Thursday, May 2, 2024
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‘उजड़े हुए गाँव की जमींदारी…’ – राहुल गाँधी, कॉन्ग्रेस और विपक्ष पर शिवसेना, UPA को बताया NGO

"UPA की हालत NGO की तरह होती दिख रही है। राहुल गाँधी की मेहनत में कमी जरूर है। विपक्ष 'मरा हुआ' है, 'उजड़े हुए गाँव की जमींदारी' जैसा है। विपक्षी दल सर्वमान्य नेता के तौर पर दिवालिया...

महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में अपनी ही सहयोगी पार्टी कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी पर निशाना साधा गया है। इस संपादकीय में देश के विपक्षी दलों को कमजोर और बिखरा हुआ बताया गया है। ‘सामना’ के संपादकीय में लिखा है कि ‘लोकतंत्र के अधोपतन’ के लिए विपक्षी दल ही जिम्मेदार हैं और उन्हें आत्मचिंतन की आवश्यकता है। साथ ही लिखा है कि विपक्षी दलों को अभी एक सर्वमान्य नेता चाहिए, लेकिन इस मामले में वे दिवालिया हो गए हैं।

इस संपादकीय में खासकर के कॉन्ग्रेस के गाँधी परिवार को निशाना बनाया गया है। लिखा है कि बीते 5 वर्षों में सरकार ने किसी भी आंदोलन को लेकर गंभीरता ही नहीं दिखाई, क्योंकि सरकार के मन में विपक्षी दलों का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यही उनकी दुर्दशा है। शिवसेना ने कॉन्ग्रेस वर्किंग कमिटी के नेताओं को इस विषय पर चर्चा करने की सलाह दी है कि उनके ‘सर्वोच्च नेता को घोषित तौर पर अपमानित करने की हिम्मत सत्ताधीश क्यों दिखाते हैं?’

शिवसेना ने कॉन्ग्रेस को ‘सरकार पर टूट पड़ने’ में कमजोर करार देते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस सहित सभी विपक्षी दल ‘किसान आंदोलन’ को धार नहीं दे पाए हैं। साथ ही पश्चिम बंगाल में क़ानून-व्यवस्था बिगाड़ने के लिए भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराया गया है। पूछा गया है कि कॉन्ग्रेस का नेतृत्व अब कौन करेगा? साथ ही उसने कॉन्ग्रेस को ये भी याद दिलाया कि उसके पास अमित शाह जैसे कोई ‘व्यवस्थापक’ भी नहीं है। संपादकीय में आगे लिखा है:

“कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में एक ‘यूपीए’ नामक राजनीतिक संगठन है। उस ‘यूपीए’ की हालत एकाध ‘एनजीओ’ की तरह होती दिख रही है। ‘यूपीए’ के सहयोगी दलों द्वारा भी देशांतर्गत किसानों के असंतोष को गंभीरता से लिया हुआ नहीं दिखता। ‘यूपीए’ में कुछ दल होने चाहिए लेकिन वे कौन और क्या करते हैं? इसको लेकर भ्रम की स्थिति है। शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP) को छोड़ दें तो ‘यूपीए’ की अन्य सहयोगी पार्टियों की कुछ हलचल नहीं दिखती। शरद पवार का एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है, राष्ट्रीय स्तर पर है ही और उनके वजनदार व्यक्तित्व तथा अनुभव का लाभ प्रधानमंत्री मोदी से लेकर दूसरी पार्टियाँ भी लेती रहती हैं।”

बिहार में कॉन्ग्रेस की हार की चर्चा करते हुए ‘सामना’ के संपादकीय में कहा गया है कि राहुल गाँधी की मेहनत में कमी जरूर है। मायावती, अखिलेसग यादव, जगन रेड्डी, नवीन पटनायक, केसीआर ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, प्रकाश सिंह बादल और कुमारस्वामी जैसे नेताओं की पार्टियों को शिवसेना में लाने की बात कही गई है। शिवसेना ने विपक्षी दलों की हालत की तुलना ‘उजड़े हुए गाँव की जमींदारी’ से की है। साथ ही विपक्ष को ‘मरा हुआ’ बताया गया है।

‘सामना’ में इससे पहले भी कई संपादकीय में भाजपा सहित अन्य दलों व लोगों पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की जाती रही हैं। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने अक्टूबर 5, 2020 अपने संपादकीय में सुशांत सिंह राजपूत को असफल और चरित्रहीन कलाकार बताया था। तब अपने संपादकीय में सामना ने कहा था कि बीते दिनों बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे को महाराष्ट्र द्वेष का गुप्तरोग हो गया था और देश के कई अन्य ‘गुप्तेश्वरों’ को (जो महाराष्ट्र पुलिस या सरकार पर सवाल उठा रहे थे) भी यह रोग हो गया था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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