Saturday, January 18, 2025
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मुस्लिम शासकों से शुरू नहीं होता भारत, सभ्यतागत न्याय के लिए इतिहास की खुदाई जरूरी: मोहन भागवत से अलग नहीं ऑर्गेनाइजर के विचार, क्योंकि राष्ट्रीय पहचान की ही लड़ाई लड़ रही RSS

इस लेख में कहा है कि अब जो बहस शुरू हुई है, उसे हमें क्षद्म-सेक्युलरिज्म के चश्मे से हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे तक नहीं सीमित कर देना चाहिए। बल्कि हमें अब अपनी सभ्यता के साथ हुए अन्याय को लेकर चल रही लड़ाई पर एक समावेशी बहस की जरूरत है, जिसमें समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जाए।

नवम्बर, 2024 में संभल की शाही जामा मस्जिद का सर्वे हुआ। इसके बाद बदायूँ की एक मस्जिद का भी सर्वे करने के लिए याचिका डाली गई। इसी तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में कई याचिकाएँ और अदालती मामले सामने आए। संभल में हिंसा भी हुई। इसके बाद यहाँ हुई जाँच में मंदिर मिलने लगे। बाकी कई जगह पर हिन्दुओं ने उन मस्जिदों-दरगाहों और बाकी ढाँचों के जाँच की माँग की, जिनका धार्मिक स्वभाव आक्रान्ताओं द्वारा बदला गया है।

इसके बाद सेक्युलर और लिबरल जमात ने 1991 के वर्शिप एक्ट और सेक्युलरिज्म का हवाला दिया और देश में धार्मिक स्थलों की सच्चाई जानने के प्रयासों का विरोध करना चालू कर दिया। उनका दावा है कि अब इतिहास की बातों को जानने से कोई फायदा नहीं है और हर जगह सर्वे-खुदाई नहीं होनी चाहिए। इसी बीच 19 दिसम्बर, 2024 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने भी एक कायर्क्रम में सर्वे और खुदाई जैसे कामों को लेकर संयम बरतने की सलाह दी।

RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान के कुछ दिन बाद ही संगठन का मुखपत्र कही जाने वाली पत्रिका आर्गेनाइजर में हिन्दुओं के संभल जैसे प्रयासों का समर्थन किया गया है। पत्रिका में देश में धार्मिक स्थलों को लेकर चल रही बहस को नए नजरिए से देखने की बात कही गई है। मीडिया इसे ऐसे प्रचारित कर रहा है कि यह विचार RSS प्रमुख भागवत से असहमति का है। जबकि असल में यह बात अपने धर्मस्थल वापस लेने के प्रश्न पर दूसरी तरीके से विचार करने की है। लड़ाई के प्रश्न को दूसरा अर्थ किए जाने की है।

आर्गेनाइजर में यह लेख सम्पादक प्रफुल्ल केतकर ने लिखा है। उन्होंने इस लेख में कहा है कि अब जो बहस शुरू हुई है, उसे हमें क्षद्म-सेक्युलरिज्म के चश्मे से हिन्दू-मुस्लिम मुद्दे तक नहीं सीमित कर देना चाहिए। बल्कि हमें अब अपनी सभ्यता के साथ हुए अन्याय को लेकर चल रही लड़ाई पर एक समावेशी बहस की जरूरत है, जिसमें समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जाए।

संभल में मिला मंदिर इस बार आर्गेनाइजर की कवर स्टोरी है

लेख में कहा गया है कि संभल में मस्जिद सर्वे पर पत्थरबाजी, मुस्लिम इलाकों में बिजली चोरी का पकड़ा जाना और फिर बंद पड़े हिन्दू मंदिरों का निकलना, इन सब बातों ने देश में चल रहे कथित सेक्युलरिज्म का भंडाफोड़ कर दिया है और उसकी खामियाँ जगजाहिर हो गई हैं। आर्गेनाइजर का कहना है कि देश में जो संघर्ष धर्मस्थलों की पहचान और उन्हें वापस लिए जाने को लेकर चल रहा है, असल में वह हिन्दू-मुस्लिम का प्रश्न है ही नहीं। ना ही वह यह प्रश्न है कि किसका धर्म दूसरे से श्रेष्ठ है।

असल में यह प्रश्न राष्ट्रीय पहचान और हमारी सभ्यता के साथ हुए अत्याचार का न्याय माँगने का है। लेख में यह भी कहा गया है कि अब तक सही इतिहास बताने और सभ्यता के साथ न्याय करने के बजाय कम्युनिस्ट और कॉन्ग्रेस लगातार आक्रान्ताओं को महान बताते रहे। उन्होंने इस देश के मुसलमानों को यह समझाया कि अंग्रेज आने से पहले वह इस देश के मालिक थे। मुस्लिमों को बताई गई यह बात आधा सच है। उन मुस्लिम आक्रान्ताओं के आने से सैकड़ों साल पहले तक भारत में हिन्दू राजा ही थे।

मुस्लिमों को बात यह बताई जानी चाहिए कि वह इस देश आक्रान्ताओं की विरासत संभालने वाले लोग नहीं बल्कि उनके पीड़ित हैं। लेख में कहा गया है कि देश में मुस्लिमों को समझाया जाना चाहिए कि वह इन बाबर और औरंगजेब को अपना हीरो ना मानें, असल में वह तो भारतीय समाज से ही निकले लोग हैं। लेख में कहा गया है कि जिस तरह बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने जाति के प्रश्न का असल कारण निकाला और उसका हल संविधान के जरिए निकाला, उसी तरह इस धर्मस्थलों के प्रश्न और सभ्यता के साथ हुए अन्याय का हल निकाला जाना चाहिए।

अगर सेक्युलरिज्म के चलते इस प्रश्न को हल ना किया गया तो इससे देश में कट्टरपंथ ही बढ़ेगा। जो राय आर्गेनाइजर ने दी है, वही विश्व हिन्दू परिषद का कहना है। विश्व हिन्दू परिषद के एक पदाधिकारी ने वह कारण बताया है जिस कारण से आज हिन्दू अपने सारे धर्मस्थल वापस लेने की बात कह रहे हैं।

VHP के संयुक्त महासचिव सुरेन्द्र कुमार ने कहा, “1984 में भारत के संतों ने एक बढ़िया ऑफर मुस्लिम समाज को दिया था कि आप हमें सिर्फ अयोध्या, काशी और मथुरा दे दीजिए, हम लाखों को भूल जाएँगे। लेकिन आज जो स्थिति बनी है, उसके जिम्मेदार मुस्लिम नेता और सेक्युलर हैं।”

सुरेन्द्र कुमार ने कहा, “अयोध्या हमने लिया है, कोर्ट से लड़ कर लिया है। अब दो बचे हैं, अगर अब भी आगे बढ़ कर उन्हें मुस्लिम समाज सौंप दे तो हम समाज के जागृत वर्ग को समझा सकेंगे कि सब जगह पर ऐसे (खुदाई-सर्वे) के प्रयास नहीं हो सकते। पूज्य सरसंघचालक जी ने सही ही कहा है। उन्होंने सबके लिए बात कही है… अब भी समय है मुस्लिम समाज के पास, काशी मथुरा सौंप दें तो हिन्दू समाज सौहार्द के लिए रुक सकता है।”

देश के आजाद होने के बाद से अब पहली बार ऐसा समय आया है कि जब हिन्दुओं ने अपने धर्मस्थल वापस लेने के संघर्ष को गति दी है और वह सेक्युलरिज्म के झाँसे में नहीं आ रहे। संभल जैसी जगहों पर इन प्रयासों की वजह से 1978 के दंगे तक की सच्चाई बाहर आ गई। लेकिन यह प्रश्न सिर्फ धर्म का नहीं बल्कि हमारी हिन्दू सभ्यता के अवशेष बचाने और उसको संरक्षित करने का है। सरसंघचालक मोहन भागवत और आर्गेनाइजर का विचार एक ही है, बस उसे व्यक्त अलग तरीके से किया गया है।

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अर्पित त्रिपाठी
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