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Tuesday, April 15, 2025
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कोर्ट के आदेश के 7 महीने बीते, लेकिन अब टूट नहीं पाई संजौली की मस्जिद: अवैध 3 मंजिलें गिराने का दिया गया था आदेश, कमेटी हर बार बना रही कोई न कोई बहाना

मस्जिद कमेटी हर सुनवाई में नए-नए बहाने पेश कर रही है। ताजा सुनवाई में कोर्ट ने कमेटी को 26 अप्रैल, 2025 तक का आखिरी समय दिया है। लेकिन सवाल वही है - क्या इस बार आदेश का पालन होगा, या फिर मामला और लंबा खिंचेगा?

शिमला के संजौली इलाके में बनी पाँच मंजिला मस्जिद की तीन मंजिलें टूटनी हैं। अक्टूबर 2024 में नगर निगम आयुक्त कोर्ट ने इस मस्जिद की ऊपरी तीन मंजिलों को अवैध घोषित कर उन्हें गिराने का आदेश दिया था। सात महीने बीत चुके हैं, लेकिन ये मंजिलें अब तक पूरी तरह नहीं टूटीं। मस्जिद कमेटी हर सुनवाई में नए-नए बहाने पेश कर रही है। ताजा सुनवाई में कोर्ट ने कमेटी को 26 अप्रैल, 2025 तक का आखिरी समय दिया है। लेकिन सवाल वही है – क्या इस बार आदेश का पालन होगा, या फिर मामला और लंबा खिंचेगा?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नगर निगम आयुक्त कोर्ट की ताजा सुनवाई में मस्जिद कमेटी ने दावा किया कि अवैध निर्माण को हटाने का काम चल रहा है, लेकिन अभी तक केवल 50 फीसदी हिस्सा ही टूट पाया है। कमेटी का कहना है कि रिहायशी इलाके में मस्जिद होने की वजह से तेजी से काम करना मुश्किल है। कोर्ट ने इस दलील को सुनने के बाद भी सख्त रुख अपनाया और 26 अप्रैल तक बाकी बचे निर्माण को पूरी तरह हटाने का आदेश दिया। आयुक्त ने साफ कहा कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने भी इस मामले को जल्द निपटाने के निर्देश दिए हैं।

स्थानीय निवासी राम लाल बताते हैं, “पिछले साल से सुन रहे हैं कि मस्जिद की मंजिलें टूटेंगी, लेकिन काम इतना धीमा है कि लगता है सालों लग जाएँगे।” वहीं, मस्जिद कमेटी के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हम कोर्ट के आदेश का सम्मान कर रहे हैं, लेकिन आसपास घर होने की वजह से सावधानी बरतनी पड़ रही है। मलबा हटाने में भी समय लग रहा है।”

इस बीच, कोर्ट ने मस्जिद की निचली दो मंजिलों की वैधता पर भी सवाल उठाए हैं। आयुक्त ने वक्फ बोर्ड से इन मंजिलों के नक्शे और राजस्व रिकॉर्ड माँगे हैं। अगर ये दस्तावेज पेश नहीं किए गए, तो इन दो मंजिलों को भी अवैध घोषित कर हटाने का आदेश जारी हो सकता है। सुनवाई में मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष मोहम्मद लतीफ मौजूद नहीं थे, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। वक्फ बोर्ड ने रिकॉर्ड अपडेट करने के लिए और समय माँगा है।

संजौली के स्थानीय निवासियों में इस मामले को लेकर गुस्सा साफ दिखता है। देवभूमि संघर्ष समिति के संयोजक भारत भूषण का कहना है, “मस्जिद कमेटी जानबूझकर देरी कर रही है। पहले कहा था कि फंड की कमी है, अब कह रहे हैं कि मलबा हटाने में समय लग रहा है। ये सब बहाने हैं।” समिति ने यह भी दावा किया है कि मस्जिद जिस जमीन पर बनी है, वह सरकार की है, न कि वक्फ बोर्ड की। उन्होंने आशंका जताई कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में अब छेड़छाड़ हो सकती है।

दूसरी ओर ऑल हिमाचल मुस्लिम ऑर्गेनाइजेशन ने इस मामले में हाईकोर्ट का रुख करने की बात कही है। संगठन के एक सदस्य ने कहा, “हम चाहते हैं कि मामला कानूनी तरीके से सुलझे। अगर निचली मंजिलों को भी हटाने का आदेश आया, तो हम उसका जवाब कोर्ट में देंगे।”

बता दें कि यह विवाद 2010 से चला आ रहा है, जब मस्जिद के निर्माण पर पहली बार सवाल उठे थे। 2012 में वक्फ बोर्ड ने दो मंजिलों को मंजूरी दी थी, लेकिन 2018 तक बिना अनुमति के पाँच मंजिलें बन गईं। पिछले साल सितंबर में दो समुदायों के बीच झगड़े के बाद यह मामला फिर गरमाया। तब से कोर्ट में 46 से ज्यादा सुनवाइयाँ हो चुकी हैं। नगर निगम ने 35 बार नोटिस जारी किए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

हिंदू जागरण मंच के कमल गौतम का कहना है कि सरकार की हीला-हवाली की वजह से मामला तेज गति से नहीं बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहे तो ये काम जल्द से जल्द हो सकता है। हालाँकि उन्होंने समस्या भी बता कि मस्जिद ऐसी जगह पर है, जहाँ बुलडोजर या कोई बड़ी मशीनरी नहीं ले जाई जा सकती और पूरी मस्जिद को हाथ से ही तोड़ा जा सकता है।

नगर निगम कोर्ट ने इस सुनवाई में संजौली मस्जिद के अलावा शिमला के सात अन्य भवन मालिकों को भी अवैध निर्माण हटाने के आदेश दिए। इनमें माल रोड, कच्चीघाटी, लाल पानी, और छोटा शिमला जैसे इलाकों के मकान शामिल हैं। कोर्ट ने साफ किया कि बिना मंजूरी के बनाए गए छज्जे, सीढ़ियाँ या अतिरिक्त निर्माण को तुरंत हटाना होगा।

संजौली में मस्जिद के आसपास रहने वाली शांति देवी कहती हैं, “हमें कोई झगड़ा नहीं चाहिए। बस कोर्ट का आदेश पूरा हो, ताकि शांति बनी रहे।” लेकिन जिस रफ्तार से काम चल रहा है, उसे देखकर लगता है कि 26 अप्रैल की समयसीमा भी शायद पूरी न हो। स्थानीय लोग अब हाईकोर्ट की अगली सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं, जहाँ इस मामले में बड़ा फैसला आ सकता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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