के उत्तर दिनाजपुर जिले के उत्तरी क्षेत्र और दार्जिलिंग जिले के दक्षिणी क्षेत्र शामिल हैं। इन जिलों की सीमा बांग्लादेश के साथ ही बिहार के पूर्णिया और किशनगंज से लगती है, यह दोनों मुस्लिम बहुल जिले हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों की 99% सीमाएँ पाँच पड़ोसी देशों: चीन, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल से सटी हुई हैं। यह कॉरिडोर इन राज्यों की सुरक्षा और आर्थिक जरूरतों के लिए एक आवश्यक माध्यम बन जाता है। पूर्वोत्तर भारत अपनी लगभग सभी ज़रूरतों के लिए सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भर है।

चिकन नेक कॉरिडोर के काफी छोटा होने के चलते पूर्वोत्तर भारत से बाकी देश को जोड़ने में बड़ी समस्याएँ आती हैं और वहाँ माल भेजना भी महँगा पड़ता है। अगर कभी युद्ध की स्थिति बने और इस हिस्से पर हमला हो तो बाकी भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ना मुश्किल हो सकता है।

इसलिए, इस कॉरिडोर को लेकर चिंताएँ अब भी बनी हुई हैं, इसका एक कारण चीन का लगातार विस्तारवादी नीतियाँ अपनाना भी है। कई सैन्य अधिकारियों समेत रक्षा विशेषज्ञों ने भी इस चिंता को लेकर बात की है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने गलियारे को ‘संवेदनशील’ और भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा प्राथमिकता बताया है।

अक्टूबर, 2024 में एक कॉन्क्लेव के दौरान पूर्वी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने कहा था कि म्यांमार में लड़ाई और बांग्लादेश में राजनीतिक संघर्ष के चलतेकलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट और चटगाँव बंदरगाह के माध्यम से त्रिपुरा तक कनेक्टिविटी जैसे अन्य मार्ग बाधित हो गए हैं।

उन्होंने बताया था कि इसके चलते सिलीगुड़ी कॉरिडोर और भी महत्वपूर्ण चैनल बन चुका है। उन्होंने चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (CMEC) के माध्यम से म्यांमार में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भी बात की थी। इसके अलावा बांग्लादेश के दिनाजपुर के रंगपुर डिवीजन में चीनी मजदूरों की बढ़ती संख्या भी उतनी ही परेशानी वाली बात है।

बांग्लादेश के अलावा नेपाल में भी चीन का बढ़ता प्रभाव चिंता की बात है। विशेषकर इस गलियारे के पास लगती नेपाल सीमा के भीतर चीन के प्रोजेक्ट समस्या को और भी बढ़ाते हैं। 2017 में 73 दिनों तक चले डोकलाम विवाद के दौरान, चीन ने इस भूटान के माध्यम से घुसपैठ की थी। हालाँकि भारत ने इस घटना में चीन को पटखनी दी थी।

इन सबके साथ ही चीन जबरदस्ती कब्जाए गए तिब्बत के चुम्बी घाटी से भी सिलीगुड़ी कॉरिडोर को घेरता है। जनरल कलीता ने बताया था कि चीन ने तिब्बत के इस इलाके में कई इन्फ्रा प्रोजेक्ट चालू किए हैं। इनमें नए सैन्य अड्डे और नई एयरफील्ड शामिल हैं।

चीन ने कथित तौर पर LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के पास अरुणाचल के करीब 90 नई बस्तियाँ बनाई हैं। 2018 और 2022 के बीच इनमें से 600 से ज़्यादा नए घर या ऐसे ही ढाँचे सामने आए हैं। मई, 2024 में ली गई सैटेलाइट तस्वीरों में माजिदुनचुन और झुआंगनान जैसी जगहों पर नए निर्माण दिखाई देते हैं। नागरिक और सैन्य दोनों तरह के ढाँचे हैं।

तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के ल्होखा प्रान्त और न्यिंगची (अरुणाचल के पास) के आस-पास के कई इलाके LAC से 5 से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। जनरल कलीता ने बताया था कि अगर चीन की सभी हरकतों को एक नक़्शे पर उभारा जाए तो पता चलेगा कि यह सब सिलीगुड़ी कॉरिडोर को घेरने के लिए हो रहा है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर का महत्व ऐसे भी समझा जा सकता है कि रोज 10 लाख से अधिक वाहन इससे होकर गुजरते हैं। रोज इस कॉरिडोर से 2400 टन माल गुजरता है और इससे ₹142 करोड़ राजस्व की रोज कमाई होती है। जनरल कलीता ने स्पष्ट किया था कि चीन इस गलियारे को घेरने के लिए लगातार आक्रामक होता रहेगा।

इस कॉरिडोर की समस्याओं को देखते हुए भारत ने पूर्व में बांग्लादेश से कुछ समझौते किए थे। इसके चलते भारत पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुँचने के लिए बांग्लादेश की सड़कें और वहाँ के नदी वाले रास्ते उपयोग करता आया है। कोलकाता से अगरतला जाने वाली एक बस इसका उदाहरण है।

यह बस बांग्लादेश होते हुए अगरतला जाती है, इससे इसका सैकड़ों किलोमीटर का सफ़र बचता है। भारत बांग्लादेश के चटगाँव बंदरगाह के माध्यम से पूवोत्तर में माल भेजता है, इसके चलते बांग्लादेश को बड़ी कमाई होता है। हालाँकि, यह कोई पक्का उपाय नहीं है क्योंक बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के चलते किसी भी दिन यह समझौते टूट चुके हैं।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर दुश्मनों की रही है नजर

भारत के संबंध में सिलीगुड़ी कॉरिडोर एक हमेशा बने रहने वाले खतरे के रूप में है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि भारत के दुश्मन इस कमजोरी को पहचानते हैं। वह इसका फायदा उठाने के भी प्रयास करते रहे हैं। मुहम्मद यूनुस का हालिया बयान इस्लामी कट्टरपंथियों की इस कॉरिडोर के विषय में धमकियों को भी याद दिलाते हैं।

CAA कानून के खिलाफ होने वाले प्रदर्शन के दौरान इस कॉरिडोर की कमजोरी को लेकर इस्लामी कट्टरपंथी शरजील इमाम ने बयान दिया था। उसने मुसलमानों से अपील की थी कि वह चिकन नेक को काट दें और पूर्वोत्तर भारत को शेष भारत से अलग कर दें।

शरजील इमाम ने कहा था कि यह सब करने के लिए उसे 5 लाख मुसलमानों की जरूरत है। उसने कहा था कि ऐसा होने पर भारत महीनों तक पूर्वोत्तर से अलग रहेगा और यहाँ भारतीय सेना को जाने के लिए हवाई रास्ते का इस्तेमाल करना पड़ेगा। उसने दावा किया था कि असम में बंगालियों का नरसंहार हो रहा है।

शरजील इमाम ने इस दौरान यह भी साफ कर दिया था कि चिकन नेक कॉरिडोर के आसपास मुस्लिम बसते हैं और उन्हें इस कॉरिडोर तोड़ने के खिलाफ भड़काना होगा। उसने मुस्लिमों को चिकन नेक काटने के खिलाफ भड़काना जिम्मेदारी बताया था।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर 30 वर्ष पूर्व हिंदू बहुल था। हालाँकि, रोहिंग्याओं और हज़ारों बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ के चलते यहाँ की डेमोग्राफी बदल चुकी है। इस इलाके में बांग्लादेश और म्यांमार से मुस्लिमों के आने के चलते उत्तर बंगाल और असम के बांग्लादेश से लगने वाले अधिकांश जिले मुस्लिम बहुल हैं।

इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के एक पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर ने स्वराज्य की एक रिपोर्ट में बताया, “उत्तर बंगाल के बड़े हिस्से में यह डेमोग्राफी का बदलाव एक गंभीर मुद्दा बन गया है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गम्भीर खतरा भी है। पिछले कुछ दशकों में IB समेत बाक़ी एजेंसियों ने केंद्र सरकार को इस संबंध में रिपोर्ट सौंपी हैं।”

अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB), जो अल कायदा और बांग्लादेश में ISIS से जुड़े संगठनों से जुड़ा है। इस इस्लामी आतंकी संगठन ने भी कॉरिडोर को काट देने की रणनीति बनाई थी। ये इस्लामी आतंकी संगठन इस इलाके की आबादी को कट्टर बनाने और चिकन नेक और बिहार में कई सभाएँ भी कर रहे हैं।

IB के पूर्व शीर्ष अफसर ने बताया, “इस क्षेत्र में रहने वाले मुस्लिम अवैध घुसपैठिए हैं या फिर बांग्लादेश और म्यांमार से आए घुसपैठियों के वंशज हैं। उनसे कहा जा रहा है कि वह भारत के खिलाफ आवाज उठाए क्योंकि यह कथित तौर पर मुस्लिमों पर अत्याचार करता है।”

आगे उन्होंने बताया, “उन्हें बताया जा रहा है कि वे इस क्षेत्र में बहुसंख्यक हैं और उन्हें भारत को हरा कर इस्लामी राज स्थापित करने में मदद करनी होगी। कई भड़काने वाले इस इलाके को बांग्लादेश में मिलाने के लिए वकालत कर रहे हैं।”

IB में काम कर चुके वाले एक उप निदेशक ने इस विषय पर कहा, “गजवा-ए-हिंद की वकालत करने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों की योजना के अनुसार, चिकन नेक कॉरिडोर में संचार को रोक कर और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों पर हमला करके भारत को खतरे में डाला जाए।”

उन्होंने बताया, “प्लान यह है कि हमले के समय में सरकारी कॉरिडोर में अपनी सारी शक्ति नहीं उपयोग कर पाएगी और युद्ध वाले मोर्चे पर फंसी होगी। इस कॉरिडोर में लम्बे समय तक विवाद चला तो बाहरी शक्तियां इसका फायदा उठा शक्ति हैं और यह भारत से लाग भी हो सकता है।”

IB में दशकों तक काम कर चुके अफसर के अनुसार, “इस्लामी कट्टरपंथियों की योजना के अनुसार सिर्फ़ चिकन नेक कॉरिडोर में रहने वाले मुसलमान ही विद्रोह नहीं करेंगे। बिहार के किशनगंज और पूर्णिया जिलों में रहने वाले उनके साथी घुसपैठिए भी विद्रोह में शामिल होंगे और उन सभी को बांग्लादेश में रहने वाले मुस्लिमों का समर्थन मिलेगा।”

मोदी सरकार ने चिकन नेक सुरक्षित करने को उठाए कदम

फरवरी 2025 में, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस बात की पुष्टि की थी कि मोदी प्रशासन इस कॉरिडोर के चलते आने वाली तमाम समस्याओं को पूरी तरह जानती है। इसलिए उसने पूर्वोत्तर के साथ निर्बाध संपर्क बनाए रखने के लिए एक रणनीति विकसित की है।”

मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि भारतीय रेलवे कनेक्टिविटी में सुधार के लिए चिकन नेक में 4 अतिरिक्त रेलवे ट्रैक बनाएगा। इसके अलावा, जल्द ही गलियारे में दो और रेलवे लाइनें शुरू करने की योजना है, जिससे असम और अन्य क्षेत्रों में रेलवे के इन्फ्रा को मजबूती मिलेगी।

इसके अलावा सरकार उन पर निगरानी रख रही है जो चिकन नेक को खतरे में डालने की बात कर रहे हैं। सरकार ने इस इलाके में निवेश बढ़ाने के लिए भी कदम उठाए हैं। हाल ही में सम्पन्न हुए असम के इन्वेस्टर समिट में भी इस पर जोर था।

