Sunday, November 10, 2024
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चीन की ‘कठपुतली’ बना पाकिस्तान, चलाएगा ‘अज्म-ए-इस्तेकाम’ सैन्य ऑपरेशन: ड्रैगन ने डाला था दबाव, इसी के बाद आया फैसला

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के हालिया चीन दौरे से पहले चीन ने यह माँग की थी। चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइडोंग ने पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक में माँग की थी कि पाकिस्तान जर्ब ए अज्ब जैसा ऑपरेशन चलाए। हालाँकि, तब यह कहा गया था कि पाकिस्तान ने इस माँग को ठुकरा दिया है।

पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने अपनी संप्रुभता चीन के हवाले कर दी है। उसके एक हालिया फैसले से यह बात साफ़ हो गई है। पाकिस्तान ने अब देश भर में आतंकवाद के कथित तौर पर खात्मे के लिए नया आतंक-विरोधी ऑपरेशन लॉन्च किया है। इसे ‘अज्म-ए-इस्तेकाम’ का नाम दिया गया है।

पाकिस्तान में रविवार (22 जून, 2024) को प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के साथ फ़ौज के उच्चाधिकारियों की बैठक में इस ऑपरेशन को लॉन्च करने का निर्णय लिया गया है। पाकिस्तानी मीडिया ने बताया है कि इस ऑपरेशन के जरिए सुरक्षाबल इस्लामी मुल्क से कट्टरता और आतंक को उखाड़ने का प्रयास करेंगे।

इस ऑपरेशन को देश भर में लॉन्च किया जाएगा। इसका फोकस विशेष रूप से बलोचिस्तान और खैबर पख्तुन्ख्वा पर होने के कयास हैं। पाकिस्तान में होने वाले अधिकांश हमले यहीं होते हैं। इससे पहले पाकिस्तान ने वर्ष 2014 में आतंकियों के सफाए के लिए ज़र्ब ए अज्ब नाम का एक ऑपरेशन चालू किया था। यह नया ऑपरेशन इसी की तर्ज पर चालू किया मालूम होता है।

पाकिस्तान के इस फैसले के बाद उसकी नीयत पर प्रश्न उठ रहे हैं। दरअसल, इस नए ऑपरेशन के फैसले से कुछ ही दिन पहले चीन ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया था कि वह इन्हें चालू करे। पाकिस्तान के भीतर चीन द्वारा बनाए जाने वाले कई प्रोजेक्ट पर बलोच विद्रोही हमला कर चुके हैं। चीन को इसके कारण जानमाल का नुकसान झेलना पड़ा है।

उसके पाकिस्तान के भीतर कई प्रोजेक्ट इस कारण से बंद हो गए हैं। बलोच विद्रोही इन चीनी प्रोजेक्ट को अपनी जमीन पर कब्जे की तरह देखते हैं। मार्च महीने में एक हमले में पाँच चीनी इंजीनियर मारे गए थे। इसके बाद चीन लगातार पाकिस्तान पर दबाव बना रहा था कि वह एक आतंक विरोधी अभियान चालू करे।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के हालिया चीन दौरे से पहले चीन ने यह माँग की थी। चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइडोंग ने पाकिस्तान के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक में माँग की थी कि पाकिस्तान जर्ब ए अज्ब जैसा ऑपरेशन चलाए। हालाँकि, तब यह कहा गया था कि पाकिस्तान ने इस माँग को ठुकरा दिया है।

अब पाकिस्तान के इस फैसले से प्रश्न उठे हैं कि क्या पाकिस्तान, चीन के दबाव में आकर यह काम कर रहा है। चीन ने हाल ही में पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सबसे अधिक प्राथमिकता वाले दर्जे से हटाकर अधिक प्राथमिकता के दजे में डाल दिया गया था। दोनों देशों के बीच रिश्तों में खटास की खबरें भी आई थीं। इसके बाद पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है। इस ऑपरेशन की घोषणा के बाद यह आशंका भी है कि इससे बलोच जनता पर अत्याचार किया जाएगा। इसे पूर्व के जर्ब ए अज्ब ऑपरेशन से भी ऐसी खबरें आई थीं।

स्थानीय जनसंख्या के नरसंहार की योजना थी ज़र्ब ए अज्ब

ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज्ब 15 जून 2014 को पाकिस्तान-अफ़गानिस्तान सीमा पर उत्तरी वज़ीरिस्तान प्रान्त में शुरू किया गया था। पाकिस्तान ने दावा किया था कि यह एक आतंकवाद विरोधी अभियान था। जबकि इस ऑपरेशन पर आरोप थे कि इससे पाकिस्तान समर्थक जिहादी समूह पनपे, स्थानीय लोगों को हत्याएँ हुई और पूरे इलाके में खून खराबा हुआ।

जर्मन मीडिया DW के अनुसार, पाकिस्तानी विशेषज्ञ और ओकलाहोमा विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के असिस्टेंट प्रोफेसर अकील शाह ने बताया था कि पाकिस्तानी फ़ौज के आतंकवाद विरोधी अभियान में अंतर्विरोधी बातें हैं। शाह ने बताया कि फ़ौज पाकिस्तान में हमले करने वाले आतंकवादियों पर कार्रवाई करती है, लेकिन वह अपने दुश्मनों पर हमला करने वालों को संरक्षण देती है।

DW से बात करते हुए शाह ने बताया था, “फ़ौज ने टीटीपी के दुश्मन गुटों से लड़ाई लड़ी है, लेकिन वह भारत के खिलाफ आतंकवादी समूहों का इस्तेमाल करना जारी रखती है।” उन्होंने हक्कानी नेटवर्क और अफगान तालिबान का उदाहरण दिया, जिसने पाकिस्तान को अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव बनाए रखने में मदद की, साथ ही लश्कर-ए-तैयबा, जो भारत के खिलाफ आतंकवादी हमलों की योजना बनाना और उन्हें अंजाम देना जारी रखता है।

अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान यही बात कही थी। नई दिल्ली में केरी ने कहा था, “यह साफ़ है कि पाकिस्तान को अपने आतंकी समूहों के खिलाफ़ और अधिक कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है जो आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हैं।” उन्होंने पाकिस्तान से माँग की थी वह भारत में हमला करने वाले आतंकी को खत्म करने में सहायता करे ताकि दोंनो देशों के बीच शान्ति का वातावरण बन सके।

इस ऑपरेशन को लेकर कई विशेषज्ञों ने कहा था कि यह कभी आतंकियों को खत्म करने को लेकर चालू ही नहीं किया गया था। इस ऑपरेशन के दौरान पश्तूनों और बलोचों पर भी काफी अत्याचार हुए थे। बड़ी संख्या में लोगों को मारा गया था और काफी लोग गायब हो गए थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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