Saturday, November 2, 2024
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आतंकवाद का बखान, अलगाववाद को खुलेआम बढ़ावा और पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को बढ़ावा : पढ़ें- अरुँधति रॉय का 2010 वो भाषण, जिसकी वजह से UAPA में चलेगा केस

अरुँधति रॉय के भारत विरोधी भाषण पर उसके समर्थक जमकर तालियाँ बजा रहे थे। इसमें से 8 मिनट का वीडियो यहाँ देख सकते हैं।

विवादास्पद लेखिका अरुँधति रॉय के खिलाफ दिल्ली के उप-राज्यपाल ने UAPA मामले में केस चलाने की मंजूरी दे दी है। अरुँधति रॉय के खिलाफ जिस भाषण को लेकर केस चलाया जा रहा है, वो भाषण 21 अक्टूबर 2010 को दिल्ली में आयोजित ‘आजादी: द ओनली वे’ नाम के सेमिनार में दिया गया था, जिसमें भारत विरोधी सैयद अली शाह गिलानी, शेख शौकत हुसैन, वरवर राव जैसे लोग मौजूद थे।

इस सेमिनार का आयोजन दिल्ली में CRPP ने किया था। इस सेमिनार में 15 मिनट लंबा भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने भारत देश के खिलाफ जमकर जहर उगला था। ऑपइंडिया के पास अरुँधति रॉय का दिया पूरा भाषण मौजूद है। जिसमें भारत विरोधी उसके भाषण पर उसके समर्थक जमकर तालियाँ बजा रहे थे। इसमें से 8 मिनट का वीडियो यहाँ देख सकते हैं।

अपने भाषण में अरुँधति रॉय दावा कर रही है कि भारत सरकार ने गरीबों के खिलाफ जंग छेड़ा हुआ है। देश के आदिवासी इलाकों में असंतोष को हवा देते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार पर निशाना साधते हुए अरुँधति ने कहा, “मैं हप्ते या 10 दिन पहले राँची में थी, जहाँ ऑपरेशन ग्रीन हंट के खिलाफ पीपल्स ट्रिब्यूनल चल रहा है। ऑपरेशन ग्रीन हंट देश के सबसे गरीब लोगों के खिलाफ भारत राज्य की लड़ाई है।”

इस दौरान जब पत्रकारों ने जम्मू-कश्मीर पर उसके रुख को लेकर सवाल पूछा, तो अरुँधति ने कहा, “कश्मीर कभी भारत का आंतरिक हिस्सा नहीं रहा है। चाहे आप मुझसे कितनी भी आक्रामकता से और कितनी भी बार यह पूछें।” ये वही लाइन है, जो पाकिस्तान लेता रहा है। साफ है अरुँधति यहाँ पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाती नजर आई।

देश में जातीय और सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने की कोशिश

इस दौरान अरुँधति रॉय ने दावा किया कि भारतीय राज्य सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से भारत के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर रहा है। जिसमें अल्पसंख्यकों और कुछ जातीय समूहों को ‘उच्च जाति हिंदू राज्य’ द्वारा ‘उत्पीड़ित’ किया जा रहा है।

“अंग्रेजों ने 1899 में भारत का नक्शा बनाया। जैसे ही वो आजाद हुआ, वो खुद औपनिवेशिक ताकत (अंग्रेजों की तरह) बन गया। भारतीय राज्य ने मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, कश्मीर, तेलंगाना, नक्सलवाड़ी असंतोष, पंजाब, हैदराबाद, गोवा, जूनागढ़ में हस्तक्षेप किया। भारत राज्य, भारत का अमीर वर्ग और भारत के अमीर लोग नक्सलियों पर युद्ध छेड़ने के आरोप लगाते हैं, लेकिन खुद भारत राज्य ने अपने ही लोगों के खिलाप 1947 से लगातार युद्ध छेड़ा हुआ है। चाहे वो नगा हों, मिजो हों, मणिपुरी हो, असल के लोग हों, हैदराबाद, कश्मीर या पंजाब हो। हमेशा अल्पसंख्यों, जिसमें मुस्लिम, आदिवासी, ईसाई और दलित, वनवासी हैं, उनके खिलाफ उच्च जाति के हिंदू राज्य ने युद्ध छेड़ा हुआ है। यही हमारे देश का आधुनिक इतिहास है।”

भारत के आंतरिक लोगों को भड़काने के बाद विवादास्पद लेखिका ने खुलेआम जम्मू-कश्मीर को भारत संघ से अलग करने की वकालत की। उसने ‘आजादी’ के पाकिस्तानी नरेटिव को आगे बढ़ाता और बताया कि कैसे भारत ने कश्मीर और कश्मीरियों पर कब्जा किया है।

एक पत्रकार के साथ 2007 की बातचीत को याद करते हुए, अरुंधति रॉय ने कहा, “भारत को कश्मीर से आजादी की उतनी ही जरूरत है जितनी कश्मीर को भारत से आजादी की जरूरत है।” और जब मैंने भारत कहा, तो मेरा मतलब भारतीय राज्य से नहीं था, मेरा मतलब भारतीय लोगों से था क्योंकि मुझे लगता है कि कश्मीर पर कब्जा – आज 12 मिलियन लोगों की उस घाटी में 700,000 सुरक्षाकर्मी तैनात हैं – यह दुनिया का सबसे अधिक सैन्यीकृत क्षेत्र है – और हमारे लिए, भारत के लोगों के लिए, उस कब्जे को बर्दाश्त करना हमारे रक्तप्रवाह में एक तरह के नैतिक क्षरण को अनुमति देने जैसा है।”

यह जानते हुए भी कि उसके राजधानी दिल्ली में दिए भड़काऊँ भाषण से कश्मीर घाटी में लॉ एंड ऑर्डर की समस्या पैदा हो सकती है, उसने आगे कहा, “कश्मीरी बिना एक-47 की नाल से निकलते धुएँ के साँस भी नहीं ले सकते। बहुत कुछ यहाँ किया गया है। हर बार एक चुनाव होता है। लोग वोट देते हैं और भारत सरकार वहाँ जाकर बोलती है, ‘तुम्हें रेफरेंडम क्यों चाहिए? यहाँ लोग भारत के लिए वोटिंग करते हैं।”

कश्मीरी अलगाववाद की भारत की आजादी की लड़ाई से तुलना गलत

अरुँधति रॉय ने एक बेहद गलत व्याख्या करते हुए दावा किया कि कश्मीर में ‘आजादी’ की लड़ाई भारत देश की औपनिवेशिक ताकत ब्रिटेन के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई की तरह ही है। अरुँधति रॉय ने कहा, “अब, कभी-कभी यह जानना बहुत मुश्किल होता है कि औपचारिक रूप से भारत के नागरिक के रूप में कोई व्यक्ति किस स्थान पर खड़ा है, कोई क्या कह सकता है, उसे क्या कहने की अनुमति है, क्योंकि जब भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आज़ादी के लिए लड़ रहा था – कश्मीर में आज़ादी की समस्याओं को लेकर लोग जो भी तर्क देते हैं, वे निश्चित रूप से भारतीयों के खिलाफ़ इस्तेमाल किए गए थे। मोटे तौर पर कहें तो, “मूल निवासी आज़ादी के लिए तैयार नहीं हैं, मूल निवासी लोकतंत्र के लिए तैयार नहीं हैं।”

“औपनिवेशिक राज्य चाहे वो भारत में ब्रिटिश राज्य रहा हो या कश्मीर, नगालैंड या फिर छत्तीसगढ़ में भारतीय राज्य, उसके एलीट लोग इस कब्जे को मैनेज करते हैं। तो तुम्हें अपने दुश्मनों और उन्हें कैसे जवाब देना है, इस बारे में पता होना चाहिए। तुम होशियार हो, चाहे वो इंटरनेशनल लेवल पर राजनीति की बात हो या स्थानीय स्तर पर किसी भी स्तर पर, तुम्हें अपने साथी बनाने होंगे। वर्ना तुम लोग टैंक में फँसी मछलियों जैसे होंगे, जो टैंक की दीवारों पर बमबारी कर के थक जाओगे, क्योंकि दीवारें बहुत मजबूत हैं।”

बता दें कि अक्टूबर 2010 में विवादास्पद लेखिका द्वारा भाषण दिए जाने के तुरंत बाद, सुशील पंडित (उस समय अरुण जेटली के सहयोगी) की शिकायत के आधार पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इस मामले के संबंध में 29 नवंबर 2010 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी। अरुँधति रॉय पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं 124 ए (राजद्रोह), 153 ए (वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक दावे), 504 (शांति भंग करने के लिए उकसाना) और 505 (विद्रोह पैदा करने के इरादे से अफवाह फैलाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था। लगभग 14 साल मामले में कोई डेवलपमेंट न होने के बाद शुक्रवार (14 जून 2024) को दिल्ली के उप-राज्यपाल ने अरुँधति रॉय के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13 के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी।

(यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया गया है। मूल लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।)

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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