इस इलाके में इन्फ्रा भी मजबूत किया जा रहा है। भारत सिलीगुड़ी के माध्यम से एक मल्टीमॉडल कॉरिडोर बनाए जाने की योजना बना रहा है। इसमें हाईस्पीड रेल और सुरंगे तक शामिल होने वाली हैं। इसके अलावा भारत अरुणाचल फ्रंटियर हाइवे बनाने वाला है। यह देश की सबसे बड़ी इन्फ्रा परियोजनाओं में से एक होगा, इसकी लागत ₹42 हजार करोड़ होने की संभावना है।

पूर्वोत्तर राज्यों में कामों के लिए जिम्मेदार मंत्री ज्योतारिदित्य सिंधिया ने हाल ही में बताया, “पिछले 10 वर्षों में हमने करीब साढ़े पाँच हजार किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाए हैं। जिस क्षेत्र में केवल 10,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग थे, आज वहाँ 16,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग हैं।”

उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों पर प्रश्न भी उठाए और आरोप लगाया कि उन्होंने पूर्वोत्तर राज्यों की अनदेखी की। उन्होंने बताया, “60 साल में क्या बना था? सारे इन्फ्रा का 60% 10 साल में बनाया गया है। पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत ₹50,000 करोड़ की लागत से 45,000 किलोमीटर का निर्माण किया गया है।”

उन्होंने कहा, “यह राजमार्गों की बात है। अगर आप रेलवे को देखें, तो रेलवे ट्रैक बनाने की गति मोटे तौर पर पहले 6.5 किलोमीटर/महीने थी। यह अब बढ़कर 19 किलोमीटर/महीने हो गई है। पिछले 10 साल में 2,000 किलोमीटर रेलवे ट्रैक बनाए गए हैं।”

उनके अनुसार, पहले पूर्वोत्तर में मात्र हवाई अड्डे हुआ करते थे लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ कर 17 हो चुकी है। उनोने बताया कि अब 1990 उड़ाने पूर्वोत्तर राज्यों से चलती हैं। इसके अलावा पानी के जरिए भी यातायात बढ़ा है। मंत्री सिंधिया ने बताया कि पहले मात्र एक जलमार्ग हुआ करता था जो अब बढ़ कर 20 हो चुके हैं।

अंग्रेजों ने बोए जहर के बीज

सिलीगुड़ी कॉरिडोर की समस्या अंग्रेजों की दी हुई है। यहाँ तक यह नाम भी उनका ही दिया है। अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल को पहली बार विभाजित किया था। इसका उद्देश्य बंगाल में बढ़ते आंदोलन को रोकना था। इसके बाद 1911 में राज्य को मिलाया तो गया लेकिन धार्मिक विभागं के बीज बो दिए गए।

फोटो साभार: GeeksforGeeks

यही आगे चल के 1947 में भारत के विभाजन का एक कारण बना। बंगाल, असम और बाकी पूर्वोत्तर के राज्यों वह हिस्सा तोड़ के अलग कर दिया गया, जहा हिन्दू बसा करते थे। इस विभाजन के चलते भारत ने अपना महत्वपूर्ण भूभाग खो दिया।

अंग्रेज विभाजन का रास्ता हमेशा हिन्दुओं को कमजोर करने और अपने खिलाफ विद्रोह ना पैदा होने देने के लिए चलते करते थे। इस रणनीति को उन्होंने बार-बार अपनाया था। इसमें उनका साथ देने वाले इस्लामी कट्टरपंथी गुट भी होते थे। इन्होने पाकिस्तान बनाने में अंत में सफलता पाई। पाकिस्तान की बात सबसे पहले मुस्लिमों ने 1930 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में रखी थी।

पाकिस्तान बनाने वाले मुहम्मद अली जिन्ना ‘हिन्दुओं के राज’ में नहीं रहना चाहता और इसलिए वह मुस्लिमों के अलग मुल्क चाहता था। उसकी बात को खाद पानी देने वाले ब्रिटिश साम्राज्यवादी थे। इनमें एक नाम प्रधानमंत्री चर्चिल भी था। अंग्रेज मानते थे कि पाकिस्तान हमेशा ब्रिटेन का एक वफादार रहेगा।

अंग्रेजों की सोची-समझी ‘फूट डालो और राज करो’ आगे चल कर हिंसा में बदल गई। उन्होंने इस नीति के अंतर्गत लाहौर, सिंध और चटगाँव जैसे इलाकों में रहने वाले हिन्दुओं को बेदखल कर दिया और इसे मुस्लिमों को दे दिया।

भारत के विभाजन के चलते दोनों समुदायों की दुश्मनी ही नहीं बढ़ी बल्कि भारत के लिए दो इस्लामी देश, आतंकवाद और कूटनीतिक चुनौतियाँ भी सामने आ गई। विभाजन के चलते ही पूर्वोत्तर शेष भारत से अलग-थलग पड़ गया और उसका विकास दशकों तक नहीं हो सका। वह चीन भी घिर गया।

विभाजन के चलते ही पूर्वोत्तर से चटगाँव बंदरगाह छिन गया। यह हिस्सा इसके बाद बांग्लादेश को दे दिया गया। एकदम किनारे होने के चक्कर में नई दिल्ली इस इलाके पर ध्यान नहीं दे पाई और यह विकास की मुख्यधारा से पीछे छूट गया। यही कारण है कि यह इलाका अब आंतरिक और बाहरी खतरों के प्रति संवेदनशील है।

विभाजन ने जनजातियों के साथ भी किया अन्याय

पाकिस्तान बनाए जाने के समय भारत के पूर्वोत्तर के हिस्से लगभग 1000 मील का क्षेत्र काट दिया गया था। हालाँकि, इसका उस पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं था जो पश्चिम में बनाया गया था और जहाँ के रहने वाले अधिकतर पश्तून और पंजाबी हैं। बांग्लादेश में रहने वाले अधिकांश लोग बंगाली हैं और उनकी संस्कृति दूसरे हिस्से से बिलकुल अलग है।

प्राचीन भारत का पूर्वी क्षेत्र, जो काफी हद तक वर्तमान बांग्लादेश में है, महाजनपद काल में भी फल फूल रहा था। ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी के दौरान फला-फूला अंग साम्राज्य इसका एक बड़ा उदाहरण है। बांग्लादेश मौर्य और गुप्त साम्राज्यों सहित कई प्राचीन भारतीय साम्राज्यों का हिस्सा था।

फोटो साभार: IAS/Facebook

बांग्लादेश के चटगाँव पहाड़ी क्षेत्र में कई भारतीय जनजातीय समूह रहते हैं। इनमें चकमा, संताल, गारो और त्रिपुरा शामिल हैं, जिन्हें स्वदेशी या जातीय अल्पसंख्यक माना जाता है। बांग्लादेश में 54 से ज़्यादा जनजातीय समूह रहते हैं। यह बांग्लादेश के कुछ समतल जमीन वाले जिलों में भी हैं।

बांग्लादेश की सरकार 50 जातीय समूहों के अस्तित्व को स्वीकार करती है, फिर भी वह इन्हें कोई संरक्षण नहीं देती। परंपरागत रूप से, इनमें से कई समूह ईसाई, बौद्ध या हिंदू रहे हैं जबकि उनमें से कुछ प्रकृति के पूजक भी हैं।

भारत के 1947 के विभाजन के दौरान चटगाँव वाले इस इलाके को पाकिस्तान को सौंपा गया था। इस पर विवाद भी हुआ था। स्थानीय लोग इससे भड़क गए थे। यहाँ तब कोई भी मुस्लिम नहीं बसते थे। लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने इसके बाद यहाँ बंगाली मुस्लिमों को बसाना चालू कर दिया।

1964 में इसके विशेष दर्जे को भी पाकिस्तान सरकार ने समाप्त कर दिया। इसके बाद यहाँ और तेजी से बंगाली मुस्लिम बसाए जाने लगे। 1979 से 1983 के बीच पहाड़ी इलाकों में बंगालियों को बसाने के लिए बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा योजना चलाई गई।

यह इसलिए बांग्लादेश सरकार ने किया ताकि यहाँ के जनजातीय लोगों की जमीन छीनी जा सके।बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद, जनजातीय लोगों के प्रतिनिधिमंडल ने नए प्रशासन से CHT इलाके को स्वायत्तता देने की याचिका दायर की, लेकिन इसे नहीं स्वीकार नहीं किया गया।

बांग्लादेश में लगातार सरकारों द्वारा उनके प्रतिरोध को हिंसक रूप से दबा दिया गया है। मौजूदा शासन के तहत उनकी स्थिति और भी खराब होती जा रही है। अंग्रेजों और मुस्लिमों के स्वार्थी हितों को पूरा करने के लिए बनाई गई सीमाओं के चलते यह जनजातीय लोग उपेक्षा झेलने को मजबूर हैं।

अब भारत के लिए ऐतिहासिक गलती सुधारने का समय

दुनिया के सभी बड़े देश जैसे कि रूस, चीन, इजरायल और अमेरिका आदि ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा और सामरिक हितों को साधने के लिए विस्तार किया है। रूस का क्रीमिया पर कब्जा और यूक्रेन पर हमला इसी कड़ी का एक हिस्सा हैं।

हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर कब्जा करने की बात कही, यह उनकी विस्तारवादी नीति का ही परिणाम है। चीन तो लगातार भारत में ही घुसता आया है। उसकी विस्तारवादी नीति से उसके सारे पड़ोसी परेशान हैं।

कोई भी स्वाभिमानी राष्ट्र जबरदस्ती उकसावे को बर्दाश्त नहीं करेगा। और तब तो यह असहनीय होगा जब वह राष्ट्र आपको भड़काए जिसका निर्माण ही आपकी मेहनत से हुआ हो और वह आपसे कई गुना छोटा हो। भारत और बांग्लादेश के बीच बहुत बड़े अंतर हैं। भारत जमीन के मामले में तो बांग्लादेश से बड़ा है कि उसकी सेना भी बांग्लादेश के मुकाबले कई गुना मजबूत है।

भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र है, वहीं बांग्लादेश के पास ढंग के मिसाइल भी नहीं हैं। मोहम्मद यूनुस के सत्ता में आने के बाद से लगातार बांग्लादेश भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है। वह कहीं चीन तो कहीं अमेरिका की गोद में बैठने को आतुर दिखाई देता है।

इसका सीधा अर्थ यह मालूम होता है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन भारत को नुकसान पहुँचाने के लिए किया गया है। ऐसा कुछ होने से रोकने के लिए अब कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। ऐसे में भारत बांग्लादेश के उन इलाकों का विलय करने की सोच सकता है, जो इसके लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।

इसलिए, अगर भारत बांग्लादेश के उन इलाकों पर जहाँ गैर-मुस्लिम या हिंदू आबादी बड़े रूप में मौजूद है पर कब्जा करता है इससे न केवल यूनुस और उनकी सरकार द्वारा खड़े किए गए खतरे का खात्मा हो जाएगा, बल्कि इससे सामरिक फायदा भी होगा। उदाहरण के लिए अगर भारत चटगाँव बंदरगाह कब्जा ले तो पूर्वोत्तर के राज्य जमीन से घिरे नहीं रहेंगे।

इससे उन देशों को भी सबक मिलेगा जो भारत से कई गुना छोटे होने के बाद और मदद लेने के बाद आँख दिखाते हैं। इससे एक फायदा बांग्लादेश के हिन्दुओं और वहाँ की जनजातियों को भी होगा जो वर्तमान प्रशासन में अत्याचार झेल रहे हैं।

