Thursday, April 25, 2024
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ईरान ने ‘Morality Police’ को ख़त्म किया, हट सकता है हिजाब-बुर्का वाला कानून भी: महिलाओं के आंदोलन के सामने झुकने को मजबूर हुआ इस्लामी मुल्क

बता दें कि सन 1979 में मौलना खुमेनाई के नेतृत्व में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी और राजशाही को उखाड़ फेंका गया था। इसके चार साल बाद यानी 1983 में महिलाओं के लिए बुर्का और हिजाब अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बाद कट्टर इस्लामी कानून लगातार थोपे जा रहे हैं।

ईरान में महसा अमिनी (Mehsa Amini) की हत्या के बाद उठे हिजाब विरोधी तूफान में अंतत: इस्लामी सरकार को झुकना पड़ा है। अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात मोरालिटी पुलिस (Morality Police) को खत्म कर दिया है। वहीं, हिजाब पहनने की अनिवार्य को खत्म करने पर वहाँ की सरकार विचार कर रही है।

मोरालिटी पुलिस को खत्म करने को लेकर अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफर मोंटाज़ेरी ने कहा, “नैतिकता पुलिस का न्यायपालिका से कोई लेना-देना नहीं है।” अटॉर्नी जनरल यह जवाब तब दिया, जब उनसे इस विभाग को बंद करने को लेकर उनसे सवाल किया गया।

बता दें कि साल 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद ने हिजाब कल्चर को बढ़ावा देने के लिए इसकी स्थापना की थी। इसे गश्त-ए-इरशाद के नाम से जाना जाता था। यह पुलिस उन महिलाओं पर कड़ी निगाह रखती थी, जो हिजाब या इस्लामी कपड़े नहीं पहनती थी।

मोरल पुलिस की ईरान में क्रूरता की कई कहानियाँ हैं। महसा अमिनी की हत्या भी मोरल पुलिस की हिरासत में हुई थी। मोरल पुलिस ने महसा पर आरोप लगाया गया था उन्होंने सार्वजनिक जगह पर हिजाब को सही से नहीं पहना है। इसके बाद उन्हें सुधार के नाम पर हिरासत में ले लिया गया, जहाँ अत्यधिक पिटाई के कारण मौत हो गई।

हालाँकि, सिर्फ मोरालिटी पुलिस को ही खत्म कर देने से ईरान की महिलाएँ मानने को तैयार नहीं हैं। वे हिजाब और बुर्के की कठोरता से भी आजादी चाहती हैं। इसको लेकर उनका प्रदर्शन लगातार जारी है। ईरान की मुस्लिम महिलाओं को दुनिया भर से मिल रहे समर्थन के दबाव के बाद ईरान सरकार हिजाब की अनिवार्यता पर विचार कर रही है।

ईरान के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद जफ़र मोंटेज़ेरी ने कहा कि हिजाब और बुर्के की अनिवार्यता को खत्म करने के लिए कानून में किसी बदलाव की ज़रूरत है या नहीं, इसको ध्यान में रखते हुए संसद और न्यायपालिका काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक-दो सप्ताह बाद इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।

बता दें कि सन 1979 में मौलना खुमेनाई के नेतृत्व में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई थी और राजशाही को उखाड़ फेंका गया था। इसके चार साल बाद यानी 1983 में महिलाओं के लिए बुर्का और हिजाब अनिवार्य कर दिया गया था। इसके बाद कट्टर इस्लामी कानून लगातार थोपे जा रहे हैं।

पूर्व सुधारवादी राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के रिश्तेदारों द्वारा गठित यूनियन ऑफ इस्लामिक ईरान पीपल पार्टी ने माँग की है कि अनिवार्य हिजाब कानून को रद्द किया जाए और इसके लिए जरूरी हुआ तो कानूनी बदलाव की जाए। वहीं, मुल्क के रूढ़ीवादी अभी भी इस्लामी रीतियों पर अड़े रहने की बात कर रहे हैं।

एक तरफ ईरान की सरकार कानून में बदलावों की बात करही है तो दूसरी तरफ हिजाब विरोधी प्रदर्शनों को कुचलने के लिए हर तरह का प्रयास कर रही है। बता दें कि महसा अमिनी की हत्या के बाद भड़के विरोध प्रदर्शनों में अब तक 450 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। इनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं। वहीं, प्रदर्शन करने के आरोप में ईरान इस्लामी सरकार कुछ नाबालिगों को फाँसी की सजा दे सकती है।

विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के लिए तीन नाबालिगों को दोषी ठहराया गया है। इन तीनों को राजधानी तेहरान में कई लोगों के साथ मिलकर एक पुलिस अधिकारी को जान से मारने का भी आरोप लगाया गया था। आरोप है कि ईरानी पैरामिलिट्री फोर्स के सदस्य को मारने के लिए चाकू, पत्थरों और बॉक्सिंग गलव्ज का इस्तेमाल किया गया।

दुनिया भर के मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि प्रदर्शनों में शामिल होने के कारण इन बच्चों को फाँसी की सजा देने के लिए ईरानी सरकार हथकंडे अपना रही है। नाबालिगों को फाँसी देने के मामले में ईरानी दुनिया में नंबर वन है। फिलहाल 200 नाबालिगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और 300 नाबालिग सरकारी फायरिंग में घायल हुए हैं। इन प्रदर्शनों में अब तक 60 बच्चों की जान जा चुकी है, जिनमें 12 लड़कियाँ भी शामिल हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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