Sunday, June 8, 2025
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पानी के लिए तरस रहा पाकिस्तान, 4 बार पत्र लिखकर भारत से लगाई गुहार: सिंधु जल समझौता रद्द होने के बाद बाँध सूखे, खेती-बाड़ी चौपट होने का खतरा

पाकिस्तान में सिंधु नदी पर बने बाँधों से इस वर्ष कम पानी छोड़ा जा रहा है। पिछले वर्ष के मुकाबले इसमें लगभग 15% की कमी आई है। इस बात की पुष्टि आधिकारिक डाटा से हुई है। पाकिस्तान के पंजाब में सिंधु से छोड़ा जाने वाला पानी मात्र 1.24 लाख क्यूसेक रह गया है। पिछले वर्ष यह 1.44 लाख क्यूसेक था।

भारत के सिंधु जल समझौता निलंबित करने का असर पाकिस्तान पर दिखने लगा है। भीषण गर्मी में पाकिस्तान के बाँध सूख रहे हैं। इन बाँधों से पानी भी कम छोड़ा जा रहा है। इसके चलते पाकिस्तान में खेती पर असर पढ़ने की संभावना है। पानी कम होने का असर सीधे-सीधे आँकड़ों में भी दिखा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पाकिस्तान में सिंधु नदी पर बने बाँधों से इस वर्ष कम पानी छोड़ा जा रहा है। पिछले वर्ष के मुकाबले इसमें लगभग 15% की कमी आई है। इस बात की पुष्टि आधिकारिक डाटा से हुई है। यह कमी बीते सप्ताह (1 जून 2025-8 जून 2025) में आई है।

सूखे पाकिस्तान के बाँध

पाकिस्तान में सिंधु नदी के सहारे ही खेती और बाकी उद्योग चलते हैं। यह पाकिस्तान के पंजाब समेत बाकी राज्यों की जीवनरेखा सरीखी है। इसी पर कई बाँध भी बनाए गए हैं। अब पाकिस्तान के पंजाब में सिंधु से छोड़ा जाने वाला पानी मात्र 1.24 लाख क्यूसेक रह गया है। पिछले वर्ष यह 1.44 लाख क्यूसेक था।

पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण तरबेला बाँध भी सूख रहा है। तरबेला बाँध में सिंधु नदी का स्तर वर्तमान में 1465 मीटर पर है। यह इसके डेड लेवल 1402 मीटर से थोड़ा ही ऊपर है। किसी बाँध का डेड लेवल वह स्तर होता है, जहाँ से पानी को आगे भेजने के लिए पम्प का इस्तेमाल होता है।

इससे ऊपर के स्तर से पानी स्वयं ही आगे बह जाता है। यह हाल सिर्फ तरबेला बाँध का ही नहीं है बल्कि सिंधु नदी पर ही बने चश्मा बाँध का भी यही हाल है। पाकिस्तान के मियांवाली में बने इस बाँध में पानी का स्तर, डेड लेवल मात्र से 6 मीटर ही ऊपर है। यहाँ डेड लेवल 638 मीटर का है, जबकि यहाँ पानी का स्तर 644 मीटर है।

इस भीषण गर्मी में पानी की लगातार माँग बढ़ने वाली है, ऐसे में जल्द ही पाकिस्तान को और पानी इन बाँधों से छोड़ना पड़ेगा। तब यह डेड लेवल पर जा सकते हैं। पाकिस्तान के एक और महत्वपूर्ण मंगला बाँध में भी यही हाल है। यह झेलम नदी पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बना है।

इसमें भी डेड लेवल 1050 मीटर के निकट ही 1163 मीटर पर पानी आ चुका है। इस पानी की कमी से पाकिस्तान में केवल खेती ही नहीं बल्कि बिजली का उत्पादन भी प्रभावित होने वाला है। पाकिस्तान इन बाँधों से बनने वाली पनबिजली पर बड़े स्तर पर निर्भर है।

खरीफ बुवाई में 21% पानी की कमी

पाकिस्तान का पंजाब और सिंध प्रांत बड़े स्तर पर सिंधु नदी से आने वाले पानी पर निर्भर है, इसी से यहाँ खेती होती है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट कहती है कि 10 जून, 2025 तक चलने वाली खरीफ की बुवाई में 21% पानी की कमी पाकिस्तान को इस वर्ष झेलनी पड़ेगी। यह असर सीधे तौर पर भारत के एक्शन का होगा।

पानी की कमी से परेशान पाकिस्तान अब लगातार भारत से सिंधु जल समझौते पर बात करने की गुहार लगा रहा है। उसने सिंधु जल समझौता निलंबित किए जाने के बाद 4 बार भारत को पत्र लिख कर ऐसा ना करने की गुहार लगाई है। पाकिस्तान ने यह पत्र भारत के जलशक्ति मंत्रालय को लिखे हैं। हालाँकि, भारत अपने स्टैंड पर कायम है।

क्या है सिन्धु जल समझौता?

भारत और पाकिस्तान, एक ही भूभाग का हिस्सा है। भारत से कई नदियाँ बह कर पाकिस्तान जाती हैं। सिंधु नदी तंत्र की नदियाँ पाकिस्तान के पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। इन्हीं के पानी के बँटवारे को लेकर किया गया समझौता सिंधु जल समझौता कहलाता है।

यह समझौता वर्ष 1960 में हुआ था। इसके लिए लगभग एक दशक तक बातचीत पाकिस्तान और भारत के बीच चली थी। तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तानाशाह अयूब खान ने इसको मंजूरी दी थी। सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की 6 नदियों (व्यास, रावी, सतलुज, सिन्धु, चेनाब और झेलम) के पानी का बँटवारा होता है।

इस जल समझौते के अनुसार, पूर्वी नदियाँ (व्यास, रावी और सतलुज) के पानी पर पूरा अधिकार भारत का है। यानी इनमें बहने वाले पानी का वह किसी भी तरह से इस्तेमाल कर सकता है। भारत इन नदियों पर बाँध बना सकता है, उनकी जलधाराएँ मोड़ सकता है, उनसे नहरें निकाल सकता है और पूरा उपयोग कर सकता है।

सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद 2 का खंड (1) कहता है, “पूर्वी नदियों का पूरा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगा, सिवाय इसके कि इस अनुच्छेद में अन्यथा अलग से उसके लिए कोई प्रावधान किया गया हो।” पूर्वी नदियों को लेकर पाकिस्तान को दखलअंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं है।

इसको लेकर भी अनुच्छेद 2 के खंड (2) में प्रावधान है। इसमें लिखा है, “घरेलू उपयोग को छोड़कर, पाकिस्तान सतलुज और रावी नदियों के पानी को बहने देने के लिए बाध्य होगा और उन स्थानों पर इनके पानी में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होने देगा, जहाँ ये पाकिस्तान में बहती हैं और अभी तक पूरी तरह से पाकिस्तान में प्रवेश नहीं कर पाई हैं।”

दरअसल, यह नदियाँ पाकिस्तान में अंतिम रूप से घुसने से पहले कई बार दोनों सीमाओं के इधर-उधर बहती हैं। पूर्वी नदियों के अलावा बाक़ी पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) के पानी पर पूरा अधिकार पाकिस्तान का है। समझौता के अनुसार, भारत इन नदियों को लेकर कोई भी रोक नहीं लगा सकता।

समझौते का अनुच्छेद 3 का भाग (2) कहता है, “भारत पश्चिमी नदियों के जल को बहने देने के लिए बाध्य होगा, और इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देगा, कुछ परिस्थितियों को छोड़ कर।” यह परिस्थितियाँ घरेलू उपयोग और कृषि उपयोग से जुड़ी हुई हैं।

इस समझौते के तहत इन 6 नदियों के लगभग 70%-80% पानी पर पाकिस्तान को जबकि 20%-30% पानी पर भारत को अधिकार मिलता है। इसको लेकर पहले भी प्रश्न उठाए जाते रहे हैं कि इसका सीधा फायदा पाकिस्तान को मिला है और भारत का इससे कोई लाभ नहीं है।

अब जब भारत ने 22 अप्रैल, 2025 को हुए पहलगाम हमले के बाद ने यह समझौता रद्द कर दिया है, तो पाकिस्तान में पानी की कमी साफ़ तौर पर दिखने लगी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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