इन समुदायों को बलात्कार, हत्या और लूटपाट की घटनाओं का सामना करना पड़ा है, उनके मंदिरों और पूजा स्थलों को नष्ट और अपवित्र किया गया है, जबकि राज्य ने केवल इन अत्याचारों को बढ़ावा दिया है। हिंदुओं की घटती संख्या बांग्लादेश में उनकी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का प्रमाण है।

फोटो साभार: इंडियन एक्सप्रेस

बांग्लादेश में रहने वाले हिन्दुओं को उनकी मातृभूमि वापस दिलाना भारत की जिम्मेदारी है। यह तब और जरूरी हो जाता है जब पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच रिश्ते गहरे हो रहे हैं। 1971 में अलगाव के बाद बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच सीधा व्यापार शुरू हुआ है।

कराची के पोर्ट कासिम से सरकार द्वारा स्वीकृत पहला माल रवाना हुआ। फरवरी की शुरुआत में, बांग्लादेश ने ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ पाकिस्तान (TCP) से 50,000 टन पाकिस्तानी चावल खरीदने पर सहमति जताई, जिससे सौदा अंतिम रूप ले लिया। बांग्लादेश लगातार भारत विरोधी बयान भी दे रहा है।

क्या है निष्कर्ष?

पाकिस्तान के जनरल AAK नियाज़ी ने बंगालियों की नस्ल बदलने की बात कही थी। उन्होंने कहा, “मैं इस ह*म*दी क़ौम की नस्ल बदल दूँगा। ये मुझे समझाते हैं।” मेजर जनरल (रिटायर्ड) ख़ादिम हुसैन राजा, पूर्वी पाकिस्तान में 14 डिवीज़न के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग थे।

उन्होंने बताया है कि पाकिस्तानी अपने सैनिक बंगाली महिलाओं का रेप करने के लिए लगा देंगे। बंगाली अफसर इससे नाराज थे। इसके चलते एक बंगाली अफसर ने आत्महत्या तक कर ली। उन्होंने यह सारी बातें अपनी पुस्तक “ए स्ट्रेंजर इन माई ओन कंट्री: ईस्ट पाकिस्तान, 1969-1971” में लिखा है।

बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के बाद नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। अब भारत के लिए यह जरूरी है कि वह अपने अतीत से सबक लेकर अपने और अपने लोगों के हित में काम करे। अब हिन्दुओं को इस्लामी शासन से मुक्त करवाने का भी समय है।

बंगभूमि, बंग सेना द्वारा चलाया गया एक आंदोलन था जिसका उद्देश्य एक बांग्ला हिन्दू राष्ट्र बनाना था। 1973 में बांग्लादेश को अपनी स्वतंत्रता मिलने के तुरंत बाद भारत में इस संगठन की स्थापना की गई थी, ताकि देश से हिंदू शरणार्थियों की सहायता की जा सके, क्योंकि 1971 में बांग्लादेश में अत्याचारों के दौरान पाकिस्तानी सेना ने उन्हें निशाना बनाया था।

शायद अब समय आ गया है कि इस तरह की एक और पहल शुरू की जाए। इस बात में कोई शक नहीं है कि भारतीय सेना सिलीगुड़ी कॉरिडोर में किसी भी दुस्साहस को कुचल देगी। वह भारत को आने वाले कोई भी खतरे को खत्म कर देगी।

अगर बांग्लादेशऔर दुस्साहस दिखाता है तो नौसेना भी उसे भूखा मरने पर मजबूर कर सकती है। लकिन रंगपुर, राजशाही और खुलना के कुछ हिस्सों को लेकर, त्रिपुरा की सीमा पर स्थित चटगाँव को अपने देश में मिलाना एक स्थायी समाधान होगा। अब समय आ गया है कि चिकन नेक को हाथी की सूंड की तरह चौड़ा कर दिया जाएगा।

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