Sunday, April 28, 2024
Homeविविध विषयभारत की बातजीभ काटी, आँखें फोड़ी, नाखून उखाड़े, सर काट कर कुत्तों को खिलाया: छत्रपति संभाजी...

जीभ काटी, आँखें फोड़ी, नाखून उखाड़े, सर काट कर कुत्तों को खिलाया: छत्रपति संभाजी महाराज को मिली इस्लाम कबूल न करने की सज़ा

वो मार्च 11, 1689 का दिन था, जब उनकी मृत्यु हुई। उनके सिर को लेकर दक्खिन के कई प्रमुख शहरों में घुमाया गया। औरंगज़ेब ने अपना डर कायम रखने के लिए और हिन्दुओं की रूह कँपाने के लिए ऐसा किया।

ये उस समय की बात है जब औरंगज़ेब की दक्षिण भारत जीतने की महत्वाकांक्षा हिलोरें मारने लगी थी। 3 लाख सैनिकों की भारी सेना लेकर वह बुरहानपुर में डेरा डाल कर बैठा हुआ था। उस समय मराठा शासक हुआ करते थे छत्रपति संभाजी महाराज, जिन्होंने काफ़ी मुश्किल से गद्दी पाई थी। अपने ही लोगों ने गद्दारी कर उन्हें मारना चाहा था और उनके छोटे भाई राजाराम को छत्रपति बना दिया था। राजाराम तब 10 साल के ही थे। हालाँकि, परिवार और राज्य में दुश्मनों से घिरे होने के बावजूद संभाजी महाराज ने गद्दी सँभाली।

औरंगज़ेब इतना क्रूर था कि उसके आतंक से तंग आकर उसका सबसे छोटा बेटा मुहम्मद अकबर ही भागा-भागा फिर रहा था। इसी क्रम में उसने छत्रपति संभाजी महाराज के दरबार में शरण ली थी। बौखलाए औरंगज़ेब ने जब दक्कन का अभियान शुरू किया तो उसे बीजापुर और गोलकोण्डा को जीतने में 3 वर्ष लगे। उसके बाद उसकी नज़र मराठा साम्राज्य की तरफ़ पड़ी, जिसकी नींव छत्रपति शिवाजी महाराज ने रखी थी। भले ही बाद में मराठा साम्राज्य इतना फैला कि दिल्ली तक उसके आगे नतमस्तक हुए, लेकिन सँभाली का समय काफ़ी संघर्ष भरा था। इन्हीं संघर्षों की नींव पर साहूजी महाराज और बाजीराव जैसे योद्धाओं ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।

1687 ख़त्म होते-होते मराठा-मुग़ल युद्ध के घाव दिखने लगे थे। छत्रपति संभाजी महाराज के सेनापति हम्बीर राव मोहिते ऐसे ही एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। संभाजी महाराज चारों तरफ से मुगलों से घिरे हुए थे और उनकी गतिविधियों की सूचना गद्दारों के माध्यम से औरंगज़ेब को लगातार मिल रही थी। संघमेश्वर पर अचानक से मुग़ल लड़ाका मुक़र्रब ख़ान ने धावा बोला और उन्हें बंदी बना लिया। वो फ़रवरी 1, 1689 का दिन था। संभाजी महाराज और कवि कलश को जोकरों की वेशभूषा में ऊँट पर बिठा कर मुग़ल कैम्प में घुमाया गया। इस दौरान उनका अपमान करने के लिए ड्रम्स और नगाड़े बजते रहे।

औरंगज़ेब ने छत्रपति संभाजी महाराज के सामने कई माँगें रखीं और कहा कि अगर उन्होंने बात मान ली तो उनकी जान बख्श दी जाएगी। संभाजी महाराज से उनका सारे किलों को मुगलों को देने को कहा गया। उनसे कहा गया कि वे उन सभी मुगलों के नाम बताएँ, जो मराठा से मिले हुए हैं। साथ ही वे मराठा के छिपे हुए खजाने का पता बताएँ, ऐसी भी शर्त रखी गई। उन्हें इस्लाम कबूल करने को भी मजबूर किया गया। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह ही हौंसले अपनाते हुए संभाजी महाराज ने ये सब मानने से इनकार कर दिया। छत्रपति शिवाजी तो औरंगज़ेब की क़ैद से भाग कर मराठा साम्राज्य की स्थापना कर ‘छत्रपति’ के रूप में पदस्थापित होने में कामयाब रहे थे, लेकिन दुर्भाग्य से संभाजी महाराज को एक भयानक मौत मिली।

औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि छत्रपति संभाजी महाराज को प्रताड़ित कर के मार डाला जाए। सबसे पहले तो संभाजी महाराज और कवि कलश की जिह्वाएँ काट ली गईं। उनकी जीभ काट कर उन्हें रात भर तड़पने के लिए छोड़ दिया गया। अगले दिन उनकी आँखें फोड़ डाली गईं और उन्हें अँधा कर दिया गया। इस दौरान लगातार उनसे कहा जाता रहा कि अगर उन्होंने इस्लाम अपना लिया तो उनकी जान बख्श दी जाएगी, लेकिन इस अथाह प्रताड़ना के बावजूद संभाजी महाराज ने मुगलों के सामने झुकने से इनकार कर दिया।

इसके बाद उनके सभी अंगों को एक-एक कर काटा जाने लगा। छत्रपति संभाजी महाराज से बार-बार कहा गया कि वे पैगम्बर मुहम्मद के द्वारा दिखाए गए रास्तों को अपनाएँ और इस्लाम कबूल कर लें लेकिन वो नहीं झुके। उन्हें लगातार तीन सप्ताह तक यूँ ही तड़पाया गया। सोचिए, किसी की जीभ काट दी गई हो और आँखें फोड़ डाली गई हों, फिर भी उसे ज़िंदा रख कर रोज़ प्रताड़ित किया जाए- तो उसे कैसा लगेगा? उनके नाखून तक उखाड़ लिए गए थे। कहा जाता है कि अपने शुरूआती दिनों में संभाजी महाराज उतने लोकप्रिय राजा नहीं थे, लेकिन हिंदुत्व और राज्य के लिए उन्होंने जो सहा, उससे उन्हें न चाहने वाले भी उन्हें पूजने लगे।

तीन सप्ताह तक ऐसे ही असीम प्रताड़ना देने के बाद छत्रपति संभाजी महाराज का गला काट दिया गया। उन्हें मार डाला गया। उनके मृत शरीर को कुत्तों के आमने फेंक दिया गया। भविष्य में पूरे भारत को अपने आगोश में लेने वाले मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज के रक्त के साथ इस तरह के बर्ताव की ख़बर ने न सिर्फ़ मराठा, बल्कि पूरे देश के लोगों के भीतर ऐसी चिंगारी उत्पन्न की, जिससे बाद में मुगलों का पतन होना शुरू हो गया।

वो मार्च 11, 1689 का दिन था, जब उनकी मृत्यु हुई। उनके सिर को लेकर दक्खिन के कई प्रमुख शहरों में घुमाया गया। औरंगज़ेब ने अपना डर कायम रखने के लिए और हिन्दुओं की रूह कँपाने के लिए ऐसा किया। नर्मदा से लेकर तुंगभद्रा तक के हर राज्य को जीतने वाले औरंगज़ेब की पूरे दक्षिण भारत को पूर्णरूपेण जीतने की महत्वाकांक्षा तो कभी पूरी नहीं हुई और उसके जीवन के अंतिम 20 सालों में उसने अपनी इसी सनक में अपनी एक चौथाई सेना गँवा दी। संभाजी को प्रताड़ित कर के उसे आनंद मिलता था।

भीमा नदी के किनारे कोरेगाँव में वीर संभाजी महाराज ने अपना बलिदान दिया। उनके ही बलिदान से प्रेरणा लेकर उनके छोटे भाई राजाराम ने 20 वर्ष की उम्र में ही छत्रपति की गद्दी सँभाली और सारे योद्धाओं को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। हालाँकि, कुछ ही दिनों बाद काफ़ी कम उम्र में ही बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई। फिर राजाराम की पत्नी ताराबाई ने अपने छोटे बेटे को ‘शिवाजी 2’ नाम से गद्दी पर बैठा कर शासन करना शुरू किया। ताराबाई ने सैन्य रणनीति के गुर शिवाजी को देख कर सीखे थे। उनके ही संरक्षण में मराठाओं ने अपना खोया गौरव वापस लेना शुरू कर दिया।

छत्रपति संभाजी महाराज राजे: भारत के इतिहास के अमर बलिदानी

औरंगज़ेब को भान हो गया था कि मराठा अब अजेय होते जा रहे हैं, क्योंकि उसने महारानी ताराबाई को हलके में लिया था। राजाराम की मृत्यु के बाद मुगलों ने एक-दूसरे को मिठाइयाँ खिलाई थीं। औरंगज़ेब को जब मराठा की बढ़ती ताक़त का एहसास हुआ, तब तक उसके दोनों पाँव कब्र में थे और वो लाचार हो गया था। संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी और बेटे साहूजी को औरंगज़ेब ने क़ैद कर लिया। जब औरंगज़ेब की मौत हुई तो करीब 2 दशक बाद साहूजी महाराज रिहा हुए।

मुगलों ने उन्हें यूँ तो ये सोच कर रिहा किया था कि वो दिल्ली के कहे अनुसार काम करेंगे लेकिन साहूजी महाराज ने छत्रपति का पद सँभालते ही मुगलों को नाकों चने चबवाना शुरू कर दिया। वे अपने दादा छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे योद्धा साबित हुए और उन्होंने 40 साल से भी समय तक राज किया। बलिदानी संभाजी महाराज के पुत्र ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में भगवा मराठा ध्वज फहराया। आगे जाकर बाजीराव जैसे महान योद्धाओं ने इस साम्राज्य का सफल संचालन किया।

___________________________________________________

(सोर्स 1: Advanced Study in the History of Modern India 1707-1813 By Jaswant Lal Mehta)
(सोर्स 2: Encyclopaedia of Indian Events & Dates By S. B. Bhattacherje
)

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘पहले दलालों के लिए सालों साल बुक रहते थे दिल्ली के होटल, हमने चला दिया स्वच्छता अभियान’: PM मोदी ने कर्नाटक में उठाया फयाज...

पीएम मोदी ने कहा कि जो लोग पड़ोस से आतंकवाद एक्सपोर्ट करते थे, आज उनको आटा इंपोर्ट करने में लाले पड़ रहे हैं - वोट से आया ये परिवर्तन।

IIT से इंजीनियरिंग, स्विटरजरलैंड से MBA, ‘जागृति’ से युवाओं को बना रहे उद्यमी… BJP ने देवरिया में यूँ ही नहीं शशांक मणि त्रिपाठी को...

RC कुशवाहा की कंपनी महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिंस बनाती है। उन्होंने बताया कि इस कारोबार की स्थापना और इसे आगे बढ़ाने में उन्हें शशांक मणि त्रिपाठी की खासी मदद मिली है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe