दानिश कनेरिया ने आरोप लगाया कि कई पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने लीग मैच खेलने के लिए देश के क्रिकेट को किनारे पर रखा। अपना दर्द बयाँ करते हुए कनेरिया ने कहा कि उनके पास रोज़गार नहीं है, वो एक दशक से बेरोज़गार हैं। उन्होंने कहा कि उनके पास परिवार भी है, उनकी मदद कौन करेगा?
हाल ही में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम में हिंदू होने के कारण दानिश कनेरिया के साथ भेदभाव की बात सामने आई है। अब पूर्व क्रिकेटर अफरीदी ने अपनी कट्टरता का दिखाई है। उनसे सवाल टीवी तोड़ने को लेकर किया गया और जवाब में उन्होंने हिंदू परंपराओं को नीचा दिखाने की कोशिश की।
"मेरी हालत बहुत ख़राब है और मैंने पाकिस्तान और दुनियाभर में कई लोगों से मदद की गुहार लगाई है लेकिन अभी तक मुझे कोई मदद नहीं मिली है। हालाँकि, पाकिस्तान में कई क्रिकेटरों की समस्याओं को सुलझाया गया है। मैंने एक क्रिकेटर के नाते पाकिस्तान के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया और मुझे इसका गर्व है।"
थापा ने दुनिया के हिन्दुओं को वामपंथ के ख़िलाफ़ खड़े होने और सनातन धर्म के गौरव की रक्षा करने का आह्वान किया है। थापा ने कहा, "आइए दुनिया के सभी हिन्दू सनातन धर्म की महिमा को संरक्षित करने के लिए एकजुट हों।"
इसके साथ ही नागरिकता की दादी ने बताया कि उन्होंने अपने बेटे का नाम ‘भारत’ रखा था, तभी से उनके मन में था कि एक दिन वो भारत जरूर जाएँगी। उन्होंने अपनी बेटी का नाम ‘भारती’ रखा और अब अपनी पोती का नाम ‘नागरिकता’ रखा है।
पटना हाईकोर्ट ने यह फैसला सीआरपीएफ के एक पूर्व असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर की अपील पर सुनाया। जिन्होंने कुछ समय पहले पहली पत्नी के साथ गुजर-बसर करने के दौरान ही सीआरपीएफ की एक महिला कॉन्स्टेबल सुनीता उपाध्याय से शादी कर ली थी।
CAA के विरोध में जिस तरह का मजहबी उन्माद आज दिख रहा है, कुछ ऐसा ही 2001 में दिखा था। हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। छोटी-छोटी बच्चियों का रेप किया गया। अगवा कर धर्मांतरण करवाया गया। संपत्ति पर कब्जा कर हिंदुओं की हत्या की गई।
क्या किया जा सकता है? हम मिल कर इस बारे में सोंचे। पर एक बात की अवश्य जरुरत है: हमें ईमानदार होना पड़ेगा और निडर होना होगा इस्लाम और ईसाई धर्म के हानिकारक पक्ष को उघाड़ने में, दोनों को ही इस बात में कोई दुराव छिपाव नहीं है कि वे हिन्दू धर्म को ख़त्म करना चाहते हैं।
"पाकिस्तान में न तो हिंदू लड़कियों को ज्यादा आजादी है और न ही वहाँ पढ़ाई का अच्छा माहौल है। वहाँ खुलकर जिंदगी नहीं जी जा सकती, इसलिए हम बेटियों की परवरिश के लिए भारत आए। आज नागरिकता पाने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे मानों हमारा पुनर्जन्म हुआ हो।"
अगर मामला सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी के समर्थन और किसी के विरोध का है, और जेएनयू एवं FTII जैसे संस्थानों के वाम मजहब के छात्र “शिक्षा का भगवाकरण” कहकर किसी नियुक्ति का विरोध कर सकते हैं, तो वही अधिकार आखिर BHU के छात्रों को क्यों नहीं मिलना चाहिए? समस्या की जड़ में यही दोमुँहापन है।