वामपंथी प्रोपेगेंडा फ़ैलाने वाला मीडिया संस्थान एक बार फिर झूठ फ़ैलाने पर उतर आया है। मोदी सरकार के अंध विरोध और राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचाने के अपने ट्रैक रिकॉर्ड को कायम रखते हुए द वायर ने अब दावा किया है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कथित तौर पर ‘राजनीतिक रुकावटों’ के चलते लड़ाकू विमान खोए हैं।
द वायर ने इंडोनेशिया में भारतीय दूतावास में डिफेन्स अताशे के तौर पर तैनात कैप्टेन शिव कुमार के एक बयान को तोड़ा मरोड़ा और इसी के आधार पर एक लेख प्रकाशित किया है। ‘राजनीतिक नेतृत्व की रुकावटों के चलते भारतीय वायुसेना ने गँवाए पाकिस्तान के हाथों लड़ाकू विमान’ (IAF Lost Fighter Jets to Pak Because of Political Leadership’s Constraints) शीर्षक से यह लेख 29 जून, 2025 को प्रकाशित हुआ है।
द वायर के इस की बखिया उधेड़ने का समय आ गया है। उसकी इस अधपकी स्टोरी और तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने की बीमारी का इलाज भी किया जाना जरूरी है। यह भी साफ़ किए जाने की जरूरत है कि कैसे ऑपरेशन सिंदूर अब तक का सबसे साहसिक मिलिट्री ऑपरेशन रहा है।
पहलगाम हमला और बॉर्डर पार उसका जवाब
ऑपरेशन सिंदूर कोई बिना कारण की गई सैन्य कार्रवाई नहीं थी। यह मई 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब था। पहलगाम में पाकिस्तान के पाले इस्लामी आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में पर्यटकों को निशाना बनाया था। उन्होंने हिंदुओं की पहचान के लिए खतना चेक किया था और फिर उन्हें बेरहमी से मार डाला था।
यह न केवल नागरिकों पर हमला था, बल्कि भारत के भीतर सांप्रदायिक तनाव को भड़काने का एक खुला प्रयास था। मोदी सरकार ने इस हमले के बाद पिछली सरकारों की तरह ना डोजियर सौंपे और ना ही निंदा वाले लम्बे प्रेस रिलीज दिए। बल्कि उसने सैन्य कार्रवाई की छूट दे दी।
मोदी सरकार ने इससे पाकिस्तान की परमाणु हथियारों की गीदड़भभकी को भी नाकाम कर दिया। लेकिन भारत, एक जिम्मेदार राष्ट्र है। वह नियम-आधारित व्यवस्था में विश्वास करता है,। उसने केवल आतंकी ढाँचे पर हमला किया और पाकिस्तान की फ़ौज पर नहीं।
लेकिन इस तथ्य को द वायर ने मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए आसानी से दरकिनार कर दिया।
कथित राजनीतिक रुकावटें समस्या नहीं, शासन की कला
द वायर के प्रोपेगेंडा का आधार इंडोनेशिया में भारत के डिफेन्स अताशे कैप्टन (नौसेना) शिव कुमार की टिप्पणियों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना है। एक अकादमिक सेमिनार में बोलते हुए, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला था कि ऑपरेशन सिंदूर के शुरुआती चरणों के दौरान, भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के लड़ाकू विमानों ने राजनीतिक निर्देशों (सरकार) के तहत काम किया। उन्होंने बताया था कि इसके तहत जिसमें पाकिस्तानी फौजी ढाँचे या एयर डिफेन्स प्रणालियों को निशाना नहीं बनाया जाना था। यह कार्रवाई आतंकी अड्डों तक सीमित थी।
द वायर के अनुसार, यह मोदी सरकार की ‘राजनीतिक रुकावटों’ को साबित करता है, जिसके चलते कारण विमान नष्ट हुए। ऐसा कहना ना केवल वायर की कपटी मानसिकता दिखाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि उसे युद्ध के नियमों, अंतर्राष्ट्रीय कानून और रणनीतिक गणना के बारे में कोई ज्ञान नहीं है।
तथाकथित ‘राजनीतिक रुकावटें’ आतंकवाद पर कार्रवाई करने और बाद युद्ध के बीच अंतर के लिए थी। यह मोदी सरकार का नपा तुला एक्शन था। भारत का प्रारंभिक संयम दुश्मन और दुनिया के लिए एक रणनीतिक संकेत था कि यह लड़ाई भारत बनाम पाकिस्तान नहीं बल्कि भारत और आतंक की लड़ाई है।
आतंकी कैम्पों पर सटीक हमलों के बाद पाकिस्तान को तुरंत इसकी जानकारी दे दी गई थी। लेकिन जैसे ही पाकिस्तान अपने आतंकी नेटवर्क के समर्थन में सामने आया, भारत ने लड़ाई के नियमों को बदल दिया और पाकिस्तान के फौजी इन्फ्रा को तबाह करना चालू कर दिया।
विडंबना यह है कि वही वामपंथी टिप्पणीकार जो भारत द्वारा जवाबी कार्रवाई किए जाने पर ‘परमाणु युद्ध’ के खिलाफ रोते हैं, मोदी सरकार के पूरी तौर पर युद्ध में ना उतरने पर भी प्रलाप कर रहे हैं। उनका दोहरापन स्पष्ट है। वे किसी भी भारतीय कार्रवाई का विरोध करते हैं।
अगर मोदी सरकार पाकिस्तान पर हमला करती है तो सीधे तौर पर युद्ध के बादल छा जाते, इससे देश का विकास का पहिया भी रुक सकता था। अगर ऐसा नहीं होता है, तो सरकार को दुश्मन को निर्णायक झटका देने के लिए सशस्त्र बलों के ‘पंख काटने’ के लिए दोषी ठहराया जाता। द वायर मोदी सरकार को किसी भी तरह दोषी बता कर ही छोड़ता।
युद्ध में नुकसान दुखद, लेकिन अप्रत्याशित नहीं
कोई भी सैन्य अभियान, खास तौर पर दुश्मन के इलाके में सटीक हमले, जोखिम से खाली नहीं होता। हालाँकि, यह बात द वायर के मूढ़ बुद्धि लोगों को समझाना मुश्किल है। युद्ध में नुकसान कोई नई बात नहीं है। यहाँ तक कि अमेरिका और NATO जैसी फौजों को भी फाइटर विमानों का नुकसान उठाना पड़ा है।
अमेरिका ने पाकिस्तान के एबटाबाद में छिपे ओसामा बिन लादेन को खत्म करने के लिए एक ऑपरेशन में अपने सबसे उन्नत हेलिकॉप्टरों में से एक को खो दिया था। यूक्रेन में चल रहे संघर्ष में रूस ने भी विमान और ड्रोन खो दिए हैं।
इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना को कितना नुकसान हुआ, यह बात सार्वजनिक नहीं है। लेकिन अगर मान भी लिया जाए कि वायुसेना का कोई नुकसान हुआ भी है तो यह दुखद जरूर है लेकिन यह वायुसेना की कमजोरी का संकेत नहीं देता है।
सफलता का असली पैमाना अपने हर विमान या पूरे नुकसान से बचाना नहीं बल्कि रणनीतिक उद्देश्यों को हासिल करना है। इस पैमाने के हिसाब से, ऑपरेशन सिंदूर एक शानदार सफलता थी। लेकिन भारत विरोध में डूबे वायर के लिए यह मोदी सरकार की विफलता थी।
ऑपरेशन सिंदूर: मिलिट्री मास्टरक्लास
भारत ने जब पकिस्तान में आतंकी इन्फ्रा खत्म किया तो उसकी वायुसेना ने इसे बचाने के लिए अपने जेट्स चला दिए। भारत ने इसके बाद तुरंत रणनीति बदल दी। IAF ने दुश्मन के हवाई बचाव को बेअसर कर दिया। भारत की ब्रह्मोस मिसाइल जैसे स्टैंड-ऑफ हथियारों का लाभ उठाया, और व्यवस्थित रूप से पाकिस्तान के हवाई अड्डों और सैन्य संपत्ति को तबाह किया।
ऑपरेशन सिंदूर के परिणाम निर्विवाद तौर पर स्पष्ट थे:
- 11 पाकिस्तानी एयर बेस तबाह हुए।
- पाकिस्तान के एयर डिफेन्स तबाह हुए।
- पाकिस्तान के आक्रामक ड्रोन इंटरसेप्ट किए गए।
- लगातार होते नुकसान के चलते पाकिस्तान सीजफायर के लिए रोने लगा।
पाकिस्तान के DGMO ने कथित तौर पर अपने भारतीय समकक्ष के साथ डी-एस्केलेट के लिए विनती की। अगर भारत बंधा हुआ होता तो पाकिस्तान भला ऐसा क्यों करने लगता। वायर ने यह सब अनदेखा करते हुए अपनी कहानी लेकिन गढ़ दी।
जानबूझ कर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करता है वायर
वायर ने कोई पहली बार भ्रामक सूचनाएँ नहीं दी हैं और ना पहली बार तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा है। वह इससे पहले में क्रॉस-बॉर्डर आतंकवाद में पाकिस्तान की भूमिका कम करके दिखाना, आतंकी हमलों को इंटेलिजेंस फेलियर दर्शाना आयर बालाकोट स्ट्राइक्स जैसी घटनाओं पर दुष्प्रचार उठाने के कारनामे कर चुका है।
कैप्टन शिव कुमार के मामले में भी उसने यही किया। असल में उन्होंने कहा था, “हमारे पड़ोस के कुछ अन्य देशों के विपरीत भारतीय सेनाएं नागरिक राजनीतिक नेतृत्व के तहत काम करती हैं, … ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादी बुनियादी ढांचे को निशाना बना था और भारत विवाद बढ़ाना नहीं चाहता था।”
वायर ने यह सब नकार दिया और उसने पूरा और यह सब जानते हुए उसने लोकतंत्र के मूल्यों तहत लिए गए फैसलों पर दुष्प्रचार करना चालू कर दिया। वह उस फौजी तानाशाही पर नहीं बोलता जो पाकिस्तान में नागरिकों को अपनी ढाल बना कर रखती है।
वायर को नहीं पच रहा भारत का बदला रुख
वायर अब उस बदलाव पर दुखी है, जो भारत की रणनीति में ऑपरेशन सिंदूर के बाद आया है। यह बदलाव निम्नलिखित हैं:
- पाकिस्तान से आने वाले आतंकी हमलों को अब युद्ध के रूप में माना जाता है।
- भारत पाकिस्तान के ब्लैकमेल को नकारते हुए परमाणु धमकियों के तहत भी सैन्य रूप से जवाब देगा।
- पाकिस्तान और उसके आतंकियों के साथ गठजोड़ का भी भांडा फूट गया है।
मोदी सरकार ने असल में सिर्फ निंदा वाले डोजियर से आगे बढ़ कर वह रास्ता दिखाया है, जो कोई भी संप्रभु राष्ट्र अपनाएगा। यह बात वायर को नहीं पचने वाली क्योंकि वह इस्लामी कट्टरपंथी सोच का समर्थन करने वाला वामपंथियों का एक समूह है।
नैतिकता का वायर से 36 का आँकड़ा
वायर का असल में नैतिकता से दूर दूर तक लेना नहीं है। अब राजनीतिक रुकावटों पर आंसू बहाने वाला तब भारत को युद्ध के लिए भूखा बताता अगर उसने पहलगाम के तुरंत बाद पाकिस्तान पर हमला बोल दिया होता। अब जब भारत ने संयम दिखाया, तो भी उसे समस्या है।
एक बात और स्पष्ट है कि वायर पाकिस्तान के आतंकियों को संरक्षण देने पर नहीं बोलता। उनकी सबसे बड़ी चिंता मोदी सरकार की कुतर्कों के साथ आलोचना होती है, भले ही इसके लिए कितने ही तथ्य मरोड़ने पड़ें।
रणनीतिक सफलता को मीडिया रही नकार
ऑपरेशन सिंदूर ने साफ़ कर दिया कि भारत पाकिस्तानी आतंक पर चुप नहीं बैठेगा बल्कि वह इसका प्रतिशोध लेगा और पाकिस्तान को बड़ा सबक सिखाएगा। मोदी सरकार का यह नया सिद्धांत वायर की समझ से बाहर है।
ऐसे में वह वैचारिक शत्रुता से अंधा होकर, तथ्यों को मोड़ता है और ऐसे विचार लिखता है जो राष्ट्रीय हित के खिलाफ हों। वायर की ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ दुष्प्रचार की यह कोशिश नाकाम किए जाने के साथ ही उसकी पोल खुलनी चाहिए। वह आलोचना के नाम पर दुशमन के हाथों में काम कर रहा है।
तथ्य स्पष्ट हैं। दुश्मन उजागर हो चुका है। और भारत का संदेश पहले से कहीं ज्यादा लाउड